अभी ना परदा गिराओ ठहरो--गुलजार का भावुक कर देने वाला गीत, हेमंत कुमार की आवाज़
कुछ गाने ऐसे हैं जो आपको रूला देते हैं ।
अब अगर आप सोचें कि गाने आपको रूला दें ये तो बहुत आसान है । जी नहीं साहब, आज के ज़माने में शायद लोगों को हंसाना बहुत आसान है । फूहड़ लोग इस धंधे में जमकर लगे हैं । लेकिन आज लोगों को रूला देना बहुत मुश्किल है, ख़ासकर किसी गाने के ज़रिए । कई ऐसे गाने हुए हैं जो हमें रूलाते हैं । शायद किसी बिछड़े साथी की याद दिलाकर या फिर किसी बीते लम्हे का राग छेड़कर । गुलज़ार ऐसे गीतों के शहंशाह हैं । उनके कई गाने हमें जिंदगी के ख़ालीपन का अहसास दिलाते हैं । गुलज़ार उन लम्हों की याद दिलाकर चिकोटी काट लेते हैं, जो मुट्ठी में से रेत की तरह और बैंक से बैलेन्स की तरह सरक गये ।
ऐसा ही एक गाना आज मैं लेकर आया हूं ।
ये गाना मुझे उस रंगमंच कलाकार की याद दिलाता है, जिसका वक्त गुज़र चुका है । जिसके हिस्से का परफॉरमेन्स खत्म हुआ । अब परदा गिरना है । और उसे लगता है कि उसकी दास्तान तो अब शुरू होती है । जिंदगी ऐसी ही है दोस्त । पल पुराने दोस्तों की तरह बिछड़ते जाते हैं और जब बुढ़ापे की आहट सुनाई देती है, तो जीने की उत्कंठा, बेक़रारी बढ़ जाती है । लगने लगता है कि बहुत कुछ था जो हम कर ही नहीं सके । हम जी ही नहीं सके ।
इसलिए ये गाना आपको याद दिलायेगा कि जो कुछ रीता-छूटा है, उसे वक्त रहते पकड़ लीजिए । इस गाने का वो संस्करण नहीं मिला मुझे जिसमें जे के बैनर्जी (अगर मैं सही हूं तो) कुछ संवाद बोलते हैं । शायद फिल्म में ये गाना उन्हीं ने गाया है । लेकिन ये है हेमंत दा का गाया संस्करण । किसी के पास बैनर्जी साहब वाला संस्करण हो तो कृपया भेजियेगा । ये बता दूं कि संगीत है वसंत देसाई का ।
हेमंत कुमार की आवाज़ में ये गाना ऐसा बन पड़ा है कि बस क्या कहिए । सिर्फ रवायत नहीं बल्कि जानकारी के लिए ये बता देना जरूरी है कि ये गीत सन 1974 में आई फिल्म 'शक' / shaque का है । इस फिल्म में कुछ और बेहतरीन गीत हैं जिनका जिक्र फिर कभी किया जायेगा । इस फिल्म की विस्तृत जानकारी आप यहां पढ़ सकते हैं । ये समानांतर सिनेमा एक जानदार शानदार ब्लॉग है, जो मुझे आज ही मिला है । बहरहाल ये गीत मुझे भावुक बना रहा है । इसलिए फिलहाल इतना ही ।
अभी ना परदा गिराओ ठहरो
कि दास्तां आगे और भी है ।
कि इश्क़ गुजरा है इक जहां से
इक जहां आगे और भी है ।।
अभी ना परदा गिराओ ठहरो ।।
अभी तो टूटी है कच्ची मिट्टी
अभी तो बस जिस्म ही गिरे हैं ।
अभी कई बार मरना होगा
अभी तो अहसास जी रहे हैं ।
अभी ना परदा गिराओ ठहरो ।।
दिलों के भटके हुए मुसाफिर
अभी बहुत दूर तक चलेंगे ।
कहीं तो अंजाम के सिरों से
ये जुस्तजू के सिरे मिलेंगे ।
अभी ना परदा गिराओ ठहरो ।।
अब अगर आप सोचें कि गाने आपको रूला दें ये तो बहुत आसान है । जी नहीं साहब, आज के ज़माने में शायद लोगों को हंसाना बहुत आसान है । फूहड़ लोग इस धंधे में जमकर लगे हैं । लेकिन आज लोगों को रूला देना बहुत मुश्किल है, ख़ासकर किसी गाने के ज़रिए । कई ऐसे गाने हुए हैं जो हमें रूलाते हैं । शायद किसी बिछड़े साथी की याद दिलाकर या फिर किसी बीते लम्हे का राग छेड़कर । गुलज़ार ऐसे गीतों के शहंशाह हैं । उनके कई गाने हमें जिंदगी के ख़ालीपन का अहसास दिलाते हैं । गुलज़ार उन लम्हों की याद दिलाकर चिकोटी काट लेते हैं, जो मुट्ठी में से रेत की तरह और बैंक से बैलेन्स की तरह सरक गये ।
ऐसा ही एक गाना आज मैं लेकर आया हूं ।
ये गाना मुझे उस रंगमंच कलाकार की याद दिलाता है, जिसका वक्त गुज़र चुका है । जिसके हिस्से का परफॉरमेन्स खत्म हुआ । अब परदा गिरना है । और उसे लगता है कि उसकी दास्तान तो अब शुरू होती है । जिंदगी ऐसी ही है दोस्त । पल पुराने दोस्तों की तरह बिछड़ते जाते हैं और जब बुढ़ापे की आहट सुनाई देती है, तो जीने की उत्कंठा, बेक़रारी बढ़ जाती है । लगने लगता है कि बहुत कुछ था जो हम कर ही नहीं सके । हम जी ही नहीं सके ।
इसलिए ये गाना आपको याद दिलायेगा कि जो कुछ रीता-छूटा है, उसे वक्त रहते पकड़ लीजिए । इस गाने का वो संस्करण नहीं मिला मुझे जिसमें जे के बैनर्जी (अगर मैं सही हूं तो) कुछ संवाद बोलते हैं । शायद फिल्म में ये गाना उन्हीं ने गाया है । लेकिन ये है हेमंत दा का गाया संस्करण । किसी के पास बैनर्जी साहब वाला संस्करण हो तो कृपया भेजियेगा । ये बता दूं कि संगीत है वसंत देसाई का ।
हेमंत कुमार की आवाज़ में ये गाना ऐसा बन पड़ा है कि बस क्या कहिए । सिर्फ रवायत नहीं बल्कि जानकारी के लिए ये बता देना जरूरी है कि ये गीत सन 1974 में आई फिल्म 'शक' / shaque का है । इस फिल्म में कुछ और बेहतरीन गीत हैं जिनका जिक्र फिर कभी किया जायेगा । इस फिल्म की विस्तृत जानकारी आप यहां पढ़ सकते हैं । ये समानांतर सिनेमा एक जानदार शानदार ब्लॉग है, जो मुझे आज ही मिला है । बहरहाल ये गीत मुझे भावुक बना रहा है । इसलिए फिलहाल इतना ही ।
अभी ना परदा गिराओ ठहरो
कि दास्तां आगे और भी है ।
कि इश्क़ गुजरा है इक जहां से
इक जहां आगे और भी है ।।
अभी ना परदा गिराओ ठहरो ।।
अभी तो टूटी है कच्ची मिट्टी
अभी तो बस जिस्म ही गिरे हैं ।
अभी कई बार मरना होगा
अभी तो अहसास जी रहे हैं ।
अभी ना परदा गिराओ ठहरो ।।
दिलों के भटके हुए मुसाफिर
अभी बहुत दूर तक चलेंगे ।
कहीं तो अंजाम के सिरों से
ये जुस्तजू के सिरे मिलेंगे ।
अभी ना परदा गिराओ ठहरो ।।
चिट्ठाजगत Tags: अभी ना परदा गिराओ ठहरो , abhi na parda girao thehro , shaque , शक , गुलजार , हेमंत कुमार , जे के बैनर्जी , j.k.bannerji , gulzar , hemant kumar , vasant desai , वसंत देसाई
10 comments:
ज़माने पहले ये पिक्चर देखी थी। और आज इतने समय बाद इसका गाना सुन रहे है।जिसे हम बिल्कुल ही भूल चुके थे। आपका शुक्रिया।
इस गीत ने रुलाया नहीं पर बहुत इण्टर्नलाइज कर दिया। भौतिक परिवेश से दूर। शायद वही सशक्तता हो गीत संगीत की।
गाना तो शानदार है ही और बहुत ही दिनों बाद सुनने को मिला है, पर गाने से ज्यादा आप की ये लाइनें हमें छू गयीं ,शायद हमारा हाले दिल ब्यां करता है इस लिए……।:)
"ये गाना मुझे उस रंगमंच कलाकार की याद दिलाता है, जिसका वक्त गुज़र चुका है । जिसके हिस्से का परफॉरमेन्स खत्म हुआ । अब परदा गिरना है । और उसे लगता है कि उसकी दास्तान तो अब शुरू होती है । जिंदगी ऐसी ही है दोस्त । पल पुराने दोस्तों की तरह बिछड़ते जाते हैं और जब बुढ़ापे की आहट सुनाई देती है, तो जीने की उत्कंठा, बेक़रारी बढ़ जाती है । लगने लगता है कि बहुत कुछ था जो हम कर ही नहीं सके । हम जी ही नहीं सके ।"
यूनुस जी,
बेहद ख़ूबसूरत गीत है, खैर अगर इंटरनेट की माने तो हम ७ जून २०५६ तक जियेंगे :-) इसलिए शायद परदा थोड़ी देर से गिरेगा :-)
लेकिन असल में कम्पार्टमेन्टलाइज होती जिन्दगी में ये गाना सोचने पर मजबूर करता है |
hemant da ki aavaaz hamesha se mujhey kisi mandir se aati madhum aarti ki avaaz si lagti hai..bahut gumbheer aur pavitr.....giit mehsuus kiya jaa sakta hai aankh muund kar..aabhaar YUNUS ji...bahut shukriya
(अगर मैं गलत नहीं हूँ ,तो....) जिसे आप हेमन्त दा की आवाज समझ रहे हैं दरअसल वही जे०के०बनर्जी की आवाज़ है।
जहाँ तक मेरी जानकारी है हेमन्त दा ने फ़िल्म ’शक’में अपनी आवाज़ दी ही नहीं है ।
जे०के०बनर्जी के अलावा जिन लोगों ने इसमें प्ले बैक दिया है, उनमें केवल आशा भोंसले,रफ़ी साहब और कुमारी फ़ैय्याज़ के नाम हैं।
अक्सर लोग कई दूसरे बंगाली गायकों की आवाज़ को हेमन्त दा की आवाज़ समझने की भूल करते रहे हैं ,खासतौर से द्विजेन मुखर्जी की आवाज़ को।
दूसरी बात यह कि समानान्तर सिनेमा के ब्लॉग(जिसकी लिंक आपने दी है) में इस फ़िल्म को सन 1974 में रिलीज़ दिखाया गया है, जबकि वास्तव में यह 1976 में रिलीज़ हुई थी।
बहरहाल इस फ़िल्म की वी०सी०डी० मंगा रहा हूं। जल्द ही तस्वीर साफ़ हो जाएगी ।
- वही
डॉ साहब ये आवाज़ तो पक्का हेमंत कुमार की है । दरअसल ये उनका गैर फिल्मी गीत है जो उनकी एक एल पी में आया था । शक फिल्म में जो गाना है वो गाया है जे के बैनर्जी ने । बोल बिल्कुल यही हैं । और वो संस्करण अगर मैं ज़रा सी कोशिश करूं तो प्राप्त हो सकता है । जल्दी ही मैं वो संस्करण आपको सुनवाता हूं । वो बहुत ही कच्चा सा लगता है । ये वाकई सही है कि कई बंगाली आवाजों को हम हेमंत कुमार समझ लेते हैं जबकि ऐसा नहीं है ।
sach kaha
शायद लोगों को हंसाना बहुत आसान है । फूहड़ लोग इस धंधे में जमकर लगे हैं । लेकिन आज लोगों को रूला देना बहुत मुश्किल है, ख़ासकर किसी गाने के ज़रिए ।
aur sach me aansu aa gaye!
युनुस जी
कुछ गीत सीधे दिल में उतर जाते हैं.
जीवन की कठिन राह पर चलते चलते संगीत शीतल पवन सा बन आगे बढ़ने का हौंसला देता है.
Hemant Kumar was one of the notable personalities who made significant contribution in bollywood and tollywood music. He composed music for the films Nagin,
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