आंसू भरी हैं ये जीवन की राहें—क्या आपको पता है कि कल दुनिया से चले गये संगीतकार दत्ताराम
संगीतकार दत्ताराम का शुक्रवार को निधन हो गया । मुझ समेत कई लोगों को पता ही नहीं था कि दत्ताराम जी जीवित हैं और गोवा के Bicholim तालुका के maulinguem में एक ख़ामोश जिंदगी बिता रहे हैं । कल जब विविध भारती में ये ख़बर आई तो तुरंत गोवा फ़ोन लगाकर इसकी पुष्टि की गई । अगर आप फिल्म-संगीत और उसके विवरणों को गहराई से परखते आए हैं तो दत्ताराम के नाम से ही आपके ज़ेहन में कुछ अनमोल गाने तैर जाने चाहिये ।
जैसे राग कल्याण पर आधारित फिल्म परवरिश का गीत—
आंसू भरी हैं ये जीवन की राहें कोई उनसे कह दे हमें भूल जाएं ।
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या फिर अब दिल्ली दूर नहीं फिल्म का गीत—
चुन चुन करती आई चिडिया, दाल का दाना लाई चिडिया ।
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या फिर फिल्म परवरिश का ये गीत—
मस्ती भरा है समां
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इंटरनेट पर जाने माने लेखक और स्तंभकार फ्रेडरिक नोरोन्हा का एक लेख मिला, ये लेख उन्होंने दत्ताराम को खोज निकालने के बाद लिखा था । यहां प्रस्तुत की जा रही जानकारियां उसी लेख से ली गयी हैं ।
संगीतकार दत्ताराम का पूरा नाम था दत्ताराम वाडकर । वैसे तो अपनी पेशेवर जिंदगी में सन 1948 से लेकर 1974 तक वो महान संगीतकार जोड़ी शंकर जयकिशन के सहायक रहे, पर बीच बीच में उन्होंने स्वतंत्र संगीतकार के रूप में भी फिल्में कीं । कुल उन्नीस फिल्मों में उन्होंने स्वतंत्र रूप से संगीत दिया था । इन फिल्मों के गीत तो लोग आज भी गुनगुनाते हैं पर किसी को ये ख़बर नहीं रही कि इन्हें बनाने वाला संगीतकार आज जीवित भी है या नहीं और अगर है तो किस हाल में है ।
दत्ताराम ने एक मराठी फिल्म में भी संगीत दिया था, प्रमाची सवली नाम इस फिल्म में जाने माने क्रिकेटर सुनील गावस्कर ने अभिनय किया था ।
शंकर जयकिशन के सहायक के रूप में वो रिदम सेक्शन के इंचार्ज होते थे । दत्ताराम जी ढोलक और तबला बजाने में माहिर थे । कई मशहूर गीतों में ढोलक और तबले की थाप उन्हीं ने छेड़ी थी । कहा जाता है कि आज भी फिल्मी दुनिया में रिदम संभालने वाले लोग दत्ताराम की ढोलक को ‘दत्तू का ठेका’ के नाम से याद करते हैं ।
दत्ताराम जब मुंबई आये थे मंझगांव बंदरगाह पर वो बतौर मज़दूर काम करते थे । ग़रीब परिवार से थे, पढ़ाई ठीक से हुई नहीं थी । पर अपनी मां की प्रेरणा से उन्होंने तबला बजाना सीख लिया था । इसके अलावा उन्हें व्यायामशाला में जाकर बॉडी बिल्डिंग करने का बड़ा शौक़ था । आपको जानकर हैरत होगी कि यही शौक़ संगीतकार जोड़ी शंकर जयकिशन के जयकिशन को भी रहा था, दोनों की मुलाक़ात अखाड़े में हुई । और फिर शंकर उन्हें पृथ्वी थियेटर में ले आये, जहां वो खुद भी काम करते थे । पुरानी फिल्म ‘नगीना’ के लिये दत्ताराम ने बतौर तबला वादक अपनी पहली रिकॉर्डिंग की
थी । इसके बाद दत्ताराम शंकर जयकिशन की संगीत टोली का एक अटूट हिस्सा बन गये ।
सन 1971 में जयकिशन के गुज़र जाने के बाद दत्ताराम की जिंदगी में तूफान आ गया, उनका काम अचानक कम हो गया । हालांकि कुछ साल उन्होंने संगीतकार जोड़ी लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के साथ भी काम किया । राजकपूर की फिल्म ‘बॉबी’ में वो लक्ष्मी-प्यारे के सहायक रहे ।
फिल्मी दुनिया में कामयाब लोगों की कहानी तो सब जानते हैं, उनके दीवाने भी बनते
हैं । पर शायद बाहर की दुनिया में किसी को ये अहसास नहीं होता कि कई ऐसे प्रतिभाशाली कलाकार भी मुंबई में हैं जिन्हें अपने हिस्से की कामयाबी नहीं मिली । या जो अपना नाम स्थापित नहीं कर सके ।
दत्ताराम के कुछ गीतों को सुनाने की व्यवस्था मैंने इस चिट्ठे में ही की है । पर ये हैं कुछ ऐसे गीत, जिन्हें फिलहाल सुनवा नहीं पा रहा हूं ।
1. फिल्म कैदी नंबर 911......प्यार भरी ये हवाएं ।
2. फिल्म संतान....जीने वाले खुशी से जिये जा ।
3. फिल्म जिंदगी और ख्वाब....ना जाने कहां हम थे ।
4. फिल्म फर्स्ट लव....मुझे मिल गयी हैं मुहब्बत की मंजिल ।
5. फिल्म काला आदमी.....दिल ढूंढता है सहारे सहारे ।
संगीतकार दत्ताराम को हमारी विनम्र श्रद्धांजलि
9 comments:
बड़ी अच्छी जानकारी दी आपने... मुकेश का गाया पहला वाला गीत बचपन में मेरा फैवरिट गीत हुआ करता था..
" आंसू भरी हैं ये जीवन की राहें कोई उनसे कह दे हमें भूल जाएं " अभी ऑफिस में सुन नहीं पाया ..बाद में सुनता हूँ.
फ्रेडरिक नोरोन्हा एक जाने माने पत्रकार , लेखक व स्तम्भकार हैं.
फ्रेडरिक नोरोन्हा एक जाने माने पत्रकार , लेखक व स्तम्भकार हैं.
शुक्रिया रवि जी, आपके बताए मुताबिक़ मैंने पोस्ट में संशोधन भी कर दिया है ।
दिवंगत संगीतकार दत्ताराम जी को को श्रद्धान्जली
दत्ताराम जी को श्रद्धान्जली।
चुन-चुन करती गाना तो एक ज़माने मे हर रविवार की सुबह विविध भारती पर बजा करता था।
फ़्रेडरिक नोरोन्हा से प्राप्त जानकारी के आधार पर कुछ दिन पहले मैंने एफ़एम पर एक पूरा शो दत्ताराम को समर्पित किया था. कल जब ख़बर आई तो लगा जैसे कोई अपना बिछ्ड गया.
मेरे लिये हमेशा यह जिज्ञासा का विषय रहता है कि अपनी भूमिकाएं निभाने के बाद जो लोग सीन से हट जाते हैं वो किस मनःस्थिति में होते हैं.अनिल बिस्वास की ज़िंदगी के आखिरी और लगभग गुमनामी के दिन मैने देखे हैं.जयपुर के प्रेस क्लब में मैं दान सिंह से मिला हूं जो अपने साथ पेपर क्लिपिंग्स लेकर घूम रहे थे ताकि लोग यह सुनकर कि "वो अपने को फिल्म संगीतकार कह रहे हैं" मज़ाक़ न उडाने लगें. आप तो जानते हैं कि मुकेश का गाया 'माय लव' फ़िल्म का मशहूर गीत "वो तेरे प्यार का ग़म इक बहाना था सनम,अपनी क़िस्मत ही कुछ ऐसी थी कि दिल टूट गया...."
http://www.manogat.com/node/10441
युनूसभाई,
पता नही आपको मराठी आती है या नही, फिरभी महाराष्ट्र में रह रहे है, तो लगता है आती होगी. आजही दत्त्तारामजी के बारेमे बहुतही गहरी बात कहने वाली टिप्पणी ’मनोगत’ पर पढने को मिली. उसकी लिंक आपको भेज रहा हूं. आशा है पसंद आयेगी. निचे मोगॅंबो नामसे जो प्रतिक्रिया है, वो इस नाचीज की है.
विकास
संगीतकार दत्ताराम जी को मेरी और से भी विनम्र श्रधान्जली !
आदमी चला जाता है...और बस यादें शेष रह जाती हैं !
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if you want to comment in hindi here is the link for google indic transliteration
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