संगीत का कोई मज़हब, कोई ज़बान नहीं होती। 'रेडियोवाणी' ब्लॉग है लोकप्रियता से इतर कुछ अनमोल, बेमिसाल रचनाओं पर बातें करने का। बीते नौ बरस से जारी है 'रेडियोवाणी' का सफर।

Thursday, May 3, 2007

हम ना रहेंगे, तुम ना रहोगे फिर भी रहेंगी निशानियां: नरगिस (nargis) की याद में एक चिट्ठा








मित्रो पिछले दो तीन दिनों से आपके इस दोस्‍त के कंधे में जकड़न आ गयी है, इसलिए चाहकर भी चिट्ठाकारी नहीं हो पा रही है । पर जब पता चला कि आज अदाकारा नरगिस की याद का दिन है, तो खुद के रोक नहीं पाया । आज से ठीक छब्‍बीस साल पहले नरगिस दत्‍त की कैंसर से मौत हो गयी थी । जीवन कितनी बड़ी त्रासदियां लेकर आता है इसकी मिसाल देखिए कि नरगिस आपा अपने बेटे की फिल्‍म को रिलीज़ होते नहीं देख पाईं । एक ख्‍वाब था जो अधूरा रह गया । एक आस जो दिल में रह गयी । और उनकी मौत के चार दिन बात सात मई को संजय दत्‍त ने रजत पट पर अपना पहला क़दम रखा ‘रॉकी’ के ज़रिए


बहरहाल अदाकारा नरगिस की जिंदगी वाक़ई बेहद नाटकीय रही । पैदा हुईं तो नाम था फातिमा रशीद । मां जद्दन बाई नामचीन गायिका और अभिनेत्री थीं । पांच बरस की हुईं तो फिल्‍मों में बेबी रानी के नाम से काम करवाया जाने लगा । बनना चाहती थीं डॉक्‍टर पर मां की जिद के आगे एक ना चली । शूटिंग में व्‍यस्‍त हो गयीं । ज़बर्दस्‍ती भिनेत्री बनाया गया, फिर भी कद्दावर अभिनेत्री कहलाईं और हिंदी सिनेमा की सबसे नरमो-नाजुक और सबसे ‘इंटेलेक्‍चुअल’ अदाकारा कही गयीं । अगर आप बुरा ना मानें तो एक सच सामने लाना चाहता हूं, हिंदी सिनेमा की हीरोईनों को बे-अक्‍ल और उथला माना जाता रहा है और माना जाता है । लोग मानते हैं कि वो ज्‍यादा पढ़ी लिखी और समझदार नहीं होतीं, बस पेड़ों के गिर्द नाच लिया, ठुमके लगा लिये और हो गया । दुनिया से उनका ज्‍यादा कोई सरोकार नहीं होता । बाद की कई नायिकाओं ने इस ख्‍याल को तोड़ा और खुद को साबित किया है पर ज्‍यादातर तो ये राय सही ही नज़र आई है ।


राजकपूर और नरगिस की जोड़ी पहली बार सिनेमा के परदे पर आई थी सन 1948 में फिल्‍म ‘आग’ में, ये आर0के0प्रोडक्‍शन्‍स की पहली पेशकश थी, यानी निर्देशन और फिल्‍म निर्माण की दुनिया में राजकपूर का पहला पहला क़दम । इसके बाद बरसात (1949) आवारा (1951) आह(1953) श्री 420(1955) चोरी चोरी(1956) जागते रहो(1956) जैसी फिल्‍मों में राजकपूर और न‍रगिस की जोड़ी नज़र आई । (इनमें से फिल्‍म चोरी चोरी राजकपूर का निर्माण नहीं थी । ना ही वो इसके निर्देशक थे । और जागते रहो का केवल निर्माण उन्‍होंने किया था)

राजकपूर हिंदी सिनेमा के शोमैन कहलाते हैं । और फिल्‍मों में अपनी नायिका को बेहद रूमानी अंदाज़ में पेश करने का ज़बर्दस्‍त जुनून राज साहब में था । आपने देखा होगा राज कपूर ने अपनी फिल्‍मों में नरगिस को बिलकुल साफ शफ्फाफ सफेद साड़ी में पेश किया है । लंबे बाल, माथे पर लहराती जुल्‍फ़ और इतना मासूम चेहरा कि जिसके लिए अंग्रेज़ी का शब्‍द vulnerable मौजूं लगता है और इसकी जोड़ का हिंदी शब्‍द मिल नहीं रहा है । आईये कुछ गानों के ज़रिए नरगिस की अदायगी को सलाम करें ।

याद
कीजिये फिल्‍म‘आवारा’ का वो गीत, जिसमें लता जी गाती हैं ‘दम भर जो उधर मुंह फेरे, वो चंदा, मैं तुमसे प्‍यार कर लूंगी, बातें हज़ार कर लूंगी’ तो एक भारतीय लड़की की लाज भी दिखती है और लड़कियों की वो बोल्‍डनेस भी दिखती है जो सिर्फ और सिर्फ प्‍यार करने वालों में पाई जाती है, याद रहे ये वो लड़की है जो एक आवारा से प्‍यार कर रही है । इस फिल्‍म को देखिये और महसूस कीजिए कि कितनी शिद्दत से नरगिस ने इस भूमिका निभाया है । इस गाने को यहां सुनिए ।


फिर मुझे फिल्‍म श्री 420 का वो गीत ‘प्‍यार हुआ इक़रार हुआ’ इस गाने का वो दृश्‍य या
द कीजिए जिसमें राजकपूर और नरगिस छाता लगाकर बारिश में टहलते हुए गाना गा रहे हैं । और नरगिस वायलिन बजाते राजकपूर की बांहों में झूल जाती हैं । ( ये गाना यहां सुनिए) शायद यही दृश्‍य आगे चलकर आर0के0फिल्‍म्‍स का ‘लोगो’ बना । इस गाने में नरगिस लता जी की आवाज़ में गाती है—‘मैं ना रहूंगी तुम ना रहोगे फिर भी रहेंगी निशानियां’ और इस पूरे गीत में नरगिस के चेहरे के भाव देखिए, यक़ीन मानिए आज शायद प्‍यार के समर्पण का वो भाव सिरे से ग़ायब ही हो चुका है ।

हम इस विवाद में नहीं पड़ते कि राजकपूर और नरगिस की ऑनस्‍क्रीन केमिस्‍ट्री क्‍या उनकी असली जिंदगी में भी थी । अगर थी भी तो इसमें बुराई क्‍या है । लेकिन आर0के0फिल्‍म्‍स से अलग होने के बाद कोई भी नरगिस की शख्सियत की ठसक, उनकी रूमानियत, नाज़ुकी, अल्‍हड़ता, शोखी और बेफिक्री को एक साथ नहीं उभार सका । हां उन्‍होंने कुछ बड़ी कमाल की फिल्‍में राज कपूर के प्रोडक्‍शन के अलावा भी कीं ।

मुझे ‘मदर इंडिया’ की उनकी भूमिका बेहद प्रिय है । भारतीय नारी के संघर्ष को जिस तरह नरगिस ने जिया वो अन्‍यत्र दुर्लभ है । मुझे याद है फिल्‍म निर्देशक कुणाल कोहली ने कहीं कहा था—‘मदर इंडिया’ के गाने ‘घूंघट नहीं खोलूं’ में जिस तरह नरगिस लजाई और सकुचाई नज़र आती हैं, वैसी लाज तो आज की लड़कियों में सिरे से ग़ायब है और आज की हीरोईनों से भी हम वैसा अभिनय नहीं करवा सकते’ । जब ये बात मैंने लता जी को सुनाई तो वो ज़ोर से हंसीं और उन्‍होंने कहा कि इस लाज को अपने गायन में उतारने के लिए उन्‍हें कई कई गानों में बड़ी मेहनत करनी पड़ी थी । इस गाने को
यहां सुनिए ।

सन 1958 की उनकी फिल्‍म ‘लाजवंती’ कई कारणों से मुझे प्रिय है । और फिल्‍म ‘रात और दिन’(1967) दोनों फिल्‍में अपने अनोखे कथानकों के कारण वैसे भी उल्‍लेखनीय हैं । लेकिन चूंकि हम गीतों के बहाने नरगिस आपा को याद कर रहे हैं तो ज़रा ये गाना सुनिये ।
यहां क्लिक कीजिए । ये गाना है ‘गा मेरे मन गा’ सचिन दा की तर्ज़ । घर से निकाली गयी एक पतिव्रता स्‍त्री का गीत है ये । जो अपने आप में दुखियारी है । इसे सुनिए मत देखिए, और नरगिस के चेहरे को देखिये । कितनी पीड़ा, कितना संत्रास है, उनके चेहरे पर ।

फिल्‍म रात और दिन में नरगिस ने एक ऐसी स्‍त्री का किरदार निभाया जिसे नींद में चलने की बीमारी है । इस बीमारी की वजह से किस तरह उसका पारिवारिक जीवन नर्क हो जाता है इसकी दास्‍तान है ये फिल्‍म । इसका गाना सुनने के लिए
यहां क्लिक कीजिए । ‘आवारा ऐ मेरे दिल जाने कहां है तेरी मंजिल’ । क्‍या कहूं नरगिस की अदायगी के बारे में । हर बार वो बिल्‍कुल अलग नज़र आती हैं । कहते हैं कि नरगिस सही मायनों में एक भारतीय स्‍त्री की आदर्श छबि थीं ।

नरगिस ने ज्‍यादातर संघर्ष करती और जूझती और अपने अस्तित्‍व के लिए लड़ती नारी की भूमिकाएं निभाईं और कहना ना होगा कि बख़ूबी निभाईं । उनके जीवन की नाटकीयता देखिए कि फिल्‍म ‘मदर इंडिया’ की शूटिंग के दौरान जब वो आग की लपटों में घिर गयीं थीं तो फिल्‍म में उनके बेटे की भूमिका निभा रहे सुनील दत्‍त ने उन्‍हें बचाया था । बाद में उन्‍होंने नरगिस के सामने शादी का प्रस्‍ताव भी रखा और नरगिस ने अपने से एक साल छोटे बेहद ज़हीन और शानदार व्‍यक्तित्‍व को अपना जीवनसाथी चुन लिया । उस ज़माने के नज़रिए से ये भी एक साहसिक निर्णय था । फिर वे राज्‍यसभा में चुनी जाने वाली पहली भारतीय अदाकारा बनीं और वहां वो केवल सजावट की चीज़ (ornamental member) बनकर नहीं गयीं, वहां उन्‍होंने ज़बर्दस्‍त सक्रियता दिखाई । जीवन की त्रासदी देखिए कि कैंसर के खिलाफ़ जंग छेड़ने वाली नरगिस खुद इस जानलेवा बीमारी की शिकार बनीं और फिर इस बीमारी से हार भी गयीं ।

मैंने कितने ही फिल्‍म कलाकारों से सुना है कि नरगिस कितनी बड़े दिल वाली और कितनी जिंदादिल थीं । कई बार तो पूरी यूनिट के लोगों के लिए खाना बनाकर लाती थीं । साथी कलाकारों का बहुत ख्‍याल रखती थीं । उनका गरिमामय व्‍यक्तित्‍व, समाज से उनके सरोकार, उनकी जिंदादिली और उनकी प्रतिभा एक साथ इतने गुण आज की अभिनेत्रियों में कम ही नज़र आते हैं । नरगिस आपा को विनम्र श्रद्धांजलि ।




7 comments:

Pramendra Pratap Singh May 4, 2007 at 8:08 AM  

नरगिस दत्‍त के बारे मे पढ़कर अच्‍छा लगा। वे एक ऐसी अदाकारा थी जिन्‍होने हमेश अपने किरदार के साथ न्‍याय किया। उनकी फिल्‍मे आज भी दिलों को जाती है।

आपके द्वारा प्रस्‍तुत गानों का संकलन बहुत अच्‍छा था। बधाई।

Anonymous,  May 4, 2007 at 1:59 PM  

Nasgis ke ek pahloo ki charcha aapne nahi ki. Nargis aur Sunil Dutt ka Ajanta Art group tha jiske zariye ve stage programmes karte the aur naye kalakaaron ko mauka bhi dete the.

Ek aur baat - Nargis ke samay Meena Kumari ka bhi zabardast crez tha. Awara ke baad jab bhi charcha hui yahi kaha gaya ki Meena Kumari Bhartiya nari aur Nargis professional.

Annapurna

Voice Artist Vikas Shukla विकासवाणी यूट्यूब चॅनल May 4, 2007 at 7:22 PM  

Yunusbhai, Nargisji ke bareme aap ne jo likha hai vo to hamesha kee tarah kabile tarif hai hee. Agar usme Raj Nargis aur Dilip Saab kee Love Traingle film Andaaz ka jikr hota to aur maza aa jata tha.
R.K.Film ke logo ke bareme aapne jo kaha hain, mere khayal se vo drishya film Barsaat ka hain, Shree 420 ka nahi. Agar main galat hun to Bhool Chook Lena Dena.

sanjay patel May 4, 2007 at 10:37 PM  

युनूस भाई..आदाब.नरगिस आपा को ख़ूब याद किया आपने.मुझे लगता है वे पहली अदाकारा थीं जिन्हें सिल्वर स्क्रीन की स्टार का दर्जा दिया जाना चाहिये.
मदर इंडिया में जब वे बैलगाडी में बैठ कर ससुराल जा रहीं हैं... तब उनके चेहरे के हाव भाव देखियेगा..
लगता है हमारे घर की बहन-बेटी आज आंगन से विदा हो ली.शमशाद आपा की पंजाबी रंग में भीगी और लर्ज़िश भरी आवाज़ को चित्रित करती नरगिस..
अपनी आंखों से पीछे छोड़ आया पूरा का पूरा अतीत बयान करतीं हैं..

युनूस भाई कहां गये वो लोग...कहां गया वो खा़लिसपन ...कहां गईं वो ईमानदार कोशिशें जिनमें हमारा जनपदीय परिवेश बोलता था ...इंटरनेट ..मोबाईल...कंम्प्यूटर हमें सब दे देंगे....
नरगिस आपा की आंखों का वो पनीलापन कहां से लाकर देंगे ?
गुज़रे ज़माने के उन चेहरों से ये आवाज़ आ रही है युनूस भाई ...
लौट जाओ ऐ इंसानो ...
तुम्हारी वो पुरानी दुनिया ही सच्ची थी...जिसमे खु़लूस था...मोहब्ब्तें थीं...मेहबूब खा़न थे...नरगिस थीं...

Divine India May 4, 2007 at 11:11 PM  

The first female superstar of the Indian Cinema....!!
एक बहुत बड़ी अदाकारा और युनूस भाई…आपकी प्रस्तुति सदा की भांति व्यापक और पूर्ण होती है…लिखते रहे!!!

Manish Kumar May 5, 2007 at 12:30 AM  

नरगिस के निजी जीवन,उनकी फिल्मों और उनके बेशकीमती गीतों की अच्छी सैर कराई यूनुस ! बहुत बहुत धन्यवाद !

PIYUSH MEHTA-SURAT June 23, 2007 at 11:18 PM  

aadaraNeey shree yunusji, bahot hee bahetareen. par ek baat mooze kaheni hai, kee film shree 420 ke geet Pyar Hooaa.. me sv. shree raaj kapoor violin naheen par chhotee chhotee bansooree ka ek jod bajaaate dikhaaee dete hai, jab kee violinb unhone film barsaat me apane aapko bajaate dikhaaya tha, aur vo gaanaa thaa ooo mooze kisise pyaar ho gaya. agar meree galatee ho to aap ya koee pathak hame suchit kare.
PIYUSH MEHTA-SURAT

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