संगीत का कोई मज़हब, कोई ज़बान नहीं होती। 'रेडियोवाणी' ब्लॉग है लोकप्रियता से इतर कुछ अनमोल, बेमिसाल रचनाओं पर बातें करने का। बीते नौ बरस से जारी है 'रेडियोवाणी' का सफर।

Saturday, September 26, 2009

घिरी घटाएं आसमान पर : लता मंगेशकर का ग़ैर-फिल्‍मी गीत । जन्‍मदिन पर विशेष ।






लता मंगेशकर की आवाज़ तमाम विशेषणों से ऊपर है । उनके जन्‍मदिन पर 'रेडियोवाणी' के ज़रिए हम आपके लिए उनकी एक ग़ैर-फिल्‍मी रचना लेकर आए हैं । अपने ग़ैर-फिल्‍मी गीतों में लता मंगेशकर का स्‍वर एकदम अलग ही रहा है । हालांकि उनके ज्‍यादा ग़ैर-फिल्‍मी अलबम नहीं आए हैं । आपको याद होगा कि लता जी ने ग़ालिब की ग़ज़लों का एक अलबम जारी किया था । जिसके संगीतकार उनके भाई हृदयनाथ मंगेशकर थे । इससे पहले के.महावीर ने उनका एक ग़ैर-फिल्‍मी एलबम तैयार किया था । जो सन 1973 में आया था । जिसमें शकील बदायूंनी की ग़ज़ल 'आंख से आंख मिलाता है कोई',अभिलाष के गीत 'आज की रात ना जा रे' और 'सांझ भई घर आ जा रे' शामिल थे ।

''वर्षा-ऋतु'' नामक जिस अलबम से हमने ये गीत लिया है, वो सन 1969-70 में जारी किया गया था । कई संगीतकार, कई गीतकार और कई गायक इसमें शामिल थे । इसमें मन्‍ना डे के स्‍वर में पंडित नरेंद्र शर्मा की रचना 'नाच रे मयूरा' शामिल थी तो दूसरी तरफ लक्ष्‍मी शंकर, सुमन कल्‍याणपुर और सखियों का गाया गीत था 'बीत जात वर्षा ऋतु पिया नहीं आए ऐ
री' । इसके अलावा 'अमृत धरती पर लाए' (तलत महमूद), सावन मास (मुबारक बेगम), कोयलिया उड़ जा (मुकेश), निबुआ तले डोला (सुधा मल्‍होत्रा), बरसन लागी सावन बुंदियां (बेगम अख्‍तर) जैसी रचनाएं शामिल थीं । इस अलबम को कालजयी होने से भला कौन रोक सकता था । आज भी ये सी.डी. की शक्‍ल में उपलब्‍ध है

बहरहाल सुनिए लता जी की आवाज़ में ग़ैर-फिल्‍मी गीत --घिरी घटाएं ।
song-ghiri ghatayen aasman par
singer-lata mangeshkar
lyrics-sumitra kumar lahiri
music-hridaynath mangeshkar
duration- 4 min.





एक और प्‍लेयर ताकि सनद रहे । 
 






ये रहे इस गाने के बोल

घिरी घटाएं आसमान पर पिय की याद जगाएं रे
उमड़-घुमड़ कर शोर मचाते जैसे बादल काले
वैसे ही तो छल-छल छलके दो नैना मतवाले
मद से भरी पीर बरसाती चलने लगी हवाएं
पिय की याद जगाएं रे ।।
अमराई की घनी डालियों पर कोयलिया कारी
हूक उठाकर, आग लगाकर ढुलकाती मधु-प्‍याली
हिंडोले झूल नवेली, सखियां कजरी गाएं
पिय की याद जगाएं रे ।।
  

अगले दो दिन इंदौर में बीतेंगे । कुछ ब्‍लॉगरों से मुलाक़ात मुमकिन है ।


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11 comments:

सागर नाहर September 26, 2009 at 7:17 PM  

बहुत सुन्दर गीट। कहां कहां से खॊज ले आते हैं आप भी।
तलत महमूद वाला गीत हमारे संग्रह में है। आप आदेश करें तो सुनवा दिया जाये। :)

सागर नाहर September 26, 2009 at 7:17 PM  

और हां बधाई भी ले ही लीजिये। बधाई के कारणॊं पर पोस्ट लिखने का मन बन रहा है।

Mayur Malhar September 26, 2009 at 7:47 PM  

युनुस जी, बहुत सुंदर गीत है. अब तो सीडी खरीदनी ही पड़ेगी. वैसे आप कहा- कहा से यह सारे गीत खोजते हैं. इसकी तो दाद देनी चाहिए. एक बार फिर बधाई. एक चीज भूल गया.................
शकर जयकिशन वाली धून के लिए भी शुक्रिया.

विजय तिवारी " किसलय " September 27, 2009 at 1:14 AM  

यूनुस जी
अभिवंदन
आपके द्बारा किये गए इस तरह के वन्दनीय कार्य के लिए हमारा साधुवाद स्वीकारें.
- विजय तिवारी " किसलय "
जबलपुर , मध्य प्रदेश.
http://hindisahityasangam.blogspot.com/

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` September 27, 2009 at 3:47 AM  

कविता , तथा बंदीश
बहुत अच्छी लगी -

" आओ के एक ख्वाब बुनें ,
जहां भूल आये थे हम
उन फूलों को चुनकर ,
फिर कोइ रात चुनें
आओ के हम कोइ ख्वाब बुने "

हमारी सभी की प्यारी ~ दुलारी लतादीदी को
साल गिरह पर शतं जीवेन शरद:

युनूस भाई ,
आपको बहुत बहुत बधाई :)
- लावण्या

अजित वडनेरकर September 27, 2009 at 4:02 AM  

सुंदर सुरीली पेशकश।
आख से आंख मिलाता है कोई...जबर्दस्त ग़ज़ल है। लता की इस चीज़ को गाना आसान नहीं। क्या मुरकिया हैं। पड़ी है क्या आपके पास?

वाए हैरत कि भरी महफिल में
मुझको तन्हा नज़र आता है कोई

वाणी गीत September 27, 2009 at 7:29 AM  

लताजी के गैरफिल्मी गीत व् गजल बमुश्किल ही सुनने को मिलते हैं ..उनके जन्मदिन पर प्रस्तुत इस अनूठी सौगात का बहुत आभार.
स्वरों की सम्राज्ञी लता मंगेशकर जी को जन्मदिन की बहुत शुभकामनायें ..!!

दिलीप कवठेकर September 27, 2009 at 12:59 PM  

क्या खूबसूरत गीत है, और संगीतकारों में अग्रज हृदयनाथ मंगेशकर की मनभाती धुन.

यूनुस भाई, इंदौर में आपका स्वागत है.

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } September 28, 2009 at 8:49 AM  

आपके माध्यम से स्वर कोकिला भारत रत्न लता मंगेशकर जी को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाये .

संजय पटेल October 4, 2009 at 11:39 PM  

मन्ना दा के बाद लता दी की ये रचना सुन ली और टिप्पणी लिखने का मोह संवरण इसलिये नहीं कर पाया क्योंकि इसी दौरान मेरे शहर में शरद पूर्णिमा के ऐन दूसरे दिन मेह बरस रहा है. इसे मालवा में मावठा भी कहते हैं.सो इन बूंदन के साथ लता जी की ये मनभावन रचना कान में मिसरी से घुली जा रही है. क़ुदरत ने इस महान गायिका को कैसे करिश्माई सुर से नवाज़ा है युनूस भाई....कविता पर अठखेली करता सुर चढ़े जा रहा है. पण्डित मंगेशकरजी ने कितना कम काम किया है लेकिन वह कितना महान और दुर्लभ है न. इस कम्पोज़िशन को सुनते समय शब्दों के बीच गिरह की गई सरगम पर ग़ौर कीजियेगा...छोटी सी जगह में ह्रदयनाथजी ने सुकंठी लता दीदी से अपने मरहूम उस्ताद अमीर ख़ाँ साहब के तान अंग के दीदार करवा दिये हैं.

Kedar October 11, 2009 at 6:19 PM  

सलाम लताजी को, ह्रदयनाथजी को और आपको...जिसकी वजह से इतना अद्भूत गाना सुननेको मिला I आगाज़ में राग मल्हारका बेहतरीन उपयोग किया है ह्रदयनाथजी ने और उतनी ही खूबसूरती से निभाया है लताजी ने.... मन पुलकित हो गया...इस एल्बम की जानकारी के लिए भी शुक्रिया....

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