संगीत का कोई मज़हब, कोई ज़बान नहीं होती। 'रेडियोवाणी' ब्लॉग है लोकप्रियता से इतर कुछ अनमोल, बेमिसाल रचनाओं पर बातें करने का। बीते नौ बरस से जारी है 'रेडियोवाणी' का सफर।

Wednesday, October 24, 2007

आईये गुनगुनाएं अंतरा चौधरी का गीत--- काली रे काली रे तू तो काली काली है..........



कल मैंने रेडियोवाणी पर आपको अंतरा चौधरी के कुछ गीत सुनवाये थे और जिक्र किया था फिल्‍म मीनू के गीत का जिसके बोल हैं--काली रे काली रे तू तो काली काली है । मैंने सोचा था कि मशक्‍कत करने के बाद कहीं से गीत मिल सकेगा, लेकिन संगीत के क़द्रदान हमारे अज़ीज़ इरफ़ान ने तुरंत मुझे इस गाने का लिंक भेजा, यही नहीं अंतरा चौधरी का जो चित्र आप देख रहे हैं ये भी उन्‍हीं ने उपलब्‍ध करवाया है ।

इन गीतों की खोजबीन के दौरान मैं salilda.com नामक वेबसाईट पर भी काफी घूमा-फिरा । इस वेबसाईट के संचालक हैं गौतम चौधुरी । जो सलिल दा के बेटे नहीं हैं बस उनके दीवाने हैं । हॉलैन्‍ड में रहते हैं । उनसे ताज़ा ताज़ा संपर्क स्‍थापित हुआ है । हम गौतम के सहयोग से रेडियोवाणी पर सलिल दा पर कोई महत्‍त्‍वपूर्ण आयोजन करेंगे ।

फिलहाल तो आईये सुना जाये ये गीत--इतना याद दिला दूं कि ये योगेश की रचना है ।



ओ काली रे काली रे तू तो काली काली है
गोरा सा इक भैया मां अब लाने वाली है ।

भैया होगा प्‍यारा प्‍यारा चांद सरीखा
पर देख उसे चांद भी हो जायेगा फीका
मैं गाल पे काजल का लगा दूंगी रे टीका ।।
ओ काली रे ।।
दिन रात उसे देखा करूंगी मैं सजा के
मैं खेलूंगी भैया को गोदी में उठाके
मैं रोज़ सुलाऊंगी उसे लोरियां गाके ।।
ओ काली रे ।।

सच मानिए, मैं अंतरा की आवाज़ के बचपने....उसकी आवाज़ के भोलेपन, सच्‍चाई पर मुग्‍ध हूं ।
कुछ गीत संक्रामक/इंफैक्‍शस होते हैं । मैंने इस गीत का मीठा वायरस छोड़ दिया ।
अब आप पायेंगे कि आप दिन भर गुनगुना रहे हैं---ओ काली रे काली रे तू तो काली काली है ।
और मैं ये चला ।


चिट्ठाजगत पर सम्बन्धित: काली-रे-काली-रे, फिल्‍म-मीनू, अंतरा-चौधरी, kaali-re-kaali-re, film-meenu, yogesh, salil-choudhary, antara-choudhary,


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14 comments:

काकेश October 24, 2007 at 10:23 AM  

अरे यही गाना तो सुबह मुहल्ले पर सुना था बहुत अच्छा लगा फिर सुन लिया. आभार इस गाने के लिये.

इरफ़ान October 24, 2007 at 2:05 PM  

काकेश जी आप नाहक़ मेरी हंसी उड़वा रहे हैं.ग़लती तो इंसान से हो ही जाती है.फिर मैंने मोहल्ले में इस ग़लती की माफ़ी लिख भी दी है.बहरहाल.
यूनुस भाई इस गीत से जुड़ा एक वाक़या सुनाता हूं.और इससे पहले ये साफ़ कर दूं कि ये फ़िल्म मैन अभी तक देख नहीं सका हूं.जब एक दिन हमारी साथी प्रज़ेन्टर ने ये गीत बजाया तो अगली सुबह मैंने उसे फ़ोन पर बुरा-भला इसालिये कहा क्योंकि मुझे लगा कि इस गीत में Racial Hatred है.मेरा अंदाज़ा था कि बच्ची खुद के कालेपन पर शर्मिंदा है और गोरे भैया के आने की खुशी को celebrate कर रही है, जो कि निहायत अहमक़ाना अंदाज़ है.अब गीत भले ही काला-गोरा कर रहा हो, हमें तो विवेक होना चाहिये कि इस गीत को न बजाएं.यही सब बातें थीं जिन्हें सुनकर हमारी साथी मेरे ऊपर हंस सकती थीं जो कि वो हंसीं.उन्होंने मुझे बताया कि बच्ची अपनी बकरी के साथ गोरे भैया के आने की खुशी शेयर कर रही है जिसका रंग काला है या फिर जिसका नाम काली है.मुझे अब भी नहीं मालूम कि यह सूचना कितनी सही थी लेकिन ज़रा रंग-भेद की बुराई को ध्यान में रखकर इस गीत को सुनिये, क्या आपको नहीं लगता कि योगेश गोरे भैया को काले भैया पर तरजीह देते हैं.जय बोर्ची.

SahityaShilpi October 24, 2007 at 3:53 PM  

यूनुस भाई!
पिछले कई दिनों से अपनी व्यस्तता के चलते चिट्ठा-जगत से अनुपस्थित रहने के बाद आज कुछ वक्त मिला है चिट्ठों को पढ़ पाने का. और इस खूबसूरत और मासूम गीत को सुनकर मन फिर बचपन की उन्हीं खूबसूरत वादियों में लौट जाने को मचल उठा है.
आभार इसे सुनवाने का!

- अजय यादव
http://ajayyadavace.blogspot.com/
http://merekavimitra.blogspot.com/

Udan Tashtari October 24, 2007 at 6:27 PM  

अरे वाह भई, आज फिर अंतरा जी को सुना-पुनः आनन्द आया.

Voice Artist Vikas Shukla विकासवाणी यूट्यूब चॅनल October 24, 2007 at 6:58 PM  

बेहद मासूमियत भरी आवाज. सुनकर आंखे भर आयी.

Yunus Khan October 24, 2007 at 7:07 PM  

अंतरा आजकल मुम्बई में ही रहती हैं और टेलीविजन के लिए काम करतीं हैं

विपिन October 24, 2007 at 8:01 PM  

युनुस जी,
रेडियोवाणी के द्वारा आप जो हम लोंगो को इतने मीठे गाने और जानकारियां दे रहे है उसके लिए हम सभी आपके बहुत बहुत आभारी है | अब तो ऐसा हो गया की शाम को काम से आने के बाद जब तक रेडियोवाणी न देखूं तब तक चैन नहीं मिलता|
और कल आपके द्वारा प्रस्तुत छायागीत भी बहुत अच्छा लगा |
विपिन

Gyan Dutt Pandey October 25, 2007 at 5:55 AM  

अंतरा को सुनना - फिर से बहुत अच्छा लगा। और बाल-गीत ढ़ेरों सुनवाना।

PIYUSH MEHTA-SURAT October 25, 2007 at 4:47 PM  

श्री युनूसजी,
कहीं भविष्यमें यह गीत रेडियोनामा परसे हट न जाय इस लिये अपने पी. सी. पर रेकोर्ड कर लिया । क्यों की किशोरदा के १४ भागो को उस समय के मेरे इस प्लेयर्स को उपयोगमें लानेका तरीका पुरी तरह मालूम नहीं था, जो बादमें सागरजीने सिखाया था, पर उस समय दौरान किषोरजी के १४ भाग को आपने नहीं पर यु-ट्यूबवालोंने हटा लिया था, जिसका गम मूझे हमेशा हमेशा रहेगा । आप जब शामको सजीव प्रसारणमें होते है तब मैं और सुरतके मेरे मित्र श्री शशिभाई बोडावाला (आपको याद होगे ही होगे-हल्लो आपके अनुरोध पर कार्यक्रममें मेरी तरह उनके भी अनुरोध आते थे ।) जिसको पहेले पता चलता है अन्यको सुचीत करते है । और मैं एक बार आपका पुरा छाया गीत ध्वनि-मूद्रीत कर लेता हूँ ।
पियुष महेता

Sagar Chand Nahar October 25, 2007 at 8:06 PM  

बहुत बढ़िआ गीत है, खासकर बच्ची की आवाज में बहुत ही मासुमियत है।

रवीन्द्र प्रभात October 25, 2007 at 9:35 PM  

गीत अच्छा लगा,बच्ची की आवाज में नि: संदेह भावपूर्ण,आभार इसे सुनवाने का!

Poonam Misra October 26, 2007 at 12:13 PM  

धन्यवाद युनूसजी

Anonymous,  November 18, 2009 at 7:59 AM  

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