जीवन की कई स्मृतियों के साझी छोटे भाई को जन्मदिन की बधाई
आज मेरे छोटे भाई का जन्मदिन है । छोटा भाई ।
कितने सारे राज़ों का हमराज़ होता है छोटा भाई । जीवन की कितनी स्मृतियों का साझी होता है छोटा भाई ।
सच कहूं तो अभी भी यक़ीन ही नहीं होता कि वो इतना बड़ा हो गया है आज । लगता है अभी कल ही की बात है जब वो भोपाल के नेहरू मेमोरियल स्कूल में पढ़ता था । टिंगू सा था । और उसकी क्लास में पढ़ने वाली एक लड़की कभी कभी उसकी पिटाई कर दिया करती थी । मुझे वो दिन भी याद हैं जब उसे स्कूल से लाने के लिए मां मुझे भेज दिया करती थीं । और मैं नेहरू मेमोरियल स्कूल के गेट पर खड़े होकर अपने चश्मेधारी टिंगू भाई को बच्चों की क़तार में बाहर आते देखा करता था ।
उसे टिफिन में मीठा परांठा अच्छा लगता था, मुझे याद है कि मां परांठे के भीतर शायद शक्कर भरकर उसे मीठा बनाया करती थीं । रोज़ उसे टिफिन में मीठा परांठा मिल जाये, तो उसकी मौज हो जाती थी ।
भाई ने बहुत सारे टिफिन तोड़े, कंपास बॉक्स और वॉटर बॉटल पर बैठकर तो वो उनकी गाड़ी चलाता था । और मुझे वो दिन भी याद हैं जब स्कूली दिनों में पहली बार उसे फाउंटेन पेन से लिखने को गया था, उन दिनों लगभग रोज़ उसकी उंगलियां चेलपार्क की रॉयल ब्लू स्याही से रंगी होती थीं और अकसर वो अपने पेन की निब तोड़ दिया करता था । फिर हम उसे बदलवाने जाया करते थे ।
भाई की रायटिंग बचपन में बहुत ख़राब थी । पर पढ़ाई में वो हमेशा तेज़ रहा । हद दर्जे का लापरवाह । जब हम म0प्र0 के सागर शहर में रहते थे, तब भाई बड़ा हो रहा था । सायकिल चलाना सीख चुका था और फर्राटे से सायकिल चलाकर स्कूल जाया करता था । कई बार जब वो स्कूल से देर से लौटता तो हम सबकी घबराहट देखते ही बनती थी । घर का सबसे छोटा सदस्य जो था वो । अब वो घर का सबसे छोटा सदस्य नहीं रहा । मेरे भांजे और भांजी ने उसकी जगह ले ली है ।
मुझे एक बार और अच्छी तरह याद है । चूंकि मैं उससे पांच साल बड़ा था, इसलिये साहित्य और संगीत की तरफ मेरा रूझान उससे काफी पहले से हो गया था । पर वो इन सब चीज़ों से बहुत बाद तक दूर रहा । इस बात पर मैं उसे बहुत डांटता था । मगर पता नहीं कब और कैसे उसे पढ़ने और लिखने का शौक़ हो गया । वो वाद विवाद प्रतियोगिताओं में ट्रॉफी जीतने लगा । और तो और वो कविताएं भी लिखने लगा । फिर हम दोनों की रूचियां एक जैसी हो गयीं । उसे भी दुनिया भर की तमाम भाषाओं की फिल्में देखने का जुनून हो गया और मुझे भी ।
अब हम म0प्र0 के जबलपुर शहर में आ गये थे । यहां एक थी डिस्ट्रिक्ट लाईब्रेरी । जहां हमारा रोज़ का अड्डा होता था । सुबह आठ से दस और शाम पांच छह बजे से आठ बजे तक हम वहीं होते थे । बाक़ी वक्त कभी जबलपुर इप्टा यानी विवेचना के अड्डे पर कभी पहुंच गये । कभी उनके नाटक देख लिये । आकाशवाणी पर तब तक मैं यूथ कंपीयर तो हो ही गया था । जबलपुर के इन दिनों की एक बात बहुत याद है । हम दोनों जबलपुर की पुरानी किताबों की दुकानों में जाकर सारिका की पुरानी जिल्दें खरीदा करते थे । सारिका तब तक बंद हो चुकी थी । ना जाने कितनी किताबें हमने अपने जेबखर्च से जमा कीं, और मां पापा इस बात से परेशान होते रहे कि इन किताबों को रखेंगे कहां । आज भी वो ख़ज़ाना ‘घर’ पर है । और पापा के तमाम तबादलों के बावजूद माता पिता की कृपा से सही सलामत है ।
उन दिनों छोटे भाई को एक और जुनून चढ़ा था, जो आज तक कायम है । ये पुराने गानों का जुनून था । हम पुराने गाने ना सिर्फ सुनते थे बल्कि उनके इतिहास के बारे में भी पता करते रहते थे । आज भी मेरे पास छोटे भाई की मदद से तैयार की गयी वो पोथी मौजूद है जिसमें हमने गायकों के अनुसार गानों की लंबी लंबी सूची तैयार की है । उन दिनों में भाई ने मुझे लता मंगेशकर के कुछ कैसेट्स तोहफे में दिये, जाने कहां कहां से खोजकर वो कैसेट्स लाता था । तब उसे आनंद शंकर के वाद्य संगीत को सुनने का शौक़ लग गया था । उनका भी ख़ज़ाना भी भाई ने ख़ूब जमा किया । अरविंद गौड़ के ग्रुप ‘एक्ट वन’ के नाटक बहुत देखे । नादिर ज़हीर बब्बर के नाटक जब भी जबलपुर आते, भाई उनको देखने ज़रूर जाता था, आज भी उन नाटकों के रिफरेन्स उसे याद हैं ।
आगे चलकर मैं आ गया मुंबई । पर भाई का ये सफ़र जारी रहा । वो लाईब्ररियों की ख़ाक छानता रहा और बी0बी0ए0 करके उसने एम0बी0ए0 भी कर लिया । छोटा भाई पलक झपकते ही बड़ा हो गया ।
एक बड़ा अहम दौर रहा था हमारे जीवन का । जब मैंने अपनी मरज़ी से अपने धर्म के बाहर शादी कर ली और फिर अपनी पत्नी को लेकर घर पहुंचा । तब माता पिता की नाराज़गी के बीच छोटे भाई बहन ने ही मेरा साथ दिया था । काफी संघर्ष का दौर था वो । तब हमें फोन पर बात करनी होती थी तो भाई अपने एक दोस्त के घर पर नीयत समय पर पहुंच जाया करता था । और हमें घर परिवार की ख़बर मिल जाती थी ।
मुझे याद है कि जब हमने उसे इंदौर में अकेले पढ़ने भेजा था, तो तरह तरह की चिंताएं थीं । घर के सुरक्षित वातावरण से अचानक उसे खुदमुख्तार होकर रहना था । पर भाई इन चीज़ों पर खरा उतरा । उसने अपनी इस आज़ादी का कभी ग़लत इस्तेमाल नहीं किया । बल्कि वो लगातार अपनी अकादमिक पढ़ाई और निजी पढ़ाई में जुटा रहा । आज उसके रिफरेन्स इतने तगड़े हैं कि जो उससे बात करता है, उसके ज्ञान से आतंकित हो जाता है ।
आज इसी छोटे भाई का जन्मदिन है । एक ही तो छोटा भाई है मेरा । उसकी जिंदगी एक चुनौतीपूर्ण दौर से गुज़र रही है । धारा के खिलाफ़ जाने के चुनौतीपूर्ण दौर से । आज मैं अपने चिट्ठे के ज़रिए कभी टिंगू और चश्मू रहे अपनी इस छोटे भाई को ढेर सारा आशीष दे रहा हूं । भाई यक़ीन नहीं होता कि तुम इतने बड़े हो गये हो ।
ये है तुम्हारी एक कविता जो मेरे पास पड़ी थी---
अजीब से दिनों में बड़ी उदास होती हैं शामें
और हर शाम भीतर फैलती स्याही के साथ कुछ और बड़े हो जाते हैं हम ।
ठीक वैसे ही जैसे धीरे धीरे बड़ा होता जाता है कोई दुस्वप्न
ठीक वैसे ही जैसे धीरे धीरे बड़ा होता जाता है कोई दुस्वप्न
या फिर पुरानी पड़ जाती है कोई मशीन ।।
भाई तुम जिंदगी में खूब तरक्की करो ।
13 comments:
सुन्दर
सुन्दर
हमारी ओर से भी ढ़ेर सारी शुभकामनाएं.
बहुत खूब यादों का गुलदस्ता है.
हमारी तरफ से भी शुभकामना प्रेषित करें.
आपके भाई को मेरी तरफ से भी जन्मदिन कि हार्दिक शुभकामनाएं ! एक कविता कि कुछ पंक्तियां याद आ रही हैं ..अंग्रेजी में हैं :
...a birthday is a lovely flower...
that blooms in life's bouquet...
...and may that special blossom be...
especially bright today...
with a sweetness to remember...
that's on the way!
यूनुस भाई,
नमस्ते !
आपके भाई का नाम भी बतला देँ -और उन्हेँ मेरी ओरे से,Many Happy Returns of the Day & Mannny More ...कहना --
स स्नेहाशिष
लावण्या
छोटे भाई को सम्रपित ये आलेख वातसल्य से ओतप्रोत लगा। आपके अनुज को मेरी तरफ से भी जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ !
ऊपर सम्रपित की जगह समर्पित पढ़ें
सबको धन्यवाद । लावण्या जी, मेरे भाई का नाम यूसुफ़ है ।
युसूफ को जन्मदिन की ढेरों शुभकामनायें । ये रिश्ते ही है जो हमे हर परेशानी का सामना करने की हिम्मत देते है।
oh my God ! kamaal ki tuning hai. Bachpan main apni bahan ke saath main school jaati thi jo mujhase paanch saal badi hai aur hamaari Maa hamare tifin main meete parate rakhti thi jo Gud se bane hote the.
hamne kabhi socha bhi nahi tha ki koi hamari tarah meete parate ka shaukeen ho sakta hai.
isi yaad main yusuf tumhe meete-meete badhai. Bhagvaan kare tumhare jeevan main hamesha meetaas ghuli rahe.
Shubhkaamnaayen
Annapurna
yunusji,
aake bhai ko hum sabhi ki taraf se hardik shubhkaamnayeein....
nikhil anand giri,
jamia millia islamia.
अपने प्यारे भाई युसुफजी को बहुत स्नेह और जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें।
टिंगुजी का फोटो शोटो भी लग जाती तो मजा दुगुना हो जाता। :)
वे लोग किस्मत वाले होते हैं जिनके छोटे भाई बहन होते हैं, और हम इस मामले में किस्मत वाले नहीं है।
Yunusbhi, aapke is episode ne sach much mere man ko chhu liya. Laga jaise bachpan laut aaya.
अरविंद गौड़ के ग्रुप ‘एक्ट वन’.... pls correct it . Arvind Gaur's group is अस्मिता (ASMITA Theatre)
अरविन्द गौड़ अस्मिता थियेटर ग्रुप के निदेशक के रूप मै कार्यरत है। अस्मिता दिल्ली स्थित रंगमंच कर्मियों की एक नाट्य संस्था है। Thanks...
http://sites.google.com/site/asmitatheatre/
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