ज़रा-सी बात पे हर रस्म तोड़ आया हूं : मुकेश की याद में जां निसार अख़्तर की ग़ज़ल
एक ज़माने में मुकेश ने ग़ैर-फिल्मी गीत और ग़ज़लें बहुत गाईं थीं । और दिलचस्प बात ये है कि वो लोकप्रिय भी ख़ूब हुईं । संगीतकार ख़ैयाम ने फिल्मों में संगीत देने के साथ साथ एक बड़ा ही महत्वपूर्ण काम किया है ग़ैर-फिल्मी अलबमों के मामले में । रफ़ी, मुकेश, आशा भोसले तीनों के ग़ैर-फिल्मी अलबम ख़ैयाम ने तैयार किये । मीनाकुमारी से उनके ही अशआर गवाए और यूं गवाए जैसे किसी इबादतगाह में नात और हम्द गाई जा रही हो । जी हां मुझे मीनाकुमारी के वो अशआर सुनकर बस ऐसा ही लगता है ।
ख़ैर सन 1968 की बात है । मुकेश और ख़ैयाम का एक एल.पी. आया था ग़ज़लों का । उसमें ज्यादातर रचनाएं जांनिसार अख़्तर की थीं । इस अलबम में मुकेश की गायकी की सादगी हमें 'क्लीन-बोल्ड' कर देती है । सारी ग़ज़लें उम्दा हैं । पर ये तो 'उफ़ उफ़ हाय अश अश' करने लायक़ है । आईये पहले इसे पढ़ते हैं ।
ज़रा-सी बात पे हर रस्म तोड़ आया था दिल-ए-तबाह ने भी क्या मिज़ाज पाया था । मुआफ़ कर ना सकी मेरी जिंदगी मुझको वो एक लम्हा कि मैं तुझसे तंग आया था । शगुफ्ता फूल सिमटकर कली बनी जैसे *खिलते हुए कुछ इस कमाल से तूने बदन चुराया था । गुज़र गया है कोई, लम्हा-ए-शरर की तरह *बिजली/चिंगारी अभी तो मैं उसे पहचान भी ना पाया था । पता नहीं कि मेरे बाद उनपे क्या गुज़री मैं चंद ख्वाब ज़माने में छोड़ आया था । |
अब इसे सुना भी जाए । ख़ैयाम ( गैर-फिल्मी ) ग़ज़लों को स्वरबद्ध करते हुए शास्त्रीयता का बड़ा ख्याल रखते हैं । यहां आपको बहुत कम और बिल्कुल भारतीय वाद्य सुनाई देंगे बिना किसी बड़े तामझाम के साथ ।
ghazal: zara si baat pe har rasm tod aaya tha
shayar: jaan nisar akhtar
recored in : 1968
duration: 5:50
मुकेश की ग़ैर-फिल्मी ग़ज़लों की सूची यहां देखिए ।
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