संगीत का कोई मज़हब, कोई ज़बान नहीं होती। 'रेडियोवाणी' ब्लॉग है लोकप्रियता से इतर कुछ अनमोल, बेमिसाल रचनाओं पर बातें करने का। बीते नौ बरस से जारी है 'रेडियोवाणी' का सफर।

Monday, August 18, 2008

कान्‍हा बोले ना, सलिल चौधरी की एक अनरिलीज्‍ड फिल्‍म का गीत,

मैंने अपने चिट्ठे पर पहले भी कई बार आपको बताया है कि मन्‍नाडे को सुनने का शौक़ मुझे स्‍कूल के ज़माने में लगा था । उसके बाद उनके गानों को जमा करने का सिलसिला जो शुरू हुआ तो आज तक जारी है । इस बीच उनसे केवल दो बार मिलने का सौभाग्‍य भी मिला और फोन पर कई बार बात करने मिला ।
               radha-krishnaचित्र-साभार: अनिल एम

मन्‍ना डे के गानों का एक कैसेट उस दौर में मैंने संभवत: भोपाल या जबलपुर से ख्ररीदा था । ये शायद 1996 से दो तीन साल पहले की ही बात रही होगी । और दिलचस्‍प बात ये है कि ये कैसेट मैंने केवल इस गाने के लिए

जब जां निसार लिखते हैं 'मोहन तो मन लहरी रे'....तो मन बाग़ बाग़ हो जाता है । 'मन-लहरी' शब्‍द हम तरंगित लोगों के मन का शब्‍द है ।
ख़रीदा था । ऐसा नहीं था कि मैं इस गाने को पहले से जानता था । बल्कि जब इस कैसेट पर नज़र पड़ी तो यही एक ऐसा गाना था जिसे मैं नहीं जानता था । इसलिए इस कैसेट को ख़रीद लिया गया कि चलो मन्‍ना दा का एक और अनसुना गाना हाथ आ गया । बाद में जाकर पता चला कि सन 1976 में बनना शुरू हुई फिल्‍म 'संगत' कभी थियेटर का मुंह ही नहीं देख सकी । और इसी वजह से इसका संगीत दुनिया के सामने नहीं आ पाया । सलिल चौधरी के अनमोल संगीत से सजी थी ये फिल्‍म । आप इस गाने को सुनेंगे तो समझेंगे कि सलिल दा कि कितनी जबर्दस्‍त प्रतिभा नज़र आती है इस गाने में । फिल्‍म 'संगत' का पोस्‍टर ये रहा । इसे मैंने सलिल दा डॉट काम से साभार लिया है ।
                        film sangat

चूंकि मैं इस फिल्‍म से परिचित नहीं हूं इसलिए नहीं मालूम कि इसके सितारे कौन रहे होंगे । पर गाना बड़ा ही अदभुत है । लता जी के गुनगुनाने से शुरू होता है ये गाना । और उसके बाद वायलिन की अदभुत तान । जो दिल को चीर के रख देती है । फिर ग्रुप वायलिन की तरंगें । और फिर पियानो । इस गाने के इंट्रोडक्‍शन में बांसुरी भी ग़ज़ब की है । हिंदी फिल्‍मों में बहुत कम ऐसे इंट्रोडक्‍शन म्‍यूजिक बने हैं । और अगर बने हैं तो इनमें से ज्‍यादातर के लिए जिम्‍मेदार हैं सलिल चौधरी । मुखड़े पर लता जी के बाद जब मन्‍ना दा आते हैं तो अपनी एकदम ताज़ा आवाज़ के साथ आते हैं । इस गाने में मन्‍ना दा कुछ अलग ही साउंड कर रहे हैं । और उनके साथ साथ हैं सितार की तरंगें ।


कुछ बातें हैरत करने लायक़ हैं इस गाने में । राधा-कृष्‍ण का ये गीत अपनी बनावट में एकदम वेस्‍टर्न रखा गया है । और ऐसा मैंने पहली बार देखा है । फिल्‍म का पोस्‍टर देखने से लगता है मानो ये संगीत की दुनिया के दो लोगों की कथा रही होगी । जांनिसार अख्‍तर ने इस गाने को लिखा है । बताईये ऐसा क्‍यों है कि राधा कृष्‍ण के सबसे अच्‍छे एक्‍सप्रेशन मुस्लिम गीतकारों ने दिये हैं ।


सलिल चौधरी गाने का इंटरल्‍यूड बड़ी तरंग के साथ बनाते हैं । सितार, बांसुरी, ग्रुप वायलिन और पियानो सबसे मिलकर वो एक सम्‍मोहन रचते हैं । मैं तकरीबन बारह पंद्रह सालों से इस गाने को बार बार सुनता आ रहा हूं और यक़ीन के साथ कह सकता हूं कि एकदम भोर में या फिर अर्धरात्रि को ये गीत कुछ अलग ही कैफियत देता है ।


मैं आपका ध्‍यान इस गीत की रचना की ओर भी आकर्षित करना चाहता हूं, जब जां निसार लिखते हैं  'मोहन तो मन लहरी रे'....तो मन बाग़ बाग़ हो जाता है । 'मन-लहरी' शब्‍द हम तरंगित लोगों के मन का शब्‍द है । 'मन लहरी' केवल 'मोहन' ही नहीं है । हम सब हैं । और अगर आपको लगता है कि आप 'मन-लहरी' नहीं है तो बन जाईये । वैसे रेडियोवाणी की इस महफिल में आने वाले तो सभी मन-लहरी ही होते हैं ।


मुझे दूसरे अंतरे में लता जी का 'ज़रा' की बजाय 'जरा' गाना भी अदभुत लगता है । इससे एक अलग तरह का एक्‍सप्रेशन सामने आता है । इसके अलावा इस गाने की एक ख़ासियत और है । हर अंतरे पर गायक-गायिका 'पीक' पर पहुंचते हैं । एक ऊंचाई पर सुरों को ले जाते हैं । और तब शब्‍द, अर्थ और सुर का एक अद्भुत और मोहक दृश्‍य पैदा होता है । यही इस गाने की ख़ासियत है । सलिल दा को नमन है । इतनी सुंदर रचना के लिए । हम जांनिसार अख्‍तर को भी नमन करते हैं । और लता-मन्‍ना डे की जोड़ी को भी । और उन कलाकारों को भी जिन्‍होंने इस गाने में वाद्य बजाए ।



salili jaa nisar manna dey


कान्‍हा बोले ना । कान्‍हा बोले ना ।
पूछं बार बार कान्‍हा बोले ना ।
क्‍या है प्रीत क्‍या है प्‍यार कान्‍हा बोले ना ।
बनके ज्‍योति मन में झांके
यूं नयन नयन डोले आके
मानूं बरसे सूरजवा, जुमना की धार
प्‍यासा मन फिर भी प्‍यासा रह जाये
देखे नाहीं, नैना प्रिय खोले ना
कान्‍हा ।।
मोहन तो मन-लहरी रे
मोरी पीड़ा भयी गहरी गहरी रे
पलकें सूनी सूनी, सपने सोए सोए
लागे बैना, ये नैना, ये खोए खोए
ऐसो बेदर्दी जरा डोले ना
कान्‍हा ।।
तन सोए मन जागे रे
मीठी मीठी अगन कोई लागे रे
बोलूं चोरी चोरी, मन की बतियां तोरी
काहे जाने ना, माने ना प्रीतम मोरी
कहवे हारी मैं, मोरा हो ले ना
कान्‍हा ।।

चिट्ठाजगत Tags: kanha bole na , film sangat , lata-manna dey , salil choudhury , jaan nisar akhtar , कान्‍हा बोले ना , फिल्‍म संग‍त , लता-मन्‍नाडे , सलिल चौधरी , जां निसार अख्‍तर

13 comments:

Vinod Kumar Purohit August 18, 2008 at 1:27 PM  

युनूस भाई साहब वाह क्या प्रस्तुतकरण किया है। परमात्मा करे आप एेसी ही प्रस्तुतितया देते रहें। ये तो परमात्मा की कृपा है आिदकाल से ही रहीम व रसखान व अन्य कई हिंदी के कवि रहे हैं जिन्होंने भ कित bhakti की धाराएं बहाइं हैं। वैसे आप भी तो अकेले हैं जो ब्लोग जगत पर हमें मोहित करते हुए एेसी प्रस्तुततियां पेश कर रहे हैं। धन्यवाद

पारुल "पुखराज" August 18, 2008 at 2:30 PM  

बताईये ऐसा क्‍यों है कि राधा कृष्‍ण के सबसे अच्‍छे एक्‍सप्रेशन मुस्लिम गीतकारों ने दिये हैं । raadha-krishna to bhaav hain,aur bhaav kisi jaati ke aadheen nahi,jahan ,jisme upaj jaye-srijan kar deta hai....geet gazab hai/pehli baar suna kash dwnld ho sakta..

mamta August 18, 2008 at 4:07 PM  

बहुत ही मधुर गीत।
पहले कभी सुना है याद नही।
शुक्रिया।

अफ़लातून August 18, 2008 at 4:24 PM  

जो सिनेमा रिलीज़ नही होती उसके गीत विविध भारती पर सुनाये जाते हैं ? बतौर गैर फिल्मी गीत के?

Yunus Khan August 18, 2008 at 8:36 PM  

नहीं अफलातून जी । ऐसा नहीं है । मुझे बड़ा अजीब लगता है कि अनरिलीज्‍ड फिल्‍मों के रिकॉर्ड भी बहुधा नज़रअंदाज़ कर दिये जाते हैं ।
संगत फिल्‍म का ये गीत ई स्निप्‍स पर उपलब्‍ध है ।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` August 18, 2008 at 11:05 PM  

कितना मधुर गीत सुनवाया आपने युनूस भाई -
बहुत आभार !
इसे पहले सुना ही नहीँ था
सलिलदा का सँगीत अनूठा होता है - अब ऐसे गीतोँ को अमरता मिलेगी - हिन्दी ब्लोग जगत
और आप जैसे प्रस्तुतकर्ता
बहोत उत्तम योगदान दे रहे हैँ
जो अमुल्य है !
स्नेह,
- लावण्या

annapurna August 19, 2008 at 1:17 PM  

मुझे लगता है उर्दू शायरी में हुस्न और इश्क की दास्तां बहुत होती है और सूफ़ी गायकी के बोल भी अधिकतर ऐसे ही होते है। शायद इसी से मुस्लिम गीतकार राधाकृष्ण की प्यार की प्रतीक की छवि को हृदय में आसानी से उतार पाते और दिल से बोल निकलते शायद…

Anita kumar August 19, 2008 at 5:23 PM  

ये अनसुना गाना जितना मधुर है उतना ही विशेष है आप का प्रस्तुतिकरण्। गाना चाहे ईस्निपस पर हो लेकिन अगर आप भी डाउनलोड के प्रावधान के साथ दे तो ज्यादा अच्छा है

सागर नाहर August 20, 2008 at 9:48 PM  

हे भगवान कितनी लम्बी और मुश्किल से टिप्पणी लिखी थी, ब्लॉगर ने टिप्पणी को हटाकर सारी मेहनत पर पानी फेर दिया।

Abhishek Ojha August 21, 2008 at 12:31 AM  

ऐसी दुर्लभ जानकारी और गीत आपकी ही के यहाँ सम्भव है !

Gyan Dutt Pandey August 24, 2008 at 6:46 AM  

बहुत अच्छा लगा यह पढ़ सुन कर। बहुत सामयिक भी।

Kedar August 29, 2008 at 1:39 AM  

युनुसभाई, कमाल कर दिया आपने ये गाना सुनवा कर. रात का डेढ़ बजा है और मैं सातवी बार यह गाना सुनते सुनते लिख रहा हु. सलिल चौधरी साहब ने पंचम दा की याद दिला दी यह गाना बनाकर.
लताजी और मन्ना दा की बहोत ही सेंसिबल आवाज़ और बेहतरीन म्यूजिक.
interlutes की दोनों singers की harmony का तो या कहना
पुरा गाना जैसे बह रहा हो ऐसा लग रहा है
3rd part में बज रही strings, कांगो की रिधम, और गिटार strums का अद्भुत संयोजन....
salute to salil da for this beautiful composition
and salute to yunusbhai for sharing this precious composition.

Anonymous,  May 30, 2009 at 2:34 PM  

i am not a connosieur of music but i like the song as much as all the genius people do. can anybody here tel me where to download this beutiful song so that i can listen it in my car while driving

sushil

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if you want to comment in hindi here is the link for google indic transliteration
http://www.google.com/transliterate/indic/

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