तुम्हें याद होगा कभी हम मिले थे : फिल्म सट्टा बाज़ार : श्रद्धांजलि गुलशन बावरा
रेडियोवाणी पर गुलशन बावरा का जिक्र पहली बार नहीं हो रहा है । हम उनके पक्के शैदाईयों में से रहे हैं । चाहे पंचम के तूफानी युवा गीत हों या फिर पुराने ज़माने वाले मेलोडीयस गाने.....गुलशन की कलम ने हमें गुनगुनाने के कई बहाने दिए । दिलचस्प बात ये है कि हम 'खुल्लम खुल्ला प्यार करेंगे' जैसे गाने पर भी वैसे ही झूमते हैं जैसे गुलशन बावरा के लिखे 'बीते हुए दिन कुछ ऐसे ही हैं' पर । हम मानते हैं कि संगीत का कोई एक युग नहीं
होता । ये तो एक 'महा-धारा' है जिसमें असंख्य सहायक धाराएं मिल रही हैं । इसलिए हम एक साथ कई युगों और कई शैलियों वाले गीतों के प्रशंसक हो सकते हैं ।
गुलशन बावरा से हमारी कई बार की मुलाक़ात थी । और उनकी किस्सागोई के कायल रहे हैं हम, उनकी सादगी के भी । गुलशन वही गीतकार हैं जो बंबई रेलवे के माल-गोदाम में क्लर्की करते हुए पंजाब से आने वाले गेहूं के हज़ारों बोरों को उतरते देख अनायास अपने बही-खाते के किसी कोने में एक पंक्ति दर्ज कर ली 'मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती' । बही-खाते से निकली ये पंक्ति जब संघर्ष के दिनों के साथी मनोज कुमार के सामने उजागर हुई तो 'उपकार' के ज़रिए वो हर पीढ़ी की ज़बान पर दर्ज हो गई । इस गाने को दरअसल देशभक्ति के भोंपुओं ने इत्ता पीटा है कि इसका 'वेल्यू' कम हो गई है । पर इसकी एक एक पंक्ति दिल को छू लेने वाली है । अफ़सोस यही है कि 'देश की धरती...ई....ई...ई...' की तान पर महेंद्र कपूर और मनोज कुमार को जितना क्रेडिट मिलता है उतना इस 'बावरे' गीतकार को नहीं मिलता ।
गुलशन बावरा ने कई बेमिसाल गीत लिखे हैं । ये वो गीत हैं जो एक तरफ़ इंसानी-रिश्तों के खोखलेपन का बयान भी करते हैं तो दूसरी तरफ़ रिश्तों की गर्माहट और आत्मीयता पर पक्का भरोसा भी ज़ाहिर करते हैं । गुलशन के कुछ गीत तो जैसे मुहावरा बन गए हैं । ‘हर ख़ुशी हो वहां तू जहां भी रहे, जिंदगी हो वहां तू जहां भी रहे’—विडंबना देखिए कि बेवफ़ाई की सिचुएशन पर लिखे इस गीत के जुमले को आम-जनता एक आर्शीवाद के रूप में ‘इस्तेमाल’ करती है ।
राहुल देव बर्मन और गुलशन बावरा का याराना बड़ा मशहूर रहा है । गुलशन राहुल देव बर्मन से जुड़ी कई घटनाएं बताते हैं । बल्कि पिछले साल तो उन्होंने राहुल देव बर्मन की याद में एक अलबम भी जारी किया था, जिसका नाम है—‘अनटोल्ड स्टोरीज़’ । इसमें उन्होंने कुछ गानों के बनने की कहानी बताई है ।
ऐसी ही एक प्रसिद्ध घटना है फिल्म ‘क़स्मे-वादे’ के शीर्षक गीत की, पंचम ने जब इसकी ट्यून बनाई तो उसे एक कैसेट पर रिकॉर्ड करके दे दिया । बावरा जब घर पहुंचे तो उन्होंने ये कैसेट सुना और दंग रह गए । कैसेट में आर.डी. ने बस इतना गाया था—‘चाबू चाबू चिया चिया चाबू चाबू चिया’ । आखिरकार परेशान होकर गुलशन ने पंचम को फोन करके कहा कि भाई ये क्या है, पर्दे पर अमिताभ और राखी गाना गायेंगे । कोई अच्छा मीटर तो दे । आखिरकार पंचम ने कहा मैं तेरे घर आता हूं । वो गुलशन के घर आए और उनकी पत्नी अंजू से गुनगुनाते हुए बोले—‘सरसों का साग पकाना अंजू, मक्के की रोटी खिलाना अंजू, पहले तू मेरा एक पैग बना तू, ट्यून यही है गुल्लू समझ गया तू’ । गुलशन बावरा ने इन डमी-बोलों पर लिखा—‘क़स्मे वादे निभायेंगे हम, मिलते रहेंगे जनम जनम’ ।
पंचम और गुलशन की जोड़ी ने कई दिलचस्प गाने दिये हैं—आती रहेंगी बहारें, दिलबर मेरे कब तक मुझे, खुल्लम खुल्ला प्यार करेंगे, हमने तुमको देखा, बचके रहना रे बाबा, तू मैके मत जइयो, तुमको मेरे दिल ने, कितने भी तू कर ले सितम, शीशे के घरों में देखो तो पत्थर दिल वाले रहते हैं जैसे बेमिसाल गाने दिये हैं । ये पंचम का सुनहरा दौर था और आज के एफ एम चैनल इन्हीं गानों के ज़रिए युवा श्रोताओं को लुभाने का प्रयास करते
हैं ।
रेडियोवाणी पर हम गुलशन बावरा का एक ऐसा गीत सुना रहे हैं जिसके लिए वो जाने नहीं जाते । ये उनके नाम से मशहूर गीत नहीं है । सन 1959 में आई थी फिल्म 'सट्टा बाजा़र' । संगीतकार थे कल्याण जी वीर जी शाह । यानी अकेले कल्याण जी । ज़रा गुलशन के लिखे इस गीत से होकर गुज़रिए फिर कहिए कैसा लगा आपको ।
तुम्हें याद होगा कभी हम मिले थे
मुहब्बत की राहों में संग-संग चले थे
भुला दो मुहब्बत में हम-तुम मिले थे
सपना ही समझो कि मिल के चले थे ।
सहारा है यादों का तन्हाईयों में
कहीं और दिल की दुनिया बसा लो
क़सम है तुम्हें वो क़सम तोड़ डालो
तुम्हें याद होगा ।।
अगर जिंदगी हो अपने ही बस में
तुम्हारी क़सम ना भूलें वो क़स्में
तुम्हें याद होगा ।।
ये गाना यहां पर देखा जा सकता है ।
19 comments:
वर्षों के बाद अपने युवा अवस्था के एक प्यारे से गीत को सुनाने के लिए आभार. आज का दिन यही गीत गुनगुनाते गुजारेंगे. सत्ता बाज़ार के गीत इस गीत के बोल जो आपने दिए हैं सहायक रहेंगे परन्तु एक गलती हो गयी है. दूसरी पंक्ति में "संग संग" के बदले "मिलके" होना चाहिए. कृपया सुधार लें.
बडी अफसोस जनक खबर फिल्मी दुनिया से आई कि गुलशन बावरा जी नही रहे। पर उनके गीत सदा रहेगे। भगवान उनकी आत्मा को शांति और उनके परिवार को हिम्मत दें।
इस महान फिल्म गीतकार को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि
आप से हम को बिछडे हुए एक ज़माना बीत गया ....
बना के क्यों बिगाड़ा रे .. बिगाड़ा रे नसीबा .....
चाँद को क्या मालूम ......
चांदी के चाँद टुकडों के लिए ....
यारी है ईमान मेरा यार मेरी ज़िन्दगी ....
हम ने जो देखे सपने .....
सुलझाओ न उलझी जुल्फों को ....
और भी न जाने कितने यादगार गीत याद आ गए यूनुस भाई.... गुलशन बावरा को कभी वो क्रेडिट नहीं मिला जो मिलना चाहिए था .... कभी हो सके तो ये गीत सुनवाइये ......
सुलझाओ न उलझी जुल्फों को ....
दिलचस्प...युनुस जी क्या उपकार का "कसमे वादे प्यार वफ़ा सब बाते है बातो का क्या " ओर दीवानों से मत पूछो की "भी गुलशन जी ने लिखे थे ?
गुलशन बावरा को पहली बार उपकार से जाना था। तब शायद आठवीं या नौवीं कक्षा में पढ़ता था। पर्दे पर भी उन्हें उसी फिल्म में देखा था। दोनों रूपों में तालमेल नहीं बैठता था। लेकिन दोनों को मिला कर देखने पर एक जहीन और खुशमिजाज इंसान सामने आता था। आज तक वही चित्र मस्तिष्क में बैठा हुआ है। उन्हें हार्दिक विनम्र श्रद्धांजलि।
मनमोहक गीत लिखने वाले बावरा को मेरी श्रद्धान्जलि!
जीवन भ्रर तो सिने-जगत के माध्यम से संसार को इतना कुछ दिया ही; जीवन के बाद भी देने का यह सिलसिला थमा नहीं गुलशन बावरा जी का ।
जाते-जाते अपनी सम्पूर्ण नश्वर देह भी दान कर गये दूसरों के लिये ।
ऐसे महादानी को शत-शत नमन !
विनम्र श्रद्धांजलि।
http://som-ras.blogspot.com
विनम्र श्रद्धांजलि।
http://som-ras.blogspot.com
सुब्रमणियम जी---
शु्क्रिया गलती सुधारने के लिए ।
अनुराग जी---
बहुत ही सहज सवाल है आपका ।
लेकिन इसका जवाब भी दिलचस्प है ।
कस्मे-वादे प्यार वफा--इंदीवर की रचना है ।
और दीवानों से मत पूछो---क़मर जलालाबादी की रचना है ।
इन यादों को हमसे बांटने का धन्यवाद. इस अमर संगीतकार को मेरी ओर से भी श्रद्धांजली.
'डाकसाब' द्वारा दी जानकारी ने इनके प्रति श्रद्धा और भी बढा दी.
श्रद्धांजली...
गुलशन बावरा जी
उनके सुमधुर गीतों में
अमर रहेंगें
मेरी विनम्र श्रध्धांजलि
- लावण्या
जहां इस महान गीतकार के जाने का अफ़सोस है वहीं आप की पोस्त पढ़ कर मजा आ गया…गीत तो मेरे पसंदीदा गीतों में शुमार है ही।
एक सवाल है मन में क्या जंजीर फ़िल्म में
"दिवाने हैं दिवानों को न घर चाहिए, घर चाहिए
महौब्बत भरी इक नजर चाहिए…॥"
ये गाना भी इनका ही लिखा हुआ है?
ये गाना कब सुनवायेगें…।:)
Are aapki ye post to miss huyi ja rahi thi aur hum Gulzar jo padh kar hi nikal liye the ki ghoomte ghante phir yahan pahunch gaye. Lagta hai aapki blog ki gadi seedhe Ist gear se IVth gear mein aan padi hai :).
Humein to Khullam khulla itna pasand tha un dinon mein ki kya kahein. Infact 70 aur assi ke dashak mein unke kayi geeton ko humari peedhi ne khasa enjoy kiya.
Aaj din mein ek post humne bhi likhi hai Gulshan Bawra par kal shaam ke liye schedule ki hai. Uski shuruaat isi geet se kari hai jiski aapne charcha ki.
हा हा पहले से चौथे गियर ।
हां मनीष पता नहीं कभी कभी लगातार लिखने की धुन चढ़ जाती है । आजकल वही चढ़ी है । पर डोन्ट एक्सपेक्ट मच । हो सकता है हम फिर से गियर बदल लें ।
आपने दो दिन पहले के दैनिक भास्कर में म’ाहूर गीतकार स्वर्गीय गुल’ान बावरा के पर बहुत ही अच्छा व पठनीय लेख प्रस्तुत किया। इसके लिए आपका ‘ाुयिा और आपको इस बात के लिए भी बधाई दी जानी चाहिए कि आपने बड़े मौके पर पूरी स्प”टवादिता से काम लेते हुए यह लिखा कि गुल’ान बावरा को उतना सम्मान नहीं मिल पाया जिसके वे हकदार थे।
वास्तव में यह बात आज की नहीं है वर्”ाों से इस प्रकार का व्यवहार होता आया है और खासकर गीतकार के वि”ाय में तो यह परंपरा बहुत पुरानी है क्योंकि फिल्म में सिवाय पर्दे पर उसका नाम लिखे जाने के सिवाय और कहीं कोई जि होता ही नहीं सिर्फ गायक और अभिनेता ही म’ाहूर हो पाते हैं कई बार तो संगीतकार भी पिछड़ जाते हैं फिर भी आज के टीवी चैनलों पर जिस प्रकार दिवंगत फिल्मी हस्तियों के बारे में दिखाया और बताया जाता है उतना कौना या प्रचार का टाइम गुल’ान बावरा को नहीं दिया गया जबकि उनके गीतों में रा”टप्रेम, साहित्य और सामायिक संदर्भ के अलावा जीवन की कड़वी सच्चाइयां और दैनिक क’ामक’ा यानी हर तरह के वि”ाय पर उन्होंने कलम चलाई।
फिल्म ‘वि’वास’ का यह गीत जिसका जि ‘ाायद आपने भी नहीं किया - "चांदी की दीवार न तोड़ी प्यार भरा दिल तोड़ दिया, इक धनवान की बेटी ने निर्धन का दामन छोड़ दिया।"
सो अगर टीवी चैनल ने एक गरीब गीतकार को कोई फुटेज नहीं दी तो उसमें कौन-सा नई रीत बनाई बल्कि पुरानी लकीर को ही लकीर का ही फकीर बनकर दिखाया।
हां, एक बात अव’य कहना चाहूंगा आपके लिए कि आपके द्वारा बताई गई फिल्म ‘माडर्नगर्ल’ का यह गीत - ‘यह मौसम रंगीन ‘ामां ठहर जरा औ जानेजां’ मेरी याददा’त के अनुसार ‘ाायद राजेंद्र कृ”ण का लिखा हुआ है न कि गुल’ान बावरा का।
- जय भगवान गुप्त ‘राके’ा’
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