नज़ीर अकबराबादी की लिखी कृष्ण लीला--यारो सुनो ब्रज के लुटैया का बालपन
रेडियोवाणी पर इस रचना को मैं लंबे अरसे से चढ़ाना चाह रहा था । नज़ीर अकबराबादी की रचनाएं कम ही गायकों ने गाई हैं । मुझे पीनाज़ मसानी के अलावा अहमद हुसैन मुहम्मद हुसैन ही याद आते हैं जिन्होंने उनकी कुछ रचनाएं गायी हैं जबकि इन रचनाओं में गायकी की अपार गुंजाईश रही है । मुझे कृष्णलीला वाली ये कविता हमेशा से प्रिय रही है । इसे सुनने से पहले ज़रा नज़ीर अकबराबादी के बारे में आपको थोड़ी सी जानकारी दे दी जाए ।
नज़ीर अकबराबादी का असली नाम था वली मुहम्मद । अठारहवीं सदी में हुए इस नामचीन उर्दू शायर ने तकरीबन दो लाख रचनाएं लिखी थीं लेकिन बदकिस्मती से ज्यादातर अतीत की गर्द में खो चुकी हैं । तकरीबन छह सौ कविताएं ही प्रकाशित रूप में उपलब्ध हैं ।
नज़ीर ने भारतीय जन-जीवन के कई बारीक पहलुओं पर कविताएं कहीं । उनकी 'होली' पर केंद्रित कविता 'जब फागुन रंग महकते हों तो देख बहारें होली की' भारतीय साहित्य की एक अनमोल कृति है । होली का इतना बारीक और ललित चित्रण शायद ही कहीं मिलेगा । नज़ीर ने मेलों-ठेलों से लेकर रोटियों चूडि़यों, रीछ, होली, दीवाली, आगरे तक ना जाने किन किन विषयों पर अपनी कलम चलाई । वे जनता के शायर थे । बौद्धिक जुगाली की बजाय उन्होंने सादा शब्दों में अपनी बात कहकर जनता के दिल पर राज किया ।
बचपन पर नज़ीर की एक कविता है, जिसका अंश पढि़ये--
क्या दिन थे यारो वह भी थे जबकि भोले भाले ।
निकले थी दाई लेकर फिरते कभी ददा ले ।।
चोटी कोई रखा ले बद्धी कोई पिन्हा ले ।
हँसली गले में डाले मिन्नत कोई बढ़ा ले ।।
मोटें हों या कि दुबले, गोरे हों या कि काले ।
क्या ऐश लूटते हैं मासूम भोले भाले ।।
इसे आप कविता-कोश में यहां पूरा पढ़ सकते हैं ।
अब ज़रा दीवाली पर उनकी कविता की बानगी देखिए--
जहां में यारो अजब तरह का है ये त्यौहार
किसी ने नक़द लिया और कोई करे उधार
खिलौने, खलियों, बताशों का गर्म है बाज़ार
हर एक दुकान में चराग़ों की हो रही है बहार ।।
मिठाईयों की दुकानें लगा के हलवाई
पुकारते हैं कह--लाला दीवाली है आई
बतासे ले को, बरफी किसी ने तुलवाई
खिलौने वालों की उन से ज्यादा है बन आई
ऐसे थे नज़ीर । जिनकी कुछ कविताएं आगे चलकर रेडियोवाणी या तरंग पर ही आपको पढ़वाई जायेंगी । पर फिलहाल सुनिए ये रचना । जिसमें श्री कृष्ण की लीला का कमाल का वर्णन किया गया है । आपको बता दें कि ये पीनाज़ मसानी की आवाज़ है और संगीत जयदेव का है । जिस दिन मैं इस गीत को सुन लेता हूं दो तीन दिन तक बस ज़बां पर छाया रहता है । आप भी सुनिए और इस अनमोल अदभुत रचना का आनंद लीजिए ।
यारो सुनो ये ब्रज के लुटैया का बालपन
अवधपुरी नगर के बसैया का बालपन ।।
मोहन-स्वरूप नृत्य, कन्हैया का बालपन
बन बन के ग्वाल घूमे, चरैया का बालपन
ऐसा था, बांसुरी के बजैया का बालपन
क्या क्या कहूं मैं कृष्ण कन्हैया का बालपन
अवधपुरी नगर के बसैया का बालपन ।।
ज़ाहिर में सुत वो नंद जसोदा के आप थे
वरना वो आप ही माई थे और आप ही बाप थे
परदे में बालपन के ये उनके मिलाप थे
ज्योतिस्वरूप कहिए जिन्हें, सो वो आप थे
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन
अवधपुरी नगर के बसैया का बालपन
क्या क्या कहूं ।।
उनको तो बालपन से ना था काम कुछ ज़रा
संसार की जो रीत थी उसको रखा बचा
मालिक थे वो तो आप ही, उन्हें बालपन से क्या
वां बालपन जवानी बुढ़ापा सब एक सा
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन
अवधपुरी नगर के बसैया का बालपन ।।
क्या क्या कहूं ।।
बाले थे ब्रजराज जो दुनिया में आ गये
लीला के लाख रंग तमाशे दिखा गये
इस बालपन के रूप में कितना भा गये
एक ये भी लहर थी जो जहां को जता गये
यारो सुनो ये ब्रज के लुटैया का बालपन
अवधपुरी नगर के बसैया का बालपन
क्या क्या कहूं ।।
परदा ना बालपन का अगर वो करते जरा
क्या ताब थी जो कोई नज़र भर के देखता
झाड़ और पहाड़ ने भी सभी अपना सर झुका
पर कौन जानता था जो कुछ उनका भेद था
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन
अवधपुरी नगर के बसैया का बालपन
क्या क्या कहूं ।।
10 comments:
यूनुस जी बस यही कह सकते हैं के आप कमाल करते हैं.
भाई यूनुस जी। नजीर की यह रचना सुनाने के लिए धन्यवाद। मैं ने नजीर के बारे में पैंतीस बरस पहले जाना था, तब से कायल हूँ। २४ दिसम्बर को जयपुर से आते हुए एक ट्रेन सिंगर से नजीर की एक रचना सुनी थी। मगर उसे रचनाकार का पता नहीं था और रचना में भी अनेक संशोधन कर दिए गए थे। खैर, आपने चिट्ठे पर इस रचना को टंकित किया है उस में भी एक त्रुटि है 'अवधपुरी' के स्थान पर 'नन्दपुरी' होना चाहिए. कृपया दुरुस्त कर लें। अवधपुरी के राम थे कृष्ण नहीं।
दिनेश जी कमाल की बात ये है कि नज़ीर ने अपनी रचना में अवधपुरी शब्द ही इस्तेमाल किया है । इस बात पर मुझे भी थोड़ी हैरत हुई थी । आप पीनाज़ को सुनिए वे अवधपुरी ही गा रही हैं ।
अरे यूनुस खान, यह प्रस्तुत कर तो आप मेरे लिये रसखान हो गये!
यूनुस भाई, अत्यंत सुन्दर रचना है।
यहाँ अवधपुरी न होकर "मधुपुरी" है। मथुरा को मधुपुरी के नाम से भी जाना जाता है। गायन में जब पीनाज़ "औ मधुपुरी...." गाती हैं तो यह अवधपुरी सुनाई देता है।
YUNUS BHAI KA KEHNA HI THEEK HAI, DONO ME KOI BHED NAHI YE NAZEER NE JAANA THA. AP HI KE SAMKALEEN SANT CHARAN DASS FARMATE HAIN;
RAM KRISHNA POORAN AVTAARA,
DUSHT DALAN SANTAN RAKHVARA.
ISHVAR KI KRIPA HO AP PAR ,ALLAH KA NOOR BARSE . NAYE SAAL ME AP KHOOB FALEN FOOLEN.
yoonus, nazeer baaba kee 'do lakh rachanayen batakar kuchh zyaada naheen kar diya? 'avadhpuree' ka masala bhee hal karana zarooree lagata hai.
yoonus, nazeer baaba kee 'do lakh rachanayen batakar kuchh zyaada naheen kar diya? 'avadhpuree' ka masala bhee hal karana zarooree lagata hai.
yoonus, nazeer baaba kee 'do lakh rachanayen batakar kuchh zyaada naheen kar diya? 'avadhpuree' ka masala bhee hal karana zarooree lagata hai.
Nitin Bagla said...
यहाँ अवधपुरी न होकर "मधुपुरी" है।
बहुत शुक्रिया यूनुस जी, बरसों बाद यह गीत फ़िर से सुना तो बहुत अच्छा लगा.
नितिन बागला जी ने बजा फरमाया है। इसके अलावा "ब्रज के लुटैया" की जगह "दधि (दही) के लुटैया" होना चाहिए
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