संगीत का कोई मज़हब, कोई ज़बान नहीं होती। 'रेडियोवाणी' ब्लॉग है लोकप्रियता से इतर कुछ अनमोल, बेमिसाल रचनाओं पर बातें करने का। बीते नौ बरस से जारी है 'रेडियोवाणी' का सफर।

Thursday, April 10, 2008

फिल्‍म मधुमति ने पूरे किये पचास साल : आजा रे परदेसी ।

कल रेडियोवाणी ने अपनी पहली वर्षगांठ मनाई । मैं तमाम मित्रों, सहयोगियों और शुभचिंतकों का आभार व्‍यक्‍त करता हूं जो रेडियोवाणी के इस उत्‍सव में शामिल हुए । रेडियोवाणी के लिए संगीत ही मज़हब है । संगीत जुनून है और जीवन का एक अनिवार्य हिस्‍सा है । जल्‍द ही रेडियोवाणी पर साल भर की महत्‍त्‍वूपर्ण पोस्‍टों की लिंकित सूची जारी की जाएगी ताकि यहां आकर सुनने की सहूलियत रहे ।

आज सबेरे सबेरे अख़बार ने एक सुहानी ख़बर थी । पता चला कि बिमल रॉय की फिल्‍म ' मधुमति' को पचास साल हो गये हैं । और मुंबई में इस फिल्‍म का स्‍वर्ण-जयंती समारोह आयोजित किया जा रहा है । अगर आप मुंबई में हैं तो फौरन आज के मुख्‍य अख़बारों का फिल्‍मों के विज्ञापन वाला पन्‍ना देखिए और मधु‍मति देखने की जुगाड़ फिट कर लीजिए । या फिर इस वेबसाईट पर जाईये । 

Lp-Madhumati'मधुमति' की स्‍वर्ण-जयंती कई मायनों में अहम है । इसलिए आज से मैं एक श्रृंखला की शुरूआत कर रहा हूं, जिसमें हम फिल्‍म मधुमति के विभिन्‍न गीत सुनेंगे, इसके संगीत का विश्‍लेषण करेंगे । और फिल्‍म के विविध पहलुओं पर भी बात करेंगे । और मुझे लगता है कि इस बहस को दोतरफा रखा जाना चाहिए । इसलिए अगर 'मधुमति' पर केंद्रित इस श्रृंखला में आप भी अपनी बात रखना चाहते हैं तो अगली पोस्‍टों में आपका स्‍वागत है । आगे चलकर हम बतायेंगे कि मधुमति की समकालीन फिल्‍में कौन सी थीं और इस फिल्‍म का बिमल रॉय की फिल्‍मोग्राफी में क्‍या महत्‍त्‍व है । इस फिल्‍म की यूनिट में कौन कौन शामिल थे । परदे के पीछे की घटनाएं वग़ैरह सब कुछ ।

( मधुमति फिल्‍म के रिकॉर्ड की ये तस्‍वीर http://partiessareesandmelodies.blogspot.com/ से साभार )

मधुमति की कहानी क्‍या थी, ये कल की पोस्‍ट में बताया जायेगा । हो सकता है कि आपने ये फिल्‍म देखी हो पर भूल गये हों । हो सकता है कि देखी भी हो और याद भी हो । और दोहराना भी चाहें । बहरहाल आज की कड़ी में हम मधुमति के सबसे लोकप्रिय गीत 'आजा रे परदेसी' की चर्चा करेंगे । मैंने पहले भी आपको बताया है कि लता मंगेशकर इस गाने से अपने लगभग हर कंसर्ट में फिल्‍मी गानों के सिलसिले को शुरू करती हैं । मैंने पता किया तो मालूम पड़ा कि ऐसा इसलिए क्‍योंकि इसी गीत के लिए लता जी को अपना पहला फिल्‍म-फेयर पुरस्‍कार मिला था । ये गीत लता जी के बहुत पसंदीदा गीतों में से एक है ।

लेकिन क्‍या आपको पता है कि बिमल रॉय को शैलेंद्र का लिखा और सलिल चौधरी का स्‍वरबद्ध किया ये गीत पसंद नहीं आया था । और वो इसे अपनी फिल्‍म में शामिल भी नहीं करना चाहते थे । पर सलिल दा एकदम अड़ गये और बिमल रॉय को मानना पड़ा । इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि सलिल चौधरी का सर्वश्रेष्‍ठ संगीत मधुमति में है ।

इस गाने को ही लीजिए....फिल्‍म की पहाड़ की पृष्‍ठभूमि की वजह से सलिल 220px-Vyjayanthimala_Madhumati दा ने इस फिल्‍म के गीतों में पहाड़ी वाद्यों का खूब प्रयोग किया है । जैसे लता जी जैसे ही मुखड़ा गाती हैं तो उसके बाद पहाड़ी बांसुरी जैसे किसी वाद्य की विकल स्‍वरलहरी है । फिर लता जी आती हैं ये कहते हुए......मैं तो कब से खड़ी इस पार ।

पहले अंतरे के बाद सलिल दा ने इंटरल्‍यूड में 'घड़ी घड़ी मोरा दिल धड़के' की धुन रखी है । बाद में इस तरह के प्रयोग नये संगीतकारों ने खूब किये । खासकर राजश्री प्रोडक्‍शंस की फिल्‍मों में राम लक्ष्‍मण ने और यश चोपड़ा की फिल्‍मों में उनके अलग अलग संगीतकारों ने ।

फिर सलिल दा ने एक और प्रयोग किया है ' मैं दिये की एक ही बाती' वाले अंतरे के बाद जब लता जी 'आ मिल मेरे जीवन साथी' पर आती हैं तो रिदम एकदम खामोश हो जाता है । और उसके बाद मुखड़े के साथ फिर से रिदम तरंगित हो जाता है । लता जी ने इस गाने को अतिरिक्‍त मिठास के साथ गाया है । जैसे लता जी स्‍वयं किसी परदेसी की प्रतीक्षा में पंथ निहार रही हों । मुझे लगता है कि अपनी मासूम और विकल भावनाओं में ये गीत विरह के किसी भी महत्‍त्‍वपूर्ण काव्‍य से कम नहीं है । विडंबना ये रही है कि हमारे यहां फिल्‍मी गीतों में आई 'कविता' पर उतना ध्‍यान नहीं दिया गया । मुझे पूरा विश्‍वास है कि ये गीत देर तक और दूर तक आपके ज़ेहन में गूंजता रहेगा ।

चूंकि बात 'आजा रे परदेसी' की चल रही थी तो अपने खजाने में मुझे क्‍लेरियोनेट पर मास्‍टर इब्राहीम की बजाई मधुमति फिल्‍म के गाने की धुन भी मिल गयी । जिसे रेडियोवाणी के नियमित पाठक पहले भी सुन चुके हैं । इसका भी आनंद लीजिए । इस गाने के बोल भी दिये जा रहे हैं । और साथ में यू्ट्यूब वीडियो भी ।

आजा रे परदेसी
मैं तो कब से खड़ी इस पार
ये अंखिया थक गई पंथ निहार
आजा रे परदेसी
मैं दीये की ऐसी बाती
जल न सकी जो बुझ भी न पाती
आ मिल मेरे जीवन साथी
आजा रे .....
तुम संग जनम जनम के फेरे
भूल गए क्यों साजन मेरे
तडपत हूँ मैं सांझ सवेरे
आजा रे ...
मैं नदिया फ़िर भी मैं प्यासी
भेद ये गहरा बात जरा सी
बिन तेरे हर साँस उदासी
आजा रे ...

 

6 comments:

Neeraj Rohilla April 10, 2008 at 9:42 AM  

अहा,

"मैं नदिया फ़िर भी मैं प्यासी, भेद ये गहरा बात जरा सी" | इस फ़िल्म को अभी २ साल पहले फ़िर से देखा था, पूरी फ़िल्म को मन भर के फ़िर से जिया था; विशेषकर संगीत को |

सलिल दा पर तो एक पूरी कड़ी होनी चाहिये रेडियोवाणी पर, कब प्रस्तुत कर रहे हैं आप?

PD April 10, 2008 at 11:16 AM  

बहुत खूब.. मेरे पास यह सिनेमा है और इसे बहुत दिनों से मैंने नहीं देखा है.. आज ही घर जाकर इसे लगाउंगा.. अच्छा याद दिलाया.. :)

Gyan Dutt Pandey April 10, 2008 at 7:56 PM  

पचास साल - यह तो शाश्वत गीत है!

Harshad Jangla April 11, 2008 at 5:52 AM  

In my opinion this film is a best one in every respect- Story,screenplay,acting,photography,lyrics,music.....film ke sabhi pehloose dekha jaye to ye film bahut hi achchi bani thi. Maine to ise nav baar (9 times) dekhi hai aur ab to DVD bhi hai.
-Harshad Jangla
Atlanta, USA
April 10, 2008

Unknown April 12, 2008 at 12:34 PM  

वाह, गीत सुनकर आनंद आ गया . ।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` April 14, 2008 at 7:29 AM  

यूनुस भाई,
रेडियोवाणी के १ साल के सफल सफर पर आप को बधाई !!
- हम सभी को सुमधुर गीत सुनवाने के लिये आपका आभार और आगामी साल मेँ आप अपनी आवाज़ से भी परिचय करवायेँ तो बहुत खुशी होगी ...
( through Podcasted posts )
" मधुमती " फिल्म के सारे गाने मुझे प्रिय हैँ ..
स्नेह सहित
-लावन्या

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http://www.google.com/transliterate/indic/

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