संगीत का कोई मज़हब, कोई ज़बान नहीं होती। 'रेडियोवाणी' ब्लॉग है लोकप्रियता से इतर कुछ अनमोल, बेमिसाल रचनाओं पर बातें करने का। बीते नौ बरस से जारी है 'रेडियोवाणी' का सफर।

Sunday, May 8, 2022

मेरी दुनिया है मां तेरे आंचल में

 एक बहुत ही गहन कोरस...और उस पर सचिन दा की आर्त पुकार....

ओ मां....मां...
मेरी दुनिया है मां तेरे आँचल में/
शीतल छाया दो दुःख के जंगल में


यूं लगता है मानो पहाड़ों की बर्फ़ पिघल जाएगी। आसमान फट पड़ेगा। समंदरों में उबाल आ जाएगा इस विकल स्‍वर से।

मेरी राहों के दिये तेरी दो अंखियां
मुझे गीता सी लगें तेरी दो बतियां


मैं स्‍टूडियो की कल्‍पना करता हूं। धोती कुर्ता पहने सचिन दा अपनी ही धुन पर गा रहे हैं। पूरे ऑकेस्‍ट्रा के साथ। मजरूह, जिन्‍होंने ये गीत रचा है...वहां पान खाते हुए मौजूद हैं। मोटा-सा चश्‍मा लगाए। मुमकिन है राहुल देव बर्मन भी कहीं मौजूद हों रिकॉर्डिंग में। निर्देशक ओ पी रल्‍हन भी आँख बंद करके सुन रहे होंगे—बर्मन दा की पिघले सोने जैसी आवाज़।

युग में मिलता जो.... सो मिला है पल में

हमें दुनिया ने मीठे स्‍वरों की आदत डाल दी है। चाशनी वाली आवाज़ों की। पर सचिन दा जैसी आवाज़ें मिट्टी की सोंधी ख़ुश्‍बू वाली आवाज़ हैं। गांव की सांझ जैसा आकाश है सचिन दा की आवाज़। सोचता हूं सचिन दा की आवाज़ ना होती तो कौन कहता—
कहते हैं ज्ञानी, दुनिया है फ़ानी... कौन पुकारता—अल्‍ला मेघ दे

दुनिया की बदहवासी और भयंकर रफ्तार के बीच सचिन दा घायल मन को सहलाते हैं...

मेरी निंदिया के लिए बरसों सोई ना
ममता गाती रही....ग़म की हलचल में
शीतल छाया दो दुःख के जंगल में
।।

मदर्स डे मुबारक






--यूनुस ख़ान  

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