संगीत का कोई मज़हब, कोई ज़बान नहीं होती। 'रेडियोवाणी' ब्लॉग है लोकप्रियता से इतर कुछ अनमोल, बेमिसाल रचनाओं पर बातें करने का। बीते नौ बरस से जारी है 'रेडियोवाणी' का सफर।

Thursday, December 18, 2008

खुद नीरज से सुनिए: कारवां गुज़र गया ।

रेडियोवाणी पर अपनी पिछली पोस्‍ट में मैंने नीरज जी का गीत कारवां गुज़र गया ग़ुबार देखते रहे.....सुनवाया था । 'नई उमर की नई फसल' फिल्‍म का ये गीत रोशन ने संगीतबद्ध किया था और इसे मोहम्‍मद रफी ने गाया था । इस पोस्‍ट पर अनूप भार्गव जी की ये टिप्‍पणी आई ।

कविता कोश के बारे में लिखने के लिये धन्यवाद । यह वास्तव में हम सब केanoop2 लिये एक उपयोगी साधन और आगे आने वाली पीढी के लिये हमारी ओर से भेंट हो सकती है । किताबों के भविष्य के प्रति मैं अधिक आशावान नहीं हूँ लेकिन इंटरनेट पर आने के बाद कविता अमर हो जाती है , मर नहीं सकती ।
इस पोस्ट में नीरज जी के बारे में पढ कर भी बहुत अच्छा लगा । 2004 में अपनी अमेर्रिका यात्रा के दौरान वह करीब १ महिने तक हमारे साथ रहे थे । उन के साथ अलग अलग शहरों में यात्रा करने और कवि सम्मेलनों में सुनने का अवसर मिला । वास्तव में ’युग पुरुष’ से कम नहीं हैं वह ।
मेरे पास ’नीरज’ जी खुद की आवाज़ में ’कारवां गुज़र गया’ तथा उन के अनेक गीत हैं । रफ़ी साहब ने बहुत अच्छा गाया है लेकिन नीरज जी की आवाज़ में सुनने का अपना ही आनन्द है ।

 यदि आप अपने ब्लॉग पर लगाना चाहें तो मुझे खुशी होगी आप के साथ बाँटने में ।

और अनूप जी ने फौरन ही नीरज जी की आवाज़ मुझे मेल कर दी । रेडियोवाणी पर हम अनूप जी को किस तरह धन्‍यवाद करें समझ में नहीं आता । तो अब आप रेडियोवाणी पर अनूप जी के सौजन्‍य से दोनों कविताएं सुनेंगे । आज बारी है 'कारवां गुज़र गया' की । इस गीत की इबारत आप पिछली पोस्‍ट पर देख सकते हैं । पिछली पोस्‍ट से इस पोस्‍ट के बीच कुछ दिनों का अंतराल आया । और ये अंतराल MTNL के सौजन्‍य से था । आजकल ब्रॉडबैन्‍ड खूब सता रहा है ।



अगली पोस्‍ट में 'शोखि़यों में घोला जाये' गीत का कविता-रूप नीरज जी की आवाज़ में सुनवाया जायेगा 

19 comments:

Udan Tashtari December 18, 2008 at 9:05 AM  

आहा!! मजा आ गया! कनाडा भी आये थे और हमने उसी ट्रिप में लाईव सुना था यह. आभार.

SahityaShilpi December 18, 2008 at 9:06 AM  

युनुस भाई! इस गीत को रफ़ी साहब की आवाज़ में कई बार सुना है परंतु नीरज जी की आवाज़ में इसे सुनने का मौका आज पहली बार मिला. आपका और अनूप जी का बहुत बहुत आभार इसे हमसे बाँटने का!

दिनेशराय द्विवेदी December 18, 2008 at 9:17 AM  

मजा तो आना ही था। नीरज से अनेक बार सुना है। पर इस की डाउनलोड कहाँ है?

Alpana Verma December 18, 2008 at 9:40 AM  

कवि की आवाज़ में उनकी ख़ुद की रचना सुनना एक अलग अनुभव होता है.
नीरज जी की आवाज़ में उनकी प्रसिद्द रचना सुन कर बहुत अच्छा लगा.
धन्यवाद .

Manish Kumar December 18, 2008 at 10:21 AM  

अनूप जी को अतिशय धन्यवाद। जब मैं क़तील शिफाई के बारे में लिख रहा था तो उन्होंने उनकी आवाज़ में कुछ खूबसूरत ग़ज़लें तुरंत मेल की थीं।

अमिताभ मीत December 18, 2008 at 1:23 PM  

युनुस भाई, कुछ कहने की बात तो नहीं .... अब इस के बाद कोई क्या कहे !!! और शुक्रिया भी तो क्या चीज़ होती है ? लेकिन आज का दिन ... इस पोस्ट के नाम ...

अनूप जी ..... रश्क होता है आप से !

sanjay patel December 18, 2008 at 1:24 PM  

वाक़ई नीरज जी हिन्दी-उर्दू कविता के युग-पुरूष हैं युनूस भाई.यह समय का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि एक सुविचारित मानसितकता के तहत उन्हें मंचीय कवि माना गया और साहित्य से ख़ारिज करने का कुचक्र रचा गया है. वे करोड़ों काव्य-प्रेमियों के दिल में बसते हैं.

मैंने २१ दिसम्बर को इन्दौर में होने जा रहे एक बड़े मुशायरे में नीरज जी का नाम प्रस्तावित किया था और मुझे बताते हुए ख़ुशी है कि वे बेकल उत्साही,निदा फ़ाज़ली,मुनव्वर राना,मेराज़ लख़नवी,वसीम बरेलवी और राहत इन्दौरी के साथ नीरजजी इस मुशायरे के मंच से अपनी ग़ज़ले पढ़ेंगे.

दर्द,दिलासा,दर्शन,करूणा,सकारात्मक सोच और श्रृंगार में भीगी नीरजजी की रचनाएँ उन्हें सर्वकालिक महान कवि बनातीं हैं. वे हमारे नये ज़माने के ख़ुसरो हैं.शिद्दत से उन्हें रेडियोवाणी पर याद करने के लिये शुक्रिया.

Gyan Dutt Pandey December 18, 2008 at 4:23 PM  

शोखि़यों में घोला जाये की प्रतीक्षा रहेगी!

कंचन सिंह चौहान December 18, 2008 at 5:18 PM  

Yunus Ji dhnyavaad ke liye shabda hai.n....! bas samajh lijiye...!

अनूप भार्गव December 18, 2008 at 10:23 PM  

युनुस भाई :
इसे अपने ब्लौग पर स्थान देने के लिये धन्यवाद । वैसे मेरे बारे में लिखने की ज़रूरत नहीं थी :-)
कहते हैं ना ’अच्छी चीज़ों का सुख उन्हें बाँटने से और बढता है" ।

Anita kumar December 19, 2008 at 6:01 PM  

बहुत दिनों बाद नीरज जी की आवाज फ़िर से सुन कर अच्छा लगा और ये गीत तो मेरे पसंदीदा गीतों में से एक है , आप का और अनूप जी का बहुत बहुत आभार

siddheshwar singh December 19, 2008 at 10:14 PM  

बहुत बढ़िया. हिन्दी की पढ़ाई-लिखाई वाली बिरादरी और नीरज ! और आपकी यह पोस्त. उम्दा के अलावा और कुछ नहीं कहा जा सकता.
शोखियों में शराब कब घुलवा रहे हैं मित्र?

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी December 20, 2008 at 8:37 AM  

अनूप दा...उनके आस तो ख़ज़ाना है, कुछ भी माँगिये मिलेगा।:-)

नितिन | Nitin Vyas December 21, 2008 at 5:32 AM  

वाह!
संजय जी, संभव हो सके तो इंदौर के मुशायरे के कुछ आडियो-विडियो प्रकाशित कीजियेगा।

Anonymous,  December 28, 2008 at 1:52 AM  

udan tastaree chhodd de bakvaas

Smart Indian December 30, 2008 at 6:04 AM  

आनंद आ गया यूनुस भाई. आपको और अनूप जी, दोनों को धन्यवाद!

madhu saraf January 16, 2009 at 7:55 PM  

yunush bhai mene ek sandesh hindi me type kara hai google/transliterate me kintu usko iss link pe kaise laun ?

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if you want to comment in hindi here is the link for google indic transliteration
http://www.google.com/transliterate/indic/

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