संगीत का कोई मज़हब, कोई ज़बान नहीं होती। 'रेडियोवाणी' ब्लॉग है लोकप्रियता से इतर कुछ अनमोल, बेमिसाल रचनाओं पर बातें करने का। बीते नौ बरस से जारी है 'रेडियोवाणी' का सफर।

Sunday, August 5, 2007

आज फिल्‍म ‘नया दौर’ के सारे गाने सुनें, देखें और इनकी चर्चा करें





सबसे पहले तो आपको बता दूं कि इस पोस्‍ट के ज़रिये ना सिर्फ़ हम फिल्‍म ‘नया दौर’ के गानों को सुनेंगे और देखेंगे । बल्कि इस फिल्‍म से जुड़ी कुछ दिलचस्‍प बातों का जिक्र भी करेंगे । और कुछ अन्‍य अहम मुद्दों को भी उठाया जायेगा ।

इस हफ्ते बी.आर.चोपड़ा की फिल्‍म ‘नया दौर’ के रंगीन संस्‍करण का रिलीज़ होना कई मायनों में एक ऐतिहासिक घटना है । आपको शायद याद हो कि ये फिल्‍म पहली बार सन 1957 में रिलीज़ हुई थी । आज पचास साल बाद इसे कलर रूप देने के लिए चार करोड़ रूपये ख़र्च हुए हैं । विविध भारती की स्‍थापना भी सन 57 में ही हुई थी । यानी ये विविध भारती और नया दौर दोनों का गोल्‍डन जुबली ईयर है ।

इंसान और मशीन की होड़ की कहानी है नया दौर ।

ये फिल्‍म भारत की आज़ादी के दसवें साल में रिलीज़ हुई थी । और कलर वर्जन आज़ादी के साठवें साल में रिलीज़ हुआ है । इस बीच देश और दुनिया कितनी बदल गयी है । नेहरू के सपनों के भारत का निर्माण हो रहा था सन 57 में । भारत औद्योगीकरण और समाजवाद के सपनों को बुन रहा था तब । आज भारत एक खुला बाज़ार है ।

मैकडोनाल्‍ड और पीत्‍ज़ा हट की ठंडी हवा में इतराती एक तोंदुअल रईसी कायम हो रही है देश पर । चमचमाती महंगी कारों ने तांगों तो क्‍या साईकिलों तक को निग़ल लिया है । रेलगाड़ी का युग ढलान पर है, अब तो एयरलाईनें बुला बुला के सस्‍ते टिकिट बेच रही हैं । आई.टी.कंपनियों में काम करने वाले यंगस्‍टर अपने बाप से ज्‍यादा तनख्‍वाह पाकर गर्रा रहे हैं, लीवाई की फाईव पॉकेट जीन्‍स और ली कूपर के जूतों में ।

लेकिन इसी भारत का एक दूसरा रूप भी है ।

जहां टी.वी. की सुर्खियां विदर्भ में एक महिला को बैल की जगह हल पर काम करते दिखा रही हैं ।
जहां आंध्र और विदर्भ के किसान आत्‍महत्‍या कर रहे हैं ।
जहां मज़दूर की दिक्‍कतें बहुराष्‍ट्रीय कंपनियों की सहूलियतों के साथ साथ बढ़ती जा रही
हैं ।

ऐसे विडंबनात्‍मक समय में आई है ‘नया दौर’

ये वो समय है जब पुरानी फिल्‍म के रिवाईवल के साथ साथ नये समय में प्रासंगिक लगने वाली एकदम नई नया दौर की ज़रूरत भी थी । जो शायद उन चार करोड़ रूपयों में बन भी जाती, जो पुरानी फिल्‍म के रंग-रोगन और संगीत के काया कल्‍प पर खर्च हुए हैं । इसका मतलब ये नहीं कि हम नया दौर के नये रिलीज़ के विरोधी हैं । हम चाहते हैं कि ये वक्‍त की नयी समस्‍याओं पर एक और नया दौर भी बने ।


बहरहाल ‘नया दौर’ पर लिखी इस पोस्‍ट में मैं आपको ना सिर्फ इसके गीत सुनवाऊंगा बल्कि इससे जुड़ी कुछ महत्‍त्‍वपूर्ण बातें भी बताऊंगा ।

रिलीज़ का साल 1957
निर्माता निर्देशक—बी. आर. चोपड़ा
कहानी एवं पटकथा— अख्‍तर मिर्ज़ा
संवाद—कामिल राशिद
संगीत—ओ.पी.नैयर
गीत—साहिर लुधियानवी
छायाकार—एम.एन.मल्‍होत्रा
कला-निर्देशक—संत सिंह
संपादक—प्राण मेहरा
पार्श्‍वगायक—रफ़ी,आशा भोसले, शमशाद बेगम,बलबीर ।
कलाकार—दिलीप कुमार, वैजयंती माला, अजीत, जॉनी वाकर, जीवन, चांद उस्‍मानी, कुमकुम, मीनू मुमताज, बेबी डेज़ी ईरानी ।

तो पहले हो जाये दौर गीत-संगीत का ।

साहिर लुधियानवी ने इस फिल्‍म के गीत लिखे थे और संगीत था जिद्दी-अख्‍खड़-और मुंहफट, लेकिन कमाल के संगीतकार ओ.पी.नैयर का । साहिर और नैयर के टकराव की कुछ बातें इसी पोस्‍ट पर नीचे पढियेगा ।

नैयर साहब से विविध भारती में ही मुझे मिलने और बातचीत करने का मौक़ा मिला था, ये देखिए, जब नैयर साहब ने स्‍टूडियो में मेरे, कमल शर्मा और अहमद वसी से बातचीत के दौरान ब्रेक में तस्‍वीरें खिंचाते हुए कहा था—ये हुई ना बात, कोई तो है यहां जिसका क़द कम से कम मेरे जोड़ का है । और इस बात पर अपन ज़ोर से हंसे । फोटोग्राफर ने इस हंसी को कित्‍ती अच्‍छी तरह क़ैद किया है । नैयर साहब की ज़र्रानवाज़ी थी ये ।



आईये संगीत की बात करें--
नैयर साहब जिद्दी संगीतकार थे । इस फिल्‍म के निर्माण के दौरान बी.आर.चोपड़ा से उनका जग-ज़ाहिर पंगा हो गया था । दरअसल साहिर लुधियानवी ने गुरूदत्‍त की फिल्‍म ‘प्‍यासा’ की रिलीज़ के बाद हर जगह ये कहना शुरू कर दिया था कि उन्‍होंने सचिन देव बर्मन को सही मायनों में सफल बनाया है । ये उनके ही गीतों की देन है । ये उन्‍हीं दिनों की बात है जब नैयर और साहिर साथ में ‘नया दौर’ के संगीत पर काम कर रहे थे । ज़ाहिर है कि ओ.पी.नैयर के दिमाग़ में ये बात आई कि जब ‘नया दौर’ रिलीज़ हो जाएगी तो साहिर क्‍या कहेंगे । बस इसी फितूर के तहत नैयर ने उन छह फिल्‍मों से साहिर को बाहर करवा दिया जिनमें वो संगीत दे रहे थे । ख़ुद नैयर ने कहा था कि उनके इस क़दम से साहिर साहब हाईपर टेन्‍शन के शिकार होकर अस्‍पताल में भर्ती हो गये थे । आगे चलकर जब अगले साल सन 1958 में चोपड़ा की फिल्‍म ‘साधना’ में नैयर ने साहिर के साथ काम करने से इंकार किया तो हारकर एन.दत्‍ता को लिया गया था ।

बहरहाल साहिर और ओ.पी.नैयर की इस जोड़ी का कमाल थे ये नग़्मे । ज़रा ‘नया दौर’ के गानों की फ़ेहरिस्‍त पर नज़र डालिए ।

उड़ें जब जब ज़ुल्‍फ़ें तेरी ।
ये देश है वीर जवानों का ।
मांग के साथ तुम्‍हारा, मैंने मांग लिया संसार
साथी हाथ बढ़ाना साथी रे ।
रेशमी सलवार कुरता जाली का ।
मैं बंबई का बाबू ।
आना है तो आ राह में देर नहीं है ।

अब एक-एक करके ये गीत सुनें जाएं---

उड़े जब जब ज़ुल्‍फ़ें तेरी--

ये गीत मो.रफ़ी और आशा भोसले की आवाज़ों में है, और इसमें है एक पंजाबी मस्‍ती । एक बेफिक्री और कमाल का नृत्‍य निर्देशन । कमाल की बात ये है कि दोनों ही गायक इस गाने में लाउड नहीं होते । अपनी संयत आवाज़ में गाते चले जाते हैं । नैयर साहब की सबसे बड़ी ख़ासियत है उनका बेहतरीन संगीत संयोजन । ये सही मायनों में जिंदा संगीत था । आप इस गाने का सिग्‍नेचर म्‍यूजिक सुन कर ही झूमने लगेंगे । ज़रा सोचिए अगर केवल संगीत आपको झुमा सकता है तो गाना क्‍या करेगा, गाना अपने झोंके में आपको बहा ले जाता है । जब आशा जी मुखड़ा गाती हैं तो भला कौन होगा जो साथ में ना गुनगुनाने लगे । नया दौर फिल्‍म के सभी गीत हमारे संस्‍कारों में रच बच गये हैं और इनकी केवल धुन भी बजाई जाए तो हम इन्‍हें संग संग गुनगुनाते लगते हैं । यहां इस गाने को देखिए--



इस गाने को आप यहां सुन सकते हैं ।

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‘नया दौर’ का सबसे चर्चित गीत—ये देश है वीर जवानों का—
मैं अपने बचपन से आज तक देखते आ रहा हूं, हमारे यहां इस गाने के बिना बारातें नहीं निकलतीं । हर बारात में ‘ये देश है वीर जवानों का’ बजाया जाता है । मुझे लगता है कि ये शायद मज़ाक़ में बजाया जाता है, वीर जवान ही तो शादी करने का साहस कर सकते हैं । इस एंगल से गाना सुनें तो अर्थ ही बदल जाता है । बहरहाल साहिर लुधियानवी ने इसे बिल्‍कुल पंजाबी लोकरंग के बांके नौजवानों वाले गीत का रूप दिया है । आज भी इस गाने पर हमारे पैर थिरकने लगते हैं । यहां देखिए--



इस गाने को आप यहां सुन सकते हैं---
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मांग के साथ तुम्‍हारा मैंने मांग लिया संसार--

भारतीय फिल्‍मों का सरताज तांगा-गीत है ये । अनगिनत ऐसे गाने हैं जो तांगे पर फिल्‍माये गये हैं लेकिन ये उनमें सिरमौर है । नैयर तांगा गीत बनाने में बड़े माहिर थे, मुझे वाक़ई अजीब लगता है कि कितनी सहजता से घोड़े की टिक टिक का रिदम पैदा किया जाता था उन दिनों । रफ़ी साहब और आशा जी की सहजता इस गाने को कालजयी बनाती है । जिस तरह से इस गाने को फिल्‍माया गया है, वो भी कमाल है, दिलीप कुमार और वैजयंती माला की अदाएं देखते ही बनती हैं, इस गाने को यहां देखिए--




इस गाने को आप यहां सुन सकते हैं--

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आना है तो आ, राह में देर नहीं है ।

ओ.पी. नैयर इस गाने को अपने दस श्रेष्‍ठतम गानों में से एक मानते थे और कहते थे कि ये उनका बनाया बहुत कठिन गीत था । शास्‍त्रीयता में पगा ये गीत रफ़ी साहब ने बड़ी आसानी से गा लिया । इसीलिये रफ़ी नैयर सा. की पहली पसंद थे । आप महसूस करेंगे कि कितने ऊंचे सुरों का गीत है ये । यहां देखिए--





इस गाने को आप यहां सुन सकते हैं--

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रेशमी सलवार कुरता जाली का--

शमशाद बेगम और आशा भोसले का गाया ये गीत मंच पर फिल्‍माया गया है । आशा भोसले मीनू मुमताज के लिए और शमशाद बेगम कुमकुम के लिए गा रही हैं । एक महिला बनी है एक पुरूष और चल रही है नोंक झोंक । हिंदी फिल्‍म संगीत का बेहद अनूठा गीत, शमशाद बेगम आज भी जीवित हैं और मुंबई के पवई इलाक़े में एक गुमनाम जिंदगी जी रही हैं । ये रही उनकी ताज़ा तस्‍वीर ।


इस गाने को आप यहां देख सकते हैं ।



इस गाने को आप यहां सुन सकते हैं—

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साथी हाथ बढ़ाना—


नया दौर के जो गीत एक मुहावरा बन चुके हैं उनमें से एक है ये । आम जिंदगी में ना जाने कितने ऐसे पल आते हैं जब हम इस गाने का प्रयोग करते हैं । शादी उत्‍सवों में या घर पर हुए किसी आयोजन में कामकाज के वक्‍त मैंने ना जाने कितने लोगों को कहते देखा है—‘साथी हाथ बढ़ाना’ । साहिर ने इस गाने को भारत के नवनिर्माण के सपने से जोड़कर लिखा था । ये नेहरू के समाजवादी सपने से प्रेरित गीत भी था ।
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मैं बंबई का बाबू---


ये जॉनी वॉकर स्‍टाईल का गीत है, जिसे रफ़ी साहब ने बड़े मज़े लेकर गाया है । इसी तरह का गीत ‘मधुमति’ में सलिल चौधरी ने स्‍वरबद्ध किया था । और प्‍यासा में सचिन देव बर्मन ने । जॉनी वाकर जहां हों तो सिर्फ़ वही होते हैं । दूसरे फिर नेपथ्‍य में चले जाते हैं । इस गाने को यहां देखिए--


इस गाने को आप यहां सुन सकते हैं ।

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रंगीन ‘नया दौर’ मैंने अभी तक नहीं देखी । शायद इस सप्‍ताह मोहलत मिले । हां ‘मुग़ले आज़म’ ज़रूर रंगीन होने पर देखी थी और वो एक दिलचस्‍प अनुभव बन गया था । आपका क्‍या कहना है ‘नया दौर’ के बारे में ।

नया दौर के गाने सुनने का एक और तरीक़ा है ये लिंक । गानों की सूची आ जायेगी, चेक करें और प्‍ले सिलेक्‍टेड पर क्लिक करें ।
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11 comments:

mamta August 5, 2007 at 6:49 PM  

आपने तो अपनी कही बात सच कर दी है। फोटो अच्छी आयी है।
और हमने इस फिल्म के बारे मे पहले ही अपनी बात यहां पढे कह दी थी .

Gyan Dutt Pandey August 5, 2007 at 7:18 PM  

नया दौर पुराने दौर में देखी थी. पर अभी भी बहुत ताजा है मन में. अत: यह पोस्ट दिल को स्पर्श करती लगी.
धन्यवाद यूनुस!

Udan Tashtari August 5, 2007 at 9:57 PM  

बहुत बढ़िया. नैय्यर साहब के साथ तस्वीर में आप बहुत धांसू आये हैं. बधाई.

Manish Kumar August 5, 2007 at 10:52 PM  

बहुत अच्छा आलेख फिल्म के बारे में भी और आज के हालातों के मद्देनज़र आपकी सोच के हिसाब से भी। बहुत सारी नई जानकारी मिली। ये देश है वीर... इस फिल्म का मेरा सबसे प्रिय गीत है।

sanjay patel August 5, 2007 at 11:43 PM  

युनूस भाई..मित्रता दिवस के दिन नया दौर के बारे में पढना कितना माकूल है न क्योंकि ये फ़िल्म भी दो मित्रों दिलीपकुमार और अजीत के दोस्ताना और उस मे आई फ़ाड़ को रेखांकित करती है. आपने इस फ़िल्म पर लिखते वक़्त नेहरू और भारत के नव-निर्माण की बात लिखी ..सो बहुत अच्छा लगा.यहाँ ये भी जोड़ना चाहूँगा कि नेहरूजी ने बलदेवराज चोपड़ा जैसे निर्देशक और दीगर अन्य निर्माता निर्देशकों के एक प्रतिनिधि मंडल को रूस जैसे देश की यात्रा पर भेजा जिससे वे भारत पसेमंज़र वहाँ की औद्योगिक क्रांति और मनुष्य के अंर्तसंबध की पड़ताल करे भारत के सिनेमा को नई दृष्टि दे सकें . नया दौर और पैग़ाम उसी पड़ताल का नतीजा है. हाँ जाँनी वाँकर साहब का उल्लेख पढ़्कर दिल खु़श हो गया ..उन्होने अपना बचपन इन्दौर में जो बिताया था.नया दौर के बहाने उस पुराने दौर में ले जाने के लिये शुक्रिया.और हाँ मित्रता दिवस की बधाई...आपको,पांडेयजी को,समीर भाई को ममता बहन और मनीष जी को भी क्योंकि ये टिप्पणी लिखते वक़्त वे भी मौजूद हैं रेडियोवाणी पर. अल्लाहाफ़िज़.

Anonymous,  August 6, 2007 at 11:30 AM  

जिस दौर कि बात इस फिल्म में कही गई है वह श्वेत-श्याम में ही अच्छी लगती है।

आपकी नैय्यर साहब के साथ और शमशाद बेगम की तस्वीरें अच्छी लगी।

ब्लाग से जुड़े सभी को

Happy Friendship DAY

अन्न्पूर्णा

Voice Artist Vikas Shukla विकासवाणी यूट्यूब चॅनल August 6, 2007 at 8:25 PM  

युनूसभाई,
नया दौर यह एक ऐसी फिल्म है जो हिंदी फिल्मोंके इतिहासमे बहुत सारी बातो के लिये जानी जाती है. प्रथेम इसमे नायिका थी मधुबाला और उन्हे लेके फिल्मके १० रील बनभी चुके थे. बादमे उनका और बी. आर. चोप्रा का झगडा हो गया और मधुबाला की जगह ली वैजयंतीमालाने. जरा कल्पना किजिये, उडे जब जब जुल्फें तेरी में मधुबाला क्या लगती थी अगर यह दुर्भाग्यपूर्ण झगडा ना हुवा होता. खैर.
ओपी साबके साथे आपकी तस्वीर माशाल्ला क्या खूब उतरी है! विविधभारती की वजहसे आप बडे ही भाग्यशाली रहे है. आपको कैसे कैसे दिग्गजोंके साथ बाते और मुलाकाते करने का सौभाग्य प्राप्त होता है. मुझे आपसे बडी जलन होती है.
शमशाद जी के बारेमें मैने आपसे पहले भी जिक्र किया था. शायद आपको याद होगा. आज उनकी जानकारी और तस्वीर देखकर अच्छा लगा. क्या आपने उन्हे विविध भारती पर बुलाया है? मुबारक बेगम के साथ चली लंबी बातचीत मैने सुनी है.
मित्रता दिवस की शुभकामनाये आपको तथा आपके पाठकोंको भेज रहा हू.

VIMAL VERMA August 7, 2007 at 12:04 PM  

भाई यूनुसजी,बड़ा जमा के लिखा है आपने.सामग्री भी बड़ी मेहनत से जुटाई गई है,धन्य है!!!!

PIYUSH MEHTA-SURAT August 8, 2007 at 2:07 PM  

Aadaraniy shree yunusji,
agar aapaka ye blog nahin dekhate to kitani saaree jankari ganvaate. Aapka sabdbhandol bahot bahot tagda hai. Nayadour ke baareme padhane ka bahot maza aaya. Bus hame aap ya is blog ka koi pathak do chije samjaye (detailme) kee devnagarime apanee baat is blogme kaise samil kee jay. Ek baat aur kee aane walee 15 sitambar ko hamaare bujurg abhinetaa aur digdarshak Shri Krishnakantji kee saalgirah hai. Unaka janm 15-09-1920 ke din hua tha. Mera vividh bhartike kaaryalame karib 6 saal pahele meree subhechha mulaqaat ke samay, aapko diya hua unka biadata aapke paas ho sakta hai to aapke tagde sabd bhandolamese kuch sabd 15 sitambar ke din unke liye is blogme istemaal karaneki kripa kare. aur aapse aur pathakose ek aur binti hai kee audio ya vedio is blog par sunte ya dekhate samay streaming problem ke kaaran gaane ya drushya apane aap pause ya play hote hai to iska koee ilaj ho to isse muje avgat karane ki kripa kareN.
PIYUSH MEHTA-SURAT
viewers may view www.piyushmehta.htmlplanet.com

Yusuf August 8, 2007 at 4:02 PM  

Kya Bhai....No Blog in last 3 days. ?????

Sagar Chand Nahar August 10, 2007 at 11:26 AM  

नया दौर मेरी सबसे पसंदीदा फिल्मों में से एक है जिसे मैने कई कई बार देखा है। गानों की तो बात करते/सुनते ही रोम रोम पुलकित हो जाता है, खासकर आना है तो आ वाले गाने के शुरु के आलाप में।
फिल्म में हरेक कलाकार का अभिनय लाजवाब था, निर्देशन का तो क्या कहना।
बहुत कुछ लिखने का मन है पर टिप्प्णी की भी मर्यादा होती है ना! :)

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