संगीत का कोई मज़हब, कोई ज़बान नहीं होती। 'रेडियोवाणी' ब्लॉग है लोकप्रियता से इतर कुछ अनमोल, बेमिसाल रचनाओं पर बातें करने का। बीते नौ बरस से जारी है 'रेडियोवाणी' का सफर।

Sunday, July 15, 2007

जल्‍द आ रहा है ‘रेडियोनामा’—ब्‍लॉग रेडियो-विमर्श का




रेडियो हमारे जीवन के बैकग्राउंड म्‍यूजिक की तरह है ।


प्रिय मित्रो
आपको लगेगा कि ये अनमोल वचन मैं क्‍यों कह रहा हूं, ये मेरा वाक्‍य नहीं है, बल्कि जब जाने माने निर्देशक ऋषिकेश मुखर्जी को दादा साहेब फालके पुरस्‍कार मिलने की घोषणा हुई तो मैंने उन्‍हें बधाई देने के लिए फोन किया । उन‍ दिनों उनकी सेहत ख़राब थी और वो ज्‍यादातर घर पर ही होते थे । बातों का सिलसिला चल पड़ा और मैंने उनसे एक सवाल किया जो लंबे समय से मैं उनसे पूछना चाहता था । शायद आपने भी ग़ौर किया होगा, ऋषि दा की फिल्‍मों में रेडियो की सतत उपस्थिति हुआ करती थी । और वो भी ज्‍यादातर विविध-भारती बजता हुआ सुनाई देता था । मैंने उनसे पूछा कि क्‍या आपने ऐसा जानबूझकर किया था या ये एक सहज संयोग था । तब उन्‍होंने दूसरी बातों के साथ साथ वो वाक्‍य कहा था जो मैंने सबसे ऊपर लिखा है । रेडियो हमारे जीवन के बैकग्राउंड म्‍यूजिक की तरह है ।

ख़ैर, मुद्दा ये है कि एक दिन मैं भाई सागर चंद नाहर और भाई अफलातून से चैट कर रहा था, दोनों ही रेडियो के शौकीन हैं । बात रेडियो पर ही चल रही थी कि अचानक आइडिया आया कि रेडियो पर क्‍यों ना एक ब्‍लॉग शुरू किया जाये, ये एक सामूहिक ब्‍लॉग हो और हम ये डॉक्‍यूमेन्‍टेशन करने की कोशिश करें कि रेडियो ने आपकी जिंदगी पर क्‍या असर डाला है । यहां रेडियो से हमारा आशय केवल विविध भारती से नहीं है, बल्कि उन तमाम रेडियो चैनलों से है जिन्‍हें आप सुनते रहे होंगे । चाहे वो बी.बी.सी हो या फिर आपका स्‍थानीय रेडियो स्‍टेशन, उर्दू सेवा हो या फिर श्रीलंका ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन का विदेश विभाग यानी सीलोन, या फिर कोई और ही रेडियो स्‍टेशन ।



रेडियो नॉस्‍टेलजिक मीडियम लगता है । आपने महसूस किया होगा कि अकसर लोग यही कहते पाये जाते हैं कि वो दिन ही और थे जब हम रेडियो सुना करते थे । और फिर शुरू होता है यादों का कारवां । गांव में थे, टी.वी. नहीं आया था तब, रेडियो पर ‘गीतमाला’ सुनने के लिए कई किलोमीटर दूर जाना पड़ता था.......वग़ैरह वग़ैरह । पर आज हालात बदल रहे हैं । ढेर सारे प्राईवेट रेडियो स्‍टेशनों के आगमन के बाद रेडियो का परिदृश्‍य बदल रहा है । युवा-पीढ़ी की जिंदगी में रेडियो अब एक अनिवार्य उपस्थिति बनता जा रहा है । ये अलग बात है कि वहां धूम धड़ाम गाने और झमाझम कार्यक्रम हैं । बैंग बैंग बैंग हैं । पर ये एक अच्‍छी बात है । हम पुराने दौर से लेकर आज के ज़माने तक के रेडियो से जुड़े आपके अनुभव बांटना चाहते हैं ।
जी हां, बहुत जल्‍द हम लेकर आ रहे हैं एक सामूहिक-ब्‍लॉग ‘रेडियोनामा’ ।


इसमें होंगी रेडियो से जुड़ी आपके मन की बातें । जिंदगी के वो कौन से पल थे जो आपने रेडियो के साथ बांटे । वो पढ़ाई के दिन, वो बचपन की शरारतों के दिन, जब रेडियो ‘सुनने’ से ज्‍यादा ‘तोड़ने’ की चीज़ थी । वो कॉलेज के रूमानी दिन, जब रेडियो प्‍यार भरे गीतों की सौग़ात लाता तो भला-भला सा लगता था । वो संघर्ष के दिन, वो दिन जब नौकरी मिली, वो दिन जब आपका विवाह हुआ । शादी-ब्‍याह या पिकनिक के मौक़े पर होने वाली अंत्‍याक्षरी के वो दिन । या फिर वो दिन जब रेडियो आपकी जिंदगी से ग़ायब हो गया और उसकी जगह टी.वी. ने ले ली । बहुत व्‍यापक होगा इस ब्‍लॉग का परिदृश्‍य ।

आप रेडियो पर सुनी उन ख़ास आवाज़ों का भी जिक्र कर सकते हैं, जो आपके दिलों में बस गयीं । उन इंटरव्यूज़ का भी जिक्र होगा, जिनको सुनकर आपको बहुत अच्‍छा लगा । हो सकता है कभी आपने किसी रेडियो स्‍टेशन को चिट्ठी लिखी हो और वो शामिल हो गयी हो । हो सकता है कि हॉकी या क्रिकेट की कॉमेन्‍ट्री से जुड़े कुछ यादगार लम्‍हे हों । हो सकता है कि आपके भीतर शास्‍त्रीय संगीत के संस्‍कार पैदा करने में किसी रेडियो स्‍टेशन का योगदान रहा हो । अरे हां, याद आया....कल ही एक मित्र से बात चल रही थी । उन्‍होंने बड़ी बढिया बात कही । कहने लगे कि आज जब लगभग हर विभाग में ‘सेवाओं’ की ‘क़ीमत’ चुकानी पड़ती है, रेडियो आपके एक पोस्‍टकार्ड, एक एस.एम.एस या एक फ़ोन पर आपकी फ़रमाईश बिना किसी प्रत्‍याशा के पूरा कर देता है । मुझे ये बात अच्‍छी लगी ।




‘रेडियोनामा’ के लिए एक बात और तय की गयी है । वो ये कि हो सकता है कुछ लोगों के पास हिंदी में लिखने की सुविधा ना हो । अगर आप रोमन-हिंदी में लिखना चाहते हैं, तो ‘ई-मेल’ पर भेजिये, हममें से कोई उसे लिप्‍यांतरित करके छाप देगा । इसी तरह अंग्रेज़ी में भी लिख भेजिये, हम उसका अनुवाद करके ‘रेडियोनामा’ पर चढ़ा देंगे । मक़सद है ज्‍यादा से ज्‍यादा लोगों को जोड़ना और ‘रेडियो-संस्‍कृति’ से जुड़े लोगों के संस्‍मरण जमा करना । हम बहुत जल्‍द ‘रेडियोनामा’ को आरंभ करना चाहते हैं, अगर आप रेडियोनामा से जुड़ना चाहते हैं तो तुरंत संपर्क कीजिये । और हां, ‘रेडियोनामा’ से अपने मित्रों और साथियों को भी जोडिये । ताकि ये कारवां बढ़ता चला जाए ।


हमें ‘रेडियोनामा’ के ‘लोगो’ और ‘ब्‍लॉग हेडर’ की भी दरकार है । उम्‍मीद है कि हममें से कोई इसे बना सकेगा, इस मामले में मिलने वाली आपकी हर मदद का हम स्‍वागत करेंगे । याद रहे कि ‘रेडियोनामा’ सहृदयता और सौहाद्र का मंच होगा, हमारा पहला ध्‍येय ‘रेडियो-विमर्श’ होगा । हम व्‍यर्थ के विवादों से बहुत दूर रहना चाहेंगे ।

आपको ये भी बता दें कि ‘विविध भारती सेवा’ सन 1957 में शुरू हुई थी और इस वर्ष इस महत्‍त्‍वपूर्ण रेडियो स्‍टेशन ने अपने पचास साल पूरे कर लिये हैं । इस मौक़े पर ‘रेडियोनामा’ रेडियो से जुड़े विमर्श का एक ज़रूरी मंच बन सकता है ।

‘रेडियोनामा’ का ईमेल पता है:
radionama@gmail.com
रेडियोनामा से जुड़ने के लिए आप हमें ईमेल कर सकते हैं ।


तो ‘रेडियोनामा’ की तैयारियों की सूचना आप तक पहुंच गयी ।
अब हम जानना चाहते हैं कि आपकी क्‍या राय है ।

23 comments:

मैथिली गुप्त July 15, 2007 at 12:08 PM  

युनुस भाई, किसी भी ग्राफिक्स संबन्धी काम के लिये मैं हाजिर हू. क्या मुझे लोगो संबन्धी कुछ कल्पना बतायेंगे?

Anonymous,  July 15, 2007 at 12:24 PM  

इस नए विचार के मूर्त रुप लेने व फलने फूलने हेतु शुभकामनाएँ.

azdak July 15, 2007 at 1:41 PM  

सही आइडिया है. हालांकि मेरे पास खुद रेडियो संबंधी बांटने को ऐसा खा़स मसाला नहीं.. लेकिन हेडर संबंधी व ग्राफ़ि‍क्‍स रिलेटेड कोई मदद चाहिए होगी, तो हम भी लाइन में हाज़ि‍र हैं!

Anonymous,  July 15, 2007 at 2:13 PM  

यूनुस भाई, और कोई मदद कर सकें या नही, पर हमारी शुभकामानाएं तो आपके साथ हैं ही।

शैलेश भारतवासी July 15, 2007 at 3:35 PM  

अच्छा आइडिया है। मैं तो युनुस भाई आपसे बता ही चुका हूँ कि मैं रेडियो का बहुत शौकीन रहा हूँ। मज़ा आयेगा।

पंकज बेंगाणी July 15, 2007 at 3:45 PM  

अच्छा! कितनी जल्दी आ रहा है, रॆडियोनामा. कहीं ज्यादा जल्दी तो नही आ जाएगा ना. कि हम पकड ही ना पाएँ!! :)

वैसे सागर भाईसा सही जोडीदार हैं. पुराने गानो पर उनकी पकड और समझ का हम फायदा उठाते रहते हैं..

mamta July 15, 2007 at 6:47 PM  

बहुत अच्छा प्रयास है और हम भी इससे जुड़ना चाहेंगे क्यूंकि युनिवर्सिटी के ज़माने मे हमने भी युववानी के लिए प्रोग्राम किये थे और बाद मे अंडमान मे भी कुछ प्रोग्राम भी किये थे।

ePandit July 15, 2007 at 7:53 PM  

नए प्रयास हेतु मेरी शुभकामनाएँ यूनुस भाई।

eSwami July 15, 2007 at 8:05 PM  

बहुत बढिया आईडिया है!

Soochak July 15, 2007 at 9:25 PM  

मैं भी हाजिर हूं। लेखनी संबंधी सभी जरूरतों के लिए। आप मीडियायुग को भी जोड़ सकते है। हम प्रतिनिधि मंडल को जुड़कर खुशी होगी।

PIYUSH MEHTA-SURAT July 15, 2007 at 11:30 PM  

Shri Yunusji, Thanks for this new blog. We shell have a platform to keep our views for radio, that not only for the past but we would like to say how radio should be.
PIYUSH MEHTA-SURAT.

इरफ़ान July 16, 2007 at 12:01 AM  

यूनुस साहब, आइडिया अच्छा है. मुझे शामिल समझिये. थोडा समय पहले मैने मोहल्ला में एक आलेख लिखा था जो आप की चिंताओं और विषय प्रस्तावना में किसी काम आ जाये शायद. अविनाशजी ने उसे यादों के अफसाने लेबल में रखा है. एक नज़र मारियेगा.

अनुराग श्रीवास्तव July 16, 2007 at 7:16 AM  

रेडियो और श्वेत/श्याम फोटुओं के एक आशिक हम भी हैं. उनमें जो रोमांस थी वह टीवी या वीडियोग्राफ़ी और कलर फोटिओं में है ही नहीं.

आपके रेडियोवाणी ब्लॉग से प्रेरित हो हर मैं ने अपनी रेडोयो-यादें एक पोस्ट में लिख भी डाली हैं. सोच रहा था कि अपने ब्लॉग पर छाप दूँगा लेकिन अब आपको रेडियोनामा के लिये शीघ्र प्रेषित क्रूँगा.

कोशिश रहेगी कि रेडियोनामा के महायज्ञ में छोटी सी आहुति हम भी दे सकें.

Gyan Dutt Pandey July 16, 2007 at 10:38 AM  

यूनुस, इतना रेडियो-रेडियो का शंखनाद आपने कर दिया कि आज अपने रेडियो को नयी बैटरी लगा कर सुनने की दशा में ले आना है और 1-2 घण्टे सुनना प्रारम्भ करना है.

Anonymous,  July 16, 2007 at 2:02 PM  

Kya mazedaar baat hai !

yeh blog main abhi dekh rahi hun aur saath main sun rahi hun Man chaahe geet.

Renu jee film Patthar ke Sanam ka geet sunvaa rahi hai -

Mehboob mere
thu hai tho dunia kitani haseen hai

what a co-incedence yeh lines radio ke baare main mere jeevan main ekdam sahi hai.

Main tho Radionama main shaamil hun hi.

Likhti tho main rahoongi hi radio ke baare main aur

Kisi bhi seva ke liye yaad kar sakthe hai....


Annapurna

Manish Kumar July 16, 2007 at 3:44 PM  

यूनुस , ये प्रयास बहुत बढ़िया रहेगा। मैंने कल एक मेल भी की थी इस संबंध में। पता नहीं आपको मिली या नहीं। इस प्रयास में सहभागिता करना मेरे लिए खुशी की बात होगी।

Udan Tashtari July 17, 2007 at 8:51 PM  

वाह, जल्दी लायें...इन्तजार लगवा दिया अब तो आपने. बैठे हैं पलक पावडे बिछाये.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` July 18, 2007 at 6:50 AM  

हम भी शामिल हैँ आप सभी के साथ!
ओ , हमारे रेडियो प्रेमी साथियोँ --

स -स्नेह,
-- लावण्या

Anonymous,  August 11, 2007 at 10:28 AM  

आपके रेडियोवाणी ब्लॉग अच्छा आइडिया है।

आप type करने के लिए कोंसी software उपयोग किया
मुजको www.quillpad.in/hindi अच्छा लगा
आप english मे करेगा तो hindi मे लिपि आएगी

अनूप शुक्ल September 8, 2007 at 12:07 AM  

अच्छा है। हम मजे में रहे। लेख पहले पढ लिया अफ़लातूनजी का उसके बारे में सूचना बाद में पढ़ी।

PIYUSH MEHTA-SURAT September 11, 2007 at 11:50 PM  

आदरणिय श्री युनूसजी और सागरजी,

आज विविध भारती से प्रसारित मंथन कार्यक्रम का विषय रहा बच्चो‍ को हिन्दी साहित्यसे कितना अवगत कराया जाता है । वैसे सुरतमें यह कार्यक्रम एफ़. एम. पर नही‍ सुनाई पड़ता है इस लिये मैं कल डी.टी.एच. के माध्यमसे सुनुंगा पर जहाँ तक विषय की बात है, जो स्थिती अंग्रेजी और हिन्दी की है वही दूसरी और हिन्दी को महत्व सिर्फ़ फ़िल्म और रेडियो के माध्यम से देने के बजाय सरकारी प्रचार द्वारा ज्यादा जोर दे कर क्षेत्रीय भाषाओ की भरपुर उपेक्षा की जा रही है । जो सुरत जैसे शहरमें केन्द्र सरकार की कचेरीयों, जैसे डा़क घर रेईल वे स्टेशन जैसी जगहो पर बारीकी से निगाह डाल कर तूर्त पता चल सकती है । बेंको के जनता को दिये जाने वाले छपे फ़ोर्म्स वाले पत्रोंमें भी क्षेत्रीय भाषाओं के स्थान पर हिन्दी का प्रयोग किया जाता है, जो हिन्दी भाषी जनता की हिन्दी भी नहीं है, जिसमें ’क्लियरींग’ जैसे लोक भोग्य शब्द के स्थान पर जैसे तैसे बनाया गया शब्द ’समाशोधन’ इस्तेमाल किया जाता है, जो हिन्दी भाषीओं को भी आज तक़ पल्ले नहीं पडा़ । ऐसे कई भद्रंभद्रीय उदाहरण मिलेंगे । जो काम हिन्दी फ़िल्मों और हिन्दी फ़िल्म संगीत ने किया वह सरकारी प्रचार प्रसार कभी नहीं कर सकता । इस लिये विषय हिन्दी साहित्य के बजाय क्षेत्रीय साहित्य होना चाहिये था ।

पियुष महेता ।

रोमेंद्र सागर September 21, 2009 at 3:05 AM  

जितनी जल्दी हो सके आरम्भ करें....
प्रतीक्षारत हूँ !

शुभकामनायें !

Anita kumar April 11, 2010 at 9:05 PM  

अरे वाह! ये तो बहुत ही अच्छा आइडिया है। हम भी लिखेगें रेडियो से जुड़े अपने संस्मरण, अगर आप की इजाजत मिलेगी तो…॥ बहुत मजा आयेगा ।

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if you want to comment in hindi here is the link for google indic transliteration
http://www.google.com/transliterate/indic/

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