संगीत की तरंगित बातें और एक instrumental पहेली
एक बार विविध-भारती पर संगीतकार ख़ैयाम ने कहा था कि संगीत एक इबादत है जिसे लोग भूलते जा रहे हैं ।
अब आप बताईये कि सही कहा था या ग़लत । आज की इस पोस्ट का ख़ैयाम साहब की इस बात से कोई ख़ास लेना-देना नहीं है । आज तो हम अपने मन की 'तरंग' में हैं । लेकिन चूंकि 'तरंग' पर हम संगीत नहीं चढ़ाते इसलिए अपने मन की ये तरंग यहां ठेले दे रहे हैं । जीवन में इत्ता सारा संगीत सुन लो कि दिमाग़ में बस 'सारेगामा' ठुंसा पड़ा रहे, तो यही होता है । फिल्मी-संगीत सुनो, इल्मी सुनो, पॉप सुनो, रॉक सुनो, रैप सुनो, फिर चलो 'लेटिन अमरीका' और ज़रा वहां की तरंगों में झूम लो । फिर बुंदेलखंड में 'खुरई' पहुंच जाओ और सुनो 'मेरी बऊ हिरानी है ऐ भैया मुझे बता दैयो' । इत्ते में जी ना भरे तो 'दमोह' पहुंच जाओ और सुनो 'बैरन हो गयी जुन्हैया मैं कैसी करूं' । बुंदेलखंड से जी ऊब गओ हो तो चलो उत्तरप्रदेश पहुंच जाएं और गाएं--'पहिने कुरता पर पतलून आधा फागुन आधा जून' । कमी तो है नहीं लोक-संगीत की । राजस्थान चलें और गाएं 'डिग्गीपुरी के राजा' । अब चलें हरियाणा और सुनें--'तू एक राजा की राजदुलारी मैं सिर्फ लंगोटे वाला सूं । फिर महाराष्ट्र राज्य में आ जाओ और सुनो--'मी डोलकर दरयाचा राजा' । पंजाब पहुंच जाओ-'बारी बरसी खटन गयासी' पर 'बल्ले-बल्ले' कर लो ।
संगीत की दुनिया कितनी विस्तृत है । और ज़ेहन में संगीत की छाप कब-कैसे किस रूप में पड़ती है क्या हमें पता चलता है । आप गाड़ी चला रहे हैं...एफ.एम.चैनल आपको कानों में कोलाहल ठूंसे दे रहे हैं और आप अपनी ही तरंग में हैं । ज़ेहन में 'जुल्मी संग आंख लड़ी' का रिदम गूंज रहा है, कोरस गूंज रहा है---'अहा हा अहा हा हा हा'......'आ आ हा हा' । ऑफिस में कोई ‘financial consultant’ वित्तीय-ज्ञान दे रहा है पावरपॉइंट के स्लाइड शो पर । और आपक ज़ेहन में किशोर देसाई का बजाया गिटार गूंज रहा है---'ओ मेरे दिल के चैन' का सिग्नेचर म्यूजिक । 'टिडिंग टिन टिन टि डी डी' । आप रात के सन्नाटे में खिड़की पर खड़े कभी ना ख़ामोश होने वाले, कभी ना ठहरने वाले इस शहर की हलचल देख रहे हैं और ज़ेहन में गूंज रहा है 'जा रे उड़ जा रे पंछी' में बजा सेक्सॉफोन और उसके सिग्नेचर म्यूजिक में बजी मेटल फ्लूट (दोनों ही मनोहारी दादा का प्रताप हैं ) जो गिटार और ग्रुप वायलिन की लहरों पर सवार होकर आगे बढ़ती है और फिर गिटार अपनी खास धुन में थिरकता है, इसके बाद बेटन लता जी के हाथ में होता है और वो गाती हैं......'जा रे......' । आप सड़क पर पैदल जा रहे हैं...दूर कहीं से रेडियो की फीकी आवाज़ आ रही है और आपके ज़ेहन में वो रिदम गूंज उठता है जो नौशाद की एक ज़माने की सारी फिल्मों में है और जिसके लिए गुलाम मोहम्मद जिम्मेदार रहे हैं । आप किसी 'चटियल' व्यक्ति की 'बोरिंग' बातें सुन ( ने का नाटक कर ) रहे हैं और ज़ेहन में मिलन गुप्ता के माउथ-ऑर्गन पर बजाए गानों की धुनें गूंज रही हैं ।
कब कहां कैसे कौन सा भूला बिसरा गाना याद आ जाए । कब कहां कैसे कौन से वाद्य की तान आपको परेशान कर दे...क्या इसका पहले से अंदाज़ा लगाया जा सकता है । वाद्यों की तानें तो अकसर ही परेशान करती हैं । और अफ़सोस ये है कि फिल्म-संसार के इन अदभुत और कलाबाज़ म्यूज़ीशियनों के बारे में लिखित इतिहास 'ना' के बराबर है । सिर्फ कहानियां हैं, जो हवाओं में तैर रही हैं । और धीरे धीरे इन कहानियों को 'तैराने' वाली 'हवाएं' भी कम होती जा रही हैं । तो सवाल ये है कि क्या आने वाले वक्त में कोई किसी से पूछेगा नहीं कि भैया 'अंधे जहां के अंधे रास्ते' के सिग्नेचर म्यूजिक में कौन सा वाद्य है, इसे किसने बजाया
है । या फिर 'जिंदगी कैसी है पहेली' में जो 'सेक्सॉफोन' है, 'इक दिन बिक जायेगा' में जो 'एकॉर्डियन' है, 'मन डोले मेरा तन डोले में' में जो 'क्ले-वायलिन' है वो सब किसने-किसने किसने बजाईं । बताईये बताईये बताईये । शायद सवाल तो पूछे जायेंगे...पर बताने वाले , कहानियां सुनाने वाले ओरीजनल लोग.....वो रहेंगे क्या ???
हमारे 'डाक-साब' ने कुछ ऐसा भेजा कि ज़ेहन में ये सारी बातें आ गयीं । और हमने उन्हें यहां उड़ेल दिया । अब ज़रा वो सुनिए जो 'डाकसाब' ने भेजा है ।
उन्होंने हमसे पूछा है कि इस गाने के अंश में कौन-कौन से वाद्य आते हैं । क्रम से बताईये । जो वाद्य दोबारा बजा है उसे बताने की ज़रूरत नहीं है । भई हमने तो अपना जवाब हाजिर कर दिया है । आप बताएं आपका जवाब क्या है । गाने को पहचान लेंगे तो कोई दंड नहीं दिया जायेगा ।
बॉटम-लाइन
बचपन से ही हमें ये ख़ब्त लग गयी थी कि गानों के साथ साथ उसमें बजे वाद्यों को जाना-पहचाना जाए और उन्हें ढंग से सुना जाए । इस ख़ब्त ने हमें उन कलाकारों तक पहुंचवाया जिन्होंने इन वाद्यों को बजाया था । हमारी जानकारियां अभी-भी सीमित हैं । क्योंकि सूरत के हमारे सुधि-श्रोता और पाठक पियूष मेहता तो इंस्ट्रूमेन्टल म्यूजिक और उसके इतिहास के चलते-फिरते एन्साइक्लोपीडिया ही हैं । इस पोस्ट की सूचना उन्हें अलग से भेजी जा रही है । क्यों..सुनिए । पियूष भाई अहिन्दी-भाषी हैं, बाजवूद इसके जिस कोशिश और जुनून के साथ वो हिंदी में पूरी जानकारियों के साथ लंबी टिप्पणियां लिखते हैं वो किसी पोस्ट से कम नहीं होती । ( भगवान करे सब पियूष भाई जैसे जुनूनी बनें ) अब हम अपना टेबल बजाते हुए पियूष भाई की टिप्पणी का इंतज़ार कर रहे हैं । 'आ हा आ हा हा........आ हा । हा हा हा ।'
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संगीत की दुनिया कितनी विस्तृत है । और ज़ेहन में संगीत की छाप कब-कैसे किस रूप में पड़ती है क्या हमें पता चलता है । आप गाड़ी चला रहे हैं...एफ.एम.चैनल आपको कानों में कोलाहल ठूंसे दे रहे हैं और आप अपनी ही तरंग में हैं । ज़ेहन में 'जुल्मी संग आंख लड़ी' का रिदम गूंज रहा है, कोरस गूंज रहा है---'अहा हा अहा हा हा हा'......'आ आ हा हा' । ऑफिस में कोई ‘financial consultant’ वित्तीय-ज्ञान दे रहा है पावरपॉइंट के स्लाइड शो पर । और आपक ज़ेहन में किशोर देसाई का बजाया गिटार गूंज रहा है---'ओ मेरे दिल के चैन' का सिग्नेचर म्यूजिक । 'टिडिंग टिन टिन टि डी डी' । आप रात के सन्नाटे में खिड़की पर खड़े कभी ना ख़ामोश होने वाले, कभी ना ठहरने वाले इस शहर की हलचल देख रहे हैं और ज़ेहन में गूंज रहा है 'जा रे उड़ जा रे पंछी' में बजा सेक्सॉफोन और उसके सिग्नेचर म्यूजिक में बजी मेटल फ्लूट (दोनों ही मनोहारी दादा का प्रताप हैं ) जो गिटार और ग्रुप वायलिन की लहरों पर सवार होकर आगे बढ़ती है और फिर गिटार अपनी खास धुन में थिरकता है, इसके बाद बेटन लता जी के हाथ में होता है और वो गाती हैं......'जा रे......' । आप सड़क पर पैदल जा रहे हैं...दूर कहीं से रेडियो की फीकी आवाज़ आ रही है और आपके ज़ेहन में वो रिदम गूंज उठता है जो नौशाद की एक ज़माने की सारी फिल्मों में है और जिसके लिए गुलाम मोहम्मद जिम्मेदार रहे हैं । आप किसी 'चटियल' व्यक्ति की 'बोरिंग' बातें सुन ( ने का नाटक कर ) रहे हैं और ज़ेहन में मिलन गुप्ता के माउथ-ऑर्गन पर बजाए गानों की धुनें गूंज रही हैं ।
कब कहां कैसे कौन सा भूला बिसरा गाना याद आ जाए । कब कहां कैसे कौन से वाद्य की तान आपको परेशान कर दे...क्या इसका पहले से अंदाज़ा लगाया जा सकता है । वाद्यों की तानें तो अकसर ही परेशान करती हैं । और अफ़सोस ये है कि फिल्म-संसार के इन अदभुत और कलाबाज़ म्यूज़ीशियनों के बारे में लिखित इतिहास 'ना' के बराबर है । सिर्फ कहानियां हैं, जो हवाओं में तैर रही हैं । और धीरे धीरे इन कहानियों को 'तैराने' वाली 'हवाएं' भी कम होती जा रही हैं । तो सवाल ये है कि क्या आने वाले वक्त में कोई किसी से पूछेगा नहीं कि भैया 'अंधे जहां के अंधे रास्ते' के सिग्नेचर म्यूजिक में कौन सा वाद्य है, इसे किसने बजाया
है । या फिर 'जिंदगी कैसी है पहेली' में जो 'सेक्सॉफोन' है, 'इक दिन बिक जायेगा' में जो 'एकॉर्डियन' है, 'मन डोले मेरा तन डोले में' में जो 'क्ले-वायलिन' है वो सब किसने-किसने किसने बजाईं । बताईये बताईये बताईये । शायद सवाल तो पूछे जायेंगे...पर बताने वाले , कहानियां सुनाने वाले ओरीजनल लोग.....वो रहेंगे क्या ???
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बॉटम-लाइन
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17 comments:
Udhar Woh Chaal Chalte Hain
Ek Musafir Ek Hasina
Asha Bhosle
1. Hawaiian Guitar
2. Drums
3. Keyboard
4. Acoustic Guitar
My talent is exhausted now :-)
हम तो पीयूष जी की टिप्पणी देखने चले आये - पर लगता है बहुत जल्दी चले ये।
1. इलेक्ट्रीक स्पेनिश ग़िटार
2. सॆक़्सोफ़ोन
3. एकोर्डियन
4. गृप वायोलिन और पियानो
5. गानेमें वाद्य-संगीत के साथ जो ताल वाद्य सुनाई पड़ते है, वे बोंगो और कोंगो तथा जब मेलोडी होती है तब ढोलक (शायद नाळ) है । यह ओ पी नैयर साहब का संगीत है तो वे अपने सझिंदों की बड़ी इज़्जत करते थे । युनूसजीने तो मेरी तारीफ़ के बड़े पूल बांध दिये । मेरा शॉख़ एक झुनून जैसा है वह कुछ: हद तक शायद सही हो सकता है , पर यह इतना विशाल क्षेत्र है कि कभी कभी चकरा जाता हूँ । और सुरतमें ही मेरे एक दोस्त बेलडी श्री जोय क्रिश्च्यन और निकी क्रिश्च्यन मूज़से भी बहोत आगे है और मनोहरीदा के निज़ी परिचयमें है । यहाँ मूझसे शायद थोड़ी सी भी गलती होने की सम्भवना से इनकार नहीं है । युनूसजी कितने प्रतिशत मार्क्स देंगे ? एक या दो जगह के साझ शायद में पक़ड नहीं पाया हू । मैं सही से काफ़ी नज़दीक हो सकता हूँ, पर शत-प्रतिशत नहीं । हाँ अगर कोई फिल्मी धून रख़ी गयी होती तो मैं साझ और साजिंदे को पहचान लेता और शायद आल्बम भी बता पाता । फ़िर भी युनूसजीको धन्यवाद । आशा है युनूसजी जल्द ही निज़ी रूपसे ही सही मेरी गलती बतायेंगे । सार्वजनिक रूपसे चाहे कुछ: समय के बाद ही सही ।
पियुष महेता ।
नानपूरा, सुरत-395001.
सेक्सोफोन और कोंगों बोंगो के अलावा वायलिन- गिटार तो हैं ही। बाकी के तो नाम भी नहीं पता।
श्री युनूसजी,
आपने मेरे जीवन साथी के गानेमें शुरूआतमें ही श्री किशोर देसाई के ग़िटार वादन का जिक्र किया है । पर मूझे यह पता नहीं है , कि वे ग़िटार भी बजाते है । उनका नाम मेन्डोलिन के लिये मेरा जाना हुआ है । पर मैं यह नहीं भी नहीं कहता कि यह गलत है । जैसे जयंती गोसर 9 प्रकार के साझ बजाते है, उसी तरह किशोर देसाईके लिये भी हो सकती है । वैसे राहुल देव बर्मन के लिये भूपेन्द्रजी, हेमंत भोंसले, रमेश आय्यर , और जयंति गोसर के नाम ग़िटारमें जाने माने है , पर इस वैसे फिल्म संगीत के वाद्यवृंदोमें ऐसा कायमी जैसा हर हमेश का कोई नियम नहीं होता है । जिस वक्त जो कलाकार मिल सकते है , ज्नको बूलाया जाता है , क्यों कि यह पाश्चात्य नोटेसन पद्धती पर आधारित काम है ।
पियुष महेता ।
सुरत-395001.
गानेकी शुरुआत में पिआनो के arpegeos है।
बाद में कोंगो और एकोर्डियन सुनाई देते है ।
गिटारमें कमाल किया है, दो सप्तक (मंद्र एवं मध्य) के सुर लगाये है , इसलिए कभी वह मेंडोलिन और कभी हवाइन गिटार जैसा सुनाई देता है... मेरे ख़याल से वह एकोस्टिक या १२ स्ट्रिंग गिटार है.... ( आपकी राय की अपेक्षा है युनुसजी)।
बाद में सेक्सोफोन, एकोर्डियन और वायोलिन स्ट्रिंग्स के इन्टेर्लुट्स सुनाई पड़ते है...।
इस खूबसूरत गाने के लिए धन्यवाद युनुसजी....।
ओ दैय्या रे! जरा आसान-वासान पूछो तो हम भी ट्राइल मारने की सोचें.
अरे बड़ा मज़ा आ रहा है भई । :)
ज्ञान जी आप ज़रा जल्दी आ गये थे वाक़ई । :(
पियूष भाई आपसे जैसी उम्मीद थी वैसी ही बड़ी टिप्पणी की ।
केदार आपने आश्चर्य चकित किया ।
और हां पियूष भाई हाल ही में एक आयोजन में किशोर देसाई से देर तक गप्पें हुईं । वहां उनका परिचय मुझे ही देना था । इस मुलाकात में उनके कई छिपे हुए राज़ पता चले । ये उन्हीं की बताई बात है । और इसी से मैंने उनका परिचय शुरू किया था ।
ख़ुद हमारी ही भेजी पहेली, तो आख़िरकार हम भी क्यों न बोल लें ?
ख़ुद यूनुस "जी" तो ख़ैर वैसे भी ज़्यादा नहीं बता पाये थे। पीयूष मेहता जी का जवाब काफ़ी हद तक सही होना ही था (यह यूनुस ”जी” पहले ही सही-सही बता चुके थे ),हालाँकि उन्होंने वाद्यों का क्रम सही नहीं रखा,जैसा कि पहेली में कहा गया था।
इस बारीकी को एकदम सही पकड़ा है केदार जी ने । गाने की शुरुआत ही प्यानो से होती है ( आशा भोंसले के गाना शुरू करने से भी पहले,चाहें तो ध्यान से दोबारा सुन लें सब लोग),पर संगीत की भाषा में की-बोर्ड के उन स्ट्रोक्स को “arpeggios” की श्रेणी में रखा जाय या नहीं इस पर हम ज़रूर थोड़ा असमंजस में हैं।( अभी इस चर्चा को यहाँ आगे नहीं छेड़ना ही बेहतर है )।हमारा अपना ख़्याल है कि यह प्यानो केरसी लॉर्ड ने बजाया है । गिटार बजाने वाले के हुनर के तो हम भी कायल हैं । केदार जी का कहना बिलकुल सही है कि बड़ी आसानी से मेन्डोलिन का धोखा हो जाता है,पर वह एकोस्टिक गिटार हर्गिज़ नहीं हो सकता । जो भी हो यह आवाज़ हू ब हू वही है,जो “काबुलीवाला” के “ऐ मेरे प्यारे वतन ऐ मेरे बिछड़े चमन” में बजी है। एकदम काबुली या अफ़गानी रबाब की आवाज़ पैदा की गयी है, जैसे कि कल्याण जी ने ’नागिन’ में ’क्ले वॉयलिन’ पर एकदम बीन की आवाज़ निकाल दी थी ।
बांगो और कांगो की आवाज़ों के बीच ड्रम और तबले को कोई नहीं पकड़ पाया तो कोई बात नहीं ; लेकिन एक बहुत ही ख़ास साज़,जिसकी आवाज़ इतनी साफ़ है फिर भी किसी ने नहीं “सुनी” वह है “रेसो-रेसो” । गाने की बिलकुल शुरुआत में ही (आलाप के तुरन्त बाद) बांगो के बीच जो “छिक-छिक” सी आवाज़ है वही ! इसे या तो अमृतराव काटकर ने बजाया होगा या होमी मुल्लां जी ने । इन दोनों ने एक से बढ़कर एक हिन्दी फ़िल्मी गानों में इस साज़ से कमाल का असर पैदा किया है । इस बारे में काफ़ी सामग्री अलग से यूनुस जी को भेजी है। उम्मीद है आगे आप लोग यहाँ “रेसो-रेसो” और उसे बजाने वालों के बारे में और ज़्यादा जान पाएंगे)।
तो इस तरह पहेली का हल(वाद्य यन्त्रों के पहली बार बजने का क्रम) लगभग यह बनता है:
ग्रैण्ड पियानो,बांगो,रेसो-रेसो,एकॉर्डियन,गिटार,ड्रम,तबला,सैक्सोफ़ोन और ग्रुप वॉयलिन ।
वैसे मेहता जी ने सही ही कहा है कि “मैं सही से काफ़ी नज़दीक हो सकता हूँ, पर शत-प्रतिशत नहीं” ।
“शत-प्रतिशत सही जवाब” होने की गुंजायश तीन ही लोगों के पास बनती है: स्व०ओ०पी०नैयर,खुद ये साज़ बजाने वाले और ऊपर वाला ।
पर उससे हमारा कोई बहुत ज़्यादा लेना-देना था भी नहीं ।
बज़रिये इस पहेली हम तो सबसे बस इतना भर कहना चाहते थे कि आगे से किसी भी (फ़िल्मी या गैर-फ़िल्मी) गाने को सुनते समय थोड़ा (और ज़्यादा) ध्यान साज़ों पर भी दें और गीतकार, संगीतकार, गायक-गायिका या फ़िल्म के निर्माता, नायक-नायिका वग़ैरह के साथ-साथ; पल भर के लिये ही सही; मन में उन अनदेखे, अनाम साज़िन्दों की तस्वीर भी बना लें और उनके काम को सलाम कर लें, जिनके बिना संगीत की वह अमृत रसधारा कभी बह ही नहीं सकती थी और जिन्हें वैसे हम ज़िन्दगी में शायद कभी जान भी नहीं पाएंगे । कम से कम इतने के हक़दार तो हैं ही वे लोग !
क्षमा करें, डाकसाब की टिप्पणी के बाद पहुंचे, इसलिये मेहनत करने में अब कोई फ़ायदा नहीं है.
वैसे हमारी समझ से गाना पियानो से शुरु नही हो रहा है. यहां गिटार ही है, क्योंकि पियानो के स्वर इस से ज्यादा शार्प या ट्रेबल लिये होते हैं,नाद ज्यादा होता है और साथ ही अमूमन दोनो सप्तक के साथ साथ सुर लगते हैं. यह एकोस्टिक गिटार नहीं मगर एलेक्ट्रिकल स्पेनिश ही होगा, जैसा कि पियुश जी फ़रमाते हैं.
बाद में आया है कांगो, जो साथ में बांगो भी लाया है.थोडा सा ड्रम के साथ रेसो रेसो है(कंघे वाला)
फ़िर अकोर्डियन के दांये और बांये धम्मन दोनो कीज़ पर कोर्ड्स बजे हैं. जब तक स्थाई शुरु होता है, वहां तबले की जगह ढोलक और नाल का प्रयोग हुआ है.
पहले इंटरल्युड में सेक्सोफ़ोन है और एकोर्डियन है, और दूसरे में ग्रुप वायोलीन के साथ पियानो है.
कुछ भी हो , वाकई में मज़ा आ गया.
अबकी "अगली पहेली का इन्तेज़ार" नहीं है आपको,दिलीप जी ? :-))
रेंसों-रेसों का तो नाम याद नहीं था । जो शायद शुरूआत के 45 सेकंड पर बहता है । पर लिख़ते लिख़ते साईड रिधम की बात याद होते हुए भी भूल गया था । जैसा कुछ लकडे की पट्टी या दो गोल टूकडे जैसा लगता है । फ़िर भी डाक साहब, युनूसजी और दिलीप कवठेकरजी को बधाई । दिलीपजीने देरीसे आकर भी अपना आनेका वजूद काफ़ी हद तक सही ठहराया है, ऐसा मूझे प्रतित हुआ । पियानो की हाजरी बीचमें एक जगह लगती है, वह भी जैसे एनोक डेनियेल्स, ल्यूसीला पिचाको,स्व. केरशी मिस्त्री, आज की वादिका ट्रिप्पी कोहली जैसा धमाकेदार नहीं पर आज कल विविध भारती पर अंतराल या फिलरमें छाये हुए पियानोवादक ब्रियान सिलाझ जैसा ठंडा प्रतीत होता है ।
पियुष महेता ।
सुरत-395001.
"रेंसों-रेसों...... शायद शुरूआत के 45 सेकंड पर बहता है ।’- पियुष महेता
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चाहे गाना शुरू होने के 45 सेकेण्ड बाद(बांगो के साथ) बजना शुरू हुआ हो,पर बजा पूरे गाने के साथ-साथ अन्त तक है ।
सही है.
इस रोचक पहेली के अगले संस्करण का बेताबी से इंतेज़ार रहेगा. वैसे भी अपने ब्लोग पर लिंक दे रखी है.
आप लोग करिए गाने की चीर फ़ाड़, हम तो गाने का आनंद उठा रहे हैं। वैसे आज कल के जमाने में जहां इलेक्ट्रोनिक वाद्यों की प्रचुरता है हमें तो लगता है मानों संगीत की मधुरता को ही ग्रहण लग रहा है
Dilchasp raha.
भई यहां पर तो टिप्पणी करना एेसा ही होगा जैसा कि बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना। सारी सभा संगीत मर्मज्ञों से भरी हो आैर वहां अनाडी आ जाये एेसी हालत हो रही है। पर हाजिरी तो लगा ही दें।
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