आके सीधी लगी दिल पे जैसे कटरिया--जब किशोर कुमार ने महिला और पुरूष दोनों स्वरों में गाया
रेडियोवाणी पर आज हम आपको एक बहुत ही अनोखा गीत सुनवायेंगे ।
इस गीत की ख़ासियत ये है कि इसे किशोर कुमार ने दो आवाज़ों में गाया है । महिला और पुरूष स्वर दोनों में । किशोर कुमार improvisation के माहिर कलाकार थे । गाना जैसा रचा गया हो, शायद ही किशोर दा ने वैसा का वैसा गा दिया हो, उन्होंने हमेशा हमेशा चीज़ों के साथ खेल किया, प्रयोग किये । और इसी प्रयोग का नतीजा है ये
गीत ।
ये गाना 1962 में आई फिल्म half ticket का है । इसे कालिदास ने निर्देशित किया था । किशोर कुमार, मधुबाला, हेलेन और प्राण इस फिल्म के कलाकार थे । मज़ाहिया यानी हास्य फिल्मों में इस फिल्म को सरताज माना जाता है । गीत शैलेन्द्र ने लिखे थे और संगीत सलिल चौधरी का था ।
ई स्निप्स से प्राप्त इस गाने में पहले आपको खुद सलिल दा की आवाज़ सुनाई देगी । जो बता रहे हैं कि इस गाने को पहले लता जी को गाना था । लेकिन वो उपलब्ध नहीं हो पाईं तो किशोर ने कहा कि मैं ही दोनों आवाज़ों में गा देता हूं, सलिल दा हतप्रभ रह गए और थोड़े हिचकते हुए राज़ी भी हो गए । पर जब फाइनल गीत बना तो वो कमाल का था । शायद इन कलाकारों को अहसास भी नहीं हुआ होगा कि वो अपने समझौते और प्रयोग के ज़रिए एक इतिहास रचने वाले हैं । किशोर कुमार ने ऐसे और भी गीत गाए हैं जिनमें वो लड़के और लड़की की आवाज़ों में गाते हैं । जैसे फिल्म लड़का लड़की का गीत 'सुणिए सुणिए आजकल की लड़कियों का प्रोग्राम' । बहरहाल आईये इसी गीत पर वापस लौटते हैं । ये एक मज़ाहिया गीत है । और मज़ाहिया गीत की अदायगी तलवार पर चलने जैसा जोखिम होती है । किशोर दा तलवार की धार पर चले भी और पार भी निकले हैं । इस गाने के बोल भी पेश कर रहा हूं ताकि आपको सुनने समझने और इस गाने की चुनौती को समझने में आसानी रहे ।
इस गाने को सुनते हुए ध्यान दीजियेगा कि कितनी जल्दी जल्दी किशोर ने स्वर बदला है । पहले महिला फिर पुरूष । ये भी याद रहे कि वो ट्रैक रिकॉर्डिंग वाला दौर नहीं था । यानी गाना वन टेक ओके होता था । सीधे शब्दों में कहें तो शुरू से आखिर तक एक ही कट में रिकॉर्ड किया जाता था । इससे आपको इस गाने की चुनौती का अहसास जरूर हो जायेगा । सलिल दा ने इस गाने के इंटरल्यूड में मेंडोलिन पर बड़ी प्यारी धुन बजवाई है । कमाल धुन है । सलिल दा अपने काम के हर हिस्से को पूरी गंभीरता से पूरा करते थे । वे वाक़ई एक संपूर्ण कलाकार थे ।
एक अफ़सोस ये रह गया कि शुद्ध संगीत के चाहने वाले इस गाने को गंभीरता से नहीं लेते । उन्हें ये एक खेल या एक खिलवाड़ लगता है । लेकिन मुझे लगता है कि किशोर कुमार की कलाकारी का बेहतरीन नमूना है ये गीत ।
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महिला-आके सीधी लगी दिल पे जैसे कटरिया ओ संवरिया
ओ तेरी तिरछी नज़रिया
पुरूष- ले गयी मेरा दिल तेरी जुल्मी नज़रिया ओ गुजरिया
ओ जाने सारी नगरिया
महिला- आके सीधी लगी ।।
महिला- मेरी गली आते हो क्यूं बार बार
छेड़ छेड़ जाते हो क्यूं दिल के तार
ओ सैंया ओ सैंया पड़ूं तेरे पैयां
पुरूष- क्या मैं करूं गोरी मुझे तुझसे है प्यार
जो ना तुझे देखूं ना आये क़रार
ओ गोरी ओ गोरी बड़के बुद्धन तीर वी टक्कर
महिला- हटो जाओ ना बनाओ
हटो जाओ हाय हाय ना बनाओ हाय हाय
नटखट रंगीले सांवरिया
आके सीधी लगी दिल पे जैसे कटरिया ।।
पुरूष- ले गयी मेरा दिल तेरी जुल्मी नजरिया ओ गुजरिया
महिला- पीछे पीछे आते हो क्यूं दिल के चोर
मान जाओ वरना मचा दूंगी शोर
बचाओ ओ मुई मुर्गे ओ कौवे
पुरूष- पहले तो बांधी निगाहों की डोर
अब हमसे कहती हो चल पीछा छोड़
ओ गोरी ओ नटखट ओ खटपट ओ पनघट ओ झटपट
महिला- तोरे नैना ओ मीठे बैना
मुझको बना दिया बावरिया
आके सीधी ।।
पुरूष- ले गयी मेरा दिल तेरी जुल्मी नजरिया ओ गुजरिया
जाने सारी नगरिया ।।।।
इस गाने को आप यहां देख भी सकते हैं ।
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11 comments:
एक अफ़सोस ये रह गया कि शुद्ध संगीत के चाहने वाले इस गाने को गंभीरता से नहीं लेते ।
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यह तो वैसे ही हो गया जैसे हिन्दी सहित्य के तथाकथित झण्डाबरदार हम जैसे ब्लॉगर पर छींकते हैं।
किशोर कुमार तो और भी प्रिय हो गये!
किशोर दा का बेहतरीन प्रयोग!
गीत सुनवाने के लिये धन्यवाद।
VAH...!!
VAH-VAH....!!
SHUKRIYA
YUNUS BHAI
शुद्ध जीनियस..गजब की प्रतिभा थे किशोर कुमार..
गीत वाकई में बहुत प्यारा है. आज भी संगीत की प्रतियोगिताओं मे ये गीत लोग अपनी क्षमता मनवाने के लिए गाते हैं.
श्री युनूसजी,
किशोरदा की गायकी को फिल्म संगीतके स्वर्ण युगमें उनके अच्छे गाने होते हुए भी उन दोर के संगीतकारों और संगेत विवेचकोने खासा अन्याय किया है । पर एक खुशी एक बात की है , कि अपनी हयाती तक हिन्दी फिल्म संगीत के भीष्मपिताम: कहलाने वाले स्व. श्री अनिल विश्वास किशोरदा के लिये बहोत ही उंचा अभिप्राय रखते थे । पर स्व. नौशादजी का किशोरदा को बिलकुल नज़रंदाझ करना कमसे कम मुझे तो बहोत ही खटका है । हाँ, मेरे पार एसा इक गाना है जो फ़िल्म सुनहरा संसार के लिये नौशाद साहबने किषोरदा से आशाजी के साथ गवाया है, पर वह गीत परदा नहीं देख सका था ।यह मेरे सुरतके ही एक मित्र से मुझे प्राप्त हुआ था ।
१३ अक्तूबरके दिन रेडियोनामा पर मेरी लिखी पोस्ट पर नीचे दिये लिन्क पर मेरे ज्यादा विचार आप किशोरदाके बारेमें पढ़ पायेगे ।
http://radionamaa.blogspot.com/2007/10/blog-post_7798.html
पियुष महेता ।
युनूसभाई,
जिस तरह नौशाद मियां किशोरदासे गवाते नहीं थे उसी प्रकार सज्जाद हुसेन साब किशोर कुमार को गायक नहीं मानते थे. "रास्तेके उस छोरपे खडे किसीको अगर बुलाना हो तो उसकी आवाज अच्छी है" ये थे उनके किशोरकुमार की आवाज के बारेमें विचार. फिरभी उन्होने फिल्म रुखसानाके लिये किशोर कुमार से एक बेहतरीन गीत गवाया है, "तेरे जहासे चल दिये देते हुवे दुवायें हम, तेरा खुदा भला करे सहते रहे जफाये हम" (ये गीत आशा जी की आवाजमें भी हैं). इसका रहस्य क्या हैं? क्या आपकी कभी सज्जाद हुसेनसाब से मुलाकात हुवी थी ? क्या आपके किसी इंटरव्ह्यू में इस बातका जिक्र आया हैं? क्या ये गीत आप हमें सुना सकते हैं?
DEAR YUNUS,
UR BLOG IS SIMPLY MINDBLOWING! PLEASE KEEP IT UP. INSPITE OF BEING A PART OF A DECAYING INSTITUTION LIKE A I R, U HAVE KEPT UR PROFESSIONAL SANITY INTACT AND I CONGRATULATE U FOR THE SAME.I CAN IMAGINE HOW DIFFICULT IT MUST BE FOR U TO KEEP UPDATING MATERIAL HERE WHILE LIVING IN CRUDE ENVIRONS OF MUMBAI AND I WISH U GLORY IN ALL UR ENDEAVOURS.
MUNISH
पिछले हफ्ते इंटरनेट और ब्लॉग की दुनिया से दूर रहा। दीपावली की शुभकामनाओं के लिए धन्यवाद !
वाकई ये शानदार गीत है। अभी हाल ही में सा रे गा मा पा पर राजा हसन ने इस कठिन गीत को खूबसूरती से निभाया था।
http://www.youtube.com/watch?v=e14lUm3uwes
संगीत पंडित भले ही इस तरह के गीतों को तरज़ीह ना दें पर इस तरह के गीत गायक की हरफनमौला प्रवृति को बढ़ावा देते हैं।
kishor da ne pehli baar purush tatha stree swar mein film rangili(1956) mein gaayaa thaa--baiyyan chhodo balam ghar jaana re--sangeetkar the--chic chocolate--yunus bhai sunwa sako to bada upkaar hoga
dr.k.k.goel
मैं थोडा , नहीं नहीं बहुत देर से कमेन्ट कर रहा हूँ पोस्ट के ३ साल बाद परन्तु मैं इस गाने मैं प्राण साहब की नतर्य कला को भी उतना सम्मान देता हूँ जितना किशोर दादा के गाने को, प्राण साहब के expression पर ग़ोर करें ज़रा
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