'लो अपना जहां दुनिया वालो' आसासिंह मस्ताना की विकल याद
आज पंजाबी-संगीत की जो 'गति' है उसे क्या कहा जाएगा ये आप स्वयं तय कर सकते हैं । पर ये वही पंजाबी संगीत है जिसका एक गौरवशाली इतिहास रहा है । कई महान गायकों की फेहरिस्त है, जिनकी शीरीं-पंजाबी सुनकर 'बल्ले-बल्ले' हो जाती है ।
आईये 'मकर-संक्रांति' के बाद के इन दिनों में आसासिंह मस्ताना को विकल-मन से याद
करें । आसासिंह मस्ताना और सुरिंदर कौर के पंजाबी लोक-गीतों से तो हम सभी वाकिफ़
हैं । पर उन्होंने फिल्मों में भी गाया ।
रोशन के संगीत-निर्देशन में उन्होंने फिल्म 'दूज का चांद' में गाया था । भारत-भूषण, सरोजा देवी, अशोक कुमार और आग़ा वग़ैरह इस फिल्म के सितारे थे । ये वही फिल्म है जिसमें मन्नाडे ने 'फूलगेंदवा ना मारो' जैसा शानदार गाना गाया है, जिसमें आग़ा झाडियों के सामने बैठे हैं और पीछे ग्रामोफोन बज रहा है । हीरोइन समझ रही है कि आग़ा उसके लिए गा रहे
हैं । जब सांप आता है तब आग़ा की पोल खुलती
है । 'दूज का चांद' अपने शानदार गानों के लिए भी याद की जाती है । गीतकार साहिर संगीतकार रोशन । इस फिल्म का ये पोस्टर प्रफुल्ल के पिकासा-वेब पर मौजूद इस ख़ज़ाने से साभार है ।
'दूज का चांद' के इस गाने में आसासिंह मस्ताना की आवाज़ का 'सोग़' ख़ूब उभरकर सामने आता है । गाना ही ऐसा है कि आपको भीतर तक भिगो दे ।
song: Lo apna jahaan duniya walo
film: Dooj ka chand
singer: Asa singh Mastana
lyrics: Sahir
music: Roshan
Duration: 3 24
ये हैं इस गाने के बोल--
लो अपना जहां दुनिया वालो
हम इस दुनिया को छोड़ चले
जो रिश्ते-नाते जोड़े थे
वो रिश्ते-नाते तोड़ चले
कुछ सुख के सपने देख चले
कुछ दुख के सदमे झेल चले
तक़दीर की अंधी गर्दिश ने
जो खेल खिलाए खेल चले
ये राह अकेले कटती है
यहां साथ ना कोई यार चले
उस पर ना जाने क्या पाएं
इस पार तो सब कुछ हार चले
-----
अगर आप चाहते हैं कि 'रेडियोवाणी' की पोस्ट्स आपको नियमित रूप से अपने इनबॉक्स में मिलें, तो दाहिनी तरफ 'रेडियोवाणी की नियमित खुराक' वाले बॉक्स में अपना ईमेल एड्रेस भरें और इनबॉक्स में जाकर वेरीफाई करें।
10 comments:
युनुस जी बहुत खूब...!
आप ने आसा सिंह मस्ताना जी के इस गीत को यहाँ दे कर उनके एक नए पहलू से सभी को अवगत करवाया...वह सचमुच एक सुनहरी युग था. क्या ही अच्छा हो अगर आप लाला चंद यमला जट और कुछ पंजाबी फिल्मों के गीत भी सुनवा सकें ..ख़ास तौर पर रफ़ी साहिब के गाए हुए...कोई ज़माना था जब आकाशवाणी जालंधर से चन्द्र किरण भरद्वाज जी इस तरह के गीतों को रोज़ सुनवाया करतीं थीं....उनके पिता भी रेडियो एक बहुत ही लोकप्रिय कलाकार होने के साथ साथ फिल्मों के क्षेत्र में भी अच्छा नाम कमा चुके हैं....मैंने उनसे काफी कुछ सीखा भी पर इसे हालात की गर्दिश ही कहा जा सकता है की एक लम्बे समाया से उनसे मुलाकात नहीं हो पाई...और उनके इस केंद्र से जानेके बाद उन गीतों की आवाज़ भी कभी सुनाई नहीं दी...
आपका अपना ही;
रैक्टर कथूरिया
http://www.punjab-screen.blogspot.com/ (पंजाबी)
http://www.punjabscreen.blogspot.com/ (हिंदी)
बहुत खूबसूरत आवाज। गाना सुनवाने के लिए आभार!
अद्भुत ! रस ले रहे हैं । टिप्पणी भी महत्वपूर्ण है रैक्टर कथूरियाजी की । शानदार पोस्ट । सप्रेम,
बहुत खूब....आसासिंह मस्ताना को आज की पीढ़ी शायद याद भी न करना चाहे....वजह...
मुझे तो आज भी दूरदर्शनी टीवी का दौर ही पसंद है। उस दौर ने क्या क्या नायाब चीज़ें रची थीं। सब कुछ स्तरीय....पता नहीं उस दौर में भी दूरदर्शन की सदाचारी, नैतिकतावादी धीमी रफ्तार को कोसनेवाले लोग आज के दौर के टीवी से कदमताल मिला पा रहे हैं या नहीं, मगर हमें तो तब भी वह पसंद था।
कभी भारत एक खोज में दिया वनराज भाटिया का म्यूजिक सुनवाइये। वसंत देव के किए वैदिक ऋचाओं के अनुवाद और भाटिया जी का संगीत।
-बैठी हैं पोखर में, भैंसे पगुराए....
आह, क्या समवेत गान होता था जो सदियों पार अतीत के आंगन में उतार देता था।
Shukriya is geet ko sunwane ke liye. Mainre ise pehli baar suna.
Are Wah ...Kya khoob yaad kiya Yunus bhai ..
"Dooj ka Chand " ka Tit;e song bhee sunva dijiye ...
Yaad hai hum log Matinee show dekhne gaye the ..
Bharat Bhooshan ji us zamane ke
bahut Bade STAR the ..jo Samay ki gardish mei , kho gaye.
How is " Dear JADOO " ji ? humm :)
बेहद ही सुकून भरी हीर है ये, और पता नहीं था कि फ़िल्म दूज का चांद की है.
आशा सिंग मस्ताना की आवाज़ में जो भीगापन है, खनक भरा, दिल को छू जाता है.
आपका धन्यवाद, जो आप देस परदेस, भाषा और संस्कृति के पार हमें ले जाते हो.
हीर और उस तर्ज के सभी गीत जी "कपा "देते हैं
Post a Comment
if you want to comment in hindi here is the link for google indic transliteration
http://www.google.com/transliterate/indic/