संगीत का कोई मज़हब, कोई ज़बान नहीं होती। 'रेडियोवाणी' ब्लॉग है लोकप्रियता से इतर कुछ अनमोल, बेमिसाल रचनाओं पर बातें करने का। बीते नौ बरस से जारी है 'रेडियोवाणी' का सफर।
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Sunday, December 16, 2007

दूर है किनारा गहरी नदी की धारा मांझी खेते जाओ रे-फिर मन्‍नाडे

कल रेडियोवाणी पर मन्‍ना डे का एक अनमोल और कम चर्चित गीत सुनवाया गया था । और आपसे वादा किया गया था कि गुंजाईश रही तो आगे भी यही सिलसिला जारी रखा जाएगा । तो आईये आज सुना जाए फिल्‍म सौदागर का गीत । ये अमिताभ बच्‍चन और नूतन वाली राजश्री प्रोडक्‍शन की फिल्‍म सौदागर है । और इसे रवींद्र जैन से खुद ही लिखा और कंपोज़ किया है ।

मन्‍नाडे का ये एक और मांझी गीत है । उनकी आवाज़ में वैसे तो कई मांझी गीत हैं । पर इस गीत का फलसफा वाक़ई दिल को सुकून देता है । उम्‍मीद बंधाता है ।

बड़ा ही सहज सरल सा गीत है । ये गीत भी उसी कैसेट में था जिसका जिक्र कल किया गया था । मन्‍नाडे के कुछ कम चर्चित गानों वाले कैसेट में । इस गाने को तब सुनिए जब आपको जिंदगी में थोड़ी सी शांति चाहिए हो । थोड़ा सा सब्र चाहिए हो । थोड़ी सी ताकत चाहिए हो ।

दूर है किनारा गहरी नदी की धारा टूटी मेरी नैया

मांझी खेते जाओ रे ।।

आंधी कभी तूफां कभी, कभी मंझधार boat
जीत है उसी की जिसने मानी नहीं हार 
मांझी खेते जाओ रे ।।
डूबते हुए को बहुत है तिनके का सहारा 
मन जहां मान ले मांझी वहीं है किनारा 
मांझी खेते जाओ रे ।।
 

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