ज़रा-सी बात पे हर रस्म तोड़ आया हूं : मुकेश की याद में जां निसार अख़्तर की ग़ज़ल
आज पार्श्वगायक मुकेश की पुण्यतिथि है । रेडियोवाणी पर हम मुकेश को पहले भी याद करते रहे हैं । आपको याद होगा मुकेश की आवाज़ में रामचरित मानस गान के अंश और बजरंग बाण भी रेडियोवाणी के ख़ज़ाने में मौजूद है । हम सोच रहे थे कि मुकेश को याद करने का कौन सा तरीक़ा हो इस साल । सीधे-रस्ते पर चलना हमको आता नहीं है । इसलिए उल्टे रस्ते पर निकले और एक जगह हमें वो ग़ज़ल मिल गयी जो अभी तक तो संग्रह में नहीं थी, पर जिसकी बेक़रारी थी बहुत ।
एक ज़माने में मुकेश ने ग़ैर-फिल्मी गीत और ग़ज़लें बहुत गाईं थीं । और दिलचस्प बात ये है कि वो लोकप्रिय भी ख़ूब हुईं । संगीतकार ख़ैयाम ने फिल्मों में संगीत देने के साथ साथ एक बड़ा ही महत्वपूर्ण काम किया है ग़ैर-फिल्मी अलबमों के मामले में । रफ़ी, मुकेश, आशा भोसले तीनों के ग़ैर-फिल्मी अलबम ख़ैयाम ने तैयार किये । मीनाकुमारी से उनके ही अशआर गवाए और यूं गवाए जैसे किसी इबादतगाह में नात और हम्द गाई जा रही हो । जी हां मुझे मीनाकुमारी के वो अशआर सुनकर बस ऐसा ही लगता है ।
तस्वीर में जांनिसार अख्तर, साहिर लुधियानवी और मोहिंदर सिंह रंधावा
ख़ैर सन 1968 की बात है । मुकेश और ख़ैयाम का एक एल.पी. आया था ग़ज़लों का । उसमें ज्यादातर रचनाएं जांनिसार अख़्तर की थीं । इस अलबम में मुकेश की गायकी की सादगी हमें 'क्लीन-बोल्ड' कर देती है । सारी ग़ज़लें उम्दा हैं । पर ये तो 'उफ़ उफ़ हाय अश अश' करने लायक़ है । आईये पहले इसे पढ़ते हैं ।
अब इसे सुना भी जाए । ख़ैयाम ( गैर-फिल्मी ) ग़ज़लों को स्वरबद्ध करते हुए शास्त्रीयता का बड़ा ख्याल रखते हैं । यहां आपको बहुत कम और बिल्कुल भारतीय वाद्य सुनाई देंगे बिना किसी बड़े तामझाम के साथ ।
ghazal: zara si baat pe har rasm tod aaya tha
shayar: jaan nisar akhtar
recored in : 1968
duration: 5:50
मुकेश की ग़ैर-फिल्मी ग़ज़लों की सूची यहां देखिए ।
-----
अगर आप चाहते हैं कि 'रेडियोवाणी' की पोस्ट्स आपको नियमित रूप से अपने इनबॉक्स में मिलें, तो दाहिनी तरफ 'रेडियोवाणी की नियमित खुराक' वाले बॉक्स में अपना ईमेल एड्रेस भरें और इनबॉक्स में जाकर वेरीफाई करें।
READ MORE...
एक ज़माने में मुकेश ने ग़ैर-फिल्मी गीत और ग़ज़लें बहुत गाईं थीं । और दिलचस्प बात ये है कि वो लोकप्रिय भी ख़ूब हुईं । संगीतकार ख़ैयाम ने फिल्मों में संगीत देने के साथ साथ एक बड़ा ही महत्वपूर्ण काम किया है ग़ैर-फिल्मी अलबमों के मामले में । रफ़ी, मुकेश, आशा भोसले तीनों के ग़ैर-फिल्मी अलबम ख़ैयाम ने तैयार किये । मीनाकुमारी से उनके ही अशआर गवाए और यूं गवाए जैसे किसी इबादतगाह में नात और हम्द गाई जा रही हो । जी हां मुझे मीनाकुमारी के वो अशआर सुनकर बस ऐसा ही लगता है ।
ख़ैर सन 1968 की बात है । मुकेश और ख़ैयाम का एक एल.पी. आया था ग़ज़लों का । उसमें ज्यादातर रचनाएं जांनिसार अख़्तर की थीं । इस अलबम में मुकेश की गायकी की सादगी हमें 'क्लीन-बोल्ड' कर देती है । सारी ग़ज़लें उम्दा हैं । पर ये तो 'उफ़ उफ़ हाय अश अश' करने लायक़ है । आईये पहले इसे पढ़ते हैं ।
ज़रा-सी बात पे हर रस्म तोड़ आया था दिल-ए-तबाह ने भी क्या मिज़ाज पाया था । मुआफ़ कर ना सकी मेरी जिंदगी मुझको वो एक लम्हा कि मैं तुझसे तंग आया था । शगुफ्ता फूल सिमटकर कली बनी जैसे *खिलते हुए कुछ इस कमाल से तूने बदन चुराया था । गुज़र गया है कोई, लम्हा-ए-शरर की तरह *बिजली/चिंगारी अभी तो मैं उसे पहचान भी ना पाया था । पता नहीं कि मेरे बाद उनपे क्या गुज़री मैं चंद ख्वाब ज़माने में छोड़ आया था । |
अब इसे सुना भी जाए । ख़ैयाम ( गैर-फिल्मी ) ग़ज़लों को स्वरबद्ध करते हुए शास्त्रीयता का बड़ा ख्याल रखते हैं । यहां आपको बहुत कम और बिल्कुल भारतीय वाद्य सुनाई देंगे बिना किसी बड़े तामझाम के साथ ।
ghazal: zara si baat pe har rasm tod aaya tha
shayar: jaan nisar akhtar
recored in : 1968
duration: 5:50
मुकेश की ग़ैर-फिल्मी ग़ज़लों की सूची यहां देखिए ।
-----
अगर आप चाहते हैं कि 'रेडियोवाणी' की पोस्ट्स आपको नियमित रूप से अपने इनबॉक्स में मिलें, तो दाहिनी तरफ 'रेडियोवाणी की नियमित खुराक' वाले बॉक्स में अपना ईमेल एड्रेस भरें और इनबॉक्स में जाकर वेरीफाई करें।
