संगीत का कोई मज़हब, कोई ज़बान नहीं होती। 'रेडियोवाणी' ब्लॉग है लोकप्रियता से इतर कुछ अनमोल, बेमिसाल रचनाओं पर बातें करने का। बीते नौ बरस से जारी है 'रेडियोवाणी' का सफर।
Showing posts with label योगेश. Show all posts
Showing posts with label योगेश. Show all posts

Saturday, November 15, 2008

फिल्‍म 'छोटी-सी बात' के गाने: तीसरा भाग-जानेमन जानेमन तेरे दो नयन

संगीतकार सलिल चौधरी का संगीत-संसार बेहद प्रयोगधर्मी और साहसिक कम्‍पो‍ज़ीशन्‍स से भरा पड़ा है । और हम सलिल चौधरी के 'विकट प्रशंसकों' में से एक हैं । सलिल दा को कोई हमारे रहते 'कुछ' कह दे तो पहले हम शास्‍त्रार्थ करेंगे और फिर 'मल्‍लयुद्ध' पर भी उतर जायेंगे । दीवाने तो भई ऐसे ही होते हैं ना । रेडियोवाणी पर इन दिनों सलिल चौधरी के संगीत से सजी फिल्‍म 'छोटी सी बात' के गानों का उत्‍सव चल रहा है । और इसकी वजह ये है कि ये गाने हमेशा से मेरे दिल के क़रीब रहे हैं । इस फिल्‍म में केवल तीन ही गीत हैं । पहली कड़ी में हमने सुना--'ना जाने क्‍यों होता है ये जिंदगी के सा‍थ' और दूसरी कड़ी में सुना--'ये दिन क्‍या आये' । इंटरनेट पर ये फिल्‍म यहां देखी जा सकती है ।

आज ज़रा येसुदास की बात हो जाए । रेडियोवाणी पर के.जे.येसुदास के गानों की श्रृंखला बहुत दिनों से ऐजेन्‍डे में है । येसुदास हिंदी सिनेमा के विरले गायकों में से एक रहे हैं । येसुदास वैसे तो मलयालम, तमिल और yesudas कन्‍नड़ के प्रख्‍यात गायकों में से रहे हैं और दक्षिण भारत में पूजे भी जाते हैं । पर हिंदी में येसुदास को लाने का श्रेय सलिल दा को ही प्राप्‍त है । हालांकि ये भ्रांति है कि रवीन्‍द्र जैन उन्‍हें हिंदी में लेकर आए । सलिल दा ने सबसे पहले उनसे सन 1975 में फिल्‍म 'छोटी सी बात' का यही गीत गवाया था जिसके बोल थे--'जानेमन जानेमन' । इसमें आशा भोसले उनके साथ थीं । इसके बाद सन 1977 में आया 'आनंद महल' का गीत 'नी सा गा मा पा' । इस दौरान रवीन्‍द्र जैन ने सन 1976 में उन्‍हें 'चितचोर' में मौक़ा दिया । इसके बाद तो येसुदास हिंदी सिने-संगीत में एक सेन्‍सेशन बन गए । खु़द कई लोग मुझे ई-मेल पर कहते हैं कि येसुदास के गानों पर एक श्रृंखला की जाए । HMV की येसुदास के हिट्स की सी.डी. कई बरसों से 'बेस्‍टसेलर' की
लिस्‍ट में है । अब ये तो आप बताएं कि येसुदास इतने 'अच्‍छे' क्‍यों लगते हैं ।


फिलहाल तो आईये इस गीत में डूब जायें । पहले ये जान लीजिये कि सन 1976 की बिनाका गीत माला की वार्षिक हिट परेड में ये गाना इक्‍कीसवें नंबर पर रहा था । उस साल का सरताज गाना क्‍या था, आप यही सोच रहे हैं ना । जवाब है--'कभी कभी मेरे दिल में ख्‍याल आता है' । दूसरे नंबर पर था-'इक दिन बिक जायेगा माटी के मोल ( धरम करम ) और तीसरे नंबर पर--'मैं तो आरती उतारूं रे' ( जय संतोषी मां ) पूरी फेहरिस्‍त यहां
देखिए ।


'छोटी सी बात' के गीत योगेश जी ने लिखे थे । इस गाने की ट्यून बड़ी महत्‍त्‍वपूर्ण है । सलिल दा ने ऐसे तेज़ रफ्तार वाले गीत बहुत कम बनाए हैं salil । मेटल फ्लूट सिगनेचर म्‍यूजिक में ही आप पर ऐसा जादू तारी कर देती है कि अपने आप ही पैर थिरकने लगते हैं । सलिल दा अपने गानों के सिगनेचर म्‍यूजिक और इंटरल्‍यूड्स पर कितनी मेहनत करते थे इसकी मिसाल उनके पूरे म्‍यूजिक में देखी जा सकती है । इस गाने में एक रवानी, एक प्रवाह, एक रफ्तार है जो आपको अपने साथ एक दूसरी ही दुनिया में ले जाती है । ये छेड़छाड़ भरा गाना है । जिसमें नाय‍क-नायिका एक दूसरे पर बातों के 'तीर' चला रहे हैं । हिंदी में इतने बड़े मुखड़े वाले गाने कम ही बने हैं । संगीतकारों के लिए ऐसी लंबी लंबी पंक्तियों को धुन में उतारना बेहद मुश्किल होता है और जब धुन पर गाना रचा जाये तो ये सारी मुसीबत गीतकार के सिर पर आ जाती है ।

आईये गीत सुना जाये ।



जानेमन जानेमन तेरे दो नयन चोरी चोरी लेके गए देखो मेरा मन ।
मेरे दो नयन चोर नहीं सजन, तुमसे ही खोया होगा कहीं तुम्‍हारा मन ।

तोड़ दे दिलों की दूरी, ऐसी क्‍या है मजबूरी दिल से दिल मिलने दे
हां, अभी तो हुई है यारी, अभी से ये बेक़रारी, दिन तो ज़रा ढलने दे ।
यही सुनते, समझते, गुज़र गाए जाने कितने ही सावन ।
जानेमन जानेमन ।।

संग-संग चले मेरे, मारे आगे पीछे फेरे, समझूं मैं तेरे इशारे, जा,
दोष तेरा है ये तो, हर दिन जब देखो, करती हो झूठे वादे
तू ना जाने, दीवाने, दिखाऊं तुझे कैसे मैं ये दिल की लगन
जानेमन जानेमन ।।

छेड़ेंगे कभी ना तुम्‍हें, ज़रा बतला दो हमें, कब तक हम तरसेंगे
ऐसे घबराओ नहीं, कभी तो कहीं ना कहीं, बदल ये बरसेंगे
क्‍या करेंगे, बरस के कि जब ये मुरझायेगा ये सारा चमन ।
जानेमन जानेमन ।।

ये रहा इस गाने का वीडियो--

READ MORE...

Thursday, November 13, 2008

फिल्‍म 'छोटी-सी बात के गीत-दूसरी कड़ी--'देखो बसंती बसंती होने लगे मेरे सपने' ।।

रेडियोवाणी पर इन दिनों हम फिल्‍म 'छोटी-सी बात' के गाने सुन रहे हैं । ये फिल्‍म सन 1975 में आई थी और बी.आर.चोपड़ा ने इसे बनाया था । पिछली कड़ी में मैंने आपको बताया था कि किस तरह चोपड़ा साहब फिल्‍म दास्‍तान के नाकाम होने से दुखी हो गए थे और उन्‍होंने दो तीन छोटी फिल्‍मों पर हाथ आज़माया था । मुझे लगता है कि अगर ये सिलसिला आगे भी जारी रहता तो हिंदी सिनेमा को कुछ शानदार गाने मिलते और मिलती कुछ शानदार कथानकों वाली फिल्‍में । मेरे पास 'छोटी सी बात' की डी.वी.डी. बरसों से है और ममता अकसर शिकायत करती रहती हैं कि क्‍यों तुम इस फिल्‍म के पीछे पड़े रहते हो । दरअसल ये फिल्‍म है ही इतनी 'इन्‍फैक्‍शस' ।

मैंने 'डाउन मेमरी लेन' पर पढ़ा कि अमोल पालेकर की तीन शुरूआती फिल्‍में amol-palekar थीं--रजनीगंधा ( 1974), छोटी सी बात (1975) और चितचोर (1976) । ये तीनों फिल्‍में ही सिल्‍वर जुबली रही थीं । और अचानक ही अमोल एक स्‍टार बन गए थे । सामान्‍य शक्‍लो-सूरत के बावजूद अमोल को लोगों का प्‍यार मिला और अपनी प्रतिभा के सहारे उन्‍होंने आगे चलकर बतौर निर्देशक भी खूब ख्‍याति पाई ।

तो चलिए आज 'छोटी-सी बात' का एक और गीत सुनते हैं जो मुझे बहुत पसंद है । मुकेश की आवाज़ में ये गीत है--ये दिन क्‍या आये लगे फूल
हंसने । सलिल दा ने इस गाने का सिग्‍नेचर म्‍यूजिक कितना कमाल बनाया है । और इसके बाद आती है मुकेश की गाढ़ी आवाज़ । सलिल दा कितने मनोयोग से कोई गीत बुनते थे उसकी मिसाल है ये गाना । सारे इंटरल्‍यूड, सारा म्‍यूजिक अरेन्‍जमेन्‍ट इतना अनूठा है कि बस मन बह जाता है साथ में ।
तो आईये अपने सपनों को बासंती करें ।




ये दिन क्‍या आये लगे फूल हंसने
देखो बसंती बसंती होने लगे मेरे सपने ।।
सोने जैसी हो रही है हर सुबह मेरी
लगे हर सांझ अब गुलाल से भरी
चलने लगी महकी हुई पवन मगन झूमके
आंचल तेरा चूमके ।
ये दिन क्‍या आए ।।
वहां मन बावरा आज उड़ चला
जहां पर है गगन सलोना सांवला
जाके वहीं रख दे कहीं मन रंगों में खोलके
सपने ये अनमोल से ।
ये दिन क्‍या आए ।।
इसके बाद 'छोटी सी बात' का एक ही गीत बचा रहता है 'जानेमन जानेमन' जिसकी चर्चा दो दिन बाद की जायेगी । इस गाने का वीडियो ये रहा ।

READ MORE...

Tuesday, November 11, 2008

फिल्‍म 'छोटी सी बात' के गाने--पहला भाग: 'ना जाने क्‍यों होता है ये जिंदगी के साथ'

पिछले कई दिनों से रेडियोवाणी पर खामोशी रही । पर अब दोबारा हम संगीत के इस सिलसिले को शुरू कर रहे हैं । 

कई दिनों से मेरे मन में फिल्‍म 'छोटी सी बात' के गीत गूंज रहे हैं । पिछले दिनों बी.आर.चोपड़ा नहीं रहे । और जब हम उनकी फिल्‍मोग्राफी पर विचार कर रहे थे तो मेरी नज़र कुछ छोटी फिल्‍मों पर पड़ गई । दरअसल सत्‍तर के दशक के उत्‍तरार्द्ध में बी.आर.चोपड़ा का मन बड़ी फिल्‍मों से खिन्‍न सा हो गया था । हुआ ये था कि दिलीप कुमार और शर्मिला टैगोर के अभिनय से सजी बी.आर.चोपड़ा की 'बड़ी' फिल्‍म 'दास्‍तान' फ्लॉप हो गई थी । यही वो दौर था जब चोपड़ा साहब के छोटे भाई यश चोपड़ा अपनी फिल्‍मी महत्‍वाकांक्षाओं के कारण 'अलग' हो गए थे । कहते हैं कि इन घटनाओं ने बी.आर.चोपड़ा जैसी मज़बूत शख्सियत को भी भीतर से हिला दिया था । चोपड़ा साहब को कई महीनों तक नींद की गोलियां खाकर सोना पड़ा था । ये वो दौर था जब बासु चैटर्जी जैसे फिल्‍मकार छोटे बजट में सिनेमा की सुहावनी बयार चला रहे थे । 


बी.आर.चोपड़ा को लगा कि फिल्‍म-निर्माण की ये भी एक शैली हो सकती है । इसलिए उन्‍होंने 'छोटी सी बात' और 'पति पत्‍नी और वो' जैसी फिल्‍मों का निर्माण किया । ये दोनों ही छोटी फिल्‍में थीं और अपने तईं कामयाब भी रही थीं । फिल्‍म 'छोटी सी बात' के संगीतकार थे सलिल चौधरी । जिन्‍होंने बी.आर.फिल्‍म्‍स में सन 1961 में फिल्‍म 'क़ानून' और सन 1969 में 'इत्‍तेफाक' जैसी फिल्‍मों में संगीत दिया था । दिलचस्‍प बात ये है कि ये दोनों ही फिल्‍में गीतविहीन फिल्‍में थीं । और इसके बावजूद सलिल दा के पार्श्‍वसंगीत को सराहा गया था । मैंने हाल ही में 'क़ानून' की सी.डी.ख़रीदी है ताकि किसी दिन फुरसत से बैठकर इसे देखा जाये । बहरहाल आज तो हम बात कर रहे हैं फिल्‍म 'छोटी सी बात' के एक गाने की । योगेश ने इस गाने को कितनी खूबसूरती से लिखा है । मुझे तो इस गाने का मुखड़ा 'किसी के जाने के बाद करे फिर उसकी याद छोटी छोटी सी बात' एक मुहावरे जैसा ही लगता है । 

सलिल चौधरी ने इस छोटी सी फिल्‍म में भव्‍य संगीत दिया है । ये गाना सिम्‍फनी शैली के शानदार सिगनेचर म्‍यूजिक से शुरू होता है । और उसके बाद आती है लता जी की आवाज़ । गिटार के शानदार तरंगें सुनाई देती हैं नेपथ्‍य में । दिलचस्‍प बात ये है कि गाने के संगीत में एक जबर्दस्‍त रिदम है । एक रफ्तार है, तेज़ी है । जबकि लता जी की आवाज़ में एक ठहराव है, गहराई है मिठास है, तरंग है । कई ऐसे लोग हैं जिन्‍हें इस फिल्‍म के गीत ख़ास पसंद नहीं आए । पर पता नहीं क्‍या है इन गानों में कि बरसों बरस से ये गाने मेरे ज़ेहन में गूंज रहे हैं और कभी भी इनको सुनकर मन नहीं भरता । ना ही इस फिल्‍म को देखकर ही जी भरता है । बस यही कहना है कि इस गीत को खूब सुकून से सुनिए, ना सिर्फ बोलों को बल्कि गाने के संगीत संयोजन पर भी ध्‍यान दीजिये और बताईये कि एक महीने की ख़ामोशी को तोड़ने की 'रेडियोवाणी' की ये 'अदा' आपको कैसी लगी ।   


ना जाने क्‍यों होता है ये जिंदगी के साथ
अचानक ये मन किसी के जाने के बाद
करे फिर उसकी याद, छोटी छोटी सी बात ।। 
वो अनजान पल, ढल गए कल,
आज वो रंग बदल बदल,मन को मचल मचल
रहे हैं छल वो अनजान पल । 
सजे बिना मेरे नयनों में टूटे रे हाय रे सपनों के महल ।। 
ना जाने क्‍यों ।।
वही है डगर, वही है सफर 
है नहीं, साथ मेरे मगर, अब मेरा हमसफर, इधर उधर ढूंढे नज़र 
कहां गईं शामें मद भरी, वो मेरी, वो मेरे वो दिन गए किधर 
ना जाने क्‍यों ।। 

दो अंतरों वाले इस गाने के लिए हम योगेश को भी नमन करते हैं । एक बेहतरीन गीतकार योगेश इन दिनों गोरेगांव में एक गुमनाम जीवन जी रहे हैं । 
इस गाने को 'यहां' यूट्यूब पर देखा जा सकता है ।  

READ MORE...
Blog Widget by LinkWithin
.

  © Blogger templates Psi by Ourblogtemplates.com 2008 यूनुस ख़ान द्वारा संशोधित और परिवर्तित

Back to TOP