संगीत का कोई मज़हब, कोई ज़बान नहीं होती। 'रेडियोवाणी' ब्लॉग है लोकप्रियता से इतर कुछ अनमोल, बेमिसाल रचनाओं पर बातें करने का। बीते नौ बरस से जारी है 'रेडियोवाणी' का सफर।

Sunday, July 12, 2009

'जिहाले-मिस्किन मकुन तग़ाफुल' इस बार फ़रीद-अयाज़ क़व्‍वाल की आवाज़ में ।

पिछले हफ्ते 'रेडियोवाणी' में हमने हज़रत अमीर ख़ुसरो की रचना 'ज़ि‍हाले मिस्‍कीन मकुन तग़ाफुल' छाया गांगुली की आवाज़ में सुनवाई थी । और आपको ये भी बताया था कि हमारी इच्‍छा है इस रचना को अलग-अलग कलाकारों की आवाज़ों में सुनवाया जाए ।


रेडियोवाणी पर फ़रीद-अयाज़ क़व्‍वाल का जिक्र पहले भी हुआ है । बल्कि 'कल्‍ट क़व्‍वालियों' की श्रृंखला की शुरूआती दो कडियां उन्‍हीं की क़व्‍वालियों पर केंद्रित थी । फ़रीद-अयाज़ का ताल्‍लुक़ 'क़व्‍वाल-बच्‍चों के घराने' से है । इस घराने में कबीर को गाने की परंपरा रही है । मुझे फ़रीद-अयाज़ की आवाज़ में हज़रत अमीर ख़ुसरो की इस रचना का एक अलग ही रंग नज़र आया है । इसलिए इस श्रृंखला की दूसरी कड़ी में फ़रीद-अयाज़ की आवाज़ आपकी नज़र की जा रही है ।


नैन बिना जग दुखी, और दुखी चंद्र बिन रैन
तुम बिन साजन हम दुखी, और दुखी दरस बिन नैन ।।
जि़हाल-ऐ-मिस्‍कीं मकुन तग़ाफुल दुराये नैना बनाए बतियां ।


इसके आगे फ़रीद-अयाज़ फिर से दोहे पर आते हैं....... बलमा बांह चुराए जात हो, निबल जान कर मोहे
म्‍हारे हिरदा में से जावोगे, तब मरद बदूंगी तोहे ।।
जिहाल-ऐ-मिस्‍कीं मकुन तग़ाफुल, दुराये नैना बनाए बतियां  ।।


किताबे हिज्राँ, न दारम ऐ जाँ, न लेहु काहे लगाय छतियाँ ।।
शबाने हिज्राँ दराज चूँ जुल्फ बरोजे वसलत चूँ उम्र कोताह ।
सखी पिया को जो मैं न देखूँ तो कैसे काटूँ अँधेरी रतियाँ ।
सखी पिया को, अपने पिया को जो मैं ना देखूं
यकायक अज़दिल दू चश्मे जादू बसद फरेबम बवुर्द तस्कीं ।



किसे पड़ी है जो जा सुनावे पियारे पी को हमारी बतियाँ
बहक्के रोजे विसाले दिलबर के दाद मारा फरेब खुसरो ।
सपीत मन के दराये राखूँ जो जाय पाऊँ पिया की खतियाँ ।।


qawwali- zihale miskin makun taghaful
singers-fareed ayaz qawwal
duration: 8-26 





अमीर ख़ुसरो की रचनाओं पर केंद्रित ये अनियमित श्रृंखला है । ज़ाहिर है कि इसकी अगली कड़ी कब आयेगी, ये हम खुद भी नहीं जानते ।

5 comments:

PD July 12, 2009 at 1:28 PM  

vah ji.. ye vala ham nahi sune the..
Last time jo aapne sunaya tha vo to saikdon bar sun chuke the..
maja aa gaya.. :)

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` July 12, 2009 at 6:31 PM  

जब सब कुछ भूलकर , उसकी लौ से लौ मिल जाये तब ऐसी गायकी बहने लगती है
और शब्द तो ..क्या कहूँ ...बस सुनते रहो जी
रेडियोवाणी की नयी साज सजा भी अच्छी लगी

- लावण्या

admin July 13, 2009 at 6:14 PM  

मेरा पसंदीदा गीत।

कुमार अम्‍बुज July 21, 2009 at 2:39 AM  

प्रिय भाई,
इस आपाधापी भरे जीवन में इन दुर्लभ आवाजों से इस तरह साक्षात्‍कार कराते रहने के लिए धन्‍यवाद।

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