संगीत का कोई मज़हब, कोई ज़बान नहीं होती। 'रेडियोवाणी' ब्लॉग है लोकप्रियता से इतर कुछ अनमोल, बेमिसाल रचनाओं पर बातें करने का। बीते नौ बरस से जारी है 'रेडियोवाणी' का सफर।

Sunday, April 27, 2008

फिल्‍म गाईड से जुड़े कुछ दिलचस्‍प तथ्‍य और एक शिकायत ।

मित्रो जयपुर से हमारे मित्र राजेंद्र जी ने मुझे ई-मेल करके 'गाईड' पर केंद्रित आलेख-श्रृंखला के बारे में कुछ तथ्‍य उजागर किये हैं । मैंने रोशमिला भट्टाचार्य के आलेख का अनुवाद प्रस्‍तुत किया था । राजेंद्र जी का कहना है कि रोशमिला के आलेख में कुछ त्रुटियां हैं । इस आलेख को उस श्रृंखला की अगली कड़ी के रूप में पढ़ा जाए ।

भाई यूनुस,
गाईड फ़िल्म पर आलेख के लिए बधाई. मैं जो बात कह रहा हूं, आशा है आप उसे अन्यथा नहीं लेंगे. रोष्मिला भट्टाचार्य के लेख में कई सारी गलतियां
हैं, यह कहना कि गाईड फ़िल्म के लिए देवानंद राज खोसला को निर्देशन का भार देने वाले थे इसका कोई प्रमाण नहीं है । नवकेतन की 'काला पानी' 1958 में बनी थी जिसके निर्देशक राज खोसला थे । मगर इस सन के बाद नवकेतन की फिल्मों का निर्देशन विजय आनंद करने लगे थे ।  हालांकि इससे एक बरस पहले ही विजय आनंद नवकेतन के लिए 'नौ दो ग्यारह' का निर्देशन कर चुके थे ।  'काला पानी' के बाद आई 'काला बाज़ार', 'हम दोनों' और 'तेरे घर के सामने' सबका निर्देशन विजय आनंद ने ही किया था । कोई सबब नहीं था कि देवानंद 'काला पानी' के सात साल बाद राज खोसला को वापस लाते । राज खोसला भी तब तक 'एक मुसाफिर एक हसीना' और 'वो कौन थी' जैसी फिल्में बना कर अपनी अलग राह बना चुके थे । 


'गाईड' के लिए देव आनंद की पहली पसंद चेतन आनंद थे और उन्होंने इस फ़िल्म की शूटिंग भी शुरू कर दी थी. मगर जब देवानंद ने फ़िल्म शुरू होने के तुरन्‍त बाद तय किया कि पहले अंग्रेजी संस्करण बनेगा उसके बाद हिन्दी संस्करण की शूटिंग शुरू होगी । तब समस्या ये आयी के चेतन आनंद अपनी फ़िल्म 'हक़ीक़त' से फारिग़ नहीं थे । तब देवानंद को विजय आनंद को निर्देशन के लिए तैयार करना पड़ा ।  देवानंद की हाल ही में प्रकाशित आत्मकथा "रोमेंसिंग विथ लाइफ"  में राज खोसला का कोई जिक्र नहीं है ।  देव साहब लिखते हैं ----"जैसे ही चेतन फ़िल्म से बाहर चले गए मैंने गोल्डी (विजय आनंद का प्यार का नाम) को तैयार किया ।  गोल्डी पहले थोड़ा हिचक रहा था लेकिन बाद में वह इस प्रोजेक्ट का एक बड़ा हिस्सा बन गया. उनके शब्द है "As soon as Chetan walked out, I had persuaded Goldie to step into his shoes. Goldie was a little hesitant at first but later became a big part of the project."


इसलिए वहीदा और राज खोसला के झगडे़ की कहानी गढ़ना उचित नहीं है । भाई यूनुस, इसमें आपका दोष नहीं है ।  आपने भट्टाचार्य के लेख का ही अनुवाद किया है । लेखिका ने देव आनंद से मुलाका़त का हवाला दिया है । इससे एसा लगता है जैसे यह बात देव आनंद ने बताई हो । मगर एसा संभव नहीं है । जिस विस्तार और सच्चाई से देव साहब ने किताब लिखी है, यदि ऐसा होता तो वे उसका वहां ज़रूर जिक्र करते । न तो देव साहब की किताब में और न परिस्थितिजन्य साक्ष्य से यह स्थापित होता है के राज खोसला गाईड का निर्देशन करने वाले थे ।


आज कल नेट पर ही नहीं अखबारों में भी ग़लत तथ्यों की भरमार हो रही है. कोई कुछ भी लिख दे रहा है । हाल ही में एक समाचार-एजेंसी ने शमशाद बेगम को मरा हुआ बता दिया । इसलिएजब हम किसी सामग्री का इस्तेमाल करें तो पहले उसे जांच लेना चाहिए । अब आपके ब्लॉग से उठा कर यही घटना कोई और लिख देगा । हिंदुस्‍तान-टाइम्स के तो मुंबई संस्करण में ही यह गलती रही मगर आपके ब्लॉग से तो यह पूरी दुनिया में फ़ैल गयी । बाद में जाकर यही इतिहास बन जाएगा जो कि सच नहीं होगा ।
--राजेंद्र


इस श्रृंखला के अन्‍य लेख

फिल्‍म गाईड से जुड़ी दिलचस्‍प बातें पहला भाग
फिल्‍म गाईड से जुड़ी दिलचस्‍प बातें दूसरा भाग

2 comments:

Harshad Jangla April 28, 2008 at 3:51 AM  

Yunusbhai
An interesting clarification.
This also shows your spirit to accept an error in your own writings.
Thanks.

-Harshad Jangla
Atlanta, USA

annapurna May 2, 2008 at 1:12 PM  

धन्यवाद रजेन्द्र जी का जिन्होनें समय रहते ग़लतियों को ठीक कर दिया।

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