सभी सुख दूर से गुज़रें : आरंभ फिल्म का गीत । मुकेश की आवाज़ । हरीश भादानी को विनम्र श्रद्धांजली
रेडियोवाणी पर मन्ना दा के बारे में अपनी नई पोस्ट की तैयारी कर ही रहा था कि तभी जयपुर से भाई प्रेमचंद गांधी का मेल आया । हरीश भादानी नहीं रहे । हरीश जी को मैं ज्यादा नहीं जानता । उनकी कुछ रचनाएं ज़रूर पढ़ी हैं । प्रेम भाई ने उनके फिल्म 'आरंभ' के गीत के बारे में भी बताया जो फ़ौरन ही उपलब्ध हो गया ।
हरीश जी के बारे में प्रेमचंद गांधी ने यहां विस्तार से लिखा है । इसके अलावा किशोर चौधरी की इस पोस्ट को भी पढ़ा जाना ज़रूरी है ।
फिल्म 'आरंभ' सन 1976 में आई थी । संगीतकार थे आनंद शंकर । इस गाने को मुकेश ने गाया है । सुनिए ।
ये इस गीत का लगभग ढाई मिनिट वाला संस्करण है । यानी इसके कुछ अंतरे गीत में नहीं हैं, पर अपने लालित्य में ये सचमुच अनमोल है ।
सभी सुख दूर से गुज़रें गुज़रते ही चले जाएं
मगर पीड़ा उमर भर साथ चलने को उतारू है
सभी दुख दूर से गुज़रे ...
हमारा धूप में घर छाँव की क्या बात जानें हम
अभी तक तो अकेले ही चले क्या साथ जानें हम
बता दें क्या घुटन की घाटियाँ कैसी लगीं हमको
सदा नंगा रहा आकाश क्या बरसात जानें हम
बहारें दूर से गुज़रें गुज़रती ही चली जाएं
मगर पतझड़ उमर भर साथ चलने को उतारू है
सभी दुख दूर से गुज़रे ...
अटारी को धरा से किस तरह आवाज़ दे दें हम
मेंहदिया पाँव को क्यों दूर का अन्दाज़ दे दें हम
चले शमशान की देहरी वही है साथ की संज्ञा
बरफ़ के एक बुत को आस्था की आँच क्यों दें हम
हमें अपने सभी बिसरें बिसरते ही चले जाएं
मगर सुधियाँ उमर भर साथ चलने को उतारू है
सभी दुख दूर से गुज़रे ...
सुखों की आँख से तो बांचना आता नहीं हमको
सुखों की साख से तो आँकना आता नहीं हमको
चलें चलते रहें उमर भर हम पीर की राहें
सुखों की लाज से ढांपना आता नहीं हमको
निहोरे दूर से गुज़रें गुज़रते ही चले जाएं
मगर अनबन उमर भर साथ चलने को उतारू है
सभी दुख दूर से गुज़रे ...
रेडियोवाणी पर हम हरीश भादानी को विनम्र श्रद्धांजली अर्पित करते हैं ।
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हरीश जी के बारे में प्रेमचंद गांधी ने यहां विस्तार से लिखा है । इसके अलावा किशोर चौधरी की इस पोस्ट को भी पढ़ा जाना ज़रूरी है ।
फिल्म 'आरंभ' सन 1976 में आई थी । संगीतकार थे आनंद शंकर । इस गाने को मुकेश ने गाया है । सुनिए ।
ये इस गीत का लगभग ढाई मिनिट वाला संस्करण है । यानी इसके कुछ अंतरे गीत में नहीं हैं, पर अपने लालित्य में ये सचमुच अनमोल है ।
सभी सुख दूर से गुज़रें गुज़रते ही चले जाएं
मगर पीड़ा उमर भर साथ चलने को उतारू है
सभी दुख दूर से गुज़रे ...
हमारा धूप में घर छाँव की क्या बात जानें हम
अभी तक तो अकेले ही चले क्या साथ जानें हम
बता दें क्या घुटन की घाटियाँ कैसी लगीं हमको
सदा नंगा रहा आकाश क्या बरसात जानें हम
बहारें दूर से गुज़रें गुज़रती ही चली जाएं
मगर पतझड़ उमर भर साथ चलने को उतारू है
सभी दुख दूर से गुज़रे ...
अटारी को धरा से किस तरह आवाज़ दे दें हम
मेंहदिया पाँव को क्यों दूर का अन्दाज़ दे दें हम
चले शमशान की देहरी वही है साथ की संज्ञा
बरफ़ के एक बुत को आस्था की आँच क्यों दें हम
हमें अपने सभी बिसरें बिसरते ही चले जाएं
मगर सुधियाँ उमर भर साथ चलने को उतारू है
सभी दुख दूर से गुज़रे ...
सुखों की आँख से तो बांचना आता नहीं हमको
सुखों की साख से तो आँकना आता नहीं हमको
चलें चलते रहें उमर भर हम पीर की राहें
सुखों की लाज से ढांपना आता नहीं हमको
निहोरे दूर से गुज़रें गुज़रते ही चले जाएं
मगर अनबन उमर भर साथ चलने को उतारू है
सभी दुख दूर से गुज़रे ...
रेडियोवाणी पर हम हरीश भादानी को विनम्र श्रद्धांजली अर्पित करते हैं ।
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9 comments:
हरीश जी का लिखा ये गीत आपने सुना के उनको सची श्रधांजलि दी है आपने. आज वो हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी कविताओ और गीतों से जरिये वो हमेशा हमारे दिलो में गुनगुनाते रहेंगे. अपनी खुद की आवाज़ में....
धन्यवाद् युनुस जी
सुन्दर गीत, धन्यवाद!
हरीश जी को श्रद्धांजलि!
हरीश जी के गीत को सुनवाने के लिये धन्यवाद.
सुरीली श्रद्धांजली...
हरीश जी को हमारे श्रधा सुमन ....ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे
शुक्रिया इतने ख़ूबसूरत गीत के लिए.
युनुस भाई, थेंक यू !! आपके लगाए गीत से खुशबू भी बिखर उठी है !
Hi,
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Webneetech.com
Dear Yunus Bhai,
I have been listening Vividh Bharti for a long time and I really like your voice very much. You've got a great voice!
हाद्रिक श्रद्धांजलि।
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सिर पर मंडराता अंतरिक्ष युद्ध का खतरा।
परी कथाओं जैसा है इंटरनेट का यह सफर।
भाव पूर्ण श्रद्धांजली
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