संगीत का कोई मज़हब, कोई ज़बान नहीं होती। 'रेडियोवाणी' ब्लॉग है लोकप्रियता से इतर कुछ अनमोल, बेमिसाल रचनाओं पर बातें करने का। बीते नौ बरस से जारी है 'रेडियोवाणी' का सफर।

Monday, December 24, 2007

गोरकी पतरकी रे--मो. रफ़ी के भोजपुरी और बांगला गीत--जन्‍मदिन पर विशेष

आज चौबीस दिसंबर है ।
मो. रफ़ी साहब का जन्‍मदिन । इस दिन को रफ़ी के चाहने वाले बड़े चाव ये याद रखते हैं ।


दिन भर की हड़बड़ी और भागमभाग के बीच भी रफ़ी साहब की याद में मैंने एक गाना रेडियोवाणी पर सुनवाने की ठान रखी थी । और वो है एक भोजपुरी गीत । सन 1979 में आई फिल्‍म बलम परदेसिया का ये गीत मुझे इंटरनेट खंगालने के बाद आखि़रकार मिल ही गया । इसे चित्रगुप्‍त ने स्‍वरबद्ध किया है ।

रफी साहब की ख़ासियत ये थी कि वो किसी भी भाषा का गाना बड़ी सहजता से गा लेते थे । उन्‍होंने भोजपुरी भी गाय, बांगला भी और अंग्रेज़ी भी । यहां तक कि दक्षिण की भाषाओं में भी उनके कुछ गीत हैं । मो. रफ़ी के चाहने वाले उनकी याद में एक वेबसाईट चलाते हैं जिस पर टिप्‍पणियों की तादाद देखकर आपको हैरत होगी । यहां सामग्री भी कमाल की है । मुझे निजी रूप से रफ़ी साहब के गाये भजन और कुछ नाज़ुक रूमानी गाने बेहद पसंद हैं । कुछ गाने यहां पेश हैं । आज रफ़ी साहब को याद करना उनके शैदाईयों के लिए एक रवायत भी है और ज़रूरत भी । रफ़ी की आवाज़ हमारी जिंदगी की खुशनसीबी है ।

पहले सुनिए--फिल्‍म बलम परदेसिया का ये गीत--गोरकी पतरकी रे ।

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जल्‍दी जल्‍दी चल रे कहारा सुरूज डूबे रे नदिया

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ये रहे रफ़ी साहब के गाये कुछ बांगला गीत ।

आज मोधुरो बंसरी बाजे ।।

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कोने चालबाजेर मुखे

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काजी नजरूल इस्‍लाम की रचना रफ़ी साहब की आवाज़ बोल हैं --आधो आधो बोल लाजे.......

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उम्‍मीद है कि रफ़ी साहब के इन गीतों को सुनकर आपकी आज की शाम संवर जायेगी । मैं तो आज रफ़ी साहब की आवाज़ में डूबकर एक दूसरी ही दुनिया में पहुंच गया हूं ।

4 comments:

Gyan Dutt Pandey December 24, 2007 at 8:13 PM  

मैने अंशों में हिन्दी और बांगला दोनो गीत सुने। अपनी कहूं तो यह अहसास होता है गीत सुनते समय कि मन का अपने आप में उलझना और अवसाद बहुत हद तक कम होता है।
जाने क्यों इस विधा से बहुत समय तक अपने को काटे रखा। और अब भी यह प्रारम्भ हुआ है तो इस बात से कि गीत सुन कर यूनुस के ब्लॉग पर टिप्पणी करनी है। अन्यथा शायद न सुनता।
धन्यवाद।

डॉ. अजीत कुमार December 25, 2007 at 7:00 PM  

यूनुस भाई,
रफी साहब के ये गीत सुनवाने के लिए मैं आपका तहे दिल से स्वागत करता हूँ. ये वे गीत हैं जो हमारे गाँव में नाटक आदि होने के समय बजाते जाते थे और वो मधुर तान मेरे बचपन के अछूते दिमाग पर चढ़ से गए थे... शायद ऐसे कि इनकी छुअन कभी पुरानी नहीं होगी. ये गीत भोजपुरी सिनेमा के स्वर्णिम काल का एक हिस्सा हैं और इन गीतों के बिना भोजपुरी सिनेमा का कोई अस्तित्व नहीं है.
एक जगह आपने ग़लती कर दी. गोरकी- पतुरकी नहीं, गोरकी- पतरकी लिखें. पतरकी मतलब दुबली पतली .
धन्यवाद.

डॉ. अजीत कुमार December 25, 2007 at 7:30 PM  

यूनुस भाई,
ये दूसरा गाना , जल्दी -जल्दी चल रे कहरा , इतनी जल्दी जल्दी क्यूं बज रहा है? please इसे जल्दी बदलें.

Yunus Khan December 25, 2007 at 8:44 PM  

अजीत भाई मेरे यहां तो ठीक बज रहा है ।
बाकी गानों की रफ्तार तो ठीक है ना ।
ई स्निप्‍स पर कभी कभी ये दिक्‍कत होती है

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