संगीत का कोई मज़हब, कोई ज़बान नहीं होती। 'रेडियोवाणी' ब्लॉग है लोकप्रियता से इतर कुछ अनमोल, बेमिसाल रचनाओं पर बातें करने का। बीते नौ बरस से जारी है 'रेडियोवाणी' का सफर।
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Thursday, August 27, 2009

ज़रा-सी बात पे हर रस्‍म तोड़ आया हूं : मुकेश की याद में जां निसार अख्‍़तर की ग़ज़ल

आज पार्श्‍वगायक मुकेश की पुण्‍यतिथि है । रेडियोवाणी पर हम मुकेश को पहले भी याद करते रहे हैं । आपको याद होगा मुकेश की आवाज़ में रामचरित मानस गान के अंश और बजरंग बाण भी रेडियोवाणी के ख़ज़ाने में मौजूद है । हम सोच रहे थे कि मुकेश को याद करने का कौन सा तरीक़ा हो इस साल । सीधे-रस्‍ते पर चलना हमको आता नहीं है । इसलिए उल्‍टे रस्‍ते पर निकले और एक जगह हमें वो ग़ज़ल मिल गयी जो अभी तक तो संग्रह में नहीं थी, पर जिसकी बेक़रारी थी बहुत ।
एक ज़माने में मुकेश ने ग़ैर-फिल्‍मी गीत और ग़ज़लें बहुत गाईं थीं । और दिलचस्‍प बात ये है कि वो लोकप्रिय भी ख़ूब हुईं । संगीतकार ख़ैयाम ने फिल्‍मों में संगीत देने के साथ साथ एक बड़ा ही महत्‍वपूर्ण काम किया है ग़ैर-फिल्‍मी अलबमों के मामले में । रफ़ी, मुकेश, आशा भोसले तीनों के ग़ैर-फिल्‍मी अलबम ख़ैयाम ने तैयार किये । मीनाकुमारी से उनके ही अशआर गवाए और यूं गवाए जैसे किसी इबादतगाह में नात और हम्‍द गाई जा रही हो । जी हां मुझे मीनाकुमारी के वो अशआर सुनकर बस ऐसा ही लगता है ।           

jaan nisar and sahir     स्‍वीर में जांनिसार अख्‍तर, साहिर लुधियानवी और मोहिंदर सिंह रंधावा
ख़ैर सन 1968 की बात है । मुकेश और ख़ैयाम का एक एल.पी. आया था ग़ज़लों का । उसमें ज्यादातर रचनाएं जांनिसार अख़्तर की थीं । इस अलबम में मुकेश की गायकी की सादगी हमें 'क्‍लीन-बोल्‍ड' कर देती है । सारी ग़ज़लें उम्‍दा हैं । पर ये तो 'उफ़ उफ़ हाय अश अश' करने लायक़ है । आईये पहले इसे पढ़ते हैं ।






ज़रा-सी बात पे हर रस्‍म तोड़ आया था
दिल-ए-तबाह ने भी क्‍या मिज़ाज पाया था ।
मुआफ़ कर ना सकी मेरी जिंदगी मुझको
वो एक लम्‍हा कि मैं तुझसे तंग आया था ।
शगुफ्ता फूल सिमटकर कली बनी जैसे                      *खिलते हुए
कुछ इस कमाल से तूने बदन चुराया था ।
गुज़र गया है कोई, लम्‍हा-ए-शरर की तरह               *बिजली/चिंगारी
अभी तो मैं उसे पहचान भी ना पाया था ।
पता नहीं कि मेरे बाद उनपे क्‍या गुज़री
मैं चंद ख्‍वाब ज़माने में छोड़ आया था ।

अब इसे सुना भी जाए । ख़ैयाम ( गैर-फिल्‍मी ) ग़ज़लों को स्‍वरबद्ध करते हुए शास्‍त्रीयता का बड़ा ख्‍याल रखते हैं । यहां आपको बहुत कम और बिल्‍कुल भारतीय वाद्य सुनाई देंगे बिना किसी बड़े तामझाम के साथ ।
 ghazal: zara si baat pe har rasm tod aaya tha
 shayar: jaan nisar akhtar
 recored in : 1968
 duration: 5:50



मुकेश की ग़ैर-फिल्‍मी ग़ज़लों की सूची
यहां देखिए ।


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Monday, September 1, 2008

मुकेश के स्‍वर में रामचरित-मानस का एक अंश ।।

रामचरित-मानस हम भारतीयों की सुबह का अटूट हिस्‍सा रही है । मुझे याद है कि भोपाल में बचपन के दिनों में हम आकाशवाणी पर 'रामचरित मानस गान' सुना करते थे । ये आकाशवाणी के भोपाल केंद्र की प्रस्‍तुति थी । राम किशन चंदेश्री और साथियों की आवाज़ें हुआ करती थीं इसमें । अभी कुछ दिनों पहले आशीष गुप्‍ता नामक सज्‍जन ने ई-मेल पर इसी रामचरित मानस का ब्‍यौरा मांगा और पूछा कि क्‍या वो उपलब्‍ध हो सकता है । आशीष का बचपन भी भोपाल में बीता है और उनके बचपन के संस्‍कारों में भी रेडियो पर गूंजती 'रामचरित मानस गान' की स्‍वरलहरियां शामिल थीं ।
                                  तुलसी दास
शायद अब आकाशवाणी पर रामचरित मानस गान नहीं आता । लेकिन बचपन की वो यादें जब तक ताज़ा हो जाती हैं । संगीत के संस्‍कार जब बन रहे थे तभी हमें पता चला कि मुकेश ने 'रामचरित मानस' को पूरा का पूरा गाया है । उसके बाद हमारी खोजबीन शुरू हुई । और कुछ खास दिक्‍कत नहीं आई । आज भी मुकेश की गाई 'तुलसी रामायण' की सीडीज़ आसानी से उपलब्‍ध हैं । अगर आप इच्‍छुक हैं तो यहां हमारा सीडी पर और यहां इंडिया क्‍लब पर देखिए । या फिर अपने स्‍थानीय म्‍यूजिक स्‍टोर पर खोजिए । बहरहाल बात चल रही थी 'तुलसी रामायण' की ।

मुकेश को 'तुलसी रामायण' का सस्‍वर पाठ बहुत प्रिय था । वे हमेशा अपना हारमोनियम लेकर 'रामचरित' का गायन किया करते थे । और उनका ये प्रेम इन सीडीज़ में झलकता भी है । भजन गाने के लिए जो दीनता, विकलता और समर्पण चाहिए वो मुकेश की आवाज़ में खूब है । वरना कुछ ऐसे इन्‍स्‍टेन्‍ट गायक हैं, जो फैक्‍ट्री की तरह होते हैं । भजन भी गवाईये, पॉप भी गवाईये और प्‍यार-मुहबबत के गाने भी । ख़ैर । आज मैं आपके लिए लेकर आया हूं मुकेश के स्‍वर में 'बजरंग-बाण' । वैसे 'हनुमान-चालीसा' भी मुकेश ने गाया है । और कई अन्‍य गायकों ने भी गाया है ।  लेकिन 'बजरंग-बाण' सुनकर मन को बड़ी शांति मिलती है । आपको ये भी बता दें कि ये रचना कुल साढ़े दस मिनिट की है ।


निश्चय प्रेम प्रतिति ते , विनय करें सन्मान । 
तेहि के कारज सकल शुभ , सिद्ध करें हनुमान ॥
जय हनुमंत संत हितकारी, सुन लीजै प्रभु विनय हमारी ।
जन के काज विलंब न कीजै , आतुर दौरि महासुख दीजै ॥
जैसे कुदि सिन्धु के पारा , सुरसा बदन पैठि विस्तारा ।
आगे जाय लंकिनी रोका , मारेहु लात गई सुरलोका ॥
जाय विभीषन को सुख दीन्हा , सीता निरखि परमपद लीन्हा ॥
बाग उजारि सिन्धु मह बोरा , अति आतुर जमकातर तोरा ॥
अक्षयकुमार मारि संहारा , लूम लपेटि लंक को जारा ॥
लाह समान लंक जरि गई , जय जय धुनि सुरपुर नभ भई ॥
अब विलम्ब केहि कारन स्वामी , किरपा करहु उर अंतरयामी ॥
जय जय लखन प्राण के दाता , आतुर ह्वै दुख करहु निपाता ॥
जय हनुमान जयति बलसागर , सुर समुह समरथ भटनागर ॥
ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले , बैरिहि मारु वज्र के कीले ॥
ॐ हीं हीं हीं हनुमंत कपीसा , ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर सीसा ॥
जय अंजनिकुमार बलवंता , शंकरसुवन वीर हनुमंता ॥
बदन कराल काल कुल घालक , राम सहाय सदा प्रतिपालक ॥
अग्नि बेताल काल मारिमर , भूत प्रेत पिशाच निशाचर ॥
इन्हें मारु तोहि शपथ राम की , राखु नाथ मरजाद नाम की ॥
सत्य होहु हरि शपथ पाई कै , रामदुत धरु मारु धाई कै ॥
जय जय जय हनुमंत अगाधा , दुख पावत जन केहि अपराधा ॥
पूजा जप तप नेम अचारा , नहि जानत कछु दास तुम्हारा ॥
बन उपवन मग गिरि ग्रह माहीं , तुम्हरें बल हौं डरपत नाहीं ॥
जनकसुता हरिदास कहावौं , ताकी सपथ विलम्ब न लावौं ॥
जय जय जय धुनि होत अकासा , सुमिरत होय दुसह दुख नासा ॥
चरन पकरि कर जोरि मनावौं , यहि औसर अब केहि गोहरावौं ॥
उठ उठ चलु तोहि राम दोहाई , पांय परौं कर जोरि मनाई ॥
ॐ चम चम चम चम चपल चलंता , ॐ हनु हनु हनु हनु हनु हनुमंता ॥
ॐ हं हं हांक देत कपि चंचल , ॐ सं सं सहमि पराने खलदल ॥
अपने जन को तुरंत उबारौं , सुमिरत होय अनंद हमारौं ॥
यह बजरंग बाण जेहि मार्रै , ताहि कहौ फ़िरि कवन उबारै ॥
पाठ करै बजरंग बाण की , हनुमंत रक्षा करै प्राण की ॥
यह बजरंग बाण जो जापै , तासो भूत प्रेत सब कांपै ॥
धूप देय जो जपै हमेशा , ताके तन नहि रहे कलेशा ॥

उर प्रतिति द्रुढ सरन ह्वै , पाठ करै धरि ध्यान |
बाधा सब हर करै सब , काम सफल हनुमान ||

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