हाथ बढ़ा ऐ जिंदगी आंख मिलाके बात कर-- हिप हिप हुर्रे फिल्म का गीत ।
कुछ गाने मन के भीतर कहीं अपनी जगह बना लेते हैं । फिर यादों की परतें चढ़ती जाती हैं और गाना कहीं भीतर दबकर रह जाता है । गाहे-बगाहे गाना इन निचली परतों के भीतर से झांककर अपनी मौजूदगी का अहसास करता रहता है...ऐसे ही एक गाने की याद किसी ने दिला दी है । मुझे याद है दूरदर्शन के ज़माने में मैंने प्रकाश झा की ये फिल्म बड़े ही चाव से देखी थी--'हिप हिप हुर्रे' । इस फिल्म में राजकिरण और दीप्ती नवल की जोड़ी थी । मुझे इस खेल-फिल्म के गाने बहुत पसंद आए थे । वक्त वक्त पर ये गीत मैं रेडियोवाणी पर प्रस्तुत करने का प्रयास करूंगा ।
विविध भारती में आने के बाद मुझे प्रकाश झा से बातचीत का भी मौक़ा मिला और दीप्ती नवल से तो उनके अपने घर पर जाकर बातचीत की । दोनों ने इस फिल्म को बड़ी शिद्दत से याद किया । क्योंकि दोनों की ही जिंदगी में इस फिल्म के बड़ा महत्त्व रहा है । दोनों इस फिल्म के ज़रिए क़रीब आए थे । शादी के रास्ते पर चल पड़े थे ।
.... रोज़ तेरे जीने के लिए एक सुबह मुझे मिल जाती है मुरझाती है...कोई शाम अगर तो रात कोई खिल जाती है मैं रोज़ सुबह तक आता हूं और रोज़ शुरू करता हूं सफ़र हाथ बढ़ा ऐ जिंदगी आंख मिला के बात कर ।।
विविध भारती में आने के बाद मुझे 'हिप हिप हुर्रे' के गाने तसल्ली से सुनने को मिले । और अब इंटरनेट पर ई स्निप्स से जुगाड़ कर ये गाने आप तक पहुंचाए जा रहे हैं
गुलज़ार के बोल हैं । और बहुत ख़ास हैं । संयोग देखिए कि रेडियोवाणी पर पिछली पोस्ट भी वनराज भाटिया के गाने की ही थी--जिसके बोल थे--'ये फासले तेरी गलियों के हमसे तय ना हुए' । और इसके फ़ौरन बाद मैं जिस गाने का जिक्र कर रहा हूं वो भी वनराज भाटिया ने ही स्वरबद्ध किया है । ये गुलज़ार का गीत है । ठेठ गुलज़ारी गीत । अपने व्याकरण और अपनी भावनाओं के लिहाज़ से अव्वल नंबर है ये गीत । आईये इसके संगीत की बात की जाए । येसुदास की आवाज़ है इस गाने में । यानी वनराज भाटिया, गुलज़ार और येसुदास की दुर्लभ तिकड़ी ।
येसुदास ने इस गाने को बहुत अंडरप्ले करते हुए गाया है, कोई कलाबाज़ी नहीं है । सुनने वालों को इंप्रेस करने की कोई कोशिश नहीं है । बस एक नर्म गाने को निभा ले जाने की कोशिश ज़रूर है । चूंकि गाना खेल-जीवन से जुड़ा है इसलिए रिदम फास्ट रखा गया है । ग्रुप वायलिन का बेहतरीन इस्तेमाल किया है वनराज भाटिया ने ।
.... इस प्लेयर के बारे में भी राय दीजिएगा । इंटरनेट आर्काइव पर मिल गया और स्ट्रीमिंग में तेज़ तो लग ही रहा है । मुद्दा ये भी है कि संभवत: इस पर राईट क्लिक करके आप गाने को डाउनलोड कर सकेंगे ।
आपको बता दें कि वनराज भाटिया ने बाक़ायदा वेस्टर्न क्लासिकल म्यूजिक की सालों-साल ट्रेनिंग की और फिलहारमोनिक ऑक्रेस्ट्रा में शामिल भी रहे हैं । भारतीय शास्त्रीय संगीत और वेस्टर्न क्लासिकल के ऐसे ज्ञाता कम ही होते हैं । वनराज भाटिया के पहले अगर ऐसा कोई ज़ोरदार नाम आता है तो वो हैं हमारे प्यारेलाल जी, लक्ष्मी-प्यारे की जोड़ी वाले । वो भी इस मामले में माहिर व्यक्ति हैं । बहरहाल...इतना तो तय है कि साढ़े तीन मिनिट के इस गाने को आप एक बार सुनकर संतुष्ट नहीं होंगे । बार बार सुनेंगे । मेरे ज़ेहन में तो पिछले तीन-चार दिनों से ये गीत लगातार गूंज रहा है । आप क्या कहते हैं । और हां इस प्लेयर के बारे में भी राय दीजिएगा । इंटरनेट आर्काइव पर मिल गया और स्ट्रीमिंग में तेज़ तो लग ही रहा है । मुद्दा ये भी है कि संभवत: इस पर राईट क्लिक करके आप गाने को डाउनलोड कर सकेंगे ।
एक सुबह एक मोड़ पर मैंने कहा कहा उसे रोककर
हाथ बढ़ा ऐ जिंदगी । आंख मिलाके बात कर ।।
रोज़ तेरे जीने के लिए एक सुबह मुझे मिल जाती है
मुरझाती है...कोई शाम अगर तो रात कोई खिल जाती है
मैं रोज़ सुबह तक आता हूं और रोज़ शुरू करता हूं सफ़र
हाथ बढ़ा ऐ जिंदगी आंख मिला के बात कर ।।
तेरे हज़ारों चेहरों इक चेहरा है मुझसे मिलता है
आंख का रंग मिलता है आवाज़ का अंग भी मिलता है
सच पूछो तो हम दो जुड़वां हैं, तू शाम मेरी मैं तेरी सहर
हाथ बढ़ा ऐ जिंदगी आंख मिलाके बात कर ।।
एक सुबह एक मोड़ पर मैंने कहा उसे रोककर
मैंने कहा उसे रोककर ।।
6 comments:
यूनुस भाई,
सुबह सुबह ही येसुदास जी की आवाज़ और हाथ बढ़ा ऐ जिंदगी..... , मन प्रसन्न हो गया. येसुदास की ऎसी तेज़ रिदम के गाने कम ही सुनने को मिलते हैं पर इस गाने में भी वो बेमिसाल हैं. गाना भरपूर उर्जा से भरा हुआ है. गुलज़ार साहब के शब्दों को वनराज भाटिया ने बखूबी कम्पोज किया है.
धन्यवाद.
रोज़ तेरे जीने के लिए एक सुबह मुझे मिल जाती है
मुरझाती है...कोई शाम अगर तो रात कोई खिल जाती है
मैं रोज़ सुबह तक आता हूं और रोज़ शुरू करता हूं सफ़र
शुक्रिया यूनुस भाई, आप कैसे समझे ये गीत आज ही पोस्ट करना ज़रूरी है ??
बहुत पसंद आया यह गीत । ताज़ा तरीन और ज़िन्दगी से भरपूर।
हिप हिप हुर्रे मैंने स्कूल में देखी थी। इसका शीर्षक गीत हिप हिप हुर्रे हुर्रे हो होता है जो होने दो, हार जीत तो होनी है खेल तो यारों खेलने दो मुझे बेहद पसंद आया था।
तब प्रकाश झा का पैतृक घर पटना के आफिसर्स हॉस्टल में हुआ करता था. मुझे आज भी याद है कि दीप्ति नवल आफिसर्स हॉस्टल की बहू बन कर जब पहली बार आईं थीं तो पूरे फ्लैट्स की सारी बॉलकोनी उन्हें देखने के लिए खचाखच भर गई थी।
इस गीत के बारे में तफ़सील से बात करने का शुक्रिया। एक पंक्ति में आँख का रंग एक सा है होगा उसे सुधार लें।
धन्यवाद, यूनुस जी। एक यादगार गीत सुनवा कर आप ने दिल खुश कर दिया।
युनुस जी! बहुत बहुत आभार इस खूबसूरत गीत को सुनवाने के लिये! वनराज भाटिया जी द्वारा संगीतबद्ध गीतों को सुनवाने की गुज़ारिश मैं एक बार पहले भी आपसे कर चुका हूँ. चलिये आज एक गीत तो सुनवा ही दिया :)
- अजय यादव
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