संगीत का कोई मज़हब, कोई ज़बान नहीं होती। 'रेडियोवाणी' ब्लॉग है लोकप्रियता से इतर कुछ अनमोल, बेमिसाल रचनाओं पर बातें करने का। बीते नौ बरस से जारी है 'रेडियोवाणी' का सफर।

Tuesday, January 1, 2008

रेडियोवाणी पर नव-वर्ष की सुनहरी भोर की तीन गीत

नए साल की भोर में आपके लिए मैं लेकर आया हूं भीनी भीनी भोर के तीन सुनहरे गीत । दिलचस्‍प बात ये है कि ये तीनों गीत तीन अलग अलग ज़मानों के हैं । लेकिन तीनों एक नाज़ुक-नर्म भोर के हमारे सपने को जीते हुए नज़र आते हैं ।

जैसा कि आप जानते हैं मैं मुंबई से ये चिट्ठा लिखता हूं, यहां एक नाज़ुक-अलसाई और केसरिया-सी भोर एक सपना है, एक कहानी है, एक अधूरी-आकांक्षा है । दौड़ी-दौड़ी भागी-भागी सी सुबह । सोई-सोई जागी-जागी सी सुबह । बंदूक की तरह घड़ी की सुईयों की नोंक पर सहमी-सहमी सी सुबह । ऐसी होती है मुंबई की सुबह ।

ऐसे में नए साल की इस भोर को और सिर्फ इसी नहीं बल्कि हर भोर को यादगार बनाने के लिए मैंने सोचा कि कुछ ऐसे गाने रेडियोवाणी पर लगाए जाएं जिन्‍हें हर सुबह सुनने का आपका मन करे । तो आईये शुरूआत करते हैं साल 2007 की चर्चित फिल्‍म 'धर्म' के गाने से । आपको याद होगा कि भावना तलवार की फिल्‍म 'धर्म' ऑस्‍कर में भेजे जाने की उम्‍मीदवार थी और एकलव्‍य-धर्म-विवाद पिछले साल बहुत चर्चित रहा था । इस फिल्‍म की वेबसाईट पर  जाकर देखा तो पता चला कि ये गीत वरूण गौतम और मृत्‍युंजय कुमार सिंह का लिखा हुआ है संगीत है, देब ज्‍योति मिश्रा का । सोनू निगम का गाया ये गीत कमाल का है । इसे सुनकर मुझे प्रयाग या बनारस की सुनहरी-भोर की याद आती है

यूं लगता है जैसे चिमटा बजाता कोई फकीर या पहाड़ पर बने किसी मंदिर का पुजारी अपनी धुन में मगन होकर जा रहा है । गाने के अंतरे में कुछ श्‍लोक शामिल किये गये हैं, जिनसे प्रयाग और बनारस की तस्‍वीर और भी गहरी हो जाती है । इस गाने के बोल इतने सुंदर हैं कि एक प्रकाश-स्‍तंभ की तरह हमें साल भर रास्‍ता दिखाते रहेंगे । ताकि हम अपने रास्‍ते से ज़रा-सा भी इधर-इधर ना जाएं । सुनिए ।।

 

 

भई भोर ।। जागो ।।

जैसे छाई अरूणाई धुले रतियां का घनघोर ।।

भई भोर ।। जागो ।।

सपन-चदरिया मन की हटा

धरम-गठरिया बांध उठा

नई दिस का कर ले.....तू ठौर

जागे दस दिसा की बोली

जीवन नैया की टोली

बढ़ जाए पथ पे.....ले हिलोर ।।

भई भोर ।। जागो ।।

पल का पल्‍लव हलराए

सरिता कलिमल हरजाए

घंटी घन अनहद जैसे गाए

उड़ता जाये पाखी नई छोर

भई भोर ।। जागो ।।  

जाग रे बटुहिया जगत है पिहाना थाम डोर ।।

जागो ।। भई भोर ।।

......................................................................

दूसरा गीत गुलज़ार, राहुल देव बर्मन और आशा भोसले की तिकड़ी के अनमोल एलबम 'दिल पड़ोसी है'  से लिया गया है । आपको बता दूं कि सन 1987 में आया ये अलबम अपने आप में एकदम निराला था और आज भी संगीत से शौकीन इसे अपने संग्रह का हिस्‍सा बनाकर सुकून हासिल करते हैं । गुलज़ार, पंचम और आशा भोसले का फिल्‍मी-गीतों में तो बहुत बार साथ्‍ा हुआ पर ग़ैर-फिल्‍मी गीतों की आज़ादी और रचनात्‍मकता का शिखर है ये एलबम । भीनी भोर के इस गाने में पंचम ने अपनी चर्चित प्रयोगधर्मिता को छोड़कर बिल्‍कुल शास्‍त्रीयता को अपनाया है । अपने बोलों, गायकी और संगीत में ये गाना सचमुच अनमोल है । और अगर इसे नववर्ष के पहले दिन सुना जाए तो इसका जादू कुछ और ही होता है । तो चलिए सुनते हैं-ध्‍यान दीजिए कि किस तरह ये गाना गांव की सुबह की ध्‍वनियों से शुरू होता है, उस पर आशा भोसले का आलाप । और फिर अंतरे पर सितार । अदभुत समां बांधता है ये गीत ।

 

भीनी भीनी भोर, भोर आई 

रूप-रूप पर‍ छिड़के सोना

स्‍वर्ण-कलश चमकाती आई ।।

भीनी भीनी भोर ।।

माथे सुनहरी-टीका लगाए

पात-पात पर गोटा लगाए

सात-रंग की जाई आई ।।

भीनी भीनी भोर ।।

ओस-धुले मुख, पोंछे सारे

आंगन लीप गयी उजियारे

जागो जगन की बेला आई

भीनी भीनी भोर ।।

......................................................................

तीसरा गीत फिल्‍म आंचल का है । जो सन 1980 में आई थी । ये अनिल गांगुली की फिल्‍म थी । इसमें भी आर डी बर्मन का संगीत है, ये गाना मजरूह सुल्‍तानपुरी ने लिखा है । लता जी गाये सुबह की बेहतरीन गीतों में इसका शुमार होता है । यहां आर डी बर्मन अपनी प्रयोगात्‍मकता के साथ आते हैं । रिदम सेक्‍शन बिल्‍कुल पंचम-शैली का है । इस तरह का रिदम उनके कई गीतों में सुनाई देता है । लेकिन दिलचस्‍प बात ये है कि इस वाद्य-संयोजन में गिटार भी है और सितार भी । ग्रुप-वायलिन भी है और बांसुरी भी, वही सुबह वाली बांसुरी । आईये नए साल की पहली सुबह को इस गाने के ज़रिए सुनहरा बनाएं और बार बार यहां लौटें इन गानों को हर सुबह दोहराएं ।

भोर भए पंछी धुन ये सुनाएं

जागो रे गई ऋतु कभी ना आए ।।

भोर भए ।।

पनघट जगे, गांव की हर गली जागी

गोरी कहीं और कहीं सांवली जागी

आंचल की छैंया अपने सैंया को बुलाए ।।

भोर भए ।।

मैं भी वहीं है जहां मोहना मेरा

मधुबन मेरा तो यही आंगना मेरा

ये दर ना छूटे, चाहे दुनिया छूट जाए ।।

भोर भए ।।


17 comments:

विनीत कुमार January 1, 2008 at 9:56 AM  

bahut khoob. khoob chamak raha hai radiovaani. bahut pyara aur chatak lag raha. lag raha hai yaha abhi hi holi aa gayee hai

Anonymous,  January 1, 2008 at 10:31 AM  

भोर तो मेरी सुनहरी नहीं हो पाई क्योंकि दिन चढने के बाद मैने ये गीत देखें।

साल की हर भोर को सुहानी बनाने के लिए धन्यवाद।

आपको और आपके परिवार को नया साल मुबारक !

सस्नेह
अन्नपूर्णा

Pratyaksha January 1, 2008 at 10:51 AM  

खूब संगीतमय साल गुज़रे ऐसी शुभकामना है ।

VIMAL VERMA January 1, 2008 at 10:58 AM  

mazaa a gayaa,nayaa saal naee rachanon ko samarpit,aap bhi ansooni ceezein sunvaate hai jo sukhad hai, aaako bhi nayaa saal mubaarak !!!!

डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल January 1, 2008 at 11:14 AM  

यूनुस भाई,
नए दिन की इतनी सुरीली शुरुआत कराने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.
नया साल आपके लिए खूब मंगलमय हो और आप इसी तरह हमारी ज़िन्दगी को सुरीली बनाते रहें - यही कामना है.

Poonam Misra January 1, 2008 at 11:38 AM  

यूनुस जी
नया साल है नई भोर है. यूँ ही आपका संगीतमय साथ बना रहे है और आपका नया साल आपके लिए ढेरों खुशियाँ लेकर आए यह हमारी कामना है .

पारुल "पुखराज" January 1, 2008 at 12:50 PM  

geeton ke liye bahut abhaar YUNUS ji,NAV VARSH MANGAL MAI HO...AAPKO

Neeraj Rohilla January 1, 2008 at 1:00 PM  

युनुसजी,
अभी तो हमारी रात ही नहीं हुयी लेकिन ये भोर के गीत सुनकर बहुत अच्छा लगा ।

आपको एवं आपके परिवार को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें ।

साभार,

Sanjeet Tripathi January 1, 2008 at 4:02 PM  

बढ़िया गाने, शुक्रिया!
नया साल आपको पहले से और भी बेहतर कुछ दे जाए! नए वर्ष की शुभकामनाएं

नीरज गोस्वामी January 1, 2008 at 4:42 PM  

यूनुस जी नए साल की शुरुआत को सुरीली बनने के लिए तहे दिल से शुक्रिया.
पिछला साल तो आपने वादों में गुजार दिया और खोपोली में या ब्लॉग पर नज़र नहीं आए लेकिन इस साल तो हुजुर एक शाम हमारे नाम कीजियेगा.
नीरज

mamta January 1, 2008 at 8:31 PM  

इसी तरह पूरे साल आप संगीत मय रहें।

नया साल आपके और आपके परिवार के लिए खूब सारी खुशियाँ लेकर आये।

यूं तो तीनों गाने अच्छे है पहला वाला गाना हमने नही सुना था। पर है बहुत ही अच्छा।

Gyan Dutt Pandey January 1, 2008 at 9:06 PM  

नया साल मुबारक मित्र। संगीतमय रहे।

Anonymous,  January 2, 2008 at 2:35 AM  

शुभ-प्रभात के सुरभित गीतो का चयन और चयन करनें का ढंग भी,सुन्दर है।
’भई भोर’ वाले गीत और देबोज्योति मिश्रा के संगीत नें फ़िल्म रेनकोट के संगीत की याद दिलायी है और राहुलदेव बर्मन एवं लता जी के गीत को सुनकर एक और प्रभाती गीत (हवा ये प्रभाती सुनाये...)ज़ेहन पर गुनगुनाया है।
आभार युनुस!

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` January 2, 2008 at 10:19 AM  

नया साल आरंभ हो ही गया है जी .. यूनुस भाई ....

ऐसे ही व उदात्तभाव लिए सुमधुर गीत सुनवाते रहियेगा

- लावण्या

Anonymous,  January 4, 2008 at 4:01 AM  

Gostei muito desse post e seu blog é muito interessante, vou passar por aqui sempre =) Depois dá uma passada lá no meu site, que é sobre o CresceNet, espero que goste. O endereço dele é http://www.provedorcrescenet.com . Um abraço.

Manish Kumar January 5, 2008 at 12:40 AM  

Bhai bahut sara backlog ho gaya hai sunne ko ab ardhratri mein jab sab so chuke hai subah ke nagme to nahin sun paya par aapke varnan se ye to lagta hai ki geet qamal ke honge.

waise Dil Padosi Hai ka twin cassette us zamane mein khareeda tha par kuch khas pasand nahin aaya tha. Par ho sakta hai ye geet unnoticed nikal gaya ho.

Anita kumar January 12, 2008 at 6:08 PM  

भई वाह! मजा आ गया। भोर में तो नहीं सुन रहे भोर तो घड़ी की सुइयों की भेंट चढ़ जाती है पर शाम तो अपनी है, जब सुने तभी सवेरा है:)
वैसे इतने अच्छे गाने सुनवाने के लिए धन्यवाद हमने पहले ये गाने नहीं सुने हुए थे।

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