संगीत का कोई मज़हब, कोई ज़बान नहीं होती। 'रेडियोवाणी' ब्लॉग है लोकप्रियता से इतर कुछ अनमोल, बेमिसाल रचनाओं पर बातें करने का। बीते नौ बरस से जारी है 'रेडियोवाणी' का सफर।

Monday, December 17, 2007

जल्‍द आ रहा है तरंग

रेडियोवाणी को इसी साल अप्रैल में शुरू किया गया था ।

सोचा ये था कि इस पर गीत संगीत के अलावा मेरे मन की बातों की महफिल भी सजेगी । पर फिर संगीत के तमाम सुधि श्रोताओं और जुनूनियों के इसरार के रहते मैंने रेडियोवाणी पर संगीत के अलावा बाकी तमाम बातें करनी बंद कर दीं । लेकिन चिट्ठा तो अपनी अभिव्‍यक्ति का एक माध्‍यम ही है ना । इसलिए काफी दिनों से एक बेचैनी थी कि रेडियोवाणी पर ही वो सिलसिला दोबारा शुरू किया जाये या फिर कोई नया चिट्ठा तैयार किया जाये । मित्रों की सलाह यही थी कि रेडियोवाणी को संगीत का मंच रहने दिया जाये और एक नये चिट्ठे का आगाज किया जाये ।

इसलिए बीस दिसंबर से मैं अपने नये चिट्ठे 'तरंग' की शुरूआत कर रहा हूं । तरंग, मेरे मन की तरंग होगी । इसमें मैं खुद को अभिव्‍यक्‍त करूंगा । यानी इसमें मेरे मन की बातें होंगी । मेरी कविताएं, मेरी पसंदीदा कविताएं, पसंदीदा किताबों , फिल्‍मों और बाकी तमाम मुद्दों की बातें । अपने संस्‍मरण, यात्रा वृत्‍तांत । सब कुछ । यानी जो मर्जी में आये वही तरंग पर चढ़ाया जायेगा ।

ये रहा तरंग का लोगो । तरंग आज से तीन दिन बाद शुरू कर दिया जायेगा

 


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11 comments:

रवि रतलामी December 17, 2007 at 10:34 AM  

तरंग के लिए हमारी तरंगित बधाईयाँ :)

Manish Kumar December 17, 2007 at 10:38 AM  

aa gaye na line par :) badhai ho

Sagar Chand Nahar December 17, 2007 at 10:53 AM  

अग्रिम शुभकामनायें..

आनंद December 17, 2007 at 11:00 AM  

आइए, आपकी तरंग में बह जाने के लिए हम बेकरार हैं। - आनंद

Gyan Dutt Pandey December 17, 2007 at 11:29 AM  

प्रतीक्षा रहेगी।

VIMAL VERMA December 17, 2007 at 11:57 AM  

आइये आइये हमने लाल कालीन बिछवा दिया है स्वागत है मित्र ।

हिंदी ब्लॉगर/Hindi Blogger December 17, 2007 at 2:37 PM  

स्वागत है. तरंग को भी रेडियोवाणी जैसी सफलता मिले!

annapurna December 17, 2007 at 3:28 PM  

आप कविता भी लिखते है ?

ख़ैर तीन दिन बाद पता चल जाएगा कितना ख़ुराफ़ाती दिमाग़ है आपका और तभी तय करेंगें कि आपका स्वागत करें या …

Yunus Khan December 17, 2007 at 5:06 PM  

सभी का धन्‍यवाद । तरंग पर आपका इंतजार रहेगा ।

dr.shrikrishna raut December 18, 2007 at 8:06 PM  

प्यारे युनुस भाई,

‘मेरी क़िस्‌मत में ग़म गर इत्‌ना था
दिल भी या रब कई दिये होते।’

वहाँ एक् और चिठ्ठे की क्या बात।

मै आपकी तकलिफ को समझ सकता हूँ। हिन्दी सिनेसंगीत से लेकर लोकसंगीत तक और कविता से लेकर दोस्तो की महफिल तक ढेर सारी बाते एक चिठ्ठे मे कैसे समायेगी। मेरे पास एक कविता है फुलचंद मानव की ‘काँच के गिलास’। आपको ई-मेल से भेज दुंगा। बरसो पहले ‘धर्मयुग’ मे छपी थी। आप जैसे दोस्तो मे उसे बाँटना जरूरी है। चलो इस बहाने आपके दिल से निकलनेवाली एक नयी ‘तरंग’ का मन से स्वागत।
- डॉ. श्रीकृष्ण राऊत

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