संगीत का कोई मज़हब, कोई ज़बान नहीं होती। 'रेडियोवाणी' ब्लॉग है लोकप्रियता से इतर कुछ अनमोल, बेमिसाल रचनाओं पर बातें करने का। बीते नौ बरस से जारी है 'रेडियोवाणी' का सफर।

Saturday, May 23, 2015

राजशेखर Returns.

इस पोस्‍ट का शीर्षक प्रसिद्ध फिल्‍म-पत्रकार और मित्र अजय ब्रह्मात्‍मज की इस पोस्‍ट से लिया गया हे। उनका लोकप्रिय ब्‍लॉग है चवन्‍नी-चैप। raj shekhar



आज के दौर में हमेशा इस बात को लेकर उफ़-उफ़ और हाय-हाय किया जाता है कि फिल्‍म-संसार में अब अच्‍छे गीत नहीं आते। मानीख़ेज़ नहीं होते। संगीत और धुनें हावी होती चली जा रही हैं वग़ैरह। पर अब ये बात क्‍लीशे हो चुकी। पिछले कुछ वर्षों में बड़ी तादाद में ऐसे गीत आए हैं- जिनमें अच्‍छी कविता है। जिनके बोल बेहतरीन हैं। और जिनकी यात्रा इस दौर के ज़्यादातर गीतों से लंबी रहने वाली है।



हाल ही में राजशेखर के गीतों से सजी फिल्‍म आयी है -'तनु वेड्स मनु रिटर्न्स'। 
मैं समझ सकता हूं कि चार बरस पहले 'तनु वेड्स मनु' के बाद जब उनका ज्‍यादा काम नहीं आया- तो इस लंबे वक्‍फ़े में वो इससे जुड़े सवालों से सचमुच थोड़े परेशान हो चुके होंगे। यहां तक कि मैंने खुद उनसे एक औपचारिक/अनौपचारिक इंटरव्‍यू में ये पूछ लिया था। बहरहाल....देर आयद-दुरूस्‍त आयद वाली बात राजशेखर पर पूरी तरह लागू होती है। अगर आप इस ब्‍लॉग के पुराने पाठक रहे हैं तो मेरी बात पर यक़ीन करना आपके लिए आसान होगा। अगर नए हैं तो स्‍वयं गाने सुनकर अहसास कर लीजिए।

इस फिल्‍म का मेरा जो सबसे पसंदीदा गाना है वो है--'मत जा रे'।
शायद हम कई बार कह नहीं पाते, बयां नहीं कर पाते- कि वो क्‍या चीज़ है जो हमें किसी गाने से इतना जोड़ देती है। असल में 'मत जा रे' लोगों के पीछे छूट जाने, लोगों से नाते टूट जाने का गीत है। ये उसी धारा का गीत है जिसमें 'ना जाओ सैंया' जैसे गाने आते हैं। मैं दोनों गानों की तुलना नहीं कर रहा। ज़रा इस गाने की इबारत पढिए। ये बतातें चलें कि अंकित तिवारी ने इसे बहुत ही मन से गाया है। क्रस्‍ना की धुन भी कमाल की है।
दूर तलक है सूना फलक
अब ढूंढें तुझे कहां
तू है किधर ना आए नज़र
आ सुन ले ये इल्तिजा
मत जा रे मत जा।।


मेरी कमी है सांसें थमी हैं तन्‍हा है ये दिल मेरा
ये कौन सा रिश्‍ता है, तेरी आंखों से रिसता है
दो दिल के पाटों में बंटता है, पिसता है
जिद पे बस दिल को अपने तू ऐसे ना झुठला
मत जा रे मत जा।।
दिल इश्‍क़ से बिंधा है, एक जिद्दी परिंदा है
उम्‍मीदों से है ये घायल, उम्‍मीद पे जिंदा है
आस भरी अरदास को तू ऐसे ना ठुकरा
मत जा रे मत जा।।


इसी फिल्‍म के गाने ‘MOVE ON” को मैं हिंदी सिनेमा का एक क्रांतिकारी गीत मानता हूं। ये नये ज़माने की आज़ाद महिला का विद्रोही गीत है। ऐसा गाना कभी पहले हिंदी सिनेमा में नहीं आया। पति से अलग होने के बाद एक स्‍त्री इस गाने के ज़रिए अपनी बात कह रही है। पढिए। सुनिधि का गाया 'मूव ऑन' इन दिनों खूब लोकप्रिय हो रहा है।
रे पिया रे घिस गये सारे दर्द भरे नग़मे
अब रैप-वैप सा, रॉक-वॉक सा बजता रग-रग में
मियां मूव ऑन, मूव ऑन, मूव ऑन।।
ओ पिया

मूव ऑन, मूव ऑन, मूव ऑन।।
फिर से क्‍यों कोई बेगाना ढूंढें
फिर से क्‍यों एक अफ़साना ढूंढें
दिल दरबदर खुश रहता है
फिर कोई क्‍यों ठिकाना ढूंढें
मियां मूव ऑन, मूव ऑन, मूव ऑन।।
नया जहां हम जब भी बसायेंगे
कोई ख़ुदा भी हम ढूंढ के लायेंगे
जो मिला नहीं कोई उस क़ाबिल
हम खुद ही खुदा फिर बन जायेंगे। 

मियां मूव ऑन, मूव ऑन, मूव ऑन।।
राज बिहार से हैं। लेकिन इस फिल्‍म में उन्‍होंने एक बेहतरीन हरियाणवी गीत लिखा है। इस गाने की कहानी राजशेखर ने अपनी फेसबुक वॉल पर इस तरह लिखी है--

जून 2014 की एक शाम Krsna ने कॉल किया- मुझे जल्दी से हरियाणवी में कुछ दे.
-कुछ क्या?
-सिचुएशन हिमांशु बता देगा पर मुझे अभी एक घंटे में 1st stanza दे दे..
-नहीं हो सकता है
-नहीं तो मुझे ख़ुद कुछ लिखना पड़ेगा
मैंने रूह काँप गयी.
बाबू मोशाय क्रस्ना को हरियाणवी में कुछ लिखना पड़े इस बात का ज़िम्मेदार/गुनहगार मुझे नहीं होना था.. कुछ घंटे तो नहीं पर देर रात मैंने मुखड़ा और पहला अंतरा भाई साब को भेज दिया.
इस गाने को लिखते हुए मेरे दिमाग में फिल्म के किसी किरदार की शक्ल नहीं आई, बस अपने तमाम जाट/हरियाणवी दोस्तों के चेहरे घूरते नज़र आये. 816 No DTC बस, अंधेरिया मोड़ से ब्रिजवासन का रास्ता, हॉस्टल की छत, घंटाघर पर परांठे वाले चौधरी जी, हॉस्टल वाले रामानंद जी, बलवान सिंह जी, पवार सर... और बहुत सारे दोस्त/सीनियर।

घणी बावरी 'नूरां सिस्‍टर्स' वाली ज्‍योति नूरां ने गाया है। और थिरकाने की पूरी कैफियत रखता है।  


जो ना करना था कर गी
मैं भी कित जाके मर गी
अच्छी ख़ासी जटणी चंगी
घणी बावरी हो गी
मैं घणी बावरी हो गी
मैं घणी बावरी बावरी बावरी बावरी बावरी हो गी रे।।

रोज़ सबेरे, नीम अँधेरे
घर से भागी, मैं भागी घर से थारे वास्ते
बिना बात के, बीच रात के
नींद से जागी, मैं जागी नींद से थारे वास्ते
दुनिया के बोले तू जाण दे
म्हारे दिल की जान ले
मैं घणी बावरी हो गी
मैं घणी बावरी बावरी बावरी बावरी बावरी हो गी रे।।
तू कैसे चुप चुप रहवे है
ना खाना/कहना ना ही कहवे है
चल कोई ना इब तू रहण दे
सबसे सुन लूंगी इन्‍ने कैण दे

मैं घणी बावरी बावरी बावरी बावरी बावरी हो गी रे।।
यहां-वहां से, सारे जहां से



लौट के आ गी, मैं आ गी लौट के थारे प्‍यार में। 
पहले जग से, इब तो रब से
बन गई बागी, मैं बागी बन गये
थरे प्‍यार में।
मेरे जाणे पे तू रोवे कहीं ऐसा ना होवे

मैं घणी बावरी बावरी बावरी बावरी बावरी हो गी रे।।
मज़ेदार बात ये है कि फिल्‍म के गीतों में राजशेखर का कमाल यहीं ख़त्‍म नहीं होता। इस गाने में तो उन्‍होंने बाक़ायदा छक्‍का मारा है। दांपत्‍य का इतना सुदर गीत कम ही मिला है हमें।
पर एक शिकायत है। और वो कि इस गाने की धुन बड़ी कठिन है। इसे गुनगुनाने जैसी मोहलत शायद ना मिल सके इस कठिन धुन की वजह से। सोनू निगम ने इसे पूरी तरह मगन होकर निभाया है।
ओ साथी मेरे
हाथों में तेरे
हाथों की गिरह दी ऐसे
कि टूटे ये कभी ना।।
चलों ना कहीं सपनों के गांव रे
छूटे ना फिर भी धरती से पांव रे
आग और पानी से फिर लिख दे वादे सारे
साथ ही में रोएं-हंसें, संग धूप-छांव रे।। 
ओ साथी मेरे।। 
हम जो बिखरे कभी, तुमसे हम उधड़े कहीं
बुन लेना फिर से हर धागा
हम तो अधूरे यहां
तुम भी मगर पूरे कहां
कर लें अधूरेपन को हम आधा
जो भी हमारा हो, मीठा हो या खारा हो
आओ ना कर लें हम सब साझा
ओ साथी मेरे।। 
गहरे अंधेरे या उजले सवेरे हों
ये सारे तो हैं तुमसे ही
आंखों में तेरी-मेरी, उतरे इक साथ ही
दिन हो पतझर के, रातें या फूलों की
कितना भी हम रूठें पर बात करें साथी
मौसम मौसम यूं ही साथ चलें हम
लंबी इन राहों में
या फूंक के पांव से रखेंगे पांव पे तेरे मरहम
आओ मिलें हम इस तरह, आए ना कभी विरह
हम से मैं ना हो रिहा।
हमदम तुम हो, हर दम तुम ही हो
अब है यही दुआ
साथी रे उम्र के सलवट भी साथ हेंगे हम
गोद में लेके सर से चांदी चुएंगे हम
मरें ना मेरे साथी पर साथ जियेंगे हम
ओ साथी मेरे।।

और अब फिल्‍म के एक अनूठे गीत की बात करें। ये अंग्रेज़ी गीत है जिसके दो संस्‍करण हैं। एक हरियावणी शैली वाली अंग्रेज़ी वाला। और बाक़ायदा वेस्‍टर्न। हरियावणी शैली वाला संस्‍करण कल्‍पना ने गाया है। और वेस्‍टर्न अनमोल मलिक ने। राज शेखर ने सचमुच सुंदर लिखा है ये गीत। इबारत ये रही।
I might be sentimental
But don’t get so judgmental
So what if I’m an old school girl
I am an old school girl (2)
(repeat)

Darling though we’re from different timezones
I still can call you
Anytime on your telephone
Oh but I really love
For your hand written letters,
You make smile and say oh baby
Those days are gone

I like the smell of your palm and your ink
Well letters from you just makes me love your everything
All the sweet nothing don’t write between your lines
My heart can hear that every single time

I might be sentimental
But don’t get so judgmental
So what if I’m an old school girl
I am an old school girl (2)

I’ll fight with the world
if it comes to that be your big gal
To prove them right
But every time you say goodbye
I swear to god
I cry I cry I cry I cry (2)
When you say goodbye
I swear to god I cry

I might be sentimental
But don’t get so judgmental
Yeah I’m just an old school
Old school old school girl


I might be sentimental
But don’t get so judgmental
So what if I’m an old school girl
Old school girl
I’m an old.. old school girl..

Aaa.. aa..



ये सारे गाने यू-ट्यूब पर यहां सुने जा सकते हैं।



अगर आप चाहते  हैं कि 'रेडियोवाणी' की पोस्ट्स आपको नियमित रूप से अपने इनबॉक्स में मिलें, तो दाहिनी तरफ 'रेडियोवाणी की नियमित खुराक' वाले बॉक्स में अपना ईमेल एड्रेस भरें और इनबॉक्स में जाकर वेरीफाई करें।




0 comments:

Post a Comment

if you want to comment in hindi here is the link for google indic transliteration
http://www.google.com/transliterate/indic/

Blog Widget by LinkWithin
.

  © Blogger templates Psi by Ourblogtemplates.com 2008 यूनुस ख़ान द्वारा संशोधित और परिवर्तित

Back to TOP