'कल्ट-कव्वालियां' दूसरी कड़ी-- क़व्वाली में कन्हैया
रेडियोवाणी पर 'कल्ट-क़व्वालियां' श्रृंखला शुरू करने के साथ ही क़व्वालियों की दुनिया के नए-दरीचे खुलने लगे हैं । कहना ना होगा कि हम पहले इस दुनिया से थोड़े-बाख़बर और ज़्यादा बेख़बर रहते थे । पर इस श्रृंखला की तैयारियों और अब और ज़्यादा खोजबीन के सिलसिले ने हमारे दिमाग़ में टॉर्च जला दी है ।
'कल्ट-क़व्वालियों' का ये सिलसिला हमें भारत के अलावा पाकिस्तान और दुनिया के इतर देशों में भी ले जायेगा । फिलहाल पाकिस्तान चलते हैं और आपकी मुलाक़ात करवाते हैं फ़रीद अयाज़ क़व्वाल से । फ़रीद अयाज़ क़व्वाल पाकिस्तान के मशहूर क़व्वाल हैं । पर उनका ताल्लुक़ दिल्ली के मशहूर घराने 'क़व्वाल बच्चों के घराने' से है । इनके वालिद मरहूम मुंशी रज़ीउद्दीन अहमद ख़ां दुनिया के बेमिसाल क़व्वालों में गिने जाते हैं । 'कल्ट क़व्वालियों' के सिलसिले में अगली पेशक़श मुंशी रज़ीउद्दीन की ही एक क़व्वाली की होगी । लेकिन आज तो फ़रीद अयाज़ की बात । फ़रीद अयाज़ और इनके पिता मुंशी रज़ीउद्दीन सूफ़ी रचनाएं गाने के लिए मशहूर रहे हैं । कबीर, नानक, बुल्लेशाह, अमीर ख़ुसरो वग़ैरह की रचनाएं वो बड़ी शिद्दत से गाते हैं । इस क़व्वाली को रेडियोवाणी पर पहले भी पेश किया जा चुका है । लेकिन इस बात को बहुत वक्त बीत गया ।
तो चलिए कल्ट क़व्वालियों की इस पेशक़श में आज फ़रीद अयाज़ की दुनिया से होकर गुज़रें । इनका कहना है कि ये रचना तीन सौ सालों से इनकी ख़ानदान में गाई जा रही है । मैंने तो पहली बार क़व्वाली में कन्हैया की बात सुनी है । क्या आपको कोई और क़व्वाली याद आती है जिसमें कन्हैया का जिक्र हो ।
ये रहे इसके बोल--
कन्हैया बोलो याद भी है कुछ हमारी,
कहूं क्या तेरे भूलने के मैं वारी
बिनती मैं कर कर पमना से पूछी
पल पल की खबर तिहारी
पैंया परीं महादेव के जाके
टोना भी करके मैं हारी
कन्हैया याद है कुछ भी हमारी
खाक परो लोगो इस ब्याहने पर
अच्छी मैं रहती कंवारी
मैका में हिल मिल रहती थी सुख से
फिरती थी क्यों मारी मारी ।
कन्हैया कन्हैया ।।
12 comments:
मैनें भी कन्हैय्या की बात पहली ही बार सुनी क़व्वाली में।
और मुझे यह भी पता नहीं था कि क़व्वाली में कबीर की रचना भी है… हम सुनना चाहेंगे।
कव्वाल कव्वाली को ले कर जनता के बीच जाते हैं। इस कारण उन की कव्वालियों में जन रुचि के सभी तत्व मिलेंगे।
अय्याज भाईयों की एक कव्वाली शायद मेरे पास भी है, ढूँढ के सुनाता हूँ किसी दिन, दोनों गाते जबरदस्त हैं
in posts ka apna alag hi rang hai..bahut shukriyaa
kya baat hai Yunus Ji ..... maza aa gaya ....! maine bhi pahali hi baar kanhaiya par quawwali
वाह कव्वालियों का मजा ही कुछ और!
गणतँत्र दिवस सभी भारतियोँ के लिये नई उर्जा लेकर आये ..
और दुनिया के सारे बदलावोँ से सीख लेकर हम सदा आगे बढते जायेँ
बदलाव के लिये व नये विचारोँ मेँ से,
सही का चुनाव करने की क्षमता भी जरुरी है ..
कला / सँगीत हर धर्म, जाति, भेद भाव से परे की वस्तु है
- लावण्या
न तो कव्वाल का नाम याद आ रहा है और न ही सन्-सम्वत किन्तु बरसों पहले मन्दसौर (म.प्र;) में (शायद श्रीपशुपतिनाथ मेले में) 'कन्हैया' पर केन्द्रित कव्वाली सुनी थी। कोशिश करूंगा कि घुटनों की इतनी मालिश हो जाए कि याददाश्त साथ दे और आपके सवाल का जवाब दे सकूं।
वाह्। पहली बार सुन रहे हैं कन्हैया को कव्वाली में । शुक्रिया
युनुस भाई,
कल आपको इस कव्वाली की एक और रेकार्डिंग भेजते हैं। जो फ़रीद के वालिद मुंशी रेजाउद्दीन साहब ने कराची में एक प्राइवेट महफ़िल में १९८८ में गायी थी।
माफ़ करें मुंशी रजाउद्दीन साहब का नाम गलती से मुंशी रेजाउद्दीन लिख गये ।
मोसे बोल ना बोल मेरी सुन या ना सुन,
मैै तो तोहे ना छाडूँगी हे साँवरे.....
another one by farid ayyaz
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