संगीत का कोई मज़हब, कोई ज़बान नहीं होती। 'रेडियोवाणी' ब्लॉग है लोकप्रियता से इतर कुछ अनमोल, बेमिसाल रचनाओं पर बातें करने का। बीते नौ बरस से जारी है 'रेडियोवाणी' का सफर।

Sunday, March 9, 2008

ग़म का ख़ज़ाना तेरा भी है मेरा भी-जगजीत सिंह और लता मंगेशकर की आवाज़, अलबम 'सजदा'

 

जगजीत सिंह हमेशा अपने इंटरव्‍यू में कहते थे कि उनकी तमन्‍ना है सुर-साम्राज्ञी लता मंगेशकर के साथ गाने की । एक दो गीत नहीं पूरा अलबम वो लता जी के साथ करना चाहते हैं । मुझे याद है कि ग़ज़लों का एक पूरा दौर था वो जब हम लोग बड़े हो रहे थे । हमारे आसपास जाने कितने लोग ग़ज़लें सुनते मिल जाते थे । कठिन उर्दू शब्‍दों के अर्थ खोजते मिल जाते थे । भोपाल चूंकि शेरो-शायरी का गढ़ था इसलिए यहां के तिनके तिनके में शायरी का इल्‍म छिपा था । पान की दुकान पर कत्‍था और चूना का इंस्‍ट्रक्‍शन देते हुए बड़े मियां भी आसपास खड़े....ठिए के अपने साथियों से दाद /तारीफ़ पाने की तमन्‍ना में 'शेरों' की पुडि़या छोड़ते रहते थे । उसी दौर का एक शेर सुनिए जो अपन ने बचपन में ऐसे ही किसी बड़े मियां से सुना था...पर समझ में ज़रा बाद में ही आया---अर्ज़ किया है कि

उसकी क़ब्र पर पहुंचकर ऐ क़ासिद मुंह से निकली ये आवाज़

ऐ मरने वाले उठ....तेरे ख़त का जवाब आया है ।

ठेठ भोपाली शेर है । गुलशन नंदाई फिल्‍मों की मिसाल अगर आप समझते हैं तो ठेठ भोपाली शेर का मतलब भी समझ जाएंगे । भोपाली शेर यानी कलाबाज़ी । यानी चौंकाने का माद्दा । ओह वो बचपन का भोपाल । बहरहाल......वापस आते हैं । तो मुद्दा ये है कि जगजीत सिंह, भूपिंदर, पंकज उधास, तलत अज़ीज, चंदन दास से लेकर मेहदी हसन, गुलाम अली , नूरजहां,

.... पान की दुकान पर कत्‍था और चूना का इंस्‍ट्रक्‍शन देते हुए बड़े मियां भी आसपास खड़े....ठिए के अपने साथियों से दाद /तारीफ़ पाने की तमन्‍ना में 'शेरों' की पुडि़या छोड़ते रहते थे ।

मलिका पुखराज, बेगम अख्‍तर जैसे ना जाने कितने नामचीन गायकों की आवाज़ों में उम्‍दा शायरों के अशआर हमारे कान में घुले । शायद हमारे संस्‍कारों में, हमारे लहू में उतर गये । अपने जेबख़र्च से पैसे बचा बचाकर हमने जगजीत के कैसेट ख़रीदे । मेहदी हसन के कैसेट जमा किये । कॉपी भी किए । उसी ज़माने के आखि़री दौर में आया अलबम 'सजदा' । जिसमें जगजीत सिंह ने लता मंगेशकर के साथ कुछ ग़ज़लें  गायी थीं । जबकि कुछ ग़ज़लें दोनों ने अलग-अलग गायी थीं । कई मायनों में ये एक अनमोल अलबम था । जिसे हम एक ख़ज़ाने की तरह संभालकर रखते रहे । आज भी ये अलबम हमारे संग्रह में है । चलिए इसी एलबम की एक ग़ज़ल सुनी जाए । लता जी और जगजीत का नायाब संयोग है इस ग़ज़ल में । शायर हैं शाहिद कबीर । जिनकी अन्‍य ग़ज़लें आप यहां पढ़ सकते हैं ।

गम का ख़ज़ाना तेरा भी है मेरा भी

ये नज़राना तेरा भी है मेरा भी ।।

अपने ग़म को गीत बनाकर गा लेना

राग पुराना तेरा भी है मेरा भी

मैं तुझको और तू मुझको समझाए क्‍या

दिल दीवाना तेरा भी है मेरा भी

शहर में गलियों में जिसका चर्चा है

वो अफ़साना तेरा भी है मेरा भी

मैख़ाने की बात ना कर मुझसे वाइज़

आना जाना तेरा भी है मेरा भी

ग़म का ख़ज़ाना तेरा भी है मेरा भी

ये नज़राना तेरा भी है मेरा भी ।।

ये रहा इस गाने का वीडियो ।।

यहां इसे सुना जा सकता है ।

 

और ये कलाबाज़ी मुझे इंटरनेट पर भटकते हुए मिली ।

Lata Mangeshkar on 6Lyrics.com

7 comments:

पारुल "पुखराज" March 9, 2008 at 10:11 AM  

iss ALBUM se badi meethi yaaden judin hain hamari YUNUS ji,mangni ke baad pehlaa TAUhFAA jo miyan ji ne bhejaa thaa vo "SAJDAA" thaa..sunvaney ka shukriyaa...kalaabaji badi acchhi lagi aapki..

दिनेशराय द्विवेदी March 9, 2008 at 5:50 PM  

यूनुस भाई इस ग़जल के लिए बहुत बहुत आभारी हूँ।

Udan Tashtari March 9, 2008 at 7:32 PM  

बहुत चुनिंदा..आभार इसे लाने का.

डॉ. अजीत कुमार March 9, 2008 at 7:59 PM  

लता जी के साथ कुछ बहुत अच्छे ग़ज़लों में से है ये ग़ज़ल.
गम का खजाना तो है, पर हमें तो पुरसुकून तसल्ली दे जाती ग़ज़ल.
हाँ, आपकी खोजी करामात भी लाजवाब है.
धन्यवाद.

कंचन सिंह चौहान March 10, 2008 at 3:11 PM  

kai baar reverse kar kar ke suni hai ye gazal ..sunvane ka shukriya

SahityaShilpi March 10, 2008 at 4:41 PM  

गम का ख़ज़ाना तेरा भी है मेरा भी

युनुस जी! इस खज़ाने से एक बार फिर रूबरू कराने के लिये धन्यवाद! बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल है.

- अजय यादव
http://merekavimitra.blogspot.com/
http://ajayyadavace.blogspot.com/
http://intermittent-thoughts.blogspot.com/

सागर नाहर March 13, 2008 at 12:18 PM  

यूनूस भाई
गज़ल बढ़िया है। एक और एल्बम है शायद "दिल" उसमें लता जीत-जगजीत सिंह के साथ आशाजी ने भी गज़लें गाई है मुझे उसमें की एक गज़ल तु्मको भूल ना पायेंगे बहुत पसन्द है।

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