संगीत का कोई मज़हब, कोई ज़बान नहीं होती। 'रेडियोवाणी' ब्लॉग है लोकप्रियता से इतर कुछ अनमोल, बेमिसाल रचनाओं पर बातें करने का। बीते नौ बरस से जारी है 'रेडियोवाणी' का सफर।
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Tuesday, July 24, 2007

आईये आज सुनें छाया गांगुली की आवाज़ में फिल्‍म गमन की ग़ज़ल—आपकी याद आती रही

आज अचानक मुझे छाया जी की याद आ गयी । छाया जी यानी छाया गांगुली । मैंने जब विविध भारती में ज्‍वाइन किया तो छायाजी यहीं थीं और संगीत-सरिता देखा करती थीं । मेरी खुशी का ठिकाना न रहा । छायाजी की फिल्‍म ‘गमन’ की ग़ज़ल मैंने इतनी सुन रखी थी कि पूछिये मत । ये तो पता था कि वे विविध भारती में काम करती हैं लेकिन ये नहीं पता था कि वे इतनी सहज-सरल और मीठी हैं । उसके बाद छाया जी के साथ कई साल काम करने का मौक़ा मिला ।

ये छाया जी ही थीं जिनकी वजह से मुझे पंडित जसराज जैसे सुर-गंधर्व के दिव्‍य-दर्शन हुए । ये छाया जी ही थीं जिनकी वजह से मुझे पंडित शिवकुमार शर्मा और पंडित हरिप्रसाद चौरसिया जैसे दिग्‍गजों से मिलने का मौक़ा मिला । उन्‍होंने तो विविध भारती में अनिल विश्‍वास को भी बुलाया था । उन्‍हीं की वजह से मेरी मुलाक़ात विख्‍यात सेक्‍सोफ़ोन वादक मनोहारी सिंह यानी मनोहारी दादा से हुई और जब मैंने उन्‍हें बताया कि दादा आप यक़ीन नहीं करेंगे मैं आपका बहुत-बहुत बड़ा मुरीद हूं, तो हमेशा परदे के पीछे रहने वाले मनोहारी दादा की आंखें नम हो गयी थीं । विषयांतर हो रहा है पर आपको बताऊं कि अभी पिछले बरस ही मैंने मनोहारी दादा को विविध भारती में आमंत्रित किया ओर उनसे लंबी बातचीत की । मनोहारी दादा के फिल्‍म-संगीत में योगदान और उनके जीवन के बारे में मैं जल्‍दी ही एक पूरी पोस्‍ट तैयार करूंगा । हां तो मैं बता रहा था कि छाया जी के साथ काम करना कितना सुखद और सिखाने वाला अनुभव रहा ।

छाया जी से मुझे कभी भी कुछ भी पूछने की इजाज़त थी और है । कई बार तो ऐसा हुआ कि मैं कुछ पूछकर भूल गया और छायाजी ने अगले सप्‍ताह खोजबीन करके मेरी शंका का निवारण किया । वो भी बाक़ायदा सामने बैठाकर और लंबी बातचीत करके । हालांकि अब वे विविध भारती में नहीं हैं बल्कि मुंबई दूरदर्शन में हैं । दो तीन महीने पहले हमारे रिटायर हो चुके वरिष्‍ठ साथी अहमद वसी के बेटे की शादी में छाया जी से मुलाक़ात हुई थी । इतनी खुश हो गईं कि पूछिये मत । कहने लगीं आज तो खाना यूनुस और ममता के साथ ही खाया जायेगा । फिर हमने बहुत-बहुत सारी बातें कीं । छायाजी की तस्‍वीर इस समय मेरे पास नहीं है । लेकिन आज शाम या कल सबेरे तक मैं इसी चिट्ठे पर और इसी पोस्‍ट पर छाया जी की तस्‍वीर चढ़ाने वाला हूं । आप देखेंगे कि उनके चेहरे पर एक दिव्‍य मुस्‍कान तैरती रहती है । हमेशा संतुलन रहने वाली छाया जी को कभी गुस्‍सा आए भी तो उनके चेहरे की सौम्‍यता को देखकर वो चला जाता है, शायद गुस्‍से को भी लगता होगा कि इनके चेहरे पर मैं ठीक ना लगूं । चलो कहीं और चलें ।

अपने काम के प्रति ज़बर्दस्‍त जुनून है छाया जी में । डटकर काम करने वाली और हमेशा नया सोचने वाली छाया जी ने ही एक ज़माने में विविध भारती पर आर.डी.बर्मन, गुलज़ार और आशा भोसले को लेकर संगीत-सरिता में एक लंबी सीरीज़ की थी । मुझे याद है कि तब मैं जबलपुर में पढ़ रहा था और अपने पुराने-से टेपरिकॉर्डर पर मैंने पूरी सीरीज़ रिकॉर्ड कर ली थी । छाया जी ने संगीतकार जोड़ी शिव-हरी ( पंडित शिव कुमार शर्मा और पंडित हरीप्रसाद चौरसिया) के फिल्‍म-संगीत पर भी लंबी सीरीज़ की । इसी तरह उन्‍होंने संगीतकार अनिल विश्‍वास और उनकी पत्‍नी मीना कपूर से संगीतकार तुषार भाटिया की लंबी बातचीत पर एक सीरीज़ की जिसका नाम था ‘रसिकेशु’ । इसी तरह मुझे बेगम अख्‍तर पर की गई एक लंबी सीरीज़ भी अच्‍छी तरह याद है । मैं उनके इस काम की पूरा का पूरा भक्‍त रहा हूं । मेरी एक डायरी है जिसमें मैंने और मेरे छोटे भाई ने मिलकर राग परिचय लिखा है, संगीत-सरिता से सुन-सुनकर ।

कितना कुछ सीखा है हमने छाया जी और उनके कार्यक्रमों के ज़रिए । छायाजी का व्‍यक्तित्‍व जितना मीठा है, उतनी ही मीठी है उनकी आवाज़ । मुझे मिट्टी की सोंधी गंध वाली आवाज़ें अच्‍छी लगती हैं । ये जुमला मेरा नहीं है संगीतकार ओ.पी.नैयर का है और ये बात उन्‍होंने शमशाद बेगम के बारे में कही थी । यही बात छायाजी पर भी लागू होती है । छायाजी की आवाज़ में एक भारतीयता है । एक सोंधापन है, नमक है और नमी है । उनकी आवाज़ किसी आम गायिका की पतली और धारदार आवाज़ नहीं है । उनकी आवाज़ में रेशे हैं, ये आवाज़ गाढ़े शहद की तरह मन में घुलती चली जाती है । आज की ज्‍यादातर गायिकाओं की आवाज़ें मुझे सस्‍ती मिठाई की तरह लगती है । छायाजी की आवाज़ में एक दिव्‍य-सौंदर्य है । एक अतींद्रिय मधुरता है । और ये सब इसलिये नहीं कह रहा क्‍योंकि पिछले दस बरस से मैं छायाजी को जानता हूं । मुझे हमेशा लगता है कि छायाजी की आवाज़ की इतनी खूबियों के बावजूद फिल्‍मों में उनकी आवाज़ का सही इस्‍तेमाल नहीं किया गया ।

छायाजी मधुरानी और जयदेव की शिष्‍या रही हैं । अपनी पहली ही फिल्‍म ‘गमन’ के गीत के लिए छाया जी को सन 1979 में सर्वश्रेष्‍ठ गायिका का राष्‍ट्रीय पुरस्‍कार मिला था । इस फिल्‍म के संगीतकार जयदेव थे । ये एक ग़ज़ल थी, मखदूम मोहीउद्दीन की । रात भर आपकी याद आती रही । इस ग़ज़ल के संगीत-संयोजन पर ग़ौर कीजिये और महसूस कीजिए कि बहुत कम वाद्य यंत्रों के ज़रिए कैसा जादू रचते थे जयदेव ।


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आपकी याद आती रही रात भर
रात भर चश्‍मे-नम मुस्‍कुराती रही
रात भर दर्द की शम्‍मां जलती रही
ग़म की लौ थरथराती रही रात भर
बांसुरी की सुरीली सुहानी सदा
याद बन बनके आती रही रात भर
याद के चांद दिल में उतरते रहे
चांदनी जगमगाती रही रात भर
कोई दीवाना गलियों में फिरता रहा
कोई आवाज़ आती रही रात भर ।।

छायाजी के कई ग़ैर फिल्‍मी अलबम आए हैं । उन्‍हीं में से एक में उन्‍होंने हज़रत अमीर खुसरो की ये रचना गाई है । ये रचना वर्षा-ऋतु नामक अलबम में मुकेश ने भी गाई थी । कभी सुनवाऊंगा । फिल्‍हाल छायाजी की आवाज़ में सुनिए । मुझे इस ग़ज़ल का प्‍लेयर विजेट नहीं मिला, इसलिये नीचे के विजेट पर क्लिक कीजिये जिससे एक नया पेज खुलेगा, जहां ये ग़ज़ल बजने लगेगी ।

Zihal e miskin_Chh...
ज़ेहाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल
दुराये नैना बनाये बतियाँ
कि ताब-ए-हिज्राँ न दारम ऐ जाँ
न लेहु काहे लगाये छतियाँ

चूँ शम्म-ए-सोज़ाँ, चूँ ज़र्रा हैराँ
हमेशा गिरियाँ, ब-इश्क़ आँ माह
न नींद नैना, न अंग चैना
न आप ही आवें, न भेजें पतियाँ

यकायक अज़ दिल ब-सद फ़रेबम
बवुर्द-ए-चशमश क़रार-ओ-तस्कीं
किसे पड़ी है जो जा सुनाये
प्यारे पी को हमारी बतियाँ

शबान-ए-हिज्राँ दराज़ चूँ ज़ुल्फ़
वरोज़-ए-वसलश चूँ उम्र कोताह
सखी पिया को जो मैं न देखूँ
तो कैसे काटूँ अँधेरी रतियाँ


छायाजी की आवाज़ के जादू ने आप पर गहरा असर किया होगा । मुझे याद है कि अमोल पालेकर की फिल्‍म ‘थोड़ा सा रूमानी हो जाएं’ में उन्‍होंने शीर्षक गीत गाया था । अगर कामयाब रहा तो कहीं से खोजबीन कर आपके लिए जल्‍दी ही ये गीत भी लेकर आऊंगा ।

इसी पोस्‍ट पर आज शाम तक छायाजी की तस्‍वीर भी लग जायेगी ।
ज़रूर देखिएगा ।


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