अठन्नी-सी ये जिंदगी : फिर रविवार-फिर गुलज़ार
कुछ गाने कैसे अनायास याद दिला दिए जाते हैं । 'फेसबुक' पर पवन झा ने आज लिखकर टांग दिया 'कभी चांद की तरह टपकी, कभी राह में पड़ी पाई, अठन्नी-सी ये जिंदगी' । और ये गाना अचानक हमारे ज़ेहन में ताज़ा हो गया । जहां तक याद आता है, मुंबई में हमारे शुरूआती साल ही थे जब ये फिल्म आई थी । और वो कैसेट्स का ही ज़माना था । ज़ाहिर है कि ये कैसेट हमने छोड़ा नहीं । अब भी संग्रह में है ।
गुलज़ार अपने 'एक्सप्रेशन' में कितने कमाल हैं यहां । ज़रा-सा गाना है तीन मिनिट बारह सेकेन्ड का । लेकिन दिलो-दिमाग़ पर छा जाता है । ये वही टीम है 'कमीने' वाली । यानी गुलज़ार और विशाल भारद्वाज की टीम । विशाल अपनी इस कंपोज़ीशन में उसी तरह 'एक्सपेरीमेन्टल' हैं जैसे वो हमेशा होते हैं । हरिहरन पर तो आंख मूंदकर भरोसा किया जा सकता है कि वो जब भी गायेंगे और जो भी गायेंगे अच्छा ही गायेंगे । तो आईये अपनी जिंदगी को 'अठन्नी-सी जिंदगी' कहें । और इस गाने से होकर गुज़रें ।
song-aththanni si zindagi
singer-hariharan
lyrics:gulzar
music-vishal
film-jahan tum le chalo
duration-3-12
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ये इस गाने का वीडियो तो नहीं है पर एक प्रेजेन्टेशन ज़रूर है ।
10 comments:
फिल्म में गीत का अपना मकसद है जिसे वह पूरा करता है। लेकिन मुझे यह गीत अधिक पसंद नहीं आया। उल्लेखनीय नहीं।
यूट्यूब वाला खुराफात बढ़िया है। हम भी करने को उद्धत हो सकते हैं। बस हमारे पास स्वर नहीं हैं! :(
Vakai behtar geet hai.Is team ka to javab hi nahin !
गुलजार साहब का जवाब नही छोटी कविता और भाव गहराई लिए हुये हरिहरण ने इसे बहुत सुंदर गाया है और विडियो को कुछ खट्टा कुछ मीठा या मनोरंजक कह सकते है!
गाना सुनना तो सम्भव नही है क्योंकि रात हो चुकी है। पर गुलजार जी की तो बात ही कुछ और है उनका लिखा दिल को छूता है। जो पल उनके लिखे को पढने या सुनने में बीतता है तो लगता है यह वक्त बर्बाद नही गया। सच उस पल को दिल से जी लिया।
आश्चर्य हुआ, कि हरिहरन थोडा सा कनसुरा हो सकते हैं. (यू ट्युब) मगर जब प्लेयर पर सुना तो ठीक से सुना, और समझ आया कि मूव्ही बनाते समय ऒडियो में गडबड हुई है!!
हारमोनी के उपयोग के अलावा इस गीत में और श्रवणीय नहीं मिला. मगर इसे सुन कर माचिस के गीतों की याद ज़रूर आयी.
हां , ये लिखना तो भूल ही गया कि गुलज़ार साहब नें कमाल का लिखा है,(जिस बात पर पोस्ट लिखी गयी है)
गाने के बोलों के साथ शीशे के मर्तबानों का प्रेजेंटेशन बढ़िया है ..!!
@युनुस जी आप मेरी पोस्ट पर तांडवस्त्रोत्र क्यो नही सुन पाये ये तो नही जानती ,पर इसका अफ़सोस है...
गुलज़ार साहब की क़लम में ग़ज़ब का जादू है। यह गाना इस बात को एक बार फिर पुख़्ता करता मालूम होता है। संगीत भी बढ़िया है। अचरज की बात यह है कि यह गाना मैंने आज से पहले कभी सुना नहीं था। आपकी बदौलत सुन सका... शुक्रिया।
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