संगीत का कोई मज़हब, कोई ज़बान नहीं होती। 'रेडियोवाणी' ब्लॉग है लोकप्रियता से इतर कुछ अनमोल, बेमिसाल रचनाओं पर बातें करने का। बीते नौ बरस से जारी है 'रेडियोवाणी' का सफर।

Monday, July 16, 2007

आईये प्रसिद्ध गायक पंडित छन्‍नूलाल मिश्रा को सुनें ।



कल विमल जी ने अपने ब्‍लॉग ठुमरी पर जिक्र किया पंडित छन्‍नूलाल मिश्रा को सुनने का । और इतना सुंदर किया कि क्‍या कहूं । मैं आपको पढ़वा ही देता हूं-----

आवाज़, मिठास, कर्णप्रियता... और सबसे बड़ी जो बात है वो ये कि स्‍पीकर के सभी रंध्रों से वह आवाज़ निकलती है. वाह, वाह! ऐसा संगीत कि सुनकर हय, दिल बाग़-बाग़ हो जाए... जिसे सुनकर स्‍वर की वह उठान, वह तरावट याद रहे.. और देर तक मन में धीमे-धीमे बजता रहे. बजते समय ही नहीं... बंद हो चुकने के बाद भी वह संगीत जज़्ब दीवारों से छन-छनकर हवा में फैली रहती है... मन को नहलाती रहती है. आपने सुना है कि नहीं? ऐसा कैसे हो सकता है कि इतना सुनते रहते हैं और छन्‍नूलाल मिश्र को अब तक नहीं सुने? तकनीकी जानकारी हमारी कम है नहीं तो अभी ही आपको अपने ब्‍लॉग की मार्फ़त सुनवा देते.


आखिरी दो पंक्तियों ने मुझे उकसाया है कि कैसे भी करके पंडित छन्‍नूलाल मिश्रा जी की आवाज़ आप तक पहुंचाई जाये । शास्‍त्रीय संगीत के क़द्रदान श्रोता पंडित जी से नावाकिफ़ हो ही नहीं सकते । लेकिन ख़ास बात ये है कि पं‍डित छन्‍नूलाल मिश्रा ज्‍यादातर मीडिया या प्रचार से दूर ही रहते हैं । एकदम खांटी आवाज़, यूं कि जैसे पिघले हुए सोने की बूंदे टपक रही हों । बहुत समय पहले इंदौर के अख़बार नईदुनिया में किसी गीत का जिक्र करते हुए शीर्षक दिया गया था, ‘सोने की आलपीनें टपकती हैं, मख्‍खन के ग़लीचों पर’ बस यही बात हम पं.छन्‍नूलाल मिश्रा जी के लिए कह सकते हैं ।


आपको बता दूं कि छन्‍नूलाल जी किराना घराना और बनारस गायकी के मुख्‍य गायक हैं । उन्‍हें ख्‍याल, ठुमरी, भजन, दादरा, कजरी और चैती के लिए जाना जाता है । देवी फाउंडेशन दिल्‍ली ने उनके कई एलबम निकाले हैं---अंजली, सुंदर कांड, शिव विवाह वगैरह । मेरे निजी संग्रह में देवी फाउंडेशन का ही एलबम है जिसका नाम है कबीर । पंडित जी ने इस अलबम में कबीर की बारह रचनाएं गाई हैं । जब पंडित जी गाते हैं ‘मन पछतईंहैं अवसर बीते’ तो दिल पर एक अजीब सी कैफियत तारी होने लगते है । यकीन मानिए अगर कॉपीराइट जैसा पंगा ना होता तो अभी मैं आपको पूरी बारह रचनाएं सुनवा देता इस अलबम की । लेकिन इसका दूसरा इंतज़ाम मैंने किया है जिसके ज़रिए पंडित छन्‍नूलाल मिश्रा की दो अन्‍य रचनाएं आप तक पहुंच रही हैं । मुझे नहीं मालूम कि ये किस अलबम से हैं ।



अब वो पंक्तियां पढ़ लीजिये जो विमल जी के ब्‍लॉग ‘ठुमरी’ पर टिप्‍पणी के रूप में इंदौर के भाई संजय पटेल ने लिखी हैं----

मेरा मानना है कि विदूषी गिरजा देवी के बाद बनारसी रंग की ठुमरियों को जिस घनीभूत अनुभूति के साथ पं.मिश्र गा रहे हैं वह विलक्षण है । ये समय का बोलबाला है कि वह अपने हिसाब से कलाकार के यश-अपयश का मानदंण्ड तय करता है । जब भी संयोग मिला मेरे ब्लाग पर उसे जारी करूंगा । बहरहाल छन्नूलालजी वे गुणी कलाकार हैं जिन्हे रागदारी के सुघड़ कलेवर रचने में महारथ हासिल है । वे अत्यंत सरलमना व्यक्ति हैं और ज़माने के गिमिक्स से बेख़बर..उनके पुत्र श्री रामकुमार मिश्र भी लाजवाब तबला वादक हैं ।

यहां मैं ये भी कहना चाहूंगा कि पंडित छन्‍नूलाल मिश्रा जब शिवजी के ब्‍याह या शिवजी की होली विषयक रचनाएं गाते हैं तो अद्भुत समां बंध जाता है । मैंने टी.वी. पर एक छोटी सी झलक देखी थी जिसमें वो गा रहे थे ‘शिव जी मसाने में खेलें होरी’ । यहां शब्‍दों का थोड़ा हेर फेर हो सकता है । पर अर्थ यही था । तो फिलहाल नीचे छन्‍नूलाल मिश्रा जी के स्‍वर में दो रचनाएं दी जा रही हैं, सुनिए और आनंद लीजिये !


ये एक ठुमरी है, बोल हैं ‘सावन झर लागेला धीरे धीरे’




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और ये है राग मियां मल्‍हार में गायन




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इन दोनों रचनाओं को सुनिए और सोचिए कि जिंदगी में हम कितना किस ‘मिस’ कर रहे हैं, इन कलाकारों को ना सुनकर ।

इस झूठी जिंदगी में सच्‍ची और पक्‍की बात की तरह लगती है पंडित छन्‍नूलाल मिश्र की आवाज़ । ‘रेडियोवाणी’ पर आते रहिये, सुकून के अहसास के लिए ।

विमल जी शुक्रिया आपकी बात ने उकसाया इंटरनेट पर छन्‍नूलाल जी रचनाएं खोजने के लिए । अभी खोज जारी है ।



और हां, अगर आपने मदनमोहन पर केंद्रित मेरा पॉडकास्‍ट अब तक नहीं सुना तो वो भी सुन लीजिये, इसी चिट्ठे पर नीचे ।

14 comments:

Pratyaksha July 16, 2007 at 9:34 AM  

वाह ! ये हुई कुछ बात । संजय जी ने जिस गीत के बारे में कहा है ,मुझे भी याद आ गया , शायद "हार्मनी इन वारानसी " प्रोग्राम था । टीवी पर देखा था और अपने ब्लॉग पर लिखा था । एक भजन और था ' हे शिवशंकर औघडदानी " ।

Neeraj Rohilla July 16, 2007 at 9:57 AM  

युनुसजी,
आपसे अधिक संवाद स्थापित करना पडेगा । आप हमारे दिल का एक एक कोना फ़तेह करे जा रहे हैं । छ्न्नूलाल मिश्राजी ने रामचरित मानस की चौपाईयों को भी बडे मोहक अंदाज में गाया है । हम आपसे प्रेरणा लेकर उनकी आवाज में "केवट संवाद" सुनवायेंगे ।

एक बार फ़िर से आपको धन्यवाद,

नीरज

VIMAL VERMA July 16, 2007 at 11:27 AM  

वाह आपने तो मेरा दलिद्दर दूर कर दिया.मैने सोचा नहीं था इतनी जल्दी वो सब कर देंगे जो मैने सोच रखा था.सचमुच बहुमूल्य जानकारी आपने दी है कमाल तो ये है कि मै छन्नू जी को सुनते हुए टिप्पणी कर रहा हूं. अपने ब्लॉग में मुझे जगह देकर आपने अनुग्रहीत कर दिया.

Anonymous,  July 16, 2007 at 11:49 AM  

मजा आ गया यूनुस भाई।
इन शानदार प्रस्तुतियों के लिये बारंबार साधुवाद।

Unknown July 16, 2007 at 1:05 PM  

यूनुस भाई मजा आ गया धन्यवाद

Anonymous,  July 16, 2007 at 1:46 PM  

kya vandanvaar main Mishraji ki rachnaye bajthi hai ?

Annapurna

इष्ट देव सांकृत्यायन July 16, 2007 at 7:42 PM  

मजा आ गया यूनुस भाई. बारम्बार साधुवाद।
(अगर साधुवाद के युग का अंत हो भी गया हो, तो भी)

VIMAL VERMA July 17, 2007 at 12:22 AM  

शंकर खेलें मसाने में होरी ....हमने भी एन डी टी वी पर इसे पहली बार सुना था फिर भी दुबारा लिखने से खुद को रोक न पाया,आपके यहां आकर बहुत अच्छा लगा,लगता है आपकी महफ़िल मे बार आना ही पडे़गा आपने तो मुरीद बना दिया!!!

Yunus Khan July 17, 2007 at 8:53 AM  

प्रत्‍यक्षा जी जिन रचनाओं का आपने जिक्र किया उन्‍हें फिर से अपने ब्‍लॉग पर चढ़ाईये, हम सब सुनना चाहते हैं ।

नीरज भाई, धन्‍यवाद हमें केवट संवाद सुनने की बेक़रारी रहेगी ।

विमल भाई, अनुग्रहीत तो मैं हूं कि आपने पं. छन्‍नूलाल मिश्र के गायन का जिक्र किया, वरना हम समझे थे कि इंटरनेट पर कहां उनके गीत होंगे, हम अपनी कबीर वाली सी.डी. से ही संतुष्‍ट थे ।

अन्‍नपूर्णा जी विविध भारती में पंडित जी की रचनाएं नहीं हैं इसलिये बजने का कोई चांस नहीं ।
फिर से सबको धन्‍यवाद

Udan Tashtari July 17, 2007 at 8:17 PM  

थोड़ा देर से आये मगर आनन्द आ गया सुनकर. वाह -सच में कितना कुछ मिस कर रहे हैं. बहुत बेहतरीन प्रस्तुति. आभार.

RADHIKA November 27, 2008 at 3:32 PM  

Aadarniy chnnulal ji ka gayan mujhe bhi bahut pasand hain ,Aapne achcha aalekh likh hain ,computer ki kuch gadbadi ke karan sun nahi paa rahi

Rakesh Singh - राकेश सिंह June 8, 2010 at 4:20 AM  

पंडित छन्नूलाल मिश्रा की सरल और मधुर संगीत दिल तक उतरती है |

पंडित जी को आपने सुनाया धन्यवाद भाई !

Unknown August 4, 2010 at 10:51 PM  

में ने श्री प्रसिद्ध गायक पंडित छन्‍नूलाल मिश्रा जी के गीत सुने ऐसा लगता है की स्वयं सरस्वती उनके कंठ में विराजती हो
पंडित छन्‍नूलाल मिश्रा रामायण में अनेक गीत है
जैसे Kevat संवाद,Uttar Kand - Kaag भुसंदी, Ayodhya Kand - Lakshman Gita ,Lanka Kand - Vibhashan गीता
किन्तु पंडितजी ने सुंदर कांड नहीं गया

krishna s,  August 21, 2011 at 2:00 PM  

कृष्ण स -युनुस भाई "लेट स टॉक " फिल्म शायद बोमन ईरानी की प्रथम फिल्म थी जिसमे पंडित छनु लाल मिश्र जी की आवाज़ में ठुमरी थी क्या आपके पास उसी कोई ऑडियो सी डी है इसमें बोमन ईरानी ने सचमुच अपने अभिनय की बुलंदियों को छुआ है में इस बारे में साल भर पहले भी आप से फरमाइश कर चूका हू वैसे तो पंडितजी का गाया फिल्म आरक्षण का गीत "सांस अलबेली " इन दिनों बहुत लोकप्रिय हो रहा है

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