आईये आज सुनें छाया गांगुली की आवाज़ में फिल्म गमन की ग़ज़ल—आपकी याद आती रही
आज अचानक मुझे छाया जी की याद आ गयी । छाया जी यानी छाया गांगुली । मैंने जब विविध भारती में ज्वाइन किया तो छायाजी यहीं थीं और संगीत-सरिता देखा करती थीं । मेरी खुशी का ठिकाना न रहा । छायाजी की फिल्म ‘गमन’ की ग़ज़ल मैंने इतनी सुन रखी थी कि पूछिये मत । ये तो पता था कि वे विविध भारती में काम करती हैं लेकिन ये नहीं पता था कि वे इतनी सहज-सरल और मीठी हैं । उसके बाद छाया जी के साथ कई साल काम करने का मौक़ा मिला ।
ये छाया जी ही थीं जिनकी वजह से मुझे पंडित जसराज जैसे सुर-गंधर्व के दिव्य-दर्शन हुए । ये छाया जी ही थीं जिनकी वजह से मुझे पंडित शिवकुमार शर्मा और पंडित हरिप्रसाद चौरसिया जैसे दिग्गजों से मिलने का मौक़ा मिला । उन्होंने तो विविध भारती में अनिल विश्वास को भी बुलाया था । उन्हीं की वजह से मेरी मुलाक़ात विख्यात सेक्सोफ़ोन वादक मनोहारी सिंह यानी मनोहारी दादा से हुई और जब मैंने उन्हें बताया कि दादा आप यक़ीन नहीं करेंगे मैं आपका बहुत-बहुत बड़ा मुरीद हूं, तो हमेशा परदे के पीछे रहने वाले मनोहारी दादा की आंखें नम हो गयी थीं । विषयांतर हो रहा है पर आपको बताऊं कि अभी पिछले बरस ही मैंने मनोहारी दादा को विविध भारती में आमंत्रित किया ओर उनसे लंबी बातचीत की । मनोहारी दादा के फिल्म-संगीत में योगदान और उनके जीवन के बारे में मैं जल्दी ही एक पूरी पोस्ट तैयार करूंगा । हां तो मैं बता रहा था कि छाया जी के साथ काम करना कितना सुखद और सिखाने वाला अनुभव रहा ।
छाया जी से मुझे कभी भी कुछ भी पूछने की इजाज़त थी और है । कई बार तो ऐसा हुआ कि मैं कुछ पूछकर भूल गया और छायाजी ने अगले सप्ताह खोजबीन करके मेरी शंका का निवारण किया । वो भी बाक़ायदा सामने बैठाकर और लंबी बातचीत करके । हालांकि अब वे विविध भारती में नहीं हैं बल्कि मुंबई दूरदर्शन में हैं । दो तीन महीने पहले हमारे रिटायर हो चुके वरिष्ठ साथी अहमद वसी के बेटे की शादी में छाया जी से मुलाक़ात हुई थी । इतनी खुश हो गईं कि पूछिये मत । कहने लगीं आज तो खाना यूनुस और ममता के साथ ही खाया जायेगा । फिर हमने बहुत-बहुत सारी बातें कीं । छायाजी की तस्वीर इस समय मेरे पास नहीं है । लेकिन आज शाम या कल सबेरे तक मैं इसी चिट्ठे पर और इसी पोस्ट पर छाया जी की तस्वीर चढ़ाने वाला हूं । आप देखेंगे कि उनके चेहरे पर एक दिव्य मुस्कान तैरती रहती है । हमेशा संतुलन रहने वाली छाया जी को कभी गुस्सा आए भी तो उनके चेहरे की सौम्यता को देखकर वो चला जाता है, शायद गुस्से को भी लगता होगा कि इनके चेहरे पर मैं ठीक ना लगूं । चलो कहीं और चलें ।
अपने काम के प्रति ज़बर्दस्त जुनून है छाया जी में । डटकर काम करने वाली और हमेशा नया सोचने वाली छाया जी ने ही एक ज़माने में विविध भारती पर आर.डी.बर्मन, गुलज़ार और आशा भोसले को लेकर संगीत-सरिता में एक लंबी सीरीज़ की थी । मुझे याद है कि तब मैं जबलपुर में पढ़ रहा था और अपने पुराने-से टेपरिकॉर्डर पर मैंने पूरी सीरीज़ रिकॉर्ड कर ली थी । छाया जी ने संगीतकार जोड़ी शिव-हरी ( पंडित शिव कुमार शर्मा और पंडित हरीप्रसाद चौरसिया) के फिल्म-संगीत पर भी लंबी सीरीज़ की । इसी तरह उन्होंने संगीतकार अनिल विश्वास और उनकी पत्नी मीना कपूर से संगीतकार तुषार भाटिया की लंबी बातचीत पर एक सीरीज़ की जिसका नाम था ‘रसिकेशु’ । इसी तरह मुझे बेगम अख्तर पर की गई एक लंबी सीरीज़ भी अच्छी तरह याद है । मैं उनके इस काम की पूरा का पूरा भक्त रहा हूं । मेरी एक डायरी है जिसमें मैंने और मेरे छोटे भाई ने मिलकर राग परिचय लिखा है, संगीत-सरिता से सुन-सुनकर ।
कितना कुछ सीखा है हमने छाया जी और उनके कार्यक्रमों के ज़रिए । छायाजी का व्यक्तित्व जितना मीठा है, उतनी ही मीठी है उनकी आवाज़ । मुझे मिट्टी की सोंधी गंध वाली आवाज़ें अच्छी लगती हैं । ये जुमला मेरा नहीं है संगीतकार ओ.पी.नैयर का है और ये बात उन्होंने शमशाद बेगम के बारे में कही थी । यही बात छायाजी पर भी लागू होती है । छायाजी की आवाज़ में एक भारतीयता है । एक सोंधापन है, नमक है और नमी है । उनकी आवाज़ किसी आम गायिका की पतली और धारदार आवाज़ नहीं है । उनकी आवाज़ में रेशे हैं, ये आवाज़ गाढ़े शहद की तरह मन में घुलती चली जाती है । आज की ज्यादातर गायिकाओं की आवाज़ें मुझे सस्ती मिठाई की तरह लगती है । छायाजी की आवाज़ में एक दिव्य-सौंदर्य है । एक अतींद्रिय मधुरता है । और ये सब इसलिये नहीं कह रहा क्योंकि पिछले दस बरस से मैं छायाजी को जानता हूं । मुझे हमेशा लगता है कि छायाजी की आवाज़ की इतनी खूबियों के बावजूद फिल्मों में उनकी आवाज़ का सही इस्तेमाल नहीं किया गया ।
छायाजी मधुरानी और जयदेव की शिष्या रही हैं । अपनी पहली ही फिल्म ‘गमन’ के गीत के लिए छाया जी को सन 1979 में सर्वश्रेष्ठ गायिका का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था । इस फिल्म के संगीतकार जयदेव थे । ये एक ग़ज़ल थी, मखदूम मोहीउद्दीन की । रात भर आपकी याद आती रही । इस ग़ज़ल के संगीत-संयोजन पर ग़ौर कीजिये और महसूस कीजिए कि बहुत कम वाद्य यंत्रों के ज़रिए कैसा जादू रचते थे जयदेव ।Get this widget Share Track details
आपकी याद आती रही रात भर
रात भर चश्मे-नम मुस्कुराती रही
रात भर दर्द की शम्मां जलती रही
ग़म की लौ थरथराती रही रात भर
बांसुरी की सुरीली सुहानी सदा
याद बन बनके आती रही रात भर
याद के चांद दिल में उतरते रहे
चांदनी जगमगाती रही रात भर
कोई दीवाना गलियों में फिरता रहा
कोई आवाज़ आती रही रात भर ।।
छायाजी के कई ग़ैर फिल्मी अलबम आए हैं । उन्हीं में से एक में उन्होंने हज़रत अमीर खुसरो की ये रचना गाई है । ये रचना वर्षा-ऋतु नामक अलबम में मुकेश ने भी गाई थी । कभी सुनवाऊंगा । फिल्हाल छायाजी की आवाज़ में सुनिए । मुझे इस ग़ज़ल का प्लेयर विजेट नहीं मिला, इसलिये नीचे के विजेट पर क्लिक कीजिये जिससे एक नया पेज खुलेगा, जहां ये ग़ज़ल बजने लगेगी ।
Zihal e miskin_Chh... |
दुराये नैना बनाये बतियाँ
कि ताब-ए-हिज्राँ न दारम ऐ जाँ
न लेहु काहे लगाये छतियाँ
चूँ शम्म-ए-सोज़ाँ, चूँ ज़र्रा हैराँ
हमेशा गिरियाँ, ब-इश्क़ आँ माह
न नींद नैना, न अंग चैना
न आप ही आवें, न भेजें पतियाँ
यकायक अज़ दिल ब-सद फ़रेबम
बवुर्द-ए-चशमश क़रार-ओ-तस्कीं
किसे पड़ी है जो जा सुनाये
प्यारे पी को हमारी बतियाँ
शबान-ए-हिज्राँ दराज़ चूँ ज़ुल्फ़
वरोज़-ए-वसलश चूँ उम्र कोताह
सखी पिया को जो मैं न देखूँ
तो कैसे काटूँ अँधेरी रतियाँ
छायाजी की आवाज़ के जादू ने आप पर गहरा असर किया होगा । मुझे याद है कि अमोल पालेकर की फिल्म ‘थोड़ा सा रूमानी हो जाएं’ में उन्होंने शीर्षक गीत गाया था । अगर कामयाब रहा तो कहीं से खोजबीन कर आपके लिए जल्दी ही ये गीत भी लेकर आऊंगा ।
इसी पोस्ट पर आज शाम तक छायाजी की तस्वीर भी लग जायेगी ।
ज़रूर देखिएगा ।
13 comments:
क्या कहें? सुभान अल्लाह!
गमन के बाक़ी गानों में भी एक अजीब सी कशिश, अकेलापन, घबराहट सी सुनाई पड़ती है. "सीने में जलन" और "मैं अपने साये से कल रात डर गया यारों".
कभी इस गाने पर भी लिखिये / सुनवाइये "मन आनंद आनंद छायो" - आशा भोसले - अजीत वर्मन - विजेता.
कई सालों से ढ़ूंढ़ रहा हूं, यह पूरा गीत कहीं मिलता ही नहीं. आप शायद ढूंढ़ पायें.
छाया जी को मैने पहली बार 80's मे दूरदर्शन के आरोही कार्यक्रम मे देखा था जिसमे उन्होनें ग़मन की यही ग़ज़ल गाई थी जिसकी प्रस्तुति फिल्मी हस्ति उषाकिरण जी ने की थी जिसमे हरिहरण ने भी एक भजन गाया था।
लेकिन उनके नाम से मै पहले से ही परिचित थी। संगीत सरिता के जिन कार्यक्रमों की आपने चर्चा की वो सभी मैने सुने है।
अहमद वसी जी की आपने अच्छी चर्चा की। उनके फिल्मी गीत भी है न। एक मुझे याद आ रहा है -
शाम रंगीन हुई है
तेरे आंचल की तरह
सुरमई रंग रचा है
तेरे गालों की तरह
पास हो तुम
मेरे दिल मे
मेरी धड़कन की तरह
अन्न्पूर्णा
युनूसभाई,
अच्छा तो ये छाया जी विविध भारती के संगीत सरिता वाली छाया जी है! मै दोनो को अलग अलग समझता था. खैर यह गीत तो मुझे भी बहुतही पसंद है. खासकर वो हिस्सा जहां तालवाद्य बजने लगते है...और छायाजी ने संगीत सरिता पर जितनी भी कल्पकतापूर्ण लंबी सिरीजेस की है वो सभी मैने सुनी है और मुझे याद भी है. खासकर अनील बिस्वासजी के गानोमें जो मेन लाइन्स के पिछे काउंटर मेलडी कैसे बजती रहती है यह जानकारी मुझे बडी अनोखी लगी थी. आशा, पंचम और गुलजार की लंबी बातचीत वाली सिरिज का तो जवाब नही है.
संगीत सरिता सुनकर आपकीही तरह मैने भी डायरी बनाई थी और उस आधारपर दोस्तोंको इम्प्रेस किया करता था.
अब मै आपसे फर्माइश करना चाहुंगा जिस तरह् छायाजी के बारेमें लिखा उसी तरह संगीतकार जयदेव के बारेमें लिखिये. कविता को समझनेवाला और उसे बेहद बढिया संगीत देनेमें उनजैसा दूसरा आजतक देखा नही.(याद करे मधुशाला) वो थे तो पंजाबी मगर उनके संगीतमें पंजाबी संगीतका लाउडनेस कही भी दिखाई नहिं देता. इस फिल्मी जगतने उनकी बहुत उपेक्षा की. और लिखिये संगीतकार दानसिंग के बारेमें. मुकेश का गाया अद्भुत गीत "वो तेरे प्यारका गम, इक बहाना था सनम, अपनी किस्मतही कुछ ऐसी थी के दिल टूट गया" उन्हीका संगीत दिया हुवा है.
शानदार.. कितने सालों से ढूँढ़ रहा था.. आप के मार्फ़त मिल गई.. बहुत शुक्रिया..
" Meri Maati ki Kutiya mei,
ho Ram,
Diwla, jalta rahe ..."
hhaya jee ke ye Geet mere Papa , Pandit Narendra Sharma jee ka gaya hua mujhe bahut pasand hai --
Tushar Bhatia ne sangeet diya hai aur Geeton ke sath
saree baat cheet Papaji ne hee likheen hain --
Diwali, Diwali " naam hai cassette ka --
Tushar Bhatia mere chote bhai jaisa hai.
Sangeet ke prati Junoon kabile taarif hai usmei.
Rasikeshu series ke interviews bhee badhiya hain --
Anilda aur Meena jee bhee purane parichit log hain.
Anil da jaisa Sangeet sanyojan , aaj bhee tazaa lagta hai --
पनीली आँखों वाली छाया दीदी को प्रणाम.जब इन्दौर में जयदेव जी को लता पुरस्कार मिला तब नई नई शादी हुई थी मेरी और मेरी शरीके हयात को लेकर मै जिस संगीत महफ़िल मै पहली बार गया वह थी जिसमें छाया गांगुली,अनुराधा पौडवाल,अशोक खोसला और हरिहरन जैसे पहचान बनाने वाले गुलूकार जयदेवजी के सम्मान में गा रहे थे.पिछले बरस कविता कृष्णमूर्ति के साथ छाया दीदी इन्दौर तशरीफ़ लाईं थीं और मैने ग्रीन रूम में उनसे कहा था दीदी कभी एक सोलो परफ़ाँरमेंस करना चाहूंगा आपका मेरे संगीतप्रिय शहर में वे निस्पृह सी मुस्कान बिखेरतीं चुपचाप रहीं ...कोई आज नया नकोरा कलाकार होता तो सोचता चलो मछली फ़ँसे...वे रोशनाआरा बेगम,सिध्देश्वरी देवी या रसूलनबाई की बलन की आवाज़ समोई हुई हैं अपने कंठ में .छाया गांगुली भी युनूस भाई मेरी उस फ़ेहरिस्त में शामिल हैं जिन्हे अपना ड्यू नहीं मिला.जोगन से मितभाषी छाया गांगुली को गवाने वाले जयदेव के पाये के संगीतकार भी कहां आजकल.वही पंक्ति याद आ गई...हुए नामवर बेनिशाँ कैसे...हाँ लेकिन एक बात ज़रूर है कि छाया गांगुली किसी और आवाज़ की छाया न बनीं.उनके संगीत कर्म को मुझ नाचीज़ का प्रणाम ...उनके स्वर में बैठी शिप्रा सी पावनता का वंदन.
बहुत खूब प्रस्तुति !
मैने भी संगीत सरिता में उनके कई कार्यक्रम सुने हैं, परन्तु मुझे भी यह नहीं पता था कि दोनो छायाकी एक ही है।
गमन का गाना कई बार सुना है और जब भी सुनते हैं नया सा लगता है। जयदेवजी का संगीतबद्ध और येशुदासजी का गाया आलाप फिल्म का गाना .......कोई गाता मैं सो जाता कितनी ही बार सुनिये मन ही नहीं भरता।
किसी जमाने के मशहूर संगीतकार और शायद इन दिनों किसी खोली में अपनी में जिंदगी के अंतिम दिन गुजार रहे रामलाल हीरापन्ना के बारे में भी लिखिये।
एक और शानदार प्रस्तुति-बहुत बेहतरीन.
कभी-
मुझसे पहली सी मुहब्बत मेरे महबूब न मांग -पर कुछ प्रस्तुत किया जाये. :)
बेहद शुक्रिया इस दिलचस्प लेख के लिए. छाया गांगुली विविध भारती से इस कदर जुड़ी थीं यह आपसे पता चला. संगीत सरिता तो अर्से तक मेरे लिए सुबह के नाश्ते जैसी ज़रूरी चीज़ था.
पंचम-गुलज़ार-आशा की "संगीत यात्रा" को कुछ सालों पहले मैंने पूरा लिपिकृत कर नेट पर पोस्ट किया था. उसकी टेप गुलज़ार साहब ने मुझे दी थी और बताया था कि उन्हें यह छाया जी से मिली. पता नहीं था कि इस प्रस्तुति के पीछे हाथ भी उन्हीं का था.
उनकी गाई खुसरो की ग़ज़ल जो आपने पोस्ट की है मेरी पसंदीदा ग़ज़लों में से है.
फिर से शुक्रिया.
भाई आप तो एक पर एक एहसान किए जा रहे हैं, छन्नू बाबू से लेकर छाया गांगुली तक...सलाम कबूल कीजिए. जान लीजिए, आप जितना सोच रहे हैं, उससे कहीं बड़ा काम आप कर रहे हैं.
अनामदास
मनोहरी सिंह का इतंज़ार है. वाणी जयराम और सुमन कल्याणपुर के कई सुंदर गाने हैं, उन पर भी बात करिए किसी दिन. क्या छाया गांगुली का रीता गांगुली से कोई रिश्ता है?
बड़ा एहसान किया युनूस भाई। छाया गांगुली पर आपका आलेख पढ़ कर मन तर गया। ये गाना गुनगुनाते गुनगुनाते कब ज़बान पर चढ़ गया और गले में बैठ गया , पता नहीं।
आपकी आवाज....को यारों की मेहफिलों में या बुजुर्गों के आग्रह पर कई बार गाया है मैने।
ध्वनितंत्र खराब है और हम तकनीकी अल्पज्ञ। ये सुनवाने वाली व्यवस्था कैसे की जाती है, हमें भी सिखाएं तो कुछ नायाब चीज़ें हम भी शेयर करें आपसे।
आपके लेख पढ़कर कर ही फिलहाल तो आनंद लेते रहते हैं। संगीत तो खून में है ।
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