जिहाले मिस्किन मकुन बरंजिश- छाया गांगुली की आवाज़
पिछले दिनों मैंने अपनी फेसबुक प्रोफाइल पर 'थोड़ा-सा रूमानी हो जाएं' फिल्म के गाने लगाए थे और तब छाया जी की याद आ गयी थी । छाया जी यानी छाया गांगुली जिन्हें 'गमन' फिल्म के गीत 'रात भर आपकी याद आती रही' के लिए संभवत: सन 1980 में सर्वश्रेष्ठ गायिका के 'राष्ट्रीय-पुरस्कार' से नवाज़ा गया था ।
छाया जी का जिक्र 'रेडियोवाणी' पर पहले भी होता रहा है । लेकिन आज एक बड़ी ही अद्भुत रचना के लिए छाया जी की आवाज़ रेडियोवाणी पर गूंजने वाली है । बहुत बरस पहले आई थी जे.पी.दत्ता की फिल्म 'ग़ुलामी' । ये हमारी जिंदगी में ब्लैक-एंड-व्हाईट टी.वी. और चित्रहार वाले दिन थे । चित्रहार में 'जिहाले मिस्किन मकुन बरंजिश, बहारे हिजरां विचारा दिल है' वाला गीत खूब दिखाया जाता था । बस की छत पर बैठे मिथुन चक्रवर्ती और शायद नायिका अनीता राज वाला दृश्य ज़हन में एकदम बस ही गया था । बाद में जब जे.पी.दत्ता से मुलाक़ात हुई तब भी मैंने उन्हें याद दिलाया था कि कैसा जुनून था हमें उस गाने को देखने का । क्योंकि उसके बोल अजीब से थे ।
ये तो बहुत बाद में पता चला कि जनाब गुलज़ार ने हज़रत अमीर ख़ुसरो की रचना की पंक्ति लेकर आगे का गीत ख़ुद रचा है । फिर जब 'जि़हाले मिस्कीं' पढ़ी तो ये अजीब-सी रचना
लगी । साल 2006 में 'उमराव जान' बनाने वाले मुज़फ्फर अली ने एक अलबम तैयार करवाया था--'हुस्न-ए-जानां' । इस अलबम में छायाजी ने यही रचना गयी है । एकदम शुद्ध रूप में । केवल जिक्र के लिए आपको बता दें कि इसी अलबम में छाया जी का गाई नज़ीर अकबराबादी की हमारी पसंदीदा रचना भी है--'जब फागुन रंग झमकते हों तो देख बहारें होली की' । और क़ुली कुतुबशाह की रचना 'पियाबाज प्याला' भी । ज़ाहिर है कि अगर कभी हमें अपनी मर्जी और सुविधाओं के साथ 'हाइबरनेशन' पर जाना पड़े तो बाक़ी चीज़ों के साथ इस अलबम को ले जाना नहीं भूलेंगे ।
दरअसल हज़रत अमीर खु़सरो की ये रचना कई कलाकारों ने अपनी तरह से गाई है । हमारी कोशिश होगी कि एक श्रृंखला तैयार करके इसके सभी संस्करण आप तक पहुंचाए जाएं । फिल्म 'ग़ुलामी' वाले संस्करण समेत । बहरहाल--हज़रत अमीर ख़ुसरो की मूल रचना आप तक पहुंचाई जा रही है भारत सरकार की वेबसाइट technology development for indian languages यानी http://tdil.mit.gov.in/ के सौजन्य से । इस साइट के 'इस पेज' पर हज़रत अमीर ख़ुसरो की ये रचना और इसकी थोड़ी मीमांसा भी दी गई है ।
अर्थात मुझ गरीब मिस्कीन की हालत से यूँ बेख़बर न बनो। आँखें मिलाते हो, आँखें चुराते हो और बातें बनाते हो। जुदाई की रातें तुम्हारी कारी जुल्फ़ों की तरह लंबी व घनी है। और मिलने के दिन उम्र की तरह छोटे। शमा की मिसाल मैं सुलग रहा हूँ, जल रहा हूँ और ज़र्रे की तरह हैरान हूँ। उस चाँद की लगन में आ मेरी ये हालत हो गई कि न आँखों को नींद है न बदन को चैन, न आप आते हैं न ख़त लिखते हैं ।
विकीपीडिया पर मुझे इस रचना का अंग्रेज़ी अनुवाद मिला, जो इस तरह से है ।
तो आईये छाया गांगुली की आवाज़ में सुनी जाए ये रचना ।
छायाजी ने इस रचना को ऊपर दी इबारत के क्रम में नहीं गाया है । पंक्तियां थोड़ी ऊपर नीचे हैं । एक बात कहनी बाक़ी रह गई थी । इस इबारत को छाया जी की आवाज़ में इस रचना को सुनते हुए पढ़ें और समझें कि इसे गाना कितना मुश्किल काम था । हमारे लिए तो फारसी की इस रचना को पढ़ना ही कितना मुश्किल होता है ।
song-Zeehaal-e miskeen makun taghaful
singer-chaya ganguli
lyrics-hazrat ameer khusro dehalvi Duration-3-56
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छाया जी का जिक्र 'रेडियोवाणी' पर पहले भी होता रहा है । लेकिन आज एक बड़ी ही अद्भुत रचना के लिए छाया जी की आवाज़ रेडियोवाणी पर गूंजने वाली है । बहुत बरस पहले आई थी जे.पी.दत्ता की फिल्म 'ग़ुलामी' । ये हमारी जिंदगी में ब्लैक-एंड-व्हाईट टी.वी. और चित्रहार वाले दिन थे । चित्रहार में 'जिहाले मिस्किन मकुन बरंजिश, बहारे हिजरां विचारा दिल है' वाला गीत खूब दिखाया जाता था । बस की छत पर बैठे मिथुन चक्रवर्ती और शायद नायिका अनीता राज वाला दृश्य ज़हन में एकदम बस ही गया था । बाद में जब जे.पी.दत्ता से मुलाक़ात हुई तब भी मैंने उन्हें याद दिलाया था कि कैसा जुनून था हमें उस गाने को देखने का । क्योंकि उसके बोल अजीब से थे ।
ये तो बहुत बाद में पता चला कि जनाब गुलज़ार ने हज़रत अमीर ख़ुसरो की रचना की पंक्ति लेकर आगे का गीत ख़ुद रचा है । फिर जब 'जि़हाले मिस्कीं' पढ़ी तो ये अजीब-सी रचना
लगी । साल 2006 में 'उमराव जान' बनाने वाले मुज़फ्फर अली ने एक अलबम तैयार करवाया था--'हुस्न-ए-जानां' । इस अलबम में छायाजी ने यही रचना गयी है । एकदम शुद्ध रूप में । केवल जिक्र के लिए आपको बता दें कि इसी अलबम में छाया जी का गाई नज़ीर अकबराबादी की हमारी पसंदीदा रचना भी है--'जब फागुन रंग झमकते हों तो देख बहारें होली की' । और क़ुली कुतुबशाह की रचना 'पियाबाज प्याला' भी । ज़ाहिर है कि अगर कभी हमें अपनी मर्जी और सुविधाओं के साथ 'हाइबरनेशन' पर जाना पड़े तो बाक़ी चीज़ों के साथ इस अलबम को ले जाना नहीं भूलेंगे ।
दरअसल हज़रत अमीर खु़सरो की ये रचना कई कलाकारों ने अपनी तरह से गाई है । हमारी कोशिश होगी कि एक श्रृंखला तैयार करके इसके सभी संस्करण आप तक पहुंचाए जाएं । फिल्म 'ग़ुलामी' वाले संस्करण समेत । बहरहाल--हज़रत अमीर ख़ुसरो की मूल रचना आप तक पहुंचाई जा रही है भारत सरकार की वेबसाइट technology development for indian languages यानी http://tdil.mit.gov.in/ के सौजन्य से । इस साइट के 'इस पेज' पर हज़रत अमीर ख़ुसरो की ये रचना और इसकी थोड़ी मीमांसा भी दी गई है ।
"जिहाल-ए-मिस्कीं मकुन तगाफुल, दुराय नैना बनाय बतियाँ।
किताबे हिज्राँ, न दारम ऐ जाँ, न लेहु काहे लगाय छतियाँ।।
शबाने हिज्राँ दराज चूँ जुल्फ बरोजे वसलत चूँ उम्र कोताह।
सखी पिया को जो मैं न देखूँ तो कैसे काटूँ अँधेरी रतियाँ।
यकायक अज़दिल दू चश्मे जादू बसद फरेबम बवुर्द तस्कीं।
किसे पड़ी है जो जा सुनावे पियारे पी को हमारी बतियाँ
चूँ शम्आ सोजाँ, चूँ जर्रा हैराँ, हमेशा गिरियाँ ब इश्के आँ माह।
न नींद नैंना, न अंग चैना, न आप आये न भेजे पतियाँ।।
बहक्के रोजे विसाले दिलबर के दाद मारा फरेब खुसरो।
सपीत मन के दराये राखूँ जो जाय पाऊँ पिया की खतियाँ।।
या (दुराय राखो समेत साजन जो करने पाऊँ दो बोल-बतियाँ।)
अर्थात मुझ गरीब मिस्कीन की हालत से यूँ बेख़बर न बनो। आँखें मिलाते हो, आँखें चुराते हो और बातें बनाते हो। जुदाई की रातें तुम्हारी कारी जुल्फ़ों की तरह लंबी व घनी है। और मिलने के दिन उम्र की तरह छोटे। शमा की मिसाल मैं सुलग रहा हूँ, जल रहा हूँ और ज़र्रे की तरह हैरान हूँ। उस चाँद की लगन में आ मेरी ये हालत हो गई कि न आँखों को नींद है न बदन को चैन, न आप आते हैं न ख़त लिखते हैं ।
विकीपीडिया पर मुझे इस रचना का अंग्रेज़ी अनुवाद मिला, जो इस तरह से है ।
Do not overlook my misery Blandishing your eyes, and weaving tales; My patience has over-brimmed, O sweetheart, Why do you not take me to your bosom. The nights of separation are long like tresses, The day of our union is short like life; When I do not get to see my beloved friend, How am I to pass the dark nights? Suddenly, as if the heart, by two enchanting eyes Is beset by a thousand deceptions and robbed of tranquility; But who cares enough to go and report To my darling my state of affairs? The lamp is aflame; every atom excited I roam, always, afire with love; Neither sleep to my eyes, nor peace for my body, neither comes himself, nor sends any messages In honour of the day of union with the beloved who has lured me so long, O Khusrau; I shall keep my heart suppressed, if ever I get a chance to get to his place |
तो आईये छाया गांगुली की आवाज़ में सुनी जाए ये रचना ।
छायाजी ने इस रचना को ऊपर दी इबारत के क्रम में नहीं गाया है । पंक्तियां थोड़ी ऊपर नीचे हैं । एक बात कहनी बाक़ी रह गई थी । इस इबारत को छाया जी की आवाज़ में इस रचना को सुनते हुए पढ़ें और समझें कि इसे गाना कितना मुश्किल काम था । हमारे लिए तो फारसी की इस रचना को पढ़ना ही कितना मुश्किल होता है ।
song-Zeehaal-e miskeen makun taghaful
singer-chaya ganguli
lyrics-hazrat ameer khusro dehalvi Duration-3-56
