संगीत का कोई मज़हब, कोई ज़बान नहीं होती। 'रेडियोवाणी' ब्लॉग है लोकप्रियता से इतर कुछ अनमोल, बेमिसाल रचनाओं पर बातें करने का। बीते नौ बरस से जारी है 'रेडियोवाणी' का सफर।

Saturday, October 13, 2012

'क्‍यों ना हम तुम चलें टेढ़े-मेढे रस्‍तों पे नंगे पांव रे' : फिल्‍म 'बर्फी'



पिछले कई दिनों से विचार चल रहा था कि रेडियोवाणी पर कुछ बेमिसाल गानों के केवल बोल भी प्रस्‍तुत किये जायें। हालिया रिलीज़ 'बर्फी़' के इस गाने से ये सिलसिला शुरू किया जा रहा है।

'बर्फी' का ये गीत नीलेश मिसरा ने लिखा है। (एक निजी चैनल पर अपने रेडियो प्रोग्राम में वो ख़ुद को 'मिश्रा' नहीं 'मिसरा' पुकारते हैं)। नीलेश ने इधर के दिनों में कुछ नाज़ुक गाने दिये हैं। उन्‍हें सलाम करते हुए ये बोल। हैरत की जा सकती है कि झमाझम संगीत के लिए मशहूर प्रीतम ने इसे सुंदर तरीक़े से धुन में पिरोया है। आवाज़ papon और सुनिधि की।




         Priyanka-Chopra-Ranbir-Kapoor-Barfi-Movie-Stills


song: kyu na hum tum 
film: barfi (2012)
singers: papon, sunidhi chouhan 
lyrics: neelesh misra
music: pritam



क्यों ना हम-तुम चलें टेढ़े-मेढ़े से रास्तों पे नंगे पाँव रे
चल भटक ले ना बावरे
क्यूं ना हम तुम फिरें जाके अलमस्त पहचानी राहों के परे
चल भटक ले ना बावरे
इन टिमटिमाती निगाहों में, इन चमचमाती अदाओं में
लुके हुए,छुपे हुए, हैं क्या ख़याल बावरे





क्यों ना हम-तुम
चले ज़िन्दगी के नशे में ही धुत सिरफिरे
चल भटक ले ना बावरे
क्यों ना हम तुम
तलाशें बगीचों में फुरसत भरी छांव रे
चल भटक ले ना बावरे 
इन गुनगुनाती फिजाओं में, इन सरसराती हवाओं में
टुकुर-टुकुर यूँ देखे क्या, क्या तेरा हाल बावरे


ना लफ्ज़ खर्च करना तुम
ना लफ्ज़ खर्च हम करें...गे
नज़र के कंकडों से, खामोशियों की खिड़कियाँ यूँ तोड़ेंगे
मिला के मस्त बात फिर करेंगे
ना हर्फ़ खर्च करना तुम
ना हर्फ़ खर्च हम करेंगे
नज़र की स्याही से लिखेंगे
तुझे हज़ार चिट्ठियाँ, ख़ामोशी झिड़कियां, तेरे पते पे भेज देंगे

सुन खनखनाती है ज़िन्दगी
ले हमें बुलाती है ज़िन्दगी
जो करना है वो आज कर, ना इसको टाल बावरे।

क्यों ना हम तुम
चले टेढ़े-मेढ़े से रास्तों पे नंगे पाँव रे
चल भटक ले ना बावरे

क्यों ना हम तुम
फिरे जा के अलमस्त पहचानी राहों के परे
चल भटक ले ना बावरे
इन टिमटिमाती निगाहों में
इन चमचमाती अदाओं में
लुके हुए,छुपे हुए
है क्या ख़याल बावरे




तो आपने इस गाने की पुकार सुनी। है क्‍या ख्‍याल बावरे?


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12 comments:

अफ़लातून October 13, 2012 at 2:12 PM  

वाह ! पहली बार बोल पढ़कर अब सुनने जा रहा हूं। सुबह से सत्संगत है -दादामुनि और किशोर कुमार को याद करते हुए।यादगार रहेंगे यह कार्यक्रम। जब विविध भारती में अकाल पड़ जाएगा तब इनकी रिकॉर्डिंग काम आएगी।

Manish Kumar October 13, 2012 at 4:04 PM  

गीत के बोलों से ही सही आपके ब्लॉग की चुप्पी तो टूटी। पर थोड़ा और वक़्त निकालें अपनी इस अंजुमन के लिए।

प्रवीण पाण्डेय October 13, 2012 at 6:11 PM  

सच में बेहतरीन बोल हैं, फ़िल्म देखते समय ध्यान गाने के बोलों पर ही रहता है, उस समय भी बहुत भाये थे ।

निर्मला कपिला October 14, 2012 at 10:04 AM  

maine to gana hi phali bar suna hai dhanyavad|

Anup sethi October 15, 2012 at 11:01 AM  

यह भी बताइए कि चलन के मुताबिक धुन पर बोल लिखे गए हैं या गीत पर धुन बनी है

Yunus Khan October 15, 2012 at 11:38 AM  

प्रीतम की रवायत के मुताबिक़ गाना सौ फीसदी धुन पर होना चाहिए। पर हम नीलेश को जल्‍दी ही इंटरव्यू कर रहे हैं, सो खुलासे का इंतज़ार कीजिए।

Anup sethi October 15, 2012 at 12:29 PM  

यह बहुत अच्‍छा है. बल्कि इस तरह के लेखन की पूरी प्रक्रिया पर ही बातचीत होनी चाहिए. गीतकार तो शब्‍द बिठा देता है पर क्‍या संगीतकार भी ऐसा कर सकता है, खासकर इस तरह का कवितानुमा गीत हो तो ?

Anonymous,  December 17, 2012 at 5:08 AM  

Thank you Yunus bhai .That,s I can say
madhu

Ajai January 24, 2014 at 12:20 AM  

I have listened this song in a reality show,a girl was singing this song with Popon. I was very impressed with the wording and lost to remember the name of film. Thanks a lot for this song in your post.

Ajai January 24, 2014 at 12:21 AM  

I have listened this song in a reality show,a girl was singing this song with Popon. I was very impressed with the wording and lost to remember the name of film. Thanks a lot for this song in your post.

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