संगीत का कोई मज़हब, कोई ज़बान नहीं होती। 'रेडियोवाणी' ब्लॉग है लोकप्रियता से इतर कुछ अनमोल, बेमिसाल रचनाओं पर बातें करने का। बीते नौ बरस से जारी है 'रेडियोवाणी' का सफर।

Saturday, April 9, 2016

'दो नैनों के पंख लगाके' - फिल्म 'शक' का गीत.. रेडियोवाणी की नौवीं सालगिरह पर विशेष

वक्‍त की रफ्तार कितनी तेज़ है।
यूं लग रहा है कि अभी-अभी तो ब्‍लॉगिंग शुरू की थी और देखिए ना आज 'रेडियोवाणी' की नौंवीं सालगिरह भी आ गयी। ये सच है कि पिछले कुछ बरस से रेडियोवाणी का कारवां रूक रूक कर चल रहा है या रूका ही हुआ है।

पर कल से रेडियोवाणी पर निरंतरता की कोशिश शुरू की गयी है। नौवीं सालगिरह को ख़ास बनाया जाए गुलज़ार के एक अनमोल गाने से...जिसे मिली एक
अनमोल आवाज़। बरसों बरस से हम ये गाना सुनते आ रहे हैं। रेडियो पर जब भी अनाउंस करते-- 'आवाज़ कुमारी फैयाज़ की है'....तो हमेशा मन में सवाल उठता कि कुमारी फ़ैयाज़ कौन हैं और कहां हैं। कुछ मित्रों ने भी इस बारे में जानकारी चाही। पर इस सवाल का जवाब नहीं मिलना था तो नहीं मिला।

पर पिछले बरस मुंबई में जब 'चौपाल' में संगीतकार जयदेव जी को याद किया गया तो वहां कुमारी फ़ैयाज़ को देखने और उनसे बातें करने का मौक़ा हाथ आ गया। असल में मराठी नाट्य-जगत से उतना ज़्यादा परिचय ना होने की वजह से हमें पता ही नहीं लगा कि वे तो मराठी की जानी-मानी अभिनेत्री हैं। मंच पर पचास वर्षों से सक्रिय हैं। उनका सबसे मशहूर नाटक रहा है--'कट्यार काळजात घुसली' जिस पर हाल ही में एक चर्चित फिल्‍म भी आयी है। और इस फिल्‍म के लिए महेश काळे को सर्वश्रेष्‍ठ पार्श्‍वगायक का राष्‍ट्रीय पुरस्‍कार मिला है।

बहरहाल, कुमारी फैयाज़ ने इस नाटक में कद्दावर कलाकार पंडित वसंत राव देशपांडे के साथ काम किया है। फैयाज़ ने नाट्य-संगीत, ग़ज़ल, लावणी, उपशास्‍त्रीय संगीत वग़ैरह सब गाया है। उनके कुछ प्रसिद्ध मराठी गीत हैं--'कोण्‍यात झोपसली सतार', फिल्‍म 'घरकुल' संगीतकार सी. रामचंद्र। और मराठी नाटक ''वीज म्‍हणाली धरतीला' का गीत--'चार होते पक्षिणी'। संशय का मनी आळा' वग़ैरह। 


आज रेडियोवाणी की नौवीं सालगिरह पर पेश है कुमारी फ़ैयाज़ का एक अनमोल गाना। फिल्‍म 'शक' के गुलज़ार के लिखे इस गाने को स्‍वरबद्ध किया है वसंत देसाई ने। इस गाने को सुनकर मन जैसे डूब-सा जाता है। कुमारी फ़ैयाज़ की आवाज़ की बहुत अलग-सी डायमेन्‍शन गाने को जैसे एक नया रंग देती है। सुनिए।


और हां 'रेडियोवाणी' के क़द्रदान नौवीं सालगिरह की बधाईयां देंगे तो अच्‍छा लगेगा।
कुमारी फ़ैयाज़ के कुछ और गाने यहीं जल्‍दी ही।

Song: do nainon ke pankh lagaake
Singer: Kumari Faiyaz
Film: Shaque (1976)
Lyrics: Gulzar
Music: Vasant Desai
Duration:  3:30






दो नैनों के पंख लगाकर मन पाखी उड़ जाये
हाथ छुड़ाकर दूर चला है दूर से पास से बुलाए।

जाने-बूझे चेहरे मन को अनजाने लगते हैं
कोई मुझसे आकर मेरी फिर पहचान कराए।

नीलगगन में सागर देखे, सागर में आकाश
अनहोनी को रोए मनवा, होनी पे घबराए।

दो नैनों के पंख लगाकर।। 


फिल्‍म 'शक़' का एक और गाने पर रेडियोवाणी की पुरानी पोस्‍ट पढ़ने के लिए यहां क्लिक कीजिए। 

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7 comments:

Mayur Malhar April 9, 2016 at 10:07 PM  

नववर्ष की शुभकामनाएं और नौ बरस पूरे करने के लिए बधाई.............आपका ब्लॉग मैं शुरू से ही पढ़ रहा हूं। फिल्मों और गीत, संगीत में रूचि होने के कारण मुझे यह ब्लॉग काफी पसंद है। जानकारी खुशी हुई रेडियोवाणी का कारवां पुनः नियमित रूप से शुरू हो रहा है। वैसे हर शनिवार आपका लेख पढ़ता हूं.....मजा आता है। आज ही का लेख शानदार रहा......जीवन की वीणा का तार बोले............। यह गीत सुनते वक्त जो शांति की अनुभूूति होती है वह शब्दों में बयां नहीं की जा सकती। मुझे लगता है कि कलकल करती कोई नदी बहती जा रही है और दूर किसी पेड़ की छांव में खड़े होकर मैं उस ध्वनी का आनंद ले रहा हूं।

रंजन कुमार शाही April 10, 2016 at 10:46 AM  

कारवां यूँ ही बढ़ता रहे , सराहनीय प्रयास के लिए बधाई

रंजन कुमार शाही April 10, 2016 at 10:47 AM  

कारवां यूँ ही बढ़ता रहे , सराहनीय प्रयास के लिए बधाई

sanjay patel April 24, 2016 at 4:24 PM  

बहुत मीठा गीत।अप्रतिम कविता।दूर से पास बुलाए या पहचान कराए जैसी पंक्ति पर लगने वाला विलग सुर इस कम्पोज़िशन की जान है।

" डाक साब ",  April 10, 2017 at 10:30 AM  

मगर कल बीत चुकी दसवीं सालगिरह का क्या ?
;-)

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