कोई दिल में समाया चुपके चुपके चुपके: तन्हाईयों की आवाज़ सुरैया
उनकी आवाज़ तन्हाईयों की आवाज़ है । उनकी आवाज़ बेक़रार और नाकाम मुहब्बत की आवाज़ है । सुरैया को याद करने का कोई ख़ास दिन नहीं होता । उनकी याद तो संगीत के क़द्रदानों को बरबस आ ही जाती है । सुरैया उस दौर में फिल्मों में आईं जब सिनेमा अपने शुरूआती दौर में था । जब खेल-खिलौनों वाले दिन थे तो सुरैया बाल-कलाकार बन गईं । और उसके बाद एक दिन नौशाद की संगीत-निर्देशन में सन 42 में 'शारदा' फिल्म में कितना मौजूं गीत गाया---पंछी जा, पीछे रहा है बचपन मेरा ।
सुरैया वाक़ई तन्हाईयों की...भयानक अकेलेपन की आवाज़ थीं । उनके गानों की दुनिया की हल्की-सी परत उठाएं तो बस उसमें डूबते ही चले जाते हैं । एक के बाद एक ऐसे नग़्मे आते चले जाते हैं--जिनका सम्मोहन अनूठा है । इनके पाश से बाहर निकलना मुमकिन नहीं है । मुझे वो दिन याद आता है जब 'अनवर ख़ां मेहबूब कंपनी' के बुज़ुर्गवार मालिक...मुझे विविध-भारती के उद्घोषक और संगीत का क़द्रदान समझकर...अपनी लुटती हुई रियासत, बुझती हुई उम्र और मद्धम पड़ती हवेली के बीच....सुरैया के गाने 'गाकर' सुना रहे थे । मेज़ पर थाप दी जा रही थी । परिवार में 'उनकी' सुनने वाला कोई नहीं था । वो उस पुराने सामान की तरह थे जिसकी 'घर' में कोई जगह नहीं है । 'तरंग' पर उस मार्मिक दिन के बारे में बहुत तफ़सील से लिखने का मन है ।
रियासत सुरैया की भी लुट चुकी थी । मन की रियासत से वो ख़ाली हो चुकी थीं । वो ख़ूबसूरती मद्धम पड़ गई थी । सुबह-सबेरे बाक़ायदा मेकअप करके तैयार होतीं--मानो अभी कोई मिलने आयेगा...अभी कोई प्रोड्यूसर साइन करने आयेगा । अभी महफिल जमेगी और क़हक़हे गूंजेंगे ।....ऐसा कभी हुआ नहीं ।
सुरैया की मुहब्बत अधूरी रह गयी । परिवार के सपने कभी पूरे हुए नहीं । सुरैया का ये गीत मुझे ममता ने याद दिलाया है । उस दिन अचानक वो गुनगुनाना रही थीं--'दबे दबे पांव मेरे सामने वो आ गए....लाज के मारे मोरे नैना शरमा गए' । बस उसके बाद तो इस गाने को सुनने की विकलता बढ़ गयी । सुरैया के गीतों का सुरीला सिलसिला चल पड़ा हमारे घर में । 'लेजेन्ड्स' सीरीज़ में सुरैया के लगभग सभी ज़रूरी गीत हैं । उन्हें सुनकर अगर आपका 'मन मोर मतवाला' ना हो ।
सन 1950 में आई थी D.D.Kashyap की फिल्म 'कमल के फूल' । कश्यप साहब ने हलाकू, दुल्हन एक रात की, माया, शमा परवाना जैसे कई नामचीन फिल्म बनाई थीं । बहरहाल..कमल के फूल अपने गानों के नज़रिये से बड़ी अहम फिल्म रही है । तो आईये 'कमल के फूल' का सुरैया का गाया ये शानदार गीत सुनते हैं ।
song-koi dil me samaya chupke chupke film-kamal ke phool (1950) singer-suraiya lyrics-rajendra krishna music-shyam sunder duration-2’-20’’ |
( सुरैया के दीवाने जानते होंगे कि 'सा रे गा मा' ने सुरैया की पांच सीडीज़ का पैक legends निकाला है । विवरण यहां है )
15 comments:
सुमधुर !
इस संगीत ने तो बहुत आनंद दिया ,प्रस्तुति के लिए आपको धन्यवाद .
बहुत सुंदर और कर्णप्रिय।
आदरणीय यूनिस भाई
मैं विजय तिवारी " किसलय " जबलपुर से हूँ,
भाई महेंद्र मिश्र और गिरीश बिल्लोरे जी भी आप की चर्चा करते रहते हैं.
मुझे दुःख है कि मई अब तक आपको पात्र नहीं लिख सका था .
आज अवसर को गवाँना नहीं चाहा
सुरैया जी का गीत "कोई दिल में समाया चुपके चुपके चुपके" सुन कर आनंद आ गया.
इसे सुनाने के लिए मैं आपका आभारी हूँ
- विजय
आपके माध्यम से यह पुराना गीत भी सुन लिया। अच्छा लगा, और पहले नहीं सुना था।
धन्यवाद।
युनूस भाई
ज़माने को साफ़गोई से स्वीकार कर लेना चाहिये कि नूरजहाँ और सुरैया ही वे दो महिला स्वर हैं जिनसे समकालीन पार्श्वगायन की रिवायत जगमग है.तीन मिनट के गीत में भाव,शब्द और बंदिश का निबाह को आसान काम नहीं.इस गीत ने सप्ताह की पहली भोर को सुरभित किया. ....बाक़ी दिन भी सुरीले बीतेंगे...इंशाअल्लाह!
बेहद सुरीली पोस्ट !
मुझे तो अनमोल घड़ी में सुरैया और नूरजहाँ की जोड़ी बहुत अच्छी लगी।
सुरैया जी का ये गीत पहले नहीं सुना था। सुनवाने के लिए आभार
'शानदार प्रस्तुति! इस कर्णप्रिय गीत के लिये। बाकी ये तो जीवन का फलसफा है कि जो आदमी जिन्दगी भर प्रसिद्धि पाता है बाकी के जीवन में वह उसी के लिये भी तरस सकता है क्योंकि जीवन कभी फूलों की सेज होता है तो कभी कांटों का ताज भी होता है।
गुजरा जमाना याद आ गया।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
सुरैया पर आपने बहुत ही सुंदर लिखा है। इनके गीत मुझे भी बहुत पसंद हैं।
धन्यवाद यूनुस याद दिलाने के लिए कि सुरैया का पाँच सी डी सेट ख़रीदना चाहिए |
उनका दो सी डी का golden collection सुना सुनाया जाता था जिसमें कई खूबसूरत गीत हैं |
geet sun nahi paa rahaa hooN,,
......
aapko "bhaaskar" meiN padhtaa rehtaa hooN,,,,
film "afsar" ke geet sunvaayiye
meharbaani hogi.....
aur wo...."..mun mooor hua matwaala"
khairkhwaah ,
---MUFLIS---
दुनिया में कुछ चीज़ ऐसे होतीं हैं । पुरानी संगीत तो सुनने वालों के दील तक पहुँच कर चैन और आत्मिचंतन दोनों को उजागर करता है । सुरैया को कौन भूल सकता है ?
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