अहमद वसी का गीत ‘शाम रंगीन हुई है तेरे आंचल की तरह’—क्या आप इसे ढूंढ रहे थे ।
शाम रंगीन हुई है तेरे आंचल की तरह—ये गीत आसानी से उपलब्ध नहीं होता, लेकिन मेरे एक मित्र कहते हैं कि बड़ा ही संक्रामक गीत है, दिमाग़ पर ऐसा चढ़ जाता है कि बस गुनगुनाते रह जाओ । मैंने पहले भी कहा है कि कई फिल्में ऐसी होती हैं जिनका बाद में कोई नामलेवा नहीं रहा लेकिन उनके कुछ गीत इतने लोकप्रिय हुए कि लोग उन्हें ढूंढ ढूंढ कर सुनते हैं । ये इसी तरह का नग़मा है ।
हैदराबाद की अन्नपूर्णा जी ने इस गाने की याद दिलाई थी बहुत दिन पहले । लेकिन इंटरनेट पर ये गीत कहीं मिल ही नहीं रहा था । आज मिला है तो बहुत अच्छा लग रहा है, आपको बता दूं कि ये गीत विविध भारती में उद्घोषक रह चुके अहमद वसी ने लिखा है । संगीत सी. अर्जुन का है और आवाज़ें हैं सुरेश वाडकर और उषा मंगेशकर की । फिल्म क़ानून और मुजरिम का ये गीत अपनी शानदार धुन और बेहतरीन संगीत संयोजन की वजह से यादगार बन गया है ।
इस गाने की शायरी वाक़ई बेमिसाल है । मुखड़ा ही कितना नाज़ुक सा बन पड़ा है । शाम रंगीन हुई है तेरे आंचल की तरह—अपने आप में अनूठी कल्पना है ये । मुझे पहली दोनों पंक्तियां बहुत ही अच्छी लगती हैं—शाम रंगीन हुई है तेरे आंचल की तरह, सुरमई रंग सजा है तेरे काजल की तरह ।
गाना बहुत ही शानदार सिग्नेचर म्यूजिक के साथ शुरू होता है और उसके बाद आती है सुरेश वाडकर की आवाज़ । जिस तरह लहराकर उन्होंने ‘शाम’ कहा है, वो उफ़ करने लायक़ है । उषा मंगेशकर के यादगार गीतों में इस गाने की गिनती होती है । संगीतकार सी. अजुर्न का नाम कम ही लोग जानते हैं । बड़े ही विनम्र और जिंदादिल इंसान थे सी.अर्जुन । आप सबको फिल्म पुनर्मिलन का उनका बनाया गीत याद होगा—पास बैठो तबियत बहल जाएगी, मौत भी आ गयी हो तो टल जाएगी । अर्जुन भी उन संगीतकारों में से एक हैं जो पहली पंक्ति के कलाकारों में अपना नाम दर्ज नहीं करा पाए । इसके अनेक कारण हो सकते हैं ।
तो आईये इस गाने को सुनें और पढ़ें ।
शाम रंगीन हुई है तेरे आँचल की तरह
सुरमई रंग सजा है तेरे काजल की तरह
पास हो तुम मेरे दिल के मेरे आँचल की तरह
मेरी आँखों में बसे हो मेरे काजल की तरह
मेरी हस्ती पे कभी यूँ कोई छाया ही न था
तेरे नज़दीक मैं पहले कभी आया ही न था
मैं हूँ धरती की तरह तुम किसी बादल की तरह
सुरमई रंग सजा है तेरे काजल की तरह
आसमां है मेरे अरमानों का दरपन जैसे
दिल यूँ धड़के कि लगे बज उठे कंगन जैसे
मस्त हैं आज हवाएं किसी पायल कि तरह
सुरमई रंग सजा है तेरे काजल की तरह
ऐसी रंगीन मुलाक़ात का मतलब क्या है
इन छलकते हुए जज़्बात का मतलब क्या है
आज हर दर्द भुला दो किसी पागल की तरह
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8 comments:
सच में-आज पहली बार सुना-शाम रंगी हुई तेरे आंचल की तरह....छा गये भाई!! बहुत खूब. लगे रहो.
हमेशा की तरह एक बार फ़िर से धन्यवाद :-)
इस और अन्य फिल्मी-गीतों में एक बात देखता हूं - शब्द बड़े सरल और स्पर्श करने वाले होते हैं. लगता है, इनसे दोस्ती की जा सकती है.
आदरणिय श्री युनूसजी,
आज आपके ब्लोग पर आपके विविध भारतीके सेवा निवृत साथी श्री अहमद वशी सहब के बारेमें पढकर बहोत खुशी हुई । आप तो जानते है ही है कि मेरा आपसे और आपके जो अन्य साथियों से मिलना हुआ है, उनमे एक नाम उनका भी है । कई साल पहेले स्व. तलत महेमूद साहब की जयमाला पैश हुई थी, उसमे एक गाना था मेरे शरीके सफ़र हम सफ़र उदास न हो, जिसके बारेमें तलत साहबने अपने और स्व. चित्रगुप्तजी के सिवा कुछ नहीं बताया था । तो इस गीत को याद रख कर मैने एक लम्बे अंतराल के बाद पर आजसे करीब ७ साल पहेले श्री कमल शर्माजी के हल्लो फ़र्माईशमें मैने इसी गाने की फ़रमाईश की थी, जो पूरी की गयी थी, और इस गीत को बादमें करीब ४ से ५ श्रोताओने थोडे थोडे समय अंतराल पर इसी फ़ोन इन कार्यक्रमोमे सुनना चाहा था । मेरी फ़रमाईश के बाद मूझे पता चला कि, यह गीत तो अहमद वशी साहब की कलम का निखार है । बादमें विविध भारती कार्यलयमें उनसे उनके साथ हुई पहली मुलाकात के करीब तीन साल बाद हुई थी तब भी उन्होंने मूझे पहचान लिया था । तब मैने उनको बताया था की आपके इस गीत की फ़रमाईश मैने की थी । (उसके बाद और श्रोता की यह गाने के लिये फ़रमाईश आयी थी।)
आज जो मैं देवनागरी हिन्दी में इस ब्लोग पर लिख रहा हूं (अभी पूरे के पूरे कि-बोर्ड का पता नहीं है ।) वह इसी ब्लोग के एक पाठक हैद्राबाद के श्री सागरचंद नहारजी की बदौलत है , जिन्होंने इस ब्लोग पर मेरी टिप्पणियां पढकर मूझे बिन गुजराती होते हुए भी गुजरातीमें मेईल भेज कर मूझसे पहचान की पैशकश कि थी । बादमें कई बार चेटिंग्स भी कि है और करेंगे ।
पियुष महेता-सुरत-३९५००१.
युनूस भाई जिन फ़नकारों के साथ इंडट्री ने इंसाफ़ नही किया उनमें सी.अर्जुन भी हैं. लेकिन इसी संगीतकार ने फ़िल्म जय संतोषी माँ में क़ामयाबी के झंडे भी तो गाड़ दिये थे.हालाँकि कवि प्रदीपजी ने मुझे व्यक्तिगत रूप से बताया था कि उनके लिखे ज़्यादातर गीत धुनबध्द ही होते थे.आप द्वारा उल्लेखित गीत शाम रंगीन हुई है म्युज़िक की मासूमियत का कारनामा है.सुरेशभाई ने इसे जिस तसल्ली से गाया है वह बहुत ही आनंददायक है. उषाजी के मादक स्वर जब इस गीत में समाती है तो ऐसा लगता है कि भीगे सावन में महुआ झर रहा है. जब कभी कम सुने गए सुरीले गीतों की सूची बनी तो निश्चित ही ये गीत उसमें शुमार होगा.अहमद वसी साहब का ज़िक्र आते ही शायरी से लकदक उनके छायागीत ज़हन में छा जाते हैं.
अरे वाह ...कितना खुबसुरत Duet ... सुनवाया आपने, युनूस भाई !
शुक्रिया ..एक और गाना मैँ , एक लम्बे अर्से से खोज रही हूँ
गायिका हैँ उषा मँगेशकर जी गज़ल के बोल हैँ
" वो जो खत तुने मोहोब्बत मेँ लिखे थे मुझको,
बन गये आज वो साथी, मेरी तनहाई के .."
लता दी पहली बार जब अमरीका मेँ शो करने आयीँ थीँ तब मैँ भी लोस -ऐन्जिलिस शहर मेँ
उन के साथ थी -और मेरे आग्रह पर उषाजी ने ये गज़ल स्टेज पर गायी थी और उन्होँने खूब तालियाँ बटोरीँ थीँ
परँतु, उसके बाद आज ३० साल हो गये वो गज़ल दुबारा सुन नहीँ पायी :-(
-- क्या आप उसे सुनवा देँगेँ ?
अग्रिम धन्यवाद सहित
स स्नेह,
- लावण्या
जो पहली पंक्ति में आ गए वे पहली पंक्ति के लायक़ थे और जो पीछे रह गए वे नालायक़ थे, ऐसा नहीं है. सफलता-विफलता के कारण बड़े विचित्र हैं, उनमें न पड़ें. लेकिन इतना ज़रूर है कि अर्जुन जी जैसे कलाकारों के बारे में जानने की इच्छा हमेशा रहती है जो नंबर वन नहीं हुए लेकिन नंबर वन हो सकते थे, जो नंबर वन हो गए उन्हें तो हर कोई जानता है, जो न हो सके उनकी बात करने का कुछ मतलब है, जो आप कर रहे हैं, आभार.
गीत के लिए शुक्रिया !
दरअसल मैं श्रीशैलम गई थी। सावन के महीने में दक्षिण में श्रीशैलम उचित जगह है। इस जगह का अपना ही आनन्द है।
आज ही काम पर लौटी हूं। आपके सारे चिट्ठे मैंने आज ही देखे है।
अन्नपूर्णा
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