तन जले मन जलता रहे: मधुमति फिल्म का एक दुर्लभ गीत ।
मुझे अकसर लगता है कि जिंदगी कई-कई तलाशों की एक यात्रा है । हम अकसर बल्कि अधिकतर कुछ ढूंढ रहे होते हैं । कुछ पाने की कोशिश कर रहे होते हैं । और शायद यही बात हमारे जीवन को सार्थक भी बनाती है । हम संगीत के शैदाईयों पर तो ये बात और अच्छी तरह लागू होती है । संगीत के हम जुनूनी लोग हमेशा कुछ तलाश कर रहे होते हैं । हमारी तलाश कई धाराओं में चल रही होती है ।
इन दिनों कुछ ऐसे गीत याद आए हैं जिन्हें मैं लंबे समय से आपको सुनवाना चाहता था । तो आईये आज मधुमति फिल्म का एक ऐसा गीत सुना जाए जिसकी चर्चा बहुत कम हुई है । रेडियो पर भी ये गीत बहुत सुनाई नहीं देता । लेकिन मैं इसे अकसर बजाया करता हूं । सबसे दिलचस्प बात ये है कि मधुमति के बाक़ी गीत तो शैलेंद्र ने लिखे पर इस गीत के नीचे गीतकार के तौर पर मजरूह सुल्तानपुरी का नाम है । संगीत तो आप जानते ही हैं कि सलिल चौधरी का है ।
ये एक जनगीत है । वैसा ही जैसा इप्टा के नाटकों और सभाओं में गाया जाता है । हमारे यहां जनगीतों की अच्छी और लंबी परंपरा रही है । पर फिल्मी गीतों पर जब जब जनगीतों का असर पड़ा है उन्होंने गीतों की सुंदरता को बढ़ाया ही है । सलिल दा ने ऐसा अकसर किया है । इस गाने के बोल भी पढि़ये और इसे सुनिए भी । मैं अपना पुराना जुमला फिर दोहरान चाहूंगा कि ये संक्रामक गीत है । कल रात इसे जब एक बार फिर सुना तो जैसे दिलो-दिमाग़ पर छा गया । और मन में इसकी हर पंक्ति गूंज रही है--'जीवन का आरा चलता रहे' ।
ये जंगल में लकड़ी काटने वाले लकड़हारों का गाना है । महानगरों के जंगल में हम भी तो लकडि़यां ही काट रहे हैं । हम भी तो मेहनतक़श हैं । जीवन के आरे को चला रहे हैं और मस्ती से जी रहे हैं ।
तन जले मन जलता रहे
हां खून-पसीना ढलता रहे
जीवन का आरा चलता रहे । हो हो ।
ये है जिंदगी प्यारे
कांटों में दिन गुज़ारे
फिर भी ना हारे ।।
तन जले ।।
( सुनो सैंया कहानी कटी बन में, जवानी लट उलझी बिखर गयी रे ।
उमरिया सारी यूं ही गुज़र गयी रे । )
हो तुझको संभलना होगा । हाय हाय रे
मेरे संग संग चलना होगा । हाय हाय रे
जाने कब तक चलना होगा । हाय हाय रे ।
तन जले ।।
8 comments:
शु्क्रिया इसे सुनवाने के लिये।
Yunusbhai
Never heard this song before. Is it picturised in the film? I mean is it included in the film?
-Harshad Jangla
Atlanta, USA
मधुमति के कैसेट को कितनी बार सुना है पर कभी इस गीत पर ध्यान अटका ही नहीं। आपकी इस पोस्ट के जरिए पहली बार इसे ध्यान से सुना। शुक्रिया सुनवाने के लिए
कहां कहां ये अनमोल रत्न चुपा कर रखते हैं?? मैं कई दिनों से ये गीत ढूंढ रहा था.. मजा आ गया..
जा रहा हूं इसे डाउनलोड करने.. :)
अलग प्रकार का गीत है
धन्यवाद।
नमस्कार यूनुस भाई,
मैं एक संगीतप्रेमी होने के कारण बचपन से ही रेडियो का दीवाना रहा हूँ और ख़ुद को आपके सरोकारों से जुड़ा पाता हूँ. भिखारी ठाकुर एक ऐसा दीवाना था जो संगीत से समाजवाद लाना चाहता था और कभी-कभी मेरे भी मन में ऐसा ही कुछ आता है की लोग सुनने के बाद गुनने भी क्यों न लगें. उसी कड़ी में आपसे अनुरोध है की जब भोजपुरी गीत-संगीत को फूहड़ता का पर्याय समझा जा रहा है तो भिखारी ठाकुर की परम्परा को आगे बढ़ाने वाले भरत शर्मा व्यास का दो गाना संगीत प्रेमियों को जरूर सुनवाएं.
१. रोवां तुटिहें गरीब के तो परबे करी
कहीं बिजली गिरी कहीं जरबे करी
२. गवनवा के साडी ससुरा से आइल (निर्गुण)
आपका बहुत-बहुत शुक्रिया
आपका अजीत
anthem of life गीत सशक्त है यूनुस और इस गीत से जुड़े आपके विचार भी, पाठकों के ख़्याल से जुड़ जाते हैं। जो ये तलाशों की यात्रा का सिलसिला जीवन में चलता रहता है, उसी को जब कोई शब्द स्वर और ताल देता है तो मन ध्यान से सुनने को ठहर जाता है: ऐसा ही कुछ इस गीत को सुनकर लगा और पढ़कर भी।
सधन्यवाद/ख़ुशबू
Yunus bhai,
aapne unusual geet sunvaya - shukriya.
Ye Jangeet bahut pasand aaya .
Rgds,
L
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