संगीत का कोई मज़हब, कोई ज़बान नहीं होती। 'रेडियोवाणी' ब्लॉग है लोकप्रियता से इतर कुछ अनमोल, बेमिसाल रचनाओं पर बातें करने का। बीते नौ बरस से जारी है 'रेडियोवाणी' का सफर।

Sunday, July 5, 2009

जिहाले मिस्किन मकुन बरंजिश- छाया गांगुली की आवाज़

पिछले दिनों मैंने अपनी फेसबु‍क प्रोफाइल पर 'थोड़ा-सा रूमानी हो जाएं' फिल्‍म के गाने लगाए थे और तब छाया जी की याद आ गयी थी । छाया जी यानी छाया गांगुली जिन्‍हें 'गमन' फिल्‍म के गी‍त 'रात भर आपकी याद आती रही' के लिए संभवत: सन 1980 में सर्वश्रेष्‍ठ गायिका के 'राष्‍ट्रीय-पुरस्‍कार' से नवाज़ा गया था ।


छाया जी का जिक्र 'रेडियोवाणी' पर पहले भी होता रहा है । लेकिन आज एक बड़ी ही अद्भुत रचना के लिए छाया जी की आवाज़ रेडियोवाणी पर गूंजने वाली है । बहुत बरस पहले आई थी जे.पी.दत्‍ता की फिल्‍म 'ग़ुलामी' । ये हमारी जिंदगी में ब्‍लैक-एंड-व्‍हाईट टी.वी. और चित्रहार वाले दिन थे । चित्रहार में 'जिहाले मिस्किन मकुन बरंजिश, बहारे हिजरां विचारा दिल है' वाला गीत खूब दिखाया जाता था । बस की छत पर बैठे मिथुन चक्रवर्ती और शायद नायिका अनीता राज वाला दृश्‍य ज़हन में एकदम बस ही गया था । बाद में जब जे.पी.दत्‍ता से मुलाक़ात हुई तब भी मैंने उन्‍हें याद दिलाया था कि कैसा जुनून था हमें उस गाने को देखने का । क्‍योंकि उसके बोल अजीब से थे ।



ये तो बहुत बाद में पता चला कि जनाब गुलज़ार ने हज़रत अमीर ख़ुसरो की रचना की पंक्ति लेकर आगे का गीत ख़ुद रचा है । फिर जब 'जि़हाले मिस्‍‍कीं' पढ़ी तो ये अजीब-सी रचना
लगी । साल 2006 में 'उमराव जान' बनाने वाले मुज़फ्फर अली ने एक अलबम तैयार करवाया था--'हुस्‍न-ए-जानां' । इस अलबम में छायाजी ने यही रचना गयी है । एकदम शुद्ध रूप में । केवल जिक्र के लिए आपको बता दें कि इसी अलबम में छाया जी का गाई नज़ीर अकबराबादी की हमारी पसंदीदा रचना भी है--'जब फागुन रंग झमकते हों तो देख बहारें होली की' । और क़ुली कुतुबशाह की रचना 'पियाबाज प्‍याला' भी । ज़ाहिर है कि अगर कभी हमें अपनी मर्जी और सुविधाओं के साथ 'हाइबरनेशन' पर जाना पड़े तो बाक़ी चीज़ों के साथ इस अलबम को ले जाना नहीं भूलेंगे ।



दरअसल हज़रत अमीर खु़सरो की ये रचना कई कलाकारों ने अपनी तरह से गाई है । हमारी कोशिश होगी कि एक श्रृंखला तैयार करके इसके सभी संस्‍करण आप तक पहुंचाए जाएं । फिल्‍म 'ग़ुलामी' वाले संस्‍करण समेत । बहरहाल--हज़रत अमीर ख़ुसरो की मूल रचना आप तक पहुंचाई जा रही है भारत सरकार की वेबसाइट technology development for indian languages यानी http://tdil.mit.gov.in/ के सौजन्‍य से । इस साइट के 'इस पेज' पर हज़रत अमीर ख़ुसरो की ये रचना और इसकी थोड़ी मीमांसा भी दी गई है ।

"जिहाल-ए-मिस्कीं मकुन तगाफुल, दुराय नैना बनाय बतियाँ।
किताबे हिज्राँ, न दारम ऐ जाँ, न लेहु काहे लगाय छतियाँ।।
शबाने हिज्राँ दराज चूँ जुल्फ बरोजे वसलत चूँ उम्र कोताह।
सखी पिया को जो मैं न देखूँ तो कैसे काटूँ अँधेरी रतियाँ।
यकायक अज़दिल दू चश्मे जादू बसद फरेबम बवुर्द तस्कीं।
किसे पड़ी है जो जा सुनावे पियारे पी को हमारी बतियाँ
चूँ शम्आ सोजाँ, चूँ जर्रा हैराँ, हमेशा गिरियाँ ब इश्के आँ माह।
न नींद नैंना, न अंग चैना, न आप आये न भेजे पतियाँ।।
बहक्के रोजे विसाले दिलबर के दाद मारा फरेब खुसरो।
सपीत मन के दराये राखूँ जो जाय पाऊँ पिया की खतियाँ।।
या (दुराय राखो समेत साजन जो करने पाऊँ दो बोल-बतियाँ।)

अर्थात मुझ गरीब मिस्कीन की हालत से यूँ बेख़बर न बनो। आँखें मिलाते हो, आँखें चुराते हो और बातें बनाते हो। जुदाई की रातें तुम्हारी कारी जुल्फ़ों की तरह लंबी व घनी है। और मिलने के दिन उम्र की तरह छोटे। शमा की मिसाल मैं सुलग रहा हूँ, जल रहा हूँ और ज़र्रे की तरह हैरान हूँ। उस चाँद की लगन में आ मेरी ये हालत हो गई कि न आँखों को नींद है न बदन को चैन, न आप आते हैं न ख़त लिखते हैं ।

विकीपीडिया पर मुझे इस रचना का अंग्रेज़ी अनुवाद मिला, जो इस तरह से है ।


Do not overlook my misery
Blandishing your eyes, and weaving tales;
My patience has over-brimmed, O sweetheart,
Why do you not take me to your bosom.
The nights of separation are long like tresses,
The day of our union is short like life;
When I do not get to see my beloved friend,
How am I to pass the dark nights?
Suddenly, as if the heart, by two enchanting eyes
Is beset by a thousand deceptions and robbed of tranquility;
But who cares enough to go and report
To my darling my state of affairs?
The lamp is aflame; every atom excited
I roam, always, afire with love;
Neither sleep to my eyes, nor peace for my body,
neither comes himself, nor sends any messages
In honour of the day of union with the beloved
who has lured me so long, O Khusrau;
I shall keep my heart suppressed,
if ever I get a chance to get to his place

तो आईये छाया गांगुली की आवाज़ में सुनी जाए ये रचना ।
छायाजी ने इस रचना को ऊपर दी इबारत के क्रम में नहीं गाया है । पंक्तियां थोड़ी ऊपर नीचे हैं । एक बात कहनी बाक़ी रह गई थी । इस इबारत को छाया जी की आवाज़ में इस रचना को सुनते हुए पढ़ें और समझें कि इसे गाना कितना मुश्किल काम था । हमारे लिए तो फारसी की इस रचना को पढ़ना ही कितना मुश्किल होता है ।

song-Zeehaal-e miskeen makun taghaful 
singer-chaya ganguli
lyrics-hazrat ameer khusro dehalvi
Duration-3-56

18 comments:

Anonymous,  July 5, 2009 at 3:10 PM  

बहुत सुन्दर,
आवाज ऐसी जैसे कानों में मिश्री सी घुलती हुई

सुशील छौक्कर July 5, 2009 at 4:39 PM  

बैशक कुछ शब्द के अर्थ नही पता फिर भी आनंद आया। बेहतरीन प्रस्तुति। और हाँ यूनूस भाई वो कालका वाला गाना भेजने के लिए दिल से शुक्रिया।

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' July 5, 2009 at 5:37 PM  

आप का ब्लाग अच्छा लगा...बहुत बहुत बधाई....
एक नई शुरुआत की है-समकालीन ग़ज़ल पत्रिका और बनारस के कवि/शायर के रूप में.जरूर देखें..आप के विचारों का इन्तज़ार रहेगा....

नितिन | Nitin Vyas July 5, 2009 at 5:49 PM  

बहुत ही बढ़िया प्रस्तुति, जैसा आपने कहा मैंने भी चित्रहार में बहुत देखा था इसे पर एक भी शब्द पल्ले नहीं पड़ता था, आज इसका अर्थ समझ में आया। वाकई में बहुत कठिन होगा इसे गाना।

नया रुप-रंग बहुत पसंद आया। बधाई

अमिताभ मीत July 5, 2009 at 6:12 PM  

सद शुक्र युनुस भाई. कमाल है ये .... बस कमाल.

Manish Kumar July 5, 2009 at 6:51 PM  

गुलामी वाला वर्सन तो बारहा सुना है पर छाया जी की स्पष्ट और सधी आवाज़ में इसे सुनना एक अलग अनुभव रहा. चिट्ठे का नया रूप शानदार है।

Babban K Singh July 5, 2009 at 7:16 PM  

बहुत खूब भाई
! आनंद आया!

Ashok Pandey July 5, 2009 at 8:07 PM  

अमीर खुसरो की रचनाओं का अलग ही आकर्षण है। कुछ समय पहले मैंने भी खड़ी बोली हिन्‍दी के इस पहले कवि के बारे में कुछ लिखने की कोशिश की थी, अवकाश मिले तो एक नजर जरूर डालें http://khetibaari.blogspot.com/2008/11/blog-post_21.html

रचना सुनाने के साथ आप जो उम्‍दा जानकारी देते हैं, उससे हमारा ज्ञानवर्धन भी होता है।

डॉ. मनोज मिश्र July 5, 2009 at 9:26 PM  

बेहतरीन ,आनंद आ गया .

कंचन सिंह चौहान July 6, 2009 at 1:41 PM  

छाया गांगुली जी की आवाज़ मुझे बेहद पसंद है..! गाना वाक़ई मुश्किल था। रेखा भारद्वाज की आवाज़ भी कभी कभी छाया जी की याद दिलाती है..!

Science Bloggers Association July 6, 2009 at 2:33 PM  

अरे वाह, ये तो मेरा पंसदीदा गाना है१
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

डॉ. अजीत कुमार July 6, 2009 at 5:35 PM  

bhale hi broadband ki anuplabdhata ke karan aajkal main giton ko sun nahi pa raha hu, fir bhi pahle ki suni yaad aur gaano ki rooh se parichay ek alag hi anand deti hai.
thanks for the post.

Abhishek Ojha July 6, 2009 at 11:12 PM  

गाना तो कई बार सुना पर कभी मतलब समझ नहीं आता था :)

Unknown July 7, 2009 at 7:43 AM  

My father's student had gifted him "Husn-e-Jaana," and I distinctly remember while listening to it I stopped in the middle. Later on never got a chance to revisit it. Thanks to you for posting this one, now as I understand it I can't stop appreciating it. Beautiful rendition by Ms. Ganguli.

डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल July 8, 2009 at 10:51 AM  

यह एलबम मेरा भी बेहद पसंदीदा है. लेकिन जब आप किसी रचना की खूबसूरती बयां करते हैं तो बेसाख्ता ग़ालिब याद आ जाते हैं : ज़िक्र उस परीवश का और फिर बयां अपना (आपका)....

सागर नाहर July 8, 2009 at 12:06 PM  

बहुत खूब ... आज की सुबह बहुत सुन्दर बना दी आपने।

दिलीप कवठेकर July 16, 2009 at 1:27 AM  

युनुस जी,

गाना वाकई बडा ही मधुर है. मज़ा आ गया सुनकर.

गुलामी फ़िल्म का गीत हमेशा ज़हन में बस सा गया था, मगर उसके शब्दों को पहली बार प्रिंट में पढा़. क्या इसका अर्थ बताने का कष्ट करेंगे?

Anonymous,  March 31, 2013 at 11:19 PM  

Aapko itna sab kucch kaise pata rehta hai? Thank you !

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