संगीत का कोई मज़हब, कोई ज़बान नहीं होती। 'रेडियोवाणी' ब्लॉग है लोकप्रियता से इतर कुछ अनमोल, बेमिसाल रचनाओं पर बातें करने का। बीते नौ बरस से जारी है 'रेडियोवाणी' का सफर।

Saturday, July 21, 2007

इंसान को चांद पर पहुंचे पूरे हुए 38 साल, आईये सुनें चांद के कुछ नग्‍मे ।



चांद को हम भारतीयों ने मामा कहा है, चंदा-मामा दूर के पूड़ी पकाए पूर के, आप खाये थाली में, बेटू को दे प्‍याली में...........ऐसी कविताएं और दंत-कथाएं भरी पड़ी हैं हमारी संस्‍कृति में । परियों और राजकुमारों की कहानियां जिनमें चांद जाने किस किस रूप में आता है । फिर चांद पर एक बुढिया के होने और सूत कातने वाली कहानी भी है, जो बचपन में बड़ा रोमांचित करती थी । ज्‍योतिष और खगोलविज्ञान की कहानियां और गणनाएं तो हैं ही । चांद को लेकर सिनेमा के गीतकारों ने काफी क़सीदे काढ़े हैं, ऐसे कुछ अच्‍छे गाने मैंने इसी लेख में नीचे दिये हैं ।


भारत और पश्चिम की चांद के बारे में जो धारणा है उसका एक दिलचस्‍प फ़र्क़ तब मुझे पता चला जब एक दिक्‍कत आई । किसी ने फ़ोन करके पूछा कि हम बच्‍चों के किसी कार्टून-चैनल के लिये चांद पर एक कार्टून-कथा लाये हैं विदेश से, जिसे हिंदी में किया है, लेखक ने चांद को मामा लिख दिया है और चित्र में चांद को महिला दर्शाया गया है । दिक्‍कत हो गयी, याद आया कि हां अंग्रेजी वाले मून को ‘शी’ कहते हैं ‘ही’ नहीं । लीजिये लिंग-परिर्वतन ही हो गया ।


बहरहाल मुद्दा ये है कि आज है इक्‍कीस जुलाई । और ये वो दिन है जब मनुष्‍य ने चांद पर पहला क़दम रखा था । हमारी सारी दंतकथाओं का तेल निकल गया, सारी लोक कथाएं झूठी पड़ गयीं । जब कुछ अंग्रेज़ चांद की चटियल सरज़मीं पर उतरे तो ना चरखा था और ना सूत । ना चंदा..... ‘मामा’ की तरह लगा और ना ‘चाचा’ की तरह । हालांकि चाचा तो सूरज को कहते हैं ।

हां तो चांद पर मनुष्‍य ने आज ही के दिन पहले क़दम रखे थे । सचमुच रखे थे या ये कोई ‘फ़ेक’ कोई झूठा-प्रचार था, हमें नहीं पता, इंटरनेट पर कई ऐसी साईट्स हैं जो चांद पर मनुष्‍य के क़दम रखने की बात को कोरी क़रार देती हैं । यहां क्लिक कीजिये और पढिये इस बारे में । हम तो बस चांद के बहाने चर्चा की अपनी चांद-कटोरी खोल रहे हैं ।

आपको पता है अमृता प्रीतम ने क्‍या कहा था---फिल्‍म कादंबरी का गीत है ‘घूंट चांदनी पी है हमने, बात कुफ्र की की है हमने’ । मुझे ये ‘घूंट चांदनी’ वाला जुमला अद्भुत लगता है । इस गाने का मुखड़ा याद है आपको..........’अंबर की एक पाक सुराही, बादल का एक जाम उठाकर’ । अनमोल गाना है, इस गाने को आशा भोसले ने गाया और संगीत उस्‍ताद विलायत ख़ां साहब का है । किसी दिन ज़रूर सुनवाऊंगा ।

ख़ैर मैं तो आपको ‘चांद’ पर लिखे गये कुछ बेमिसाल गीत सुनवाने का सोचकर ये लेख लिख रहा था, पर बात कहां से चली और कहां भटक गई । तो चलिये जिक्र करें ‘चांद’ के नग़मों का । लेकिन इससे पहले थोड़ा विषयांतर और कर लें । ताकि ये भी साबित हो जाए कि फिल्‍मी-गीत हम सबकी जिंदगी में कितने गहरे पैठ जाते हैं । मैं म.प्र. के छिंदवाड़ा शहर में था उन दिनों । कॉलेज के दिन थे, रेडियो, साहित्‍य, फिल्‍मी-गीत और अड्डेबाज़ी अपने शौक़ थे । मित्रों में मनोज कुलकर्णी पेन्‍टर थे, अनिल करमेले कवि और हितेश फोटोग्राफ़र । हम सब मोटरसायकिलों पर थे और ‘पातालकोट’ से पिकनिक मनाकर लौट रहे थे । शाम ढल गयी और पूर्णिमा का चांद चमक उठा । अचानक मित्रों ने कहा, किनारे खड़े होंगे और चांद के गाने गायेंगे । बस फिर क्‍या था, जंगल में सड़क के किनारे महफिल जम गयी । और उसके बाद सुरे-बेसुरे हर शख्‍स ने चांद के गाने गाए और बहुत ज़ोर-ज़ोर से गाए । कम से कम पचास गाने तो गाये होंगे सबने । जाने कहां से, कैसे याद आ गए सबको ये गाने । ऐसा है हम आम आदमियों को फिल्‍मी-गानों का शौक़ । तो आईये चलें ‘चांद’ के गाने गाने के लिए ।


फिल्‍म ‘जाल’ का गीत—‘ये रात ये चांदनी फिर कहां, सुन जा दिल की दास्‍तां’ बहुत बहुत प्रिय है मुझे । लता और हेमंत कुमार के मासूम स्‍वर इस गाने को बहुत नॉस्‍टेलजिक और गाढ़ा बनाते हैं । इस प्‍लेयर पर क्लिक कीजिये और इंतज़ार कीजिये । जितना तेज़ आपका कनेक्‍शन होगा, गाना उतनी जल्‍दी बजेगा ।


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‘चांद सी मेहबूबा हो मेरी’—इस गाने को सुनिए तीन कारणों से, बेहतरीन गीतकारी, ‘हां तुम बिल्‍कुल वैसी हो जैसा मैंने सोचा था’ यानी कहने वाला हूर की परी नहीं खोज रहा, बल्कि इसी दुनिया की ऐसी मेहबूबा की बात कर रहा है, जिसकी अपनी कमियां और खूबियां हैं । ये गीत बांसुरी की पवित्र तान से शुरू होता है, कल्‍याण जी आनंद जी के संगीत की एक और ऊंचाई ।
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इसके बाद बारी आती है फिल्‍म ‘चौदहवीं का चांद’ की । चौदहवीं का चांद हो या आफ़ताब हो, जो भी हो तुम ख़ुदा की क़सम, लाजवाब हो’ । शकील बदायूंनी का लिखा गाना है ये और रवि की तर्ज़ । संगीतकार रवि ने बताया था कि इस गाने का मुखड़ा शकील सा‍हब ने बस यूं ही बैठे बैठे लिख दिया था । बाद में वो अंतरे लिख के लाये और ये फिल्‍म-संगीत-जगत का एक नायाब गाना बन गया । मेहबूब के हुस्‍न की ज़बर्दस्‍त तारीफ के हुनर और मो0 रफी की नाज़ुक-तरीन गायकी के लिए इसे सुनिए—

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चांद के गानों की बात करें तो शायद अलग से ही एक ब्‍लॉग बनाना पड़े ।
आज मनुष्‍य को चांद पर क़दम रखे 38 साल पूरे हो गये । इसी बहाने मैंने आपको सुनवाये चांद के कुछ गीत । आपका पसंदीदा ‘चांद’ गीत कौन सा है ।


मित्रो । तकनीकी कारणों से इस पोस्‍ट को दोबारा प्रकाशित किया गया है ।

2 comments:

Udan Tashtari July 22, 2007 at 5:10 AM  

चाँद सी महबूबा हो मेरी--वाह, बहुत खूब!!!छा गये, गुरु.

Neeraj Rohilla July 22, 2007 at 11:18 AM  

युनुसजी,

बहुत बढिया जानकारी और अच्छे गाने सुनवाने के लिये फ़िर से धन्यवाद ।

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if you want to comment in hindi here is the link for google indic transliteration
http://www.google.com/transliterate/indic/

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