संगीत का कोई मज़हब, कोई ज़बान नहीं होती। 'रेडियोवाणी' ब्लॉग है लोकप्रियता से इतर कुछ अनमोल, बेमिसाल रचनाओं पर बातें करने का। बीते नौ बरस से जारी है 'रेडियोवाणी' का सफर।

Thursday, March 13, 2008

क्‍लेरिनेट पर 'आजा रे परदेसी' : मास्‍टर इब्राहीम ।

रेडियोवाणी पर पिछली बार प्रायोगिक तौर पर हमने आपको एक गाने की धुन सुनवाई थी जिसे क्‍लेरिनेट पर बजाया था मास्‍टर इब्राहीम ने । लेकिन थोड़ी-सी ग़फ़लत हो गयी । सूरत से पियूष मेहता का संदेस आया कि इस धुन में थोड़ा पंगा है । मतलब ये कि ये क्‍लेरिनेट वाली धुन नहीं है और ना ही मास्‍टर इब्राहीम की बजाई लगती है । मैंने तफ़्तीश की...वाद्य संगीत के मामले में संशय बहुत होता है । तफ़्तीश में पाया गया कि एलबम बनाने वालों की ग़लती से इनॉक डैनियल्‍स के पियानो अकॉर्डियन वाले एलबम की एक धुन यहां वहां हो गयी और नाहक हमें माथा-पच्‍ची में डाल दिया ।

अब स्थिति स्‍पष्‍ट कर दी जाए कि पिछली पोस्‍ट में सुनवाई गयी धुन को इनॉक डैनियल्‍स की समझा जाये और वो वाद्य क्‍लेरिनेट नहीं बल्कि पियानो अकार्डियन माना जाए । अबकी बार बड़ा संभल संभल के एक और फिल्‍मी धुन लाया हूं । पर इस बार पक्‍की जानकारी है और ये मास्‍टर इब्राहीम की क्‍लेरिनेट पर ही बजाई हुई ही है । लेकिन इस धुन पर आने से पहले इंदौर से भाई संजय पटेल की पिछली पोस्‍ट पर आई टिप्‍पणी में से कुछ पंक्तियों पर ग़ौर कीजिए----

साज़-आवाज़ कार्यक्रम में मास्टर इब्राहिम की बहुतेरी धुनों को सुनने का मौक़ा मिलता था यूनुस भाई. इसी में वान शी प्ले, एनॉकडेनियल्स ,वी . बलसारा और चिरंजीत सिंह से हवाइन गिटार,एकॉर्डियन,यूनीबॉक्स प्यानो और मेंडोलियन पर कई धुनें सुनने के बाद मैं पिताजी से ज़िद कर के बेंजो ख़रीद लाया था और स्कूल से कॉलेज तक आते आते कई ट्रॉफ़िया जीतने का मज़ा ले चुका था. साज़ और आवाज़ ने मुझ जैसे कई मध्यमवर्गीय परिवारों के किशोरों और युवकों को विभिन्न वाद्यों की ओर खींचा.आपकी पोस्ट और माडसाब के ज़िक्र से किशोर और युवा मन की यादों के गलियारों की सैर कर आया हूँ आज

इससे पता चलता है कि ये वाद्य-संगीत, ये फिल्‍मी धुनें किस क़दर असर करती रही हैं । मेरा ख़ुद का मामला यही है कि गानों और उनकी धुनों ने मुझे कई वाद्य-यंत्रों की तरफ खींचा । जिसमें गिटार और सेक्‍सॉफॉन बहुत प्रमुख हैं । अफ़सोस कि इन दोनों साज़ों को बजाना मैं आज तक नहीं सीख पाया । ये तमन्‍ना आज भी अधूरी ही है । बहरहाल फिर से मास्‍टर इब्राहीम पर लौट आएं । उनके क्‍लेरिनेट में ग़ज़ब का आकर्षण है । इस पोस्‍ट में मैं आपके लिए एक अभ्‍यास छोड़ रहा हूं । अगर वाक़ई आप संगीत के गहरे रसिक हैं तो इस गाने को सुनते हुए क्‍लेरिनेट पर तो ध्‍यान दीजिएगा ही, पर ज़रा ये भी आज़माईये कि फिल्‍म मधुमति के इस बेहद चर्चित गीत की सारी पंक्तियां आपको याद आईं या नहीं । या फिर आप ये कहते रह गये कि.....अरे याद तो है पर ज़बान पर नहीं आ रही हैं । इस अभ्‍यास से इस धुन को सुनने का आपका मज़ा दोगुना हो जाएगा ।

चलने से पहले दो बातें बता दूं । इस गाने के लिए लता मंगेशकर को अपना सन 1958 में पहला फिल्‍मफेयर पुरस्‍कार मिला था । दूसरी बात ये कि इसे शैलेंद्र ने लिखा है । और सलिल चौधरी का संगीत है । लता जी अपने लगभग हर कंसर्ट में फिल्‍मी गीतों का आरंभ इस गाने से करने पर ज़ोर देती हैं ।

अनामदास जी का आग्रह फिल्‍मी धुनों की श्रृंखला का है । अच्‍छा आग्रह है । मैंने अनियमित श्रृंखला शुरू करने का मन बनाया है । इरफ़ान से खुला आग्रह है कि अगर वो वहां से तान छेड़ें तो हम दोनों मिलकर चिट्ठों की दुनिया में फिल्‍मी वाद्य संगीत का बेहतरीन माहौल तैयार कर दें ।

12 comments:

jyotin kumar March 13, 2008 at 6:29 PM  

Bahut Khoob yunus ji maza aa gaya.

Arun Arora March 13, 2008 at 6:34 PM  

ab यूनूस भाइ इसे हम कैसे सेव करे ये भी सिखा दो हमे तो ..? ताकी आने वाले वक्त मे हम भी आपको आप्के ही गाने सुनवा सके..:)

Anonymous,  March 13, 2008 at 6:43 PM  

Sir,

Thanks for the song and nice information.

Rgards,
Bhakit

इरफ़ान March 13, 2008 at 7:08 PM  

यूनुस भाई,
आपका आदेश सर आँखों पर, बस बच्चों के पेपर कल ख़त्म हो जाएँ...शुरू करता हूँ.

Rajendra March 13, 2008 at 10:02 PM  

भाई यूनुस आनंद आ गया धुन सुन कर .
तो पेश है कवि शैलेन्द्र के शब्द. कितने सरल मगर कितने गहरे.

आजा रे परदेसी
मैं तो कब से खड़ी इस पार
ये अंखिया थक गई पंथ निहार
आजा रे परदेसी
मैं दीये की ऐसी बाती
जल न सकी जो बुझ भी न पाती
आ मिल मेरे जीवन साथी
आजा रे .....
तुम संग जनम जनम के फेरे
भूल गए क्यों साजन मेरे
तडपत हूँ मैं सांझ सवेरे
आजा रे ...
मैं नदिया फ़िर भी मैं प्यासी
भेद ये गहरा बात जरा सी
बिन तेरे हर साँस उदासी
आजा रे ...

PIYUSH MEHTA-SURAT March 14, 2008 at 1:07 AM  

श्री युनूसजी,
यह धून पिछली पोस्ट वाली श्री एनोक डेनियेल्स की है, वह सही है, पर जैसे मैनें लिखा था वह साझ पियनो-एकोर्डियन नहीं पर उनके द्वारा संयोजित वाद्यवृन्द रचना ही है । जैसे मैनें लिखा है, इसी धून को पियानो-एकोर्डियन पर उन्होंने एक अलग ७८ आरपीएम या ईपी पर बजाया है । मेरे पास विविध भारती से ही करीब १९७५ या १९७६में आने वाले गुन्जन कार्यक्रम से ध्वनि-आंकित की हुई इसी धून पियानो एकोर्डियन पर अलग से है । (शोर्ट वेव से)
पियुष महेता \
सुरत-३९५००१.

PIYUSH MEHTA-SURAT March 14, 2008 at 1:07 AM  

श्री युनूसजी,
यह धून पिछली पोस्ट वाली श्री एनोक डेनियेल्स की है, वह सही है, पर जैसे मैनें लिखा था वह साझ पियनो-एकोर्डियन नहीं पर उनके द्वारा संयोजित वाद्यवृन्द रचना ही है । जैसे मैनें लिखा है, इसी धून को पियानो-एकोर्डियन पर उन्होंने एक अलग ७८ आरपीएम या ईपी पर बजाया है । मेरे पास विविध भारती से ही करीब १९७५ या १९७६में आने वाले गुन्जन कार्यक्रम से ध्वनि-आंकित की हुई इसी धून पियानो एकोर्डियन पर अलग से है । (शोर्ट वेव से)
पियुष महेता \
सुरत-३९५००१.

PIYUSH MEHTA-SURAT March 14, 2008 at 1:07 AM  

श्री युनूसजी,
यह धून पिछली पोस्ट वाली श्री एनोक डेनियेल्स की है, वह सही है, पर जैसे मैनें लिखा था वह साझ पियनो-एकोर्डियन नहीं पर उनके द्वारा संयोजित वाद्यवृन्द रचना ही है । जैसे मैनें लिखा है, इसी धून को पियानो-एकोर्डियन पर उन्होंने एक अलग ७८ आरपीएम या ईपी पर बजाया है । मेरे पास विविध भारती से ही करीब १९७५ या १९७६में आने वाले गुन्जन कार्यक्रम से ध्वनि-आंकित की हुई इसी धून पियानो एकोर्डियन पर अलग से है । (शोर्ट वेव से)
पियुष महेता \
सुरत-३९५००१.

रवि रतलामी March 14, 2008 at 10:42 AM  

"...मेरा ख़ुद का मामला यही है कि गानों और उनकी धुनों ने मुझे कई वाद्य-यंत्रों की तरफ खींचा । जिसमें गिटार और सेक्‍सॉफॉन बहुत प्रमुख हैं । ..."

मैंने भी कोई पच्चीसेक साल पहले गिटार बजाना सीखा था, परंतु रियाज और समर्पण के अभाव में भूल गया. संगीत की रचना में वास्तविक समर्पण और गंभीर रियाज की दरकार होती है, तभी सुर सधते हैं. ये बात तब पता चली थी.

कंचन सिंह चौहान March 14, 2008 at 12:01 PM  

मेरी संगीत अध्यापिका इस गीत को बहुत अच्छा गाती थीं...आजकल बहुत बीमार हैं...रात से ही उनमें मन लगा था और सुबह ये गीत सुन कर मन और बेचैन हो गया

Manish Kumar March 15, 2008 at 6:33 PM  

भाई ये सब तो ठीक है पर हम ज़ाहिलों को थोड़ा ये भी बताएँ के ये कैसे पहचान करें कि कौन सा क्‍लेरिनेट और पियानो अकार्डियन है।

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