शहनाई के शहंशाह बिस्मिल्ला ह खां के बिना एक साल
आज उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ान की बरसी है । पहली बरसी ।
शहनाई की स्वरलहरी पर अगर कोई चेहरा याद आता है तो वो बिस्मिल्लाह ख़ां का ही रहा है । मैंने जब से होश संभाला उन्हें बस उसी बनारसी अदा में देखा । सिर पर टोपी, पान से लाल हुए होंठ, चेहरे पर मुस्कान और बातों में वही बनारसी ठसक और पिनक । कब क्या और कितना तुर्श बोल दें कुछ नहीं पता ।
करीब दो साल पहले डॉ. शोमा घोष के बुलावे पर वो मुंबई के नेहरू सेन्टर में आए थे। वे शोमा घोष के गुरू पिता थे । बिस्मिल्लाह खां ने शोमा घोष के साथ अलबम भी तैयार किया और मंच पर प्रस्तुतियां भी कीं ।
बिस्मिल्लाह खां की शहनाई लाल किले की प्राचीर से हमेशा सुनाई देती रही । चाहे पंद्रह अगस्त हो या छब्बीस जनवरी । अब ये चिरंतन सत्य बन गया है कि कुछ शुभ हो, सुंदर हो तो शहनाई बजेगी और अगर शहनाई बजेगी तो वो बिस्मिल्लाह ख़ां की ही होगी । ठेठ बनारसी रंग में रंगे बिस्मिल्लाह ख़ा साहब ने सारी दुनिया को दिखा दिया कि धार्मिक-कट्टरता के बाहर निकलकर कुछ मुस्लिम कलाकारों ने किस तरह संगीत को अपना धर्म बनाया । काशी के घाटों पर बड़ी तन्मयता से शहनाई बजाने वाले बिस्मिल्लाह ख़ां पंजवक्ता नमाज़ी रहे । लेकिन धर्म को लेकर उनके मन में कोई रूकावट या हिचक नहीं थी । जब वो मूड में होते तो महादेव के भजन गुनगुनाते और ऐसी आवाज़ कि सुनकर लगे जन्म सफल हो गया है ।
मुंबई में पत्रकारों ने जब उनसे असुविधाजनक सवाल पूछे तो उन्होंने वो ख़बर ली थी कि पूछिये मत । उन्होंने वो मिसालें दीं और वो प्रसंग छेड़े के सिर्फ छेड़ने के लिए सवाल पूछने वाले एकदम सहम गये थे । बिस्मिल्लाह ख़ां ने शहनाई को शादी की महफिलों से निकालकर शास्त्रीय-संगीत की महफिल में सजा दिया । उन्होंने जीवन भर संगीत को ही जिया । तमाम तरह के विवादों और झंझटों के बावजूद बिस्मिल्लाह ख़ां शहनाई के शहंशाह हैं । और इस संक्षिप्त पोस्ट के ज़रिए रेडियोवाणी और संगीत के तमाम कद्रदान उन्हें श्रद्धांजली अर्पित कर रहे हैं ।
आईये सुनें बिस्मिल्लाह ख़ां साहब का शहनाई वादन—
ये है उनकी बजाई कजरी--
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ये है एक पहाड़ी धुन--
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बिस्मिल्लाह ख़ां साहब ने शहनाई पर भांगड़ा तक बजाया है सुनिए—
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यहां सुनिए शादी की शहनाई—
उस्ताद बिस्मिल्लाह खां और उ.अमीर खां साहब फिल्म गूंज उठी शहनाई ।
रागमाला फिल्म गूंज उठी शहनाई--
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13 comments:
कैसे धन्यवाद करूं आपका. खां साहेब को गये सालभर हो गया. एक लेख लिखकर संतोष कर लिया था उस समय जब वे गये. मैं खां साहेब की शहनाई और उनकी शख्सियत दोनों का मुरीद हूं. वे कोई रूहानी अवतार थे जो आम इंसान की तरह आये और अति आम इंसान की तरह हमारे बीच से चले गये. लेकिन इतना कुछ खास दे गये कि शुक्रिया अदा कर उस थाती का महत्व कम नहीं करना चाहिए.
कला के इस पुजारी को विनम्र श्रद्धांजलि !
अन्नपूर्णा
भाई यूनुस.
आज तो रेडियो वाणी के आकाश में सुबह बिस्मिल्लाह ख़ान साहेब का सूरज उगा.
वाह ! आज का दिन उनके संगीत से दमक गया. कैसे आपका धन्यवाद करें ? आप जिए हज़ारों साल.
कहाँ से लाएँगे अब ख़ान साहेब जैसे फ़नकार. लेकिन जब तक रेडियो वाणी के दोस्तों की जमात है तब तक भारतीय संगीत की ऐसी अनूठी परंपरा
जारी रहेगी ऐसा विश्वास भी बनता है.
शहनाई कभी घर और क़िले के दरवाज़े के बाहर ही बजती थी. ख़ान साहेब ने उसे नया रुतबा दिया. उसे घर के अंदर इज़्ज़त की जगह और क़िले का तख़्त दिलाया. उन्हे गुज़रे हुए एक साल हो गया. मगर उनके मुरीद उन्हे भूले नहीं हैं. ख़ान साहेब हमारे दिलों के उपर राज करते हैं.
शुक्रिया भाई यनुस.
यूनुस, मैं उस्ताद बिस्मिल्लाह खान को पूरे भारत का गर्व मानता हूं. ऐसे समय में जब दोनो महत्वपूर्ण समुदाय व्यर्थ में आपसी वैमनस्य से ग्रस्त हो जाते हैं; बिसमिल्लाह खान का व्यक्तित्व हमें सज्जनता और उत्कृष्टता के उच्चतम शिखर तक अभिभूत करता है.
उन्हें हृदय के अंतरतम बिन्दु से श्रद्धांजलि और आपको धन्यवाद.
न भूतो ना भविष्यति!!!
उस्ताद बिसमिल्लाह खान को आदरांजलि!!
शुक्रिया युनूस भाई!
आदरणिय श्री युनूसजी,
आज मूझे खुशी हो रही है यह बताते हुए, कि मेरे कुछ दिनोसे आप के इसी ब्लोग रेडियोवाणी द्वारा चेटिंग मित्र बने हैद्राबाद श्री सागरचन्द नहार (जिनका जिक्र मैने पहले देवनागरी लिखावट के बारेमें किया था ।) ्के सिखाने पर आज मर्हूम शहनाई नवाझ विस्मिल्ला खान की शादीकी शहनाई आपके ब्लोग पर बिना रूकावट सुन शका, क्यों की मूझे तो रूकावट के लिये खेद है बोलने वाला तो कोई नहीं था । फ़िर एक बार सागरभाई का धन्यवाद ।
पियुष महेता-सुरत-३९५००१.
इक बात थोडा डाइवरज़न करके बोलना चाहता हूं कि, सुरतमें कुछ पोने दो घंटे पहेले ४ निजी रेडियो चेनल एक साथ आरंभ हुए पर इस बक्त मैं विविध भारतीका हल्लो फ़रमाईश कार्यक्रम सून रहा हूं, जो इस वक्त आपके साथी श्री रजेन्द्र त्रिपाठी प्रस्तूत कर रहे है ।
पियुष महेता-सुरत-३९५००१.
उस्ताद बिस्मिल्ला काँ साहब को विनम्र श्रद्धांजली
बहुत अच्छा लगा इस तरह से बरसी पर याद करके. नमन.
यूनुसजी,
बिस्मिल्ला खाँ साहब की बरसी पर आपके एक यादगार प्रविष्टी लिखी है । बिस्मिल्ला खाँ साहब की तोडी का कोई तोड नहीं है । कितनी भी बार सुन लो नयी ही लगती है ।
बहुत खूब, धन्यवाद !!!
mujhey yaad hai adarniya KHAAN SAAHAB key nidhan sey pehley kisi tv channel per unkey ghar aur unki maali halat key baarey me dikhaya gaya thaa...us waqt badi takleef hui thii...aaj khaan sahab saansaarik bandhano se mukt hain..magar hamarey dilon me aaj bhi unki meeti DHUUNEY khanaktin hain...yunus bhai in posts key liye shukriya
यूनुस भाई,
मैं तुम्हारा यह ब्लॉग रोज पढ़ता हूँ। इस पर कमेंट देने के लिए विशेषतौर पर Google में खाता खोला है। यहाँ वैसे तो Anonymous के नाम से भी कमेंट भेज सकते हैं, पर अपने नाम से भेजने की बात ही कुछ और है। तुम्हारा ब्लॉग मेरे लिए Music Appreciation के Class की तरह है। कई गाने मैंने पहले तो सुने होते हैं पर उनके बारे में तुम्हारा आलेख पढ़कर दुबारा सुनने पर उन बारीकियों पर ध्यान जा़ता है। यह तुम्हारा काम बहुत नोबल काम है। उम्मीद करता हूँ कि इसी प्रकार बिना रुके अपने काम जारी रखोगे। संगीत के मूड, उनमें प्रयुक्त संगीत, वाद्ययंत्रों के प्रयोग, संगीतकार इत्यादि की जानकारी अनमोल है।
- आनंद
क्याआआआआ यूनुस ख़ान जी, आप भी !!!!!!!
सावन बीत रहा है और अब तक न आपके चिट्ठे में सावन के झूले पड़े, न बोले रे पपीहरा गूंजा और न ही उमड़-घुमड़ कर छाई घटा
सावन को ऐसा सूखा तो जाने मत दीजिए………
अन्नपूर्णा
शहनाई के इस शहंशाह हो हमारी विनम्र श्रद्धांजलि...आपके माध्यम से हम अपनी इन अमूल्य धरोहरो को याद कर लेते है..जिसके आभारी है..
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