टुकड़े टुकड़े दिन बीता, धज्जी धज्जी रात मिली: मीनाकुमारी के अशआर उन्हीं की आवाज़ में ।
मीना कुमारी, एक बेहतरीन अदाकारा होने के साथ-साथ एक बेहद जज़्बाती शायरा भी थीं । ख़ूबसूरती और चमक-दमक से भरी दुनिया में वो एक बेहद सादा शख्सियत थीं । फिल्म-संसार की सबसे ख़ूबसूरत नायिकाओं का निजी जीवन बेहद त्रासद रहा है ।
सुरैया से शुरू करें---तो उनका अकेलापन इतना गहन था, कि सब कुछ बिखर जाने के बाद भी रोज़ाना सुबह वो घंटों आईने के सामने सजती रहतीं और एकदम लकदक होकर घर पर रहतीं । जबकि ना कोई मिलने आता और ना ही किसी का कोई फ़ोन आता था । मधुबाला का जीवन भी ख़ूबसूरती और संत्रास से घिरा हुआ था । परदे पर बेहद शोख़ और मुस्कानें बिखेरती मधुबाला निजी जीवन में बेहद टूटी हुई और अकेली थीं । आखिरी दिनों में कैंसर ने उनकी वो शक्ल बना दी थी कि वो खुद आईना देखने से डरती थीं ।
मीनाकुमारी की जिंदगी की कहानी किसी से छिपी नहीं है । जिंदगी से जो भी ज़ख़्म मिले, उन्होंने उन्हें अपनी शायरी में ढाल दिया । गुलज़ार ने मीना कुमारी की डायरी से चीज़ों को बहुत अनुरोध के बाद निकलवाकर एक संग्रह तैयार करवाया था । इस संग्रह को आप यहां से ख़रीद सकते
हैं ।
बहुत बरस पहले संगीतकार ख़ैयाम ने मीना कुमारी के कुछ अशआर स्वरबद्ध करके खुद उन्हीं से गवाए थे । इस संग्रह का नाम दिया गया “I write I recite” अगर आपका नज़दीकी म्यूजिक-स्टोर थोड़ा समझदार और तेज़ है तो वो ज़रूर आपको ये सी.डी.उपलब्ध करवा सकता है । वैसे ढूंढें तो संभवत: यूट्यूब पर आपको इनमें से कुछ रचनाएं मिल सकती हैं ।
बहरहाल मीना कुमारी की आवाज़ में उनकी एक ग़ज़ल ।
अवधि-चार मिनिट दस सेकेन्ड
संगीतकार-ख़ैयाम ।
टुकड़े-टुकड़े दिन बीता, धज्जी-धज्जी रात मिली
जिसका जितना आंचल था, उतनी ही सौग़ात मिली ।
जब चाहा दिल को समझें, हंसने की आवाज़ सुनी
जैसे कोई कहता हो, ले फिर तुझको मात मिली ।
मातें कैसी, घातें क्या, चलते रहना आठ पहर
दिल-सा साथी जब पाया, बेचैनी फिर साथ मिली ।
सुरैया से शुरू करें---तो उनका अकेलापन इतना गहन था, कि सब कुछ बिखर जाने के बाद भी रोज़ाना सुबह वो घंटों आईने के सामने सजती रहतीं और एकदम लकदक होकर घर पर रहतीं । जबकि ना कोई मिलने आता और ना ही किसी का कोई फ़ोन आता था । मधुबाला का जीवन भी ख़ूबसूरती और संत्रास से घिरा हुआ था । परदे पर बेहद शोख़ और मुस्कानें बिखेरती मधुबाला निजी जीवन में बेहद टूटी हुई और अकेली थीं । आखिरी दिनों में कैंसर ने उनकी वो शक्ल बना दी थी कि वो खुद आईना देखने से डरती थीं ।
मीनाकुमारी की जिंदगी की कहानी किसी से छिपी नहीं है । जिंदगी से जो भी ज़ख़्म मिले, उन्होंने उन्हें अपनी शायरी में ढाल दिया । गुलज़ार ने मीना कुमारी की डायरी से चीज़ों को बहुत अनुरोध के बाद निकलवाकर एक संग्रह तैयार करवाया था । इस संग्रह को आप यहां से ख़रीद सकते
हैं ।
बहुत बरस पहले संगीतकार ख़ैयाम ने मीना कुमारी के कुछ अशआर स्वरबद्ध करके खुद उन्हीं से गवाए थे । इस संग्रह का नाम दिया गया “I write I recite” अगर आपका नज़दीकी म्यूजिक-स्टोर थोड़ा समझदार और तेज़ है तो वो ज़रूर आपको ये सी.डी.उपलब्ध करवा सकता है । वैसे ढूंढें तो संभवत: यूट्यूब पर आपको इनमें से कुछ रचनाएं मिल सकती हैं ।
बहरहाल मीना कुमारी की आवाज़ में उनकी एक ग़ज़ल ।
अवधि-चार मिनिट दस सेकेन्ड
संगीतकार-ख़ैयाम ।
टुकड़े-टुकड़े दिन बीता, धज्जी-धज्जी रात मिली
जिसका जितना आंचल था, उतनी ही सौग़ात मिली ।
जब चाहा दिल को समझें, हंसने की आवाज़ सुनी
जैसे कोई कहता हो, ले फिर तुझको मात मिली ।
मातें कैसी, घातें क्या, चलते रहना आठ पहर
दिल-सा साथी जब पाया, बेचैनी फिर साथ मिली ।
17 comments:
मीनाकुमारी के बारे में एक ख़ास बात आपने नहीं लिखी, उनकी रूहानी आवाज़। जब पर्दे पर वो संवाद बोलती तो उनकी रूहानी आवाज़ उनकी ख़ूबसूरती को और बढा देती, इसी तरह उनकी आवाज़ उनकी शायरी में भी में चार चाँद लगा देती।
मीना कुमारी को इस तरह सुन पाने की कभी कल्पना नहीं की थी। आप ने बहुत सुंदर सौगात दी है।
मीना कुमारी की गायकी. पहली बार सुना !
कुछ महीने पहले मैंने भी इसे अपने ब्लाग पर पोस्ट किया था। ये बेशकीमती है, इसे कई बार सुना जा सकता है। शुक्रिया।
यूनुस जी, बहुत ही रोचक पोस्ट लिखी है आपने मीना कुमारी के बारे में। उनकी शायरी और आवाज दोनों ही दिल में सीधे उतर गये। शुक्रिया।
I have a fetish for collecting shers and shayaries and can boast of having best of the collections. I am surprised to hear Meenaji saying, "Dil-sa," whereas I have it as, "Dilaasa." And it does make more sense to me. But I guess it came to me, may be, after edited by Gulzarsaab...I don't know...strange...Any idea Yunusji?
सोनाली, जहां तक इस ग़ज़ल के इस शेर का सवाल है तो 'दिल-सा'ही मुझे ज्यादा माकूल लगता है ।
मातें कैसी, घातें क्या, चलते रहना आठ पहर
दिल-सा साथी जब पाया, बेचैनी फिर साथ मिली ।
इसमें 'दिलासा' रखकर पढ़ें तो अर्थ कहां निकल पाता है । हो सकता है कि प्रिंट की कोई गड़बड़ी हुई हो और आपके पास शेर दूसरी शक्ल में पहुंचा हो । फिर भी आप बताएं कि क्या प्रिंट में ये ग़ज़ल और बढ़ी और अलग शक्ल में है ।
मीना जी की आवाज़ भी उनकी अदाकारी का एक खास पहलू रहा - शायरा वे उम्दा रहीँ सुनवाने के लिये शुक्रिया जी
बेहतर पोस्ट है भाई,ये बताईये इसी अलबम में "आगाज़ तो होता है अंजाम नहीं होता" ज़रा उसे भी एक बार सुनवाईयेगा। बहुत अच्छा लगा कि आज भी उनकी फ़िल्म के अलावा भी कुछ चीज़ें है याद करने के लिये।
Meena Kumari ki yahi nazm meri diary mein ankit hai. aaj aapki wazah se unhein pahli baar sunne ka mauqa mila . behad aabhar
May be you are right...I took it as a paradox. Dilaasa to mila lekin saath-saath baichaini bhi mili...but yes, now I'll read it again afresh.
I do have one more sher,
"Rimjhim rimjhim boondon mein, zehar bhi hain amrit bhi
Aankhe hans di aur dil roya, ye achchhi barsaat mili."
यूनुस भाई,आदाब.
मीनाकुमारी की इन ग़ज़लों और नज़्मों का एकबम पिताजी सत्तर - अस्सी के दशक के बीच में रेकॉर्ड करवा कर लाए थे और मैं विस्मित सा था कि क्या मीनाकुमारी जिन्हें हम बतौर अदाकारा सिल्वर स्क्रीन पर देखते रहे हैं एक शायरा भी हैं.मीनाजी की ज़ाती ज़िन्दगी का दर्द जैसे इन नज़्मों में भी सिमट आया है.कितना सहज और सरल पढ़ा है उन्होंने इन रचनाओं को . ख़ैयाम साहब ने इस काव्य पाठ को रिद्म से दूर रखा है और महज़ सारंगी के साथ से सजाया है. संगीतप्रेमी मित्रों को बता दूँ कि ग़ज़लों के बीच बजता (सारंगी से जुदा) वाद्य कुछ और नहीं सारंगी ही है.ख़ैयाम साहब बड़ी ख़ूबसूरती से सारंगी के तारों को गज (बो) से न बजाते हुए नाख़ुनों से बजवाया है और वह एक अलग समाँ रच रहा है. कई सारंगी वादक अपने साज़ पर नाख़ूनों से सुरों को छेड़ते हुए एक अदभुत रंग जमाते हैं.शास्त्रीय संगीत वादन के दौरान कई सारंगी/वॉयलिन वादक इस टेकनिक का उपयोग करते हैं. आपके द्वारा बजाई इस ग़ज़ल में भी सारंगी ही बजी है यूनुस भाई.एक तरह से इसे टूथब्रश टेकनिक कह सहते हैं जिसे छेड़ते हुए स्ट्रींग सुरीले गूँज उठते हैं.कई श्रोता इस ग़ज़ल में बजे वाद्य को संतूर समझ बैठते हैं लेकिन वह सारंगी ही है. यहाँ वही वादक जो ग़ज़ल के बीच के इंटरल्यूड बजा रहा है तार छेड़ते हुए सारंगी की एक जुदा ध्वनि से इस एलबम को प्रकाशित कर रहा है. गायक की गान-सीमा को परखते हुए खै़याम साहब ने बड़े सॉफ़्ट नोट पर मीनाजी को गवाया है.ऐसी कारीगरी वे ही कर सकते हैं.
संजय भाई अदभुत जानकारियां जोड़ी आपने ।
और साथ ही ये विकल यादें भी ।
सब कुछ जानकर बड़ा अच्छा लगा ।
मैं तो सिर्फ इतना जनता था की मीना कुमारी एक बेहतरीन अदाकारा थी,परन्तु आपने तो उनके एक अलग ही वक्तित्व से परिचय करा दिया...धन्यबाद
गज़ल सुनना तो आनंददायी है ही, संजय भाई की टिप्प्णी ने इस पोस्ट में चार चांद लगा दिये।
युनूस भाई आदाब आज 1 अगस्त मीना जी का जन्म दिन है उनके बारे मे ढूंढते हुए आपके ब्लोग तक पहुंचा आपसे गुजारिश है आज यह पोस्ट फिर पब्लिश करें मीनाजी को श्रद्धांजली देते हुए . आपका शरद कोकास दुर्ग
आज अचानक ही आपके इस पोस्ट पर नजर पडी तो जैसे खजाना मिल गया मुझे ये गजल बहुत प्रिय है और मैने बिना आपकी ये पोस्ट देखे कुछ दिन पहले इसकी फ़रमाईश भी की थी माफ़ किजियेगा!आपके इस रेडियो प्रांगण में आना बहुत ही अच्छा लगता है और मुझे उस समय की याद आ जाती है जब मैं आकाशवाणी रायपुर में युववाणी दिया करती थी!रेडियो वाणी -दुर्लभ गीतों और गजलों की वाणी है!ये वाणी सतत रहे आपको बहुत-बहुत बधाई!
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