'जिहाले-मिस्किन मकुन तग़ाफुल' इस बार फ़रीद-अयाज़ क़व्वाल की आवाज़ में ।
पिछले हफ्ते 'रेडियोवाणी' में हमने हज़रत अमीर ख़ुसरो की रचना 'ज़िहाले मिस्कीन मकुन तग़ाफुल' छाया गांगुली की आवाज़ में सुनवाई थी । और आपको ये भी बताया था कि हमारी इच्छा है इस रचना को अलग-अलग कलाकारों की आवाज़ों में सुनवाया जाए ।
रेडियोवाणी पर फ़रीद-अयाज़ क़व्वाल का जिक्र पहले भी हुआ है । बल्कि 'कल्ट क़व्वालियों' की श्रृंखला की शुरूआती दो कडियां उन्हीं की क़व्वालियों पर केंद्रित थी । फ़रीद-अयाज़ का ताल्लुक़ 'क़व्वाल-बच्चों के घराने' से है । इस घराने में कबीर को गाने की परंपरा रही है । मुझे फ़रीद-अयाज़ की आवाज़ में हज़रत अमीर ख़ुसरो की इस रचना का एक अलग ही रंग नज़र आया है । इसलिए इस श्रृंखला की दूसरी कड़ी में फ़रीद-अयाज़ की आवाज़ आपकी नज़र की जा रही है ।
नैन बिना जग दुखी, और दुखी चंद्र बिन रैन
तुम बिन साजन हम दुखी, और दुखी दरस बिन नैन ।।
जि़हाल-ऐ-मिस्कीं मकुन तग़ाफुल दुराये नैना बनाए बतियां ।
इसके आगे फ़रीद-अयाज़ फिर से दोहे पर आते हैं....... बलमा बांह चुराए जात हो, निबल जान कर मोहे
म्हारे हिरदा में से जावोगे, तब मरद बदूंगी तोहे ।। जिहाल-ऐ-मिस्कीं मकुन तग़ाफुल, दुराये नैना बनाए बतियां ।।
किताबे हिज्राँ, न दारम ऐ जाँ, न लेहु काहे लगाय छतियाँ ।।
शबाने हिज्राँ दराज चूँ जुल्फ बरोजे वसलत चूँ उम्र कोताह ।
सखी पिया को जो मैं न देखूँ तो कैसे काटूँ अँधेरी रतियाँ ।
सखी पिया को, अपने पिया को जो मैं ना देखूं
यकायक अज़दिल दू चश्मे जादू बसद फरेबम बवुर्द तस्कीं ।
किसे पड़ी है जो जा सुनावे पियारे पी को हमारी बतियाँ
बहक्के रोजे विसाले दिलबर के दाद मारा फरेब खुसरो ।
सपीत मन के दराये राखूँ जो जाय पाऊँ पिया की खतियाँ ।।
qawwali- zihale miskin makun taghaful
singers-fareed ayaz qawwal
duration: 8-26
अमीर ख़ुसरो की रचनाओं पर केंद्रित ये अनियमित श्रृंखला है । ज़ाहिर है कि इसकी अगली कड़ी कब आयेगी, ये हम खुद भी नहीं जानते ।
रेडियोवाणी पर फ़रीद-अयाज़ क़व्वाल का जिक्र पहले भी हुआ है । बल्कि 'कल्ट क़व्वालियों' की श्रृंखला की शुरूआती दो कडियां उन्हीं की क़व्वालियों पर केंद्रित थी । फ़रीद-अयाज़ का ताल्लुक़ 'क़व्वाल-बच्चों के घराने' से है । इस घराने में कबीर को गाने की परंपरा रही है । मुझे फ़रीद-अयाज़ की आवाज़ में हज़रत अमीर ख़ुसरो की इस रचना का एक अलग ही रंग नज़र आया है । इसलिए इस श्रृंखला की दूसरी कड़ी में फ़रीद-अयाज़ की आवाज़ आपकी नज़र की जा रही है ।
नैन बिना जग दुखी, और दुखी चंद्र बिन रैन
तुम बिन साजन हम दुखी, और दुखी दरस बिन नैन ।।
जि़हाल-ऐ-मिस्कीं मकुन तग़ाफुल दुराये नैना बनाए बतियां ।
इसके आगे फ़रीद-अयाज़ फिर से दोहे पर आते हैं....... बलमा बांह चुराए जात हो, निबल जान कर मोहे
म्हारे हिरदा में से जावोगे, तब मरद बदूंगी तोहे ।। जिहाल-ऐ-मिस्कीं मकुन तग़ाफुल, दुराये नैना बनाए बतियां ।।
किताबे हिज्राँ, न दारम ऐ जाँ, न लेहु काहे लगाय छतियाँ ।।
शबाने हिज्राँ दराज चूँ जुल्फ बरोजे वसलत चूँ उम्र कोताह ।
सखी पिया को जो मैं न देखूँ तो कैसे काटूँ अँधेरी रतियाँ ।
सखी पिया को, अपने पिया को जो मैं ना देखूं
यकायक अज़दिल दू चश्मे जादू बसद फरेबम बवुर्द तस्कीं ।
किसे पड़ी है जो जा सुनावे पियारे पी को हमारी बतियाँ
बहक्के रोजे विसाले दिलबर के दाद मारा फरेब खुसरो ।
सपीत मन के दराये राखूँ जो जाय पाऊँ पिया की खतियाँ ।।
qawwali- zihale miskin makun taghaful
singers-fareed ayaz qawwal
duration: 8-26
अमीर ख़ुसरो की रचनाओं पर केंद्रित ये अनियमित श्रृंखला है । ज़ाहिर है कि इसकी अगली कड़ी कब आयेगी, ये हम खुद भी नहीं जानते ।
5 comments:
vah ji.. ye vala ham nahi sune the..
Last time jo aapne sunaya tha vo to saikdon bar sun chuke the..
maja aa gaya.. :)
जब सब कुछ भूलकर , उसकी लौ से लौ मिल जाये तब ऐसी गायकी बहने लगती है
और शब्द तो ..क्या कहूँ ...बस सुनते रहो जी
रेडियोवाणी की नयी साज सजा भी अच्छी लगी
- लावण्या
मेरा पसंदीदा गीत।
vah ji..maja aa gaya..
प्रिय भाई,
इस आपाधापी भरे जीवन में इन दुर्लभ आवाजों से इस तरह साक्षात्कार कराते रहने के लिए धन्यवाद।
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