संगीत का कोई मज़हब, कोई ज़बान नहीं होती। 'रेडियोवाणी' ब्लॉग है लोकप्रियता से इतर कुछ अनमोल, बेमिसाल रचनाओं पर बातें करने का। बीते नौ बरस से जारी है 'रेडियोवाणी' का सफर।

Thursday, March 11, 2010

सलिल दा की याद, सबिता चौधरी की आवाज़, चांद कभी था राहों में




सबिता जी की याद आ गयी । उन्‍हें सबिता बैनर्जी कहा जाए या सबिता चौधरी । या फिर ये कहा जाए कि वो जाने-माने और हमारे प्रिय संगीतकार सलिल चौधरी की पत्‍नी हैं । लेकिन इस सबसे ऊपर उनकी एक और पहचान है । सबिता बैनर्जी एक बहुत मीठी आवाज़ हैं । लेकिन कई लोगों के लिए कही गई एक बात जो अपना अर्थ खो चुकी लगती है--पर वही बात मैं सबिता बैनर्जी के लिए भी कहना चाहता हूं कि उन्‍हें सचमुच उनका हक़ नहीं मिला । 

सबिता जी के कुछ गाने वाक़ई अनमोल हैं । सबिता जी ने बांग्‍ला में तो ख़ैर बहुत गाया ही लेकिन हिंदी में भी उनके कुछ अच्‍छे गाने हैं । आज रेडियोवाणी पर आपको जो गाना सुनवाया जा रहा है उसके अलावा कुछ गानों का जिक्र करने का मन कर रहा है ।



फिल्‍म 'हनीमून' 1960 । गाना--'तुम जो मिले हो तो खिला है गुलाब मेरे दिल का'
फिल्‍म 'हनीमून' 1960 । गाना-'छुओ ना छुओ ना मेरे अलबेले मेरे सैंयां'
फिल्‍म 'अन्‍नदाता' 1972 । गाना--'चंपावती तू आ जा'
फिल्‍म 'उसने कहा था' सन 1960 । गाना 'जाने वाले सिपाही से पूछो'
सबिता जी और मन्‍ना डे का गाया ग़ैर-फिल्‍मी गीत--'ओ आलोर पोथेजात्री' जिसका हिंदी संस्‍करण दूरदर्शन पर 'चलो भोर के राही ओ हमराही' के नाम से आया करता था ।


इनके अलावा गुलजा़र पर केंद्रित वेबसाइट के इस पन्‍ने पर सबिता जी के दो ग़ैर-फिल्‍मी गानों का जिक्र है । ये गाने मैंने तो कहीं नहीं सुने । अगर आपके पास इनका अता पता हो तो ज़रा टॉर्च दिखाईये

सबिता जी के बांगला गाने यहां सुने जा सकते हैं ।

अहमदाबाद में एक कार्यक्रम के सिलसिले में सबिता चौधरी और उनकी बेटी अंतरा चौधरी ( फिल्‍मsabita (1) मीनू का गीत याद कीजिए--'तेरी गलियों में हम आए' या फिर 'काली रे काली रे' ) के साथ एक पूरा दिन बिताने का मौक़ा मिला था । दिलचस्‍प ये था कि होटेल के कमरे में लगभग सारे दिन हम बस सलिल दा को याद करते रहे । सबिता जी से सलिल दा के किस्‍से सुनते रहे । वो बताती रहीं कि किस तरह सलिल दा किसी धुन की तलाश में परेशान होते तो थैली लेकर बाज़ार जाते, मछली लाते और 'माछेर झोल' बनाते । रसोई के बर्तनों में से संगीत निकलता....रसोई की हालत ख़राब भी होती...वग़ैरह । या फिर वो पियानो बजाने लगते । यूं लग रहा था मानो सलिल दा ख़ुद हमारे बीच मौजूद हैं । उसी शाम सलिल दा की यादों को समर्पित फिल्‍मी-गीतों का कार्यक्रम भी था..और आयोजक इस बात से परेशान थे कि उसकी कोई बात ही नहीं हो रही है...बस गप्‍पें हो रही हैं । उनकी चिंताओं का सम्‍मान करते हुए कार्यक्रम का स्‍वरूप ये तय किया गया कि मैं सबिता जी से वैसे ही बातें करूंगा जैसे अभी यहां कर रहा हूं । और इस दौरान हम हर विषय को एक गाने तक ले आयेंगे....गानों की फेहरिस्‍त तो तैयार थी ही । फिर सबिता, अंतरा और उनकी टोली अपने लाइव ऑर्केस्‍ट्रा के साथ ये गाने पेश करेगी ।

इस आयोजन में कई गानों का आधा हिस्‍सा बांग्‍ला में और आधा हिंदी में पेश किया गया । क्‍योंकि सलिल दा के कई गानों के बांग्‍ला संस्‍करण भी हैं और उतने ही प्रसिद्ध भी हैं । यहां सबिता जी और अंतरा ने मिलकर 'धित्‍तांग धित्‍तांग बोले' भी गाया । आपको याद होगा कि फिल्‍म 'आवाज़' में ये गाना लता मंगेशकर ने गाया है । जबकि बांगला में ये गीत हेमंत दा की आवाज़ में है । आगे चलकर रेडियोवाणी पर दोनों ही संस्‍करण आपको सुनवाए जायेंगे ।

लेकिन आज रेडियोवाणी पर हम आपको सुनवा रहे हैं वो गाना जो बड़ा ही अनमोल है । फिल्‍म है 1961 में आई 'सपन-सुहाने' । जिसमें बलराज साहनी और गीता बाली थे । इस फिल्‍म का एक विवाह-गीत बड़ा ही प्‍यारा है---'घूंघट हटा ना देना गोरिये चंदा शरम से डूबेगा' । बहरहाल...सबिता जी का जो गाना आज रेडियोवाणी पर है उसका इंट्रो ही आपको बांध लेगा । सलिल दा के गानों की संरचना जहां बेहद जटिल होती है वहीं उनमें एक अजीब तरह की सादगी भी है । इस गाने में बांसुरी की हल्‍की-सी तान, ग्रुप वायलिन, सबिता जी की आवाज़ का दुख, गिटार सब कुछ आपको कहीं बहा ले जायेंगे ।  

song: chand kabhi tha raahon me
film: sapan suhane
singer: sabita choudhury
lyrics:shailendra
music:salil choudhury





एक और प्‍लेयर ताकि सनद रहे ।





चांद कभी था बांहों में फूल बिछे थे राहों में
अब तो वो सपने गए बिखर, डूब गए हम आहों में
दूर दूर दूर जहां, उठ रहा है अब धुंआ
मेरा वहीं पर था आशियां
तारों की झिलमिल छांव में


चांद कभी था.....
हाय मेरी बेकसी बेज़ुबां है जिंदगी
मैं उनकी नज़रों से ऐसी गिरी
ना अपने घर हूं ना राहों में
चांद कभी था....


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12 comments:

Feeroj khan DEO, NREGA ZP DAMOH March 11, 2010 at 12:31 PM  

janab apke sabhi lekh padta hoon, dainik bhasker mai bhi apke lekh pade hai

डॉ .अनुराग March 11, 2010 at 12:41 PM  

गुलज़ार वाला पन्ना नहीं खुल रहा है युनुस भाई....ऐसा जुल्म नहीं करो

Yunus Khan March 11, 2010 at 12:49 PM  

अनुराग जी यहां तो खुल रहा है । फिर भी ये रही उसकी लिंक http://www.gulzar.info/nonfilmsongs.html

ताऊ रामपुरिया March 11, 2010 at 2:05 PM  

वाह वाह युनुस भाई, मुद्दतों बाद सुनाई दिया ये गीत आज आपकी बदोलत. बहुत धन्यवाद.

आप यहां आने वाले थे ? क्या हुआ? कब का प्रोग्राम बना?

रामराम.

Abhishek Ojha March 11, 2010 at 5:02 PM  

आपका और मनीषजी गा ब्लॉग नहीं होता तो कितने ही गीत ना सुने होते. अभी भी बहुत अनमोल गीत सुने जाने बाकी हैं... लाते रहिये.

ghughutibasuti March 11, 2010 at 6:14 PM  

सुनकर आनन्द आया।
घुघूती बासूती

दिलीप कवठेकर March 11, 2010 at 11:09 PM  

अहमदाबाद के कार्यक्रम के बारे में कहीं से सुना था कि वैसे प्रोग्राम कम ही हुए हैं.यह पता नहीं था कि आप भी उसके सफ़लता के एक कारण हैं. काश मैं होता वहां.

ये गीत ऐसा लगता है कि आशाजी नें गाया है. लगता है कि सविताजी की आवाज़ का टिंबर आशा जी जैसी मीठी और नमकीन खनक लिये हुए है.

जाने वाले सिपाही गाने का भी जवाब नहीं.और आपका तो जवाब आपका ये ब्लोग है!!

Mayur Malhar March 12, 2010 at 12:28 AM  

युनुसजी धन्यवाद्
इतने शानदार गीत के लिए. सविताजी के बारे में पहले कभी नहीं सुना था. ये गाना वाकई दिल को छूने वाला है.

एक गुस्ताखी
मुझे याद है एक बार अपने रफ़ी साहब और तलत जी का कवर वर्सन सुनाया था. क्या ऐसे कवर वर्सन और सुनने मिलेंगे.

वाणी गीत March 12, 2010 at 7:39 AM  

चाँद कभी था राहों में ...
अरसे बाद सुना ये गीत ...विविध भारती के पुराने ज़माने याद आ गए ...

पारुल "पुखराज" March 12, 2010 at 12:26 PM  

बहुत मीठा गीत है -चांद कभी था बांहों में

Unknown March 13, 2010 at 2:17 AM  

Sabitaji has a unique voice. Salil Chowdhury's music as usual brings out a lot of just perfect harmonious energy.Makes us feel good.
Wanted to tell you Yunus that only recently I was listening to Lataji's version of Dhitang Dhitang Bole.Reminded me of childhood when a teacher choreographed the Bengali version for us for a school dance performance.
Nice post. Thanks.

रोमेंद्र सागर March 13, 2010 at 6:03 PM  

शुक्रिया युनुस भाई .....बहुत अच्छी लगी प्रस्तुति !

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