अपनी पिछली पोस्ट में मैंने फिल्म गाईड से जुड़ी कुछ अनजान और दिलचस्प बातें बताईं थी । आईये रोशमिला के लेख का आगे का हिस्सा पढ़ा जाए ।
पिछली पोस्ट में मैंने बताया था कि किस तरह से वहीदा रहमान और राज खोसला की अनबन की वजह से देव साहब ने राज खोसला को गाईड का निर्देशन करने से हटा दिया और अपने बड़े भाई साहब यानी चेतन आनंद के पास गए । उनसे निवेदन किया कि वो 'गाईड' का निर्देशन करें । चेतन आनंद 'नीचा नगर' और 'अफसर' जैसी फिल्में बनाकर नाम कमा चुके थे । इस तरह फिल्म गाईड की शूटिंग का पहला शेड्यूल शुरू हुआ । इस दौरान सबकी समझ में आ गया कि हिंदी और अंग्रेज़ी में एक साथ शूटिंग करना बेहद सुस्त, बोझिल और उबाऊ हो रहा है । आपस में बहसबाज़ी और टकराव भी हो रहा है । इसलिए तय किया गया कि पहले अंग्रेज़ी संस्करण को फिल्मा लिया जाए फिर हिंदी की बारी आए ।
इस तरह डेनियलवस्की ने अंग्रेजी फिल्म 'गाईड' का निर्देशन संभाल लिया ।
चेतन आनंद अब अपनी युद्ध-फिल्म 'हक़ीक़त' के निर्माण में वयस्त हो गये । जिस समय गाईड की शूटिंग के लिए वो उदयपुर जाने की तैयारी कर रहे थे तभी खबर आई कि सेना ने हक़ीक़त की शूटिंग के लिए उन्हें लद्दाख़ आने की इजाज़त दे दी है । उन्हें फ़ौरन लद्दाख़ के लिए रवाना होना पड़ा । इस तरह एक बार फिर देव आनंद के सपनों की फिल्म 'गाईड' निर्देशक-विहीन हो गयी ।
मुसीबत में एक बार देव साहब ने अपने भाई का सहारा लिया । इस बार छोटे भाई विजय आनंद का । गोल्डी यानी विजय आनंद ने दो बार पहले भी गाईड के निर्देशन का प्रस्ताव ठुकरा दिया था । पर इस बार संकट था इसलिए वे राज़ी हो गए । पर इस शर्त पर कि गाईड को वो अपने अंदाज़ में बनाएंगे और देव साहब कोई दख़लअंदाज़ी नहीं करेंगे । उदयपुर जाकर शूटिंग करने से पहले गोल्डी ने पूरे 18 दिन खंडाला में बिताए और फिल्म 'गाईड' की स्क्रिप्ट को दुरूस्त किया । इस दौरान डैनियलवस्की भी
विजय आनंद ने 'गाईड' की स्क्रिप्ट को दोबारा लिखा और इसके लिए आर के नारायण के उपन्यास से एकदम अलग अंत तैयार किया । फिर गोल्डी ने इसकी शूटिंग महज़ अस्सी शिफ्टों में पूरी कर ली । इस तरह गाईड का हिंदी संस्करण टैड डैनियलवस्की वाले संस्करण से एकदम अलग बना । भारतीय संवेदनाओं और अंग्रेजी तकनीक से बनी ये फिल्म । डैनियलवस्की ने भारतीय संस्करण से कुछ सीन भी उठाए । पर गाईड का अंग्रेजी संस्करण
आखिरकार नवकेतन के प्रोडक्शन कंट्रोलर यश जौहर को जिम्मेदारी दी गयी कि वो दिल्ली के डिस्ट्रीब्यूटर को चुपचाप फिल्म के कुछ गीत दिखाएं । ' पिया तोसे नैना लागे रे' देखते ही वितरक ने फिल्म खरीदने की घोषणा कर दी । इस तरह सन 1965 में मुंबई के मराठा मंदिर थियेटर में गाईड का प्रीमियर किया गया । हालांकि सुस्त शुरूआत हुई पर फिल्म वहां दस सप्ताह तक चली ।
पड़ोसी राज्य गुजरात में धीमी शुरूआत हुई । पर अचानक अकाल आ जाने से लोग गाईड राजू की ओर दौड़े । फिल्म में गाईड राजू अकाल खत्म करने के लिए बारह दिन का उपवास करता है और उसकी मौत के बाद बारिश आती है । गुजरात में पोस्टरों पर लिखा गया-- गाईड राजू बारिश के लिए प्रार्थना कर रहा है । और अहमदाबाद में फिल्म ने अपनी सिल्वर जुबली मनाई ।
विदेशों में भी गोल्डी के निर्देशन की प्रशंसा हुई । हॉलीवुड के महान निर्माता निर्देशक हॉवर्ड हॉक्स ने गोल्डी को MGM स्टूडियो की एक फिल्म निर्देशित करने का प्रस्ताव रखा और पहले गोल्डी से कहा कि पहले वो एक ऑस्कर जीतकर लाएं । जी हां गाईड को सन 1966 में भारत की ओर से ऑस्कर पुरस्कार में भेजा गया था । हॉक्स के कहने पर बाईस रील की फिल्म को आधो घंटे कम किया गया था और इसमें अंग्रेजी सब टाइटल भी डाले गये थे । लेकिन इस साल नॉर्वे की एक फिल्म को ये पुरस्कार मिला ।
आज देव साहब इस फिल्म के प्रिंट को री-कलर करवा रहे हैं । और हो सकता है कि कांस फिल्म समारोह के बाद एक बार फिर भारत में इसे रिलीज़ किया जाए । वो कहते हैं ना कि क्लासिक फिल्में तो कभी भी देखी दिखाई जा सकती हैं । क्या आपने फिल्म 'गाईड' देखी है ।
ये था रोशमिला भट्टाचार्य का हिंदुस्तान टाइम्स में छपे लेख का अनुवाद । और अब गाईड का एक और गीत सुना जाए । गीत नहीं भजन । बल्कि कीर्तन । आपको याद है कि इसे फिल्म में कहां पर रखा गया था ।
फिल्म गाईड से जुड़ी बातें आखिरी भाग
फिल्म गाईड से जुड़ी बातें पहला भाग- वहां कौन है तेरा
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guide to dekhi hai..ab K.R.Narayaran ki novel bhi padhane ka man ho raha hai
ReplyDeleteये श्रृंखला तो 'बाईसकोप की बातें' हो गई :-)
ReplyDeleteमैंने सिनेमा भी देखी है और किताब भी पढी है.. कितनी बार देखी है ये अब याद नहीं है, गिनती भूल चुका हूं.. हां अब तो इसका अंग्रेजी संस्करण survival देखने का मन हो रहा है.. :)
ReplyDeleteआज फिर से घर जाकर मैं इसे देखूंगा..
कल मैं यूं ही इस सिनेमा का एक गीत गा रहा था और मेरे एक मित्र ने चुपके से अपने मोबाईल पर इसे रिकार्ड कर लिया.. अगर संभव हुआ तो इस साप्ताहांत में उसे पाडकास्ट कर दूंगा.. गीत के बोल हैं - क्या से क्या हो गया.. :)
ReplyDeleteबहुत अच्छा यूनुसजी गज़ब का आईटम दिया है आपने...सारी फ़िल्में अपने पीछे कितनी यादें छोड़ जाती हैं....अब बताइये लीला नायडू से होते होते वहीदा तक.....कितनी उहा- पोह मची रहती है...पर्दे के पीछे की दुनिया के बारे में जानना गज़ब का एहसास होता है..शुक्रिया दोस्त
ReplyDeleteअपने आप मे लाजवाब है ,सुना है एक समय मे देवानंद भी इसका अंत बदलना चाहते थे पर गोल्डी अडे रहे ओर मूल लेखक भी .....यदपि वो फ़िल्म मे दिखाए गए वहीदा रहमान के नकरात्मक चरित्र से भी नाराज थे ,फ़िर भी फ़िल्म बेजोड़ है ओर मेरे कोल्लेक्शन मे रखी है.
ReplyDeleteये US Archive का चौखटा मस्त है - डाउनलोडार्थ!
ReplyDeleteफिल्म गाइड के बारे में जानना दिलचस्प और जानकारी भरा रहा. इस आलेख की मूल लेखिका और आप दोनो धन्यवाद के पात्र हैं.
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