आर.डी.बर्मन के जन्मदिन पर गुलशन बावरा के संस्मरण और उनके कुछ बेहतरीन गीत
आज राहुल देव बर्मन का अड़सठवां जन्मदिन है ।
इस अवसर पर मैं उनके स्वरबद्ध किये और अपने पसंदीदा कई गीत यहां प्रस्तुत कर सकता था और बहुत सारी बातें लिख सकता था ।
लेकिन दो दिन पहले टाइम्स ऑफ इंडिया के मुंबई संस्करण में गुलशन बावरा के संस्मरण छपे हैं । जिनमें उन्होंने बहुत ही शिद्दत से पंचम को याद किया है । इन्हीं संस्मरणों के कुछ अंश और साथ में वो गीत भी जिनका यहां ज़िक्र आया है ।
गुलशन बावरा कहते हैं---
तेरह साल हो गये हैं राहुल देव बर्मन को गये । जिन्हें हम सब दोस्त पंचम के नाम से पुकारते थे । मैं मानने को तैयार नहीं हूं कि वो इस दुनिया से चला गया, वो यहीं है, हर पल हमारे साथ है । मैंने उन्नीस साल की रचनात्मक यात्रा की थी पंचम के साथ । 1974 से लेकर 1993 तक हर साल पंचम दा और आशा जी सत्ताईस जून को हमारे घर आते थे और मेरी पत्नी अंजू के साथ पंचम का जन्मदिन बिताते थे । पर 1994 के बाद ये सिलसिला थम गया ।
मेरे पास कई ऐसे टेप हैं, जिनमें हमारी औपचारिक बातचीत, लड़ाई झगड़े, विवाद, हंसी मज़ाक़ सब कुछ रिकॉर्ड है । जब भी पंचम की याद आती है मैं ये टेप सुन लेता हूं और यक़ीन मानिए आंखें भर आती हैं ।
इन रिकॉर्डिग्स के ज़रिए ही मुझे ये विचार आया कि क्यों ना पंचम को ऐसी श्रद्धांजली दूं कि ज़माना याद करे । एक ऐसा अलबम तैयार करूं, जिसमें ना केवल पंचम के शानदार गाने हों बल्कि हमारी रचनात्मक बातचीत भी हो ।
हम दोनों जिंदगी को भरपूर जीने में यकीन रखते थे । पंचम के और मेरे घर के दरम्यान तीन किलोमीटर का फ़ासला था । मेरे बेडरूम से उसका बेडरूम नज़र आता था ।
मैं आपको एक राज़ की बात बताऊं । पंचम बहुत अच्छा खाना बनाता था । यहां तक कि मेरी पत्नी अंजू से उसने कई पकवान बनाने सीखे । उसे हमारे घर का सरसों का साग बहुत पसंद था ।
मुझे याद है एक दिन वो कोई नई डिश आज़मा रहा था । वो खाना बनाते हुए चम्मच भी बजा रहा था और अपनी कोई धुन गुनगुना रहा था । बजाते हुए मुझसे बोला—लोग जलतरंग बजाते हैं, मैं चमचा तरंग बजा रहा हूं । आपको पता है, किचन में बजाई इसी धुन पर उसने ये गाना बनाया था । फिल्म थी सनम तेरी क़सम ।
इस अवसर पर मैं उनके स्वरबद्ध किये और अपने पसंदीदा कई गीत यहां प्रस्तुत कर सकता था और बहुत सारी बातें लिख सकता था ।
लेकिन दो दिन पहले टाइम्स ऑफ इंडिया के मुंबई संस्करण में गुलशन बावरा के संस्मरण छपे हैं । जिनमें उन्होंने बहुत ही शिद्दत से पंचम को याद किया है । इन्हीं संस्मरणों के कुछ अंश और साथ में वो गीत भी जिनका यहां ज़िक्र आया है ।
गुलशन बावरा कहते हैं---
तेरह साल हो गये हैं राहुल देव बर्मन को गये । जिन्हें हम सब दोस्त पंचम के नाम से पुकारते थे । मैं मानने को तैयार नहीं हूं कि वो इस दुनिया से चला गया, वो यहीं है, हर पल हमारे साथ है । मैंने उन्नीस साल की रचनात्मक यात्रा की थी पंचम के साथ । 1974 से लेकर 1993 तक हर साल पंचम दा और आशा जी सत्ताईस जून को हमारे घर आते थे और मेरी पत्नी अंजू के साथ पंचम का जन्मदिन बिताते थे । पर 1994 के बाद ये सिलसिला थम गया ।
मेरे पास कई ऐसे टेप हैं, जिनमें हमारी औपचारिक बातचीत, लड़ाई झगड़े, विवाद, हंसी मज़ाक़ सब कुछ रिकॉर्ड है । जब भी पंचम की याद आती है मैं ये टेप सुन लेता हूं और यक़ीन मानिए आंखें भर आती हैं ।
इन रिकॉर्डिग्स के ज़रिए ही मुझे ये विचार आया कि क्यों ना पंचम को ऐसी श्रद्धांजली दूं कि ज़माना याद करे । एक ऐसा अलबम तैयार करूं, जिसमें ना केवल पंचम के शानदार गाने हों बल्कि हमारी रचनात्मक बातचीत भी हो ।
हम दोनों जिंदगी को भरपूर जीने में यकीन रखते थे । पंचम के और मेरे घर के दरम्यान तीन किलोमीटर का फ़ासला था । मेरे बेडरूम से उसका बेडरूम नज़र आता था ।
मैं आपको एक राज़ की बात बताऊं । पंचम बहुत अच्छा खाना बनाता था । यहां तक कि मेरी पत्नी अंजू से उसने कई पकवान बनाने सीखे । उसे हमारे घर का सरसों का साग बहुत पसंद था ।
मुझे याद है एक दिन वो कोई नई डिश आज़मा रहा था । वो खाना बनाते हुए चम्मच भी बजा रहा था और अपनी कोई धुन गुनगुना रहा था । बजाते हुए मुझसे बोला—लोग जलतरंग बजाते हैं, मैं चमचा तरंग बजा रहा हूं । आपको पता है, किचन में बजाई इसी धुन पर उसने ये गाना बनाया था । फिल्म थी सनम तेरी क़सम ।
|
फिल्म शोले के लिये गब्बर सिंह की थीम तैयार की जा रही थी । इसे तांबे के एक पॉट से निकाला गया था । बर्तन के बीच वाले हिस्से में पानी उड़लते वक्त वहां कुछ नलियां रखी गयी थीं जो अजीब अजीब सी आवाज़ करती थीं । पानी उड़ेलने के इस प्रयोग को पंद्रह बीस बार दोहराने के बाद पंचम को वो ध्वनि मिल गयी, जिसकी उसे चाहत थी । और फिर उसे दूसरे पश्चिमी वाद्यों के साथ मिक्स करके बनी गब्बर की थीम ।
फिल्म अब्दुल्ला में उसे रेगिस्तान की हवाओं की आवाज़ चाहिये थी । इसके लिए उसने एक खोखले बांस पर ग़ुब्बारा बांधा और उसमें से हवा धीरे धीरे छोड़ी । इस तरह वो आवाज़ निकली ।
फिल्म खुश्बू के गाने ‘ओ मांझी रे’ के लिए उसे नाव की चप्पू की आवाज़ चाहिये थी । पंचम ने कई बोतलों में पानी भरा, किसी में ज्यादा किसी में कम । और उनमें फूंक मारी । इससे उसे नाव पर नदी की लहरों के थपेड़े की आवाज़ मिली ।
|
एक बार किसी गाने के लिए उसे बारिश की बूंदों की आवाज़ चाहिये थी । पंचम ने इसके लिए पूरी रात अपने घर की बालकनी में बिताई और बारिश की आवाज़ रिकॉर्ड करता रहा, जब तक कि उसे अपना मनपसंद साउंड नहीं मिल गया ।
फिल्म पड़ोसन के इस गाने के लिए उसने ना जाने कितने बर्तन खटकाये थे ।
|
फिल्म यादों की बारात के इस गाने में भी बोतलों और कांच के ग्लास का इस्तेमाल किया गया है ।
यहां देखिए
यहां सुनिए । यहां आप आर.डी.बर्मन की आवाज़ भी सुन सकते हैं ।
|
आर.डी.बर्मन और आशा भोसले के एक कंसर्ट का वीडियो
और चलते चलते आपको ये बताना है कि आज धिन गाना प्लेयर पर मैंने आर.डी.बर्मन के कुछ गाने चढ़ाए हैं । ये प्लेयर इस चिट्ठे पर ऊपर बाईं ओर है ।
अब आप बताईये क्या आप आर.डी. बर्मन के बारे में कुछ कहना चाहते हैं ।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
© Blogger templates Psi by Ourblogtemplates.com 2008 यूनुस ख़ान द्वारा संशोधित और परिवर्तित
Back to TOP
7 comments:
आर .डी.बर्मन जी के बारे मे जानकार अच्छा लगा और सबसे बड़ी बात ये कि वो हर आवाज के लिए इतनी मेहनत करते थे ये तो बहुत ही कम लोग जानते होंगे। जानकारी देने का शुक्रिया और बधाई।
रोचक जानकारी हेतु धन्यवाद
R.D. ne geeton ko alag culture diya aur western music se joda.
Sangeetkaar ke roop main shaayad Teesari Manzil unki pahali film thi jisme Mohd. Rafi ke yahoo andaaz ko aage badaaya.
iske alaava Asha Bhonse ki awaaz ko O.P. Nayyar se alag disha main trained kiya jaise yeh geet -
Piya tu ab tu aa jaa -
film - Kaarva
Duniya main logo ko dhokha kabhi ho jata hai - Film - Apna Desh
Annapurna
बहुत दिनों बाद सुना गीत ओ माझी रे! गीत, संगीत एवं आवाज का सुंदर सम्मिश्रण, मन को कुछ देर के लिये अंजान गहराइयों में ले कर छला जाता है.......!
युनूस भाई शुक्रिया इस पोस्ट के लिये.......
वाह, बहुत ही रोचक पोस्ट. पंचम दा का जन्म दिन मनाने का इससे बेहतर और क्या तरीका हो सकता है, साधुवाद.
पंचम 'दा के बारे में संस्मरण पढ़ कर मज़ा आ गया ...उनके जन्म दिवस पर यादों की पुष्पांजलि ! वैसे में कभी-कभी सोचता हूँ की हम भारतीय कितने भाग्यशाली लोग हैं कि हमारे यहाँ ऐसे-ऐसे महान कलाकारों ने जन्म लिया और अपनी कला बिखेर कर हमेशा के लिए अपना नाम अमर कर दिया...एक बात और...इन सब दिग्गाजो में घमंड का कहीँ नामों-निशाँ तक नहीं था ! उनको इस बात का शायद कभी एहसास नहीं हुआ होगा कि वो लोग अपने कार्य क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ थे...ये तथ्य गौर करने योग्य है ...विशेषकर वर्तमान के कलाकारों के संदर्भ में ...!
Post a Comment
if you want to comment in hindi here is the link for google indic transliteration
http://www.google.com/transliterate/indic/