गीता रॉय का गीत : ठहरो ज़रा सी देर तो । फिल्म सवेरा ।
गीता रॉय की विकल याद कभी भी आ सकती है । इसके लिए हमें तारीख़ों का मोहताज होने की ज़रूरत नहीं है । गीता रॉय फिल्म-संसार की बेहद 'ट्रैजिक-जीवन' वाली एक शख्सियत रही हैं । उनके जीवन का संत्रास बहुत विकट था । अफ़सोस कि वो ज्यादा नहीं जी पाईं, बयालीस साल के छोटे-जीवन में उन्होंने गहन-पीड़ा के जो गीत हमें दिए हैं...वो ना केवल हमारे अकेले पलों के साथी हैं, बल्कि जब ऐसी रिमझिम वर्षा वाले सुरमई, गीले और निर्मल वर्माई दिन आते हैं, तो अपनी सीलन भरी दुनिया को ज़रूरत पड़ती है गीता रॉय के गुनगुने स्वरों की ।
आप ये कह सकते हैं कि गीता रॉय केवल उदास आवाज़ नहीं हैं । वो एक जवान स्वर भी हैं, वो एक मादक मस्त उड़ान भी हैं । 'बूझ मेरा क्या नाम रे' से लेकर 'हूं अभी मैं जवां ऐ दिल' तक और 'सुनो गज़र क्या गाए' तक सभी गीतों में जहां गीता रॉय एक मस्त-युवा-बेफिक्र स्वर हैं, पता नहीं क्यों मुझे लगता है कि वहां भी उनमें एक 'वीतरागिता' है । दुनिया से एक उकताहट है । सत्रह बरस की उम्र में जब गीता रॉय ने 'इक दिन हमको याद करोगे' और 'मेरा सुंदर सपना बीत गया' गाया था तो किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि इस युवती का पहला ही गीत इसके जीवन का मुहावरा बन जायेगा ।
अपने आखि़री दिनों में गीता रॉय भयानक 'नर्वस-ब्रेक-डाउन' का शिकार हुईं । अवसाद के इस कुंए से रोशनी में बाहर आने की आखिरी कोशिश के तौर पर उन्होंने एक बांगला फिल्म में हीरोइन के तौर पर काम भी किया था । इसके बाद फिल्म 'अनुभव' में जो गीत उन्होंने गाए..उनके आखिरी गीत बन गए ।
आज गीता रॉय का जो गीत मैं आपके लिए लेकर आया हूं वो ज़रा कम ही मिलता है । कम ही सुना भी जाता है । पर मुझे ये गीता के 'कल्ट' गीतों में से एक लगता है । सन 1958 में आई थी फिल्म 'सवेरा' । मीना कुमारी और अशोक कुमार इस फिल्म के सितारे थे । इसके गीत प्रेम धवन ने लिखे थे और संगीतकार थे शैलेष । शैलेष मुखर्जी को शायद आप ना जानते हों । मुझे इनकी तीन फिल्में ही याद आ रही हैं । सुहाग सिंदूर 1953 , परिचय 1954 और सवेरा । शैलेष का स्वरबद्ध किया फिल्म परिचय का लता मंगेशकर का गाया एक गीत 'जल के दिल ख़ाक हुआ' इतना मार्मिक बन पड़ा है कि आंखें भर आएं ।
मुझे पक्का तो नहीं पता पर बहुत मुमकिन है कि सन 1948 में आई फिल्म 'आग' का गीत 'देख चांद की ओर' शमशाद बेगम के साथ जिस गायक ने गाया है वो यही शैलेष हों । हालांकि उस फिल्म में संगीत राम गांगुली का था । बहरहाल ये रहा गीता रॉय का वो नग़्मा जिसे हम विकलता से सुनना चाहते हैं ।
ठहरो ज़रा-सी देर तो आखिर चले ही जाओगे
तुम्हीं कहो करेंगे क्या याद जो हमको आओगे
ठहरो ज़रा सी देर ।।
मिल जाये तेरा प्यार किस्मत संवार लेंगे हम
क़दमों में तेरे जिंदगी यूं ही गुज़ार लेंगे हम
दिल में ना रख सके तो क्या नज़रों से भी गिराओगे
तुम्हीं कहो करेंगे क्या याद जो हमको आओगे ।।
ठहरो ज़रा सी देर ।।
क़ाबिल नहीं हैं हम तेरे फिर भी ये है करम तेरा
तुझको ना पा सकें तो क्या मिल तो गया है ग़म तेरा
आंखों से दूर जाके भी दिल से ना जाने पाओगे
तुम्हीं कहो करेंगे क्या याद जो हमको आओगे ।।
ठहरो ज़रा सी देर तो ।।
आप ये कह सकते हैं कि गीता रॉय केवल उदास आवाज़ नहीं हैं । वो एक जवान स्वर भी हैं, वो एक मादक मस्त उड़ान भी हैं । 'बूझ मेरा क्या नाम रे' से लेकर 'हूं अभी मैं जवां ऐ दिल' तक और 'सुनो गज़र क्या गाए' तक सभी गीतों में जहां गीता रॉय एक मस्त-युवा-बेफिक्र स्वर हैं, पता नहीं क्यों मुझे लगता है कि वहां भी उनमें एक 'वीतरागिता' है । दुनिया से एक उकताहट है । सत्रह बरस की उम्र में जब गीता रॉय ने 'इक दिन हमको याद करोगे' और 'मेरा सुंदर सपना बीत गया' गाया था तो किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि इस युवती का पहला ही गीत इसके जीवन का मुहावरा बन जायेगा ।
अपने आखि़री दिनों में गीता रॉय भयानक 'नर्वस-ब्रेक-डाउन' का शिकार हुईं । अवसाद के इस कुंए से रोशनी में बाहर आने की आखिरी कोशिश के तौर पर उन्होंने एक बांगला फिल्म में हीरोइन के तौर पर काम भी किया था । इसके बाद फिल्म 'अनुभव' में जो गीत उन्होंने गाए..उनके आखिरी गीत बन गए ।
आज गीता रॉय का जो गीत मैं आपके लिए लेकर आया हूं वो ज़रा कम ही मिलता है । कम ही सुना भी जाता है । पर मुझे ये गीता के 'कल्ट' गीतों में से एक लगता है । सन 1958 में आई थी फिल्म 'सवेरा' । मीना कुमारी और अशोक कुमार इस फिल्म के सितारे थे । इसके गीत प्रेम धवन ने लिखे थे और संगीतकार थे शैलेष । शैलेष मुखर्जी को शायद आप ना जानते हों । मुझे इनकी तीन फिल्में ही याद आ रही हैं । सुहाग सिंदूर 1953 , परिचय 1954 और सवेरा । शैलेष का स्वरबद्ध किया फिल्म परिचय का लता मंगेशकर का गाया एक गीत 'जल के दिल ख़ाक हुआ' इतना मार्मिक बन पड़ा है कि आंखें भर आएं ।
मुझे पक्का तो नहीं पता पर बहुत मुमकिन है कि सन 1948 में आई फिल्म 'आग' का गीत 'देख चांद की ओर' शमशाद बेगम के साथ जिस गायक ने गाया है वो यही शैलेष हों । हालांकि उस फिल्म में संगीत राम गांगुली का था । बहरहाल ये रहा गीता रॉय का वो नग़्मा जिसे हम विकलता से सुनना चाहते हैं ।
ठहरो ज़रा-सी देर तो आखिर चले ही जाओगे
तुम्हीं कहो करेंगे क्या याद जो हमको आओगे
ठहरो ज़रा सी देर ।।
मिल जाये तेरा प्यार किस्मत संवार लेंगे हम
क़दमों में तेरे जिंदगी यूं ही गुज़ार लेंगे हम
दिल में ना रख सके तो क्या नज़रों से भी गिराओगे
तुम्हीं कहो करेंगे क्या याद जो हमको आओगे ।।
ठहरो ज़रा सी देर ।।
क़ाबिल नहीं हैं हम तेरे फिर भी ये है करम तेरा
तुझको ना पा सकें तो क्या मिल तो गया है ग़म तेरा
आंखों से दूर जाके भी दिल से ना जाने पाओगे
तुम्हीं कहो करेंगे क्या याद जो हमको आओगे ।।
ठहरो ज़रा सी देर तो ।।
8 comments:
युनूस भाई,
ख़ुदा को हाज़िर-नाज़िर रखते हुए लिख रहा हूँ कि कल (20 जुलाई) को भूले-बिसरे गीत में जब से ये गाना सुना, दिन भर गुनगुनाता रहा. बल्कि देर रात तक दिमाग़ में गीताजी की आवाज़ का नशा तारी रहा.
गीता दत्त की आवाज़ में शास्त्र की लक्ष्मण रेखाएँ नहीं थीं,वे तो ऐसे गा जातीं थीं जैसे कोई घर में गुनगुना रहा है. उनके सारे गीत कालजयी हैं.कम गाकर ज़्यादा याद आना....गीताजी के खाते में ही जाता है. एक रफ़नेस और एक ठसका उनकी आवाज़ से रोशनी की मानिंद बह निकलता था जो सीधे कलेजे में उतरता था. वे एक तराशी हुई आवाज़ क़तई नहीं थी,वे तो एक दस्तावेज़ थी ग़म,तल्ख़ी और तिश्नगी को सुरीलापन देती सी.
पहले नही सुना था ये गाना। आज पढा तो बहुत अच्छा लगा। सुनेगे शाम को। ऐसे ही बेहतरीन गाने लाते रहिऐ जी।
गीता दत्त की आवाज़ की मै दीवानी रही हूँ। उनकी वो आवाज़ जो जब उदास गीतों की साथी बनती तो लगता कि अभी बस रो कर आई हैं और जब मस्ती की साथी बनती तो लगता कि पिया मिलन का नशा अभी उतरा नही है।
ये गीत कभी नही सुना था और अफसोस कि आज भी नही सुन पा रही हूँ।
SHAANDAR GEET HAI.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
दोनों प्लेयर्स चल नहीं रहे हैं और ये गीत सुन नहीं पाने का दुख सालता जा रहा है.फ़िर आना पडेगा.
गीता जी के बारे में तह ए दिल से लिखा है आपने...
धन्यवाद, युनूस भाई,
गीता जी के बारे में आप ने और संजय भाई ने बजा फ़रमाया है, और गीत सुनकर उनके अलग पहलू से मुखातिब हुए.
मादकता गीताजी की आवाज़ में एक स्थाई भाव था, जो हमेशा एक सुशील आमंत्रण का एहसास कराता था,मगर उशृंखल या सेक्सी ओव्हरटोन की मौजूदगी नही थी. साथ ही ग़म और भावनाओं के उद्रेक को अंडरप्ले करती थी उनकी आवाज़.
ab jaa kar suna aur baar baar suna...do din gungunane ko sahi dhun mil gai
आवाज वास्तव में बहुत मधुर है।
(और मैने रोजाना रेडियो सुनना प्रारम्भ कर दिया है! जब भी सुनता यूं, यूनुस का स्मरण हो आता है!)
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